Friday, February 1, 2013

मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया !











जो गए, कुछ राम प्यारे गए, 

तो कुछ अली के दुलारे गए,

चिरकाल यहाँ ठहरा कोई,

जितने थे ,सारे के सारे गए।



फिर कोई गुल न साखे रहा,

कोई फल गुलशन बचा , 

'माले-मुफ्त-दिले बेरहम',

गुलफाम मुफ्त में मारे गए। 


माले-मुफ्त,दिले बेरहम' = हरामखोर 

चित्र नेट से साभार !

14 comments:

  1. Replies
    1. मैडम कृपया मुझसे संपर्क करें ।मैं नसीब सभ्रवाल ,अक्की, पानीपत से।9716000302

      Delete
  2. वाह वाह ! क्या बात है ! किसकी तस्वीर है ये ? :)

    ReplyDelete
  3. अच्छे चित्र |
    अच्छे शब्द-चित्र ||

    ReplyDelete
  4. सारी गलियां बंद हैं, सब कातिक में खेत |
    काशी के भैरव विवश, गायब शिव-अनिकेत |
    गायब शिव-अनिकेत, चलो बैठकी जमायें |
    रविकर ना परचेत, दिखें हैं दायें-बाएं |
    जय बाबा की बोल, ढारता पारी पारी |
    करके बोतल ख़त्म, कहूँगा आइ'म सॉरी ||

    ReplyDelete
  5. सब चित्र ही बखान रहा है..

    ReplyDelete
  6. मुफ्तखोरों की कोई कमी नहीं ..गटके जाओ बस...
    बहुत खूब..

    ReplyDelete
  7. हा हा... बहुत बढ़िया है.. चित्र तो बहुत ही खोजकर लगाया है.

    ReplyDelete
  8. जय बाबा की बोल,ढारता पारी पारी |
    करके बोतल ख़त्म,कहूँगा आइ'म सॉरी ||
    इस रचना के लिये,,,रविकर जी की सटीक टिप्पणी,

    RECENT POST शहीदों की याद में,

    ReplyDelete
  9. मुद्दे यार किसके खाए पिए खिसके .

    ReplyDelete
  10. जाना सभी ने है ... इसलिए मत रहो ...

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सही कहा आपने.

    पर रामप्यारे तो अभी तक हमारे पास है.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  12. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...