कभी लगा ही नहीं,
फासला-ए-मोहब्बत,
शब्दों की मोहताज रही हो,
प्रेम सदा ही प्रबल रहा,
बात वो कल की हो,
या फिर आज रही हो।
तुम्हीं बताओ, बीच हमारे
दूरियों के दरमियाँ,
कुछ गलत एहसास तुमको
होने दिया हो हमने,
बावजूद इसके कि कभी
तबीयत भी नासाज रही हो।।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना, कि...
वाह
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सार्थक और सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteवाह !!बहुत खूब ,सादर नमन आपको
ReplyDelete