वैरियों से जुडे हों जिनके तार ऐसे,
कृषक भेष मे लुंठक, बटमार ऐसे,
कापुरुष किसान परेड की आड मे,
कर रहे है, देश-छवि शर्मशार ऐसे।
इधर ये, वीरों के शौर्य को सलाम करके
लोग करते गणतंत्र पर्व को साकार ऐसे ,
उधर वो, लालकिले को रौंदने मे लगे हैं,
कुछ फसादी, तुच्छ-स्वार्थी मक्कार ऐसे।
नेताओं की महत्वाकांक्षा ने कर रखा
सम्पूर्ण व्यवस्था के तंत्र को लाचार ऐसे,
कापुरुष किसान परेड की आड मे,
कर रहे है, वतन-छवि शर्मशार ऐसे।
सभी ब्लॉग मित्रों को गणतंत्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं।🙏