Tuesday, July 21, 2009

हर एक आम आदमी रोता है

जनतंत्र की शय्या पे हर रहनुमा ,
कलुषता की चादर ओढ़ के सोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,  
आज हर एक आम आदमी रोता है।  

हुआ कर्तव्य गौण, प्रमुख आसन,
निकम्मा, सुप्त पडा वृथा-प्रशासन,
लाज बचाती फिर रही द्रोपदी,
चीर-हरण  में  है मग्न  दुश्शासन।  

धोये थे पग मर्यादा पुरुषोतम के ,
वही केवट अब दुष्ट-धूमिल पग धोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है।  

चुनाव  के नाम पर गड़बड़झाला,
परिवारवाद का है  बोलबाला,
इंसाफ़  न पाता  निश्शक्त मुद्दई ,
फरियाद न कोई सुनने वाला !

घोटालों  की परिक्रामी कुर्सी पर, 
अलसाया दफ़्तरशाह सोता है, 
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है। 

शर्मशार हो रही पतित नैतिकता,
शरमो-हया निगल गई नग्नता,
संस्कृति नाच रही रात पबो में,
सभ्यता बन गई समलैंगिकता !

जहां सब कुछ मंहगा, मौत है सस्ती,
मुफ़लिस निज-शव काँधे रख ढोता है,
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में,
आज हर एक आम आदमी रोता है। 




7 comments:

  1. बहुत बढ़िया,
    पी.सी. गोदियाल जी!

    आदमी ही चोर है और आदमी मुँह-जोर है ।
    आदमी पर आदमी का, हाय! कितना जोर है।।

    आदमी आबाद था, अब आदमी बरबाद है।
    आदमी के देश में, अब आदमी नाशाद है।।

    आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
    आदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।

    आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से।
    आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।।

    ReplyDelete
  2. "शर्मशार हो गई पतित नैतिकता,
    शरमो-हया को खा गई नग्नता !
    संस्कृति नाच रही आज पबो में,
    सभ्यता बन गई समलैंगिकता!"

    रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

    ReplyDelete
  3. इस रचना में आपने कहा सत्य हालात।
    भाव सबल के संग में कई पते की बात।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  4. यथार्थ बयानी!!

    सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
    आज एक आम आदमी रोता है !

    -यही हालात हैं!!!

    ReplyDelete
  5. शुक्रिया आप सभी लोगो का !

    ReplyDelete
  6. लाजवाब !!!! कटु यथार्थ को बहुत ही सुन्दर शब्दों में सजा आपने अभिव्यक्ति दिया है......

    सत्य का उद्घाटन करती बहुत ही सुन्दर रचना....आभार.

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...