Friday, June 19, 2015

छणिकाएँ

एहसास :
'अच्छे दिन" 
अभी दूर की कौड़ी है,
इस जोड़े का दुस्साहस देखकर 
इतना तो एहसास  मिल ही गया।  


रमादान:
 इबादत के इस दौर में, मांगता हूँ मैं भी ये दुआ खुदा से कि 
 ऐ खुदा, कुछ अंधभक्तों को भी अपने, थोड़ी सी अक़्ल देना।

क्रेडिट कार्ड: 
बनकर आया है जबसे
अपनी श्रीमती जी का क्रेडिट कार्ड, 
घर ई-कॉमर्स कंपनियों के  
दफ़्ती,डिब्बों के ढ़ेर में तब्दील हो गया है।   

अच्छे दिनों के इंतज़ार में :
जरुरत से ज्यादा 'लीद' निकाली है  जबसे कम्बख्त  मैगी ने, 
बुरे दिन लौट आये है स्वास्थ्य विघातक अर्वाचीन  बीवियाँ के।  


योग जूनून:
कुछ इसतरह फंस गई जिंदगी 
अलोम -विलोम के चक्कर में
कि अब तो बीवी के हाथों की
सुबह की चाय भी नसीब नहीं होती।       


संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।