Saturday, April 6, 2013

क्या कुछ और गिरने की कोई गुंजाइश बाकी है ?

मुंबई के थाणे की घटना, अपने आस-पास रोज घटित होती घटनाएं, और एक यह घटना जिससे सम्बंधित खबर मैं नीचे चस्पा कर रहा हूँ।  मान लीजिये कि पेट के खातिर ही सही, मगर वह अभागा बन्दूक काँधे उठाये  सरहद की रखवाली करते अपना सर कलम करवा गया,  ताकि सरहद पार से कोई दुश्मन,  उसके देश, उसके समाज, उसके कुटुंब और उसके परिवार को कोई नुकशान न पहुंचाए। उसे क्या मालूम था कि कुटिल शत्रुओं की पूरी फ़ौज तो उसके अपने घर  के आस-पास ही मौजूद है। 
शहीद हेमराज का मासूम और भोला परिवार
शहीद हेमराज का मासूम और भोला परिवार 

"शहीद हेमराज की पत्नी धर्मवती ने पुलिस को बताया कि शुक्रवार सुबह एक फौजी वर्दीधारी युवक उनके गांव आया था। उसने बताया कि उसका नाम अमित है और वह आर्मी हेडक्वॉर्टर से आया है। उसने धर्मवती से कहा कि अभी तक बच्ची के नाम एफडी नहीं बनवाई गई और इससे टैक्स भरना पडे़गा। उसने बैंक में जमा पैसे की एफडी कराने और बाकी पैसों को दूसरे बैंक में जमा कराने की सलाह दी। धर्मवती और परिवार के बाकी लोग अमित के झांसे में आ गए।

धर्मवती ने बताया कि इसके बाद वह अमित, चचिया ससुर गजेंद्र सिंह के साथ छाता स्टेट बैंक पहुंच गईं। वहां बेटी के नाम से एफडी बनवाई गई और दस लाख रुपये दूसरे बैंक में जमा करवाने के लिए निकाल लिए गए। रुपयों से भरा बैग अमित ने अपने पास रख लिया। धर्मवती फौजी की बाइक पर छाता से गांव की ओर चल दी। दूसरी बाइक पर गजेंद्र सिंह व हेमराज के चचेरे भाई भगवान सिंह आ रहे थे। रास्ते में अमित ने पेट्रोल भरवाने के बहाने धर्मवती को बाइक से उतारा और इसके बाद वह रफ्फूचक्कर हो गया।"




एक नजर में तो यह उस शहीद के अपने ही किसी नजदीकी की करतूत लगती है, क्योंकि किसी बाहर के अनजान कमीने को क्या मालूम कि शहीद के मौत का मुआवजा उसके परिवार वालों ने ऍफ़ डी करवाया या नहीं ? और एक अनजान व्यक्ति के साथ शहीद की विधवा को उसकी मोटरसाइकिल में बिठाने का काम तो कोई निहायत बेवकूफ इंसान ही कर सकता है, वह भी इस आज के कमीनो से भरी इस दुनिया में।

खैर ज्यादा न कहकर  आपसे भी यही गुजारिश करुगा कि खबर पर मनन करते हुए मेरी ही तरह आप भी शर्मशार  होइये।    


छवि नभाटा से साभार !  

12 comments:

  1. शर्मसार होने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचता। अभी जनवरी की ही दो बात है शहीद हेमराज को गए हुए और अभी से उसके परिवार की इतनी अनदेखी। तन्‍त्र क्‍या कर रहा है,

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  2. हरकत तो घरवालों की ही लगती है ॥सब हिस्सा बाँट लेंगे .... हद है ... यहाँ तंत्र से ज्यादा परिवार की बात है ।

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    1. तन्‍त्र की बात इस लिए है कि समाज, परिवार की ठेकेदारी इसी ने ले रखी है चलाने के लिए। जैसे यह होगा वैसा ही समाज और परिवार और व्‍यक्ति होगा। समाज, परिवार, व्‍यक्ति कोई एकल इकाई थोड़े ही हैं अस्तित्‍व में इस कठोर आधुनिक युग में।

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  3. लगता है परिवार के ही लोगों का हाथ है,निहायत शर्मसार करती घटना !!!

    RECENT POST: जुल्म

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-04-2013) के “जुल्म” (चर्चा मंच-1207) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  5. Vakai Sharmsaar hone ka muqaam hai... Aise logo ke liye manviye samvedna kuchh bhi nahi hai, paisa hi sabkuchh hai...

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  6. बस शर्मसार ही हुआ जा सकता है ... कुछ कहते नहीं बन पाता ...

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  7. अपने स्वार्थ में अँधा होकर इंसान इतना गिरता जा रहा है की उसे इंसानियत नज़र ही नहीं आती ... . दुखी इंसान को दुःख देना...ऊपर वाला कभी न कभी हिसाब चुकता जरुर करता है भले ही देर हो .... .

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  8. अब तो आदत सी पढ़ गई है शर्मिंदा होने की !

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