Thursday, February 23, 2012

लघु कथा- चिराग तले...


इशु, बेटा गुप्ता जी की दूकान से बड़े वाले चार ड्राइंग पेपर और ले आ..........प्लीज! अपनी दस बर्षीय बेटी इशा को आवाज लगाते हुए रमेश बोला। आज छुट्टी का दिन था और रमेश सुबह-सबेरे ही उठकर भोजन कक्ष में मौजूद खाने की बड़ी मेज पर चार-पांच सफ़ेद आर्ट पेपरों और इशा के स्कूल-बस्ते से चित्रकला का सामान निकालकर अपने सपनो के घर का नक्शा बनाने में मशगूल था। अपने ही कल्पना जगत में खोया वह यह सज्ञान लेना भी भूल गया कि सबिता ने उसे उसी टेबल पर नाश्ता भी परोसा था और उसे वह कब का चट कर गया था। उसकी यह तंद्रा तब टूटी जब करीब ग्यारह बजे सबिता उसके लिए दूसरी बार चाय बनाकर लाई और रमेश ने सबिता से सवाल किया कि आज नाश्ता खिलाने का मूड नहीं है क्या, तो तब सबिता बोली, पागल हो गए हो क्या, तुमने साढ़े आठ बजे के करीब जो खाया था वो क्या नाश्ता नहीं था?


यूं तो जब से प्लॉट की रजिस्ट्री घर में आई थी, सबिता भी सोते-जागते अपने मानस पटल पर कई स्वप्न-महल खड़े कर चुकी थी। घर के कामों से फुर्सत मिलते ही आलमारी के लॉकर में रखी रजिस्ट्री को वह भी मेज पर फैलाकर उस रजिस्ट्री संग लगे प्लाट के मानचित्र को उल्टा-पुल्टाकर, भिन्न-भिन्न कोणों से देखने की कोशिश करती। यही हाल आज रमेश का भी था, अपनी जिज्ञासाओं और परिकल्पनाओं की ऊँची उडान उड़ते हुए वह भी इस कोशिश में जुटा था कि कैसे अपने उस प्लॉट की सीमित जगह में वह उस हर ख्वाइश को स्थापित कर पाए, जिसके उसने सालों से सपने बुन रखे थे। बगल के कमरे में इशा, मोहल्ले के अपने दोस्तों संग खेलते हुए अपने पापा की बात को अनसुना कर गई थी, अत: रमेश ने थोड़ा खीजते हुए पुन:आवाज लगाईं....बेटा इशु, यार आप मेरी बात सुनकर अनसुना कर जाती हो.... पांच मिनट तो लगेंगे..... ले आओं न प्लीज! इशा दोस्तों से निपटकर बैठक में आई और कहने लगी..... यार पापा, सुबह-सबेरे भी तो आपने इतने सारे ड्राइंग पेपर मुझसे मंगवाए थे, वे कहाँ गए ? ड्राइंग बनाते-बनाते सब खराब हो गए, रमेश ने जबाब दिया। ओ माई गोंड, उत्ते सारे पेपर......इशा बोली । फिर अपनी कोमल हथेली को अपने माथे पर मारते हुए बोली.... यार पापा, मम्मी ठीक कहती है... आप सच में बुद्धू हो। आप अपने लैपटॉप में फोटो-शॉप अथवा पेंट में जाकर क्यों नहीं मैप बना लेते हो..... फालतू में ड्राइंग पेपर खराब कर रहे हो। उसमे मुझे लाइनिग ठीक से खींचनी नहीं आती, रमेश बोला। अरे बाबा, आपको लाइनिंग खीचने की जरुरत क्या है..... गूगल सर्च में जाकर किसी मकान का नक्शा ढूंढो और उसे वहाँ कॉपी-पेस्ट करके उसमे अपने मुताविक काट-छाँट कर लो...बस।


बेटी की कही बात अब रमेश की समझ में आ गई थी, साथ ही साथ वह इशा की समझ की भी मन ही मन सराहना भी कर रहा था और सोच रहा था कि हम कहाँ रह गए, ये आजकल की नई पीढी वाकई हमसे कितने आगे है। रमेश को तो मानो घर का मानचित्र बनाने का भूत सा सवार हो गया था, अत: दोपहर का भोजन करने के उपरान्त एक बार फिर से वह लैपटॉप पर बैठ गया था। मन मुताविक उसने एक खाका भी तैयार कर लिया था, तभी इलाके में ही रहने वाले उसके एक परिचित घर में आ धमके।उन्होंने जब उसका हालचाल पूछा और पूछा कि कंप्यूटर पर क्या कर रहे थे, तो उससे रहा न गया और उन्हें अपना बनाया हुआ घर का मानचित्र लैपटॉप की स्क्रीन पर ही उन्हें दिखाने और उसकी बारीकियों से उन्हें अवगत कराने में जुट गया। इस बीच सबिता भी किचन से चाय-पानी ले आई थी, उसे मेज पर रखते हुए वह उनकी तरह मुखातिब होते हुए बोली; भाई साहब, ये तो ऐसी चीजे मानते नहीं और न हीं इन्हें उस चीज का ज्ञान ही है, किन्तु आपको तो मालूम ही होगा वास्तु के बारे में, थोड़ा इन्हें भी बताइये न।


आगंतुक बोले, भाभी जी ! सच कहूँ तो वास्तु के बारे में ख़ास जानकारी तो मुझे भी नहीं है किन्तु मैं देसाई भाई को जानता हूँ जो संरचना अभियांत्रिकी और वास्तु शिल्प के अच्छे ज्ञाता और सरकारी मान्यताप्राप्त मानचित्र प्रमाण कर्ता और सलाहकार है, फीस भी ठीक-ठाक ही लेते है, वे आपको आपके घर का एक शानदार और वास्तु से परिपूर्ण नक्शा बनाकर दे देंगे, आप चाहो तो आप लोंगो को मैं उनसे उनके दफ्तर में मिला सकता हूँ। हालांकि रमेश वास्तु को ख़ास तबज्जो नहीं देता था, किन्तु सबिता टीवी पर वास्तु से सम्बंधित कार्यकर्म देख-देखकर उसे काफी अहमियत देने लगी थी, अत : उसने जिद कर दी कि जब हमें नक्शा पास करवाना ही है तो क्यों न किसी ऐसे सलाहकार की मदद ली जाए जो नक्शा भी प्रमाणित करके दे और वास्तु के गुण भी उसमे सम्मिलित करके दे।


कुछ रोज उपरान्त एक दिन रमेश, पत्नी सबिता और बेटी इशा को साथ लेकर उन देसाई भाई के दफ्तर पहुँच गए थे। उनके दफ्तर के बाहर देसाई एंड कंसल्टेंट का एक बड़ा सा बोर्ड लगा था। आपसी परिचय के दौरान ही रमेश को पता चला कि इन सज्जन का नाम इफ्तिकार मोहम्मद भाई देसाई है, और जो गुजरात के मूल निवासी है। अपने उस परिचित का हवाला देकर जिन्होंने पिछले रविवार को इन देसाई भाई के बारे में रमेश को जानकारी दी थी, रमेश ने अपने प्लॉट की रजिस्ट्री और मानचित्र उनके समक्ष रखे और उनसे वास्तु परिपूर्ण अपने घर का नक्शा बनाने का आग्रह किया।


देसाई भाई ने अपने मेज की दराज से कुछ नक़्शे निकाले और उनके समक्ष मेज पर फैलाकर उन्हें वास्तु की जानकारियों और बारीकियों से अवगत कराने लगे। वे बोले, रमेश जी, वास्तु कोई अंध-विश्वास नहीं है, यह एक विज्ञान है, जो ये बताता है कि हम अपने घर में अथवा दफ्तर में किंचित छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अधिक से अधिक सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सकते है, और एक पढ़े-लिखे इंसान से हमेशा ऐसी समझदारी की अपेक्षा भी की जाती है कि वह अपने -अच्छे-बुरे को समझे और अच्छाइयों का अनुशरण करे,वरना तो...... अब देखिये कि चूंकि आपका प्लाट दक्षिण-पूरब मुखी है, इसलिए आपको चाहिए कि आप अपने कीचन का स्थान दक्षिण-पूरब वाले कोने पर रखे..... मुख्य शयन कक्ष दक्षिण पश्चिम में और मंदिर को उत्तर-पूरब में रखे। मंदिर को इस ढंग से स्थापित किया जाना चाहिए कि जब आप प्रभू-स्मरण और पूजा-पाठ को बैठे तो आपका मुख हमेशा पूरब की तरफ होना चाहिए........ईश वंदना का यही सर्वोत्तम तरीका माना जाता है, और इससे मन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।


रमेश और उसका परिवार, खासकर बेटी इशा बड़े ध्यान से देसाई भाई की बातों को सुन रहे थे। रमेश तो इस बात से देसाई भाई का मन ही मन कायल हो गया था कि एक भिन्न मजहब के होते हुए भी उन्हें हमारे धर्म से सम्बंधित कितना ज्ञान है। बातों-बातों में दोपहर होने को आई थी, इससे पहले कि रमेश, देसाई भाई से यह पूछता कि नक्शा तैयार होने में और कितना समय लगेगा, देसाई भाई खुद ही बोल पड़े; रमेश जी,अभी नक्शा तैयार होने में एक-डेड घंटा लग जाएगा, दोपहर के भोजन का समय हो गया है , बिटिया को भूख लग रही होगी, उसे बाहर मार्केट से कुछ खिला-पिला लाइए । रमेश बोला, ठीक है सर जी, आप भी चलिए..... देसाई भाई बोले, नहीं.. नहीं, आप जाइये मुझे अभी दिन की नमाज भी अता करनी है....!

बाजार से भोजन कर रमेश और उसका परिवार जब पुन; देसाई भाई के दफ्तर में पहुंचे तो देखा कि देसाई भाई एक चटाई बिछाकर पश्चिम की तरफ मुख करके नमाज अता कर रहे थे। चुलबुली इशा कहाँ चुप रहने वाली थी, झट से बोल पडी, पापा, ये अंकल हमें तो समझा रहे थे कि पूजा करते वक्त इंसान का मुख पूरब की तरफ होना चाइये... और खुद पश्चिम ... इससे पहले कि इशा कुछ और कहती सबिता ने इशा को बड़ी-बड़ी आँखें दिखाकर झठ से अपने हाथ से उसका मुह बंद कर दिया........................!

10 comments:

  1. इसी को कहते हैं ...पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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  2. समझ गए ... कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ...

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  3. अच्छी कहानी ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  4. सौ फी सदी सच्ची बात

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  5. वास्तु तो वास्तव में मन में बसी श्रद्धा है वर्ना सभी दिशाएं ईश की ही तो हैं।

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  6. बच्चों के प्रश्न सच्चे...

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  7. सही कहा संगीता जी ने ………इसी को कहते हैं ...पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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  8. सही कहा है चिराग तले ही अँधेरा होता है...रोचक प्रस्तुति..

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