Monday, March 30, 2020

बडा सवाल, लक्ष्य क्या है ?

दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके से खबर आ रही है कि वहां करीब 300 लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण होने की आशंका है, जिससे से तमिलनाडु से आए 10 लोगों की मौत भी हो गई है। यहां एक धार्मिक कार्यक्रम मे शामिल होने कुल 1400 भारतीय मुस्लिम और 300 विदेशी मुस्लिम आए हुए थे।


जानता हूँ, हमारे देश के बहुत से छद्म-धर्मनिर्पेक्ष ज्ञानी और समुदाय विशेष के बुद्धिजीवी, मजबूरी और जानबूझकर देश के कानूनों का उल्लंघन मे फर्क न कर पाएंगे और  मजदूर पलायन से इसे जोडकर देखने का भरसक प्रयास करेंगे। मगर बडा सवाल यह कि एक तरफ जहाँ दिल्ली की सरकार डेड-दो हफ्ते पहले यह घोषणा करती है कि सभी धार्मिक उत्सवों पर रोक लगा दी गई है फिर नाक के नीचे हो रहे इस आयोजन को नजरअंदाज क्यों किया गया? सिर्फ इसलिए कि वो इनका वोट-बैंक है?

देखकर बडा अफसोस होता है कि समुदाय विशेष एक तरफ तो देश के कानूनों की जानबूझकर अनदेखी करता है, उसे नही मानता है और वहीं दूसरी तरफ सरकार फ्री राशन या खाते मे पैंसे डालने की घोषणा कर दे तो तमाम कस्बा ही अगली सुबह बैंक पर धावा बोल देता है। दिल्ली मे फोनकर के घर मे खाने के लिए कुछ न होने का बहाना कर गरीबों के लिए आवंटित सामान की जमाखोरी और मेरठ के बैंक के आगे भीड का समाचार तो समाचार माध्यमों के जरिए देखा ही होगा। मतलब, जहां कुछ सरकार से मिल रहा हो, वो हमारा अधिकार, किंतु जहां दाइत्व की बात हो, वहां अपना पर्सनल लॉ ।

सीएए विरोध के दरमियान इनके तथाकथित बुद्धिजीवियों और मौलानाओं ने भी विभिन्न मंचों से देश को तवाह करने की पूरी भडास निकाली थी। तो चिंताजनक और मननशील आज एक सवाल यह खडा हो गया है कि आखिर इनकी मनसा क्या है ? धर्म की आड मे क्या किसी साजिश के तहत पूरे देश के हितों की अ़ंंदेखी की जा रही है। यदि हां, तो इसका अंतिम छोर कहांं है ?


Sunday, March 29, 2020

कल जब दिल्ली की सडकों का ये हाल था
तो ये जनाब ट्विटर पर लोगों से घर पर बने रहने की अपील कर रहे थे।

जब सोशल मीडिया पर खूब लताडे गये तो आज सडक पर उतरकर पटरी पर बैठे एक बेघर भिखारी को डांटते हुए बोले,
"तुम्हे मालूम है, देश मे 21दिन का लॉकडाउन है,
स्टे ऐट होम।"😂😂

Saturday, March 28, 2020

वाहवाही बटोरने की मानसिकता पर ब्रेक की जरूरत ।

हडवडी मे घोषित देशव्यापी सर्व लॉकडाउन कुछ ही दिनों मे गरीब मजदूरों, रेडी-पटरी वालों के पलायन की ऐसी भयावह तस्वीर पेश करेगा कभी सोचा न था। 21वीं सदी का भारत कमोवेश देश विभाजन के समय की स्थिति से ज्यादा भिन्न नहीं नजर आ रहा। अतः मन मे कई सवाल उठना लाजिमी है।

सबसे पहला और प्रमुख सवाल यह उठ खडा हुआ कि ऐसी अस्तव्यस्तता की स्थिति पैदा क्यों हुई, इसकी मुख्य वजह क्या है? पांच ट्रीलियन की अर्थव्यवस्था के सपने देखना, विश्व समुदाय के बीच अपने को चौथी और पांचवीं सबसे बडी अर्थ व्यवस्था के खिताब से नवाजा जाना मन को क्षणभंगुर सुख की अनुभूति अवश्य प्रदान करता है किन्तु अंदर की सच्चाई जानने लगो तो एक भयावह तस्वीर नजरों के सामने घूमने लगती है।

राजनेताओं और सत्तातंत्र के मुह से यह सुनने मे तो काफी सुखद लगता है कि हम अगले तीन महिनें तक 80 करोड़ लोगों को फ्री का राशन खिलाएंगे। हम देश की राजधानी मे रोज चार लाख लोगों को मुफ्त़ मे भोजन देंगे। मगर वास्तविक सच्चाई ये है कि ये लोग इनके लिए सत्ता हासिल करने का एक माध्यम मात्र है। एक बार अगर ये सत्ता पर काबिज हो जाएंं तो इन महापुरुषों से ये सवाल कोई नहीं कर सकता कि अरे, भले मानुसों, अगर हमें रोज मुफ्त़ का पेटभर भोजन उपलब्ध हो जाता, फ्री की राशन और पैसा मिल जाता तो हम पागल थे जो देश की राजधानी छोड, भूखे-नंगे अपने गाँव की ओर पैदल ही निकल पडते? हम सडकों पर पुलिस के डण्डे खाएं और जो अमीर इस महामारी को इस देश के अन्दर लाए उन्हें आप विमान भेजकर विदेशी धरती से खुशी-खुशी देश लेकर आओ।

कुछ राजनीतिज्ञो और उनकी सरकारों के प्रयास ईमानदार होंगे, इसमे कोई संदेह नहीं कि यह कौन देखेगा कि क्या उनके प्रयासों का प्रतिफल उचित जरूरतमंदो को मिल भी रहा अथवा नहीं? 'एक देश एक राशन कार्ड' के चक्कर मे उत्तराखंड समेत कई राज्यों मे लम्बे समय से राशनकार्ड बनने ही बंद हो रखे हैं। फिर कोई जरूरतमंद आर्थिक पैकेज का लाभ कैसे उठाएगा ? और अंदर झांक कर दखोगे तो पाओगे कि सरकार के ईमानदार प्रयासों के बावजूद भी एक मोटी जमात ऐसी है जो आर्थिक रुप से सुदृढ़ होते हुए भी बीपीएल के 2 रुपये कीलो चावल का लुत्फ़ उठा रही है।



महामारी का संक्रमण न हो इसके लिए सडक पर चार लोग एकत्रित तो नहीं हो रहे, यह तो आपने तत्परता से देखा लेकिन जो हजारों लोग बस अड्डों के समीप पिछले कई दिनों से एकत्रित होकर धक्के खा रहे हैं, वहां भी तो संक्रमण का अंदेशा है, यह कौन देखेगा? सेकडों की संख्या मे रेलगाड़ियां कुछ दिनों से खडी हैं। हमारे रेल मंत्री जी रेल सुधारों के बारे मे रोज अच्छे-अच्छे ट्वीट करते हैं। मगर यह देखने की किसी को फिक्र नहीं कि हजारों गरीब सेकडों किलोमीटर की यात्रा पैदल कर रहा है।

क्या ही अच्छा होता कि जनता के बीच '8PM वाले PMJi' का टाईटल अर्जित कर चुके माननीय प्रधानमंत्री जी विश्व समुदाय की वाहवाही के ख्याल को नजरअंदाज कर दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर तीन चार दिन पहले से देश की जनता को सरकारी तंत्र के माध्यम से यह सूचित करते कि अमूक तिथि से देश मे सम्पूर्ण लॉकडाउन होने जा रहा है। और अंतिम वक्त पर मारामारी और Chaos पैदा न होता। देश को महामारी से बचाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है और सरकार उस जिम्मेदारी को निभाने का एक माध्यम। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसका हर निर्णय परिपक्व हो।

Friday, March 27, 2020

कोरोना वायरस पर मोदी सरकार का हवाई फायर ।

सिर्फ हमारा देश ही नही अपितु पूरा विश्व समुदाय इस वक्त चीन के वूहान प्रान्त से शुरू हुए एक जानलेवा वायरस जिसे कोविड-19 नाम दिया गया है, से बुरी तरह जूझ रहा है। इस खतरनाक वायरस से प्रभावित हर देश की सरकारें अपने-अपने ढंग से नियंत्रण पाने की जी तोड कोशिशों मे जुटी हैं।

विश्व के कुछ चुनिन्दा शक्तिशाली देशों की क्रोना वायरस के आगे विवशता को देखते हुए तथा यहां मौजूद सीमित साधनों के मध्यनजर हमारी सरकार ने बडी चतुराईपूर्वक समय रहते इसपर नियंत्रण के लिए जो कदम उठाए उसकी मैं तारीफ करता हूं।

इसमे शायद ही किसी को संदेह हो कि हमारी मौजूदा सरकार न सिर्फ निपुण है बल्कि चुनौतियों का सामना करने मे भी सक्षम है। बस, कभी-कभार इनकी ये चातुर्यता थोड़ी ज्यादा (over) सी महसूस होने लगती है। जो सरकार की मुद्दे पर गम्भीरता के प्रति मन मे संदेह सा पैदा करने लगती है।

अभी कल ही सरकार की वित्तमंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण ने क्रोना की वजह से पूरे देश मे तीन सफ्ताह की तालीगिरी (Lockdown)  से उत्पन्न मौजूदा संकट से निपटने के लिए सरकार की तरफ से एक लाख सत्तर हजार करोड़ के विशाल आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इस आर्थिक पैकेज मे जहां कुछ पहलुओं पर सरकार का नजरिया बहुत ही सार्थक है वहीं इसमें किये गये प्रावधानों और घोषणाऔं की यथार्थता के प्रति संदेह भी पैदा होता है और यूँ लगने लगता है कि सरकारी तंत्र अपने चातुर्य से कहीं जनमानस की आंखों मे धूल तो नहीं झोंक रहा?

मसलन, कल के आर्थिक पैकेज की घोषणा मे सरकार कहती है कि वह उन प्राईवेट संस्थानों जिनके यहां 100 तक कर्मचारी/मजदूर काम करते हैं और 100 मे से अगर 90 या उससे अधिक कर्मचारियों का वेतन(जिसपर प्रोविडेंट फण्ड कटता है) 15000 रुपये से कम है,  अगले तीन माह तक कर्मचारी/मजदूर और नियोक्ता दोनों के हिस्से का फण्ड सरकार अपनी जेब से जमा करेगी। इससे अस्सी लाख कर्मचारियों/मजदूरों को फायदा होगा।
अब यहां व्यवहारिक तौर पर देखने वाली बात यह है कि मान लो एक प्राईवेट फर्म है जिसमे कुल 100 लोग नौकरी करते हैं और जिसमे से नवासी(89) मजदूर जिनकी सेलरी 15000 रुपये से कम है और 11 कर्मचारी विभिन्न पदों पर काम करते हैं, जो हर महीने 15000 से अधिक कमाते हैं और हमारे देश मे यह एक बहुत स्वाभाविक बात है कि आठ मजदूरों के ऊपर दो कर्मचारी काम करते ही करते हैं। तो सरकार की उपरोक्त शर्त के अनुसार तो कोई भी प्राईवेट संस्थान इस पैकेज का लाभ नहीं उठा सकता? 

इसी तरह कुछ अपवादों को छोड गोर से देखें तो अन्य घोषणाओं मे भी बहुत से लोचे नजर आते हैं जो इस बाबत सरकार की मनसाहत पर संदेह पैदा करते हैं। यहां, एक और बात यह भी गौर करने वाली है जैसे कि मान लो, दिल्ली की एक फर्म है जिसमे 20 मजदूर काम करते हैं। दिल्ली सरकार ने एक अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 15000 रुपये मासिक के करीब निर्धारित की हुई है तो उस सस्थान को तो कोई लाभ ही नहीं मिलेगा। क्या ही अच्छा होता कि पीएफ का झुनझुना पकडाने की बजाए सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे सस्थानों से कहती कि वेतन देने के लिए वे बैंकों से तीन या छह माह का कर्ज ले सकते हैं जिसका ब्याज सरकार चुकाएगी।

-पीसी गोदियाल 'परचेत'

Wednesday, March 25, 2020

21वीं सदी की सबसे छोटी कहानींं।


'रेल' और 'रेली', दोनों पति-पत्नी रेलवे मे नौकरी करते थे। स्वछंद घूमना और मौज मस्ती ही उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा थी। अचानक एक दिन पढोसी मुल्क से एक चीनी वायरस आया और आते ही उसने देशभर मे अफरातफरी का माहौल खडा कर दिया। सरकार ने भी आव देखा न ताव, पूरा देश ही बंद कर डाला, वो भी तीन हफ्ते के लिए।

रेल और रेली ने सपने मे भी न सोचा होगा कि कभी ऐसा वक्त भी आ सकता है। उनके पास घर भी नहीं था।  प्लेटफार्म पर ही आराम फरमाने वाले जो ठहरे। अब जाएंं तो जांए कहांं? मजबूरन महानगर के एक गंदे नाले के किनारे छप्पर डालने की जगह मिली क्योंकि प्लेटफार्म तो उनसे भी होशियार बंधुओं ने पहले ही हथिया लिया था।

सारे होटल बंद, कुछ किराना दुकाने खुली भी थींं तो  खुद के पास न पकाने का साधन और न बनाने का तजुर्बा। अब, भूखे-प्यासे ही दिन गुजारकर लाँँकडाउन खत्म होने का इंतजार, कब खत्म होगा, इसी अधेड़बुन मे रेल की बगल मे बैठी भूखी-प्यासी रेली को अभी हल्की सी झपकी आई ही थी कि कालेज के दिनों की पापा की वो दुलारभरी आवाज उसके कानों मे गू़ंज उठी, "रेली बेटा, आजकल तुम्हारी विन्टर वैकेशन हैं, थोडा-बहुत मां के साथ किचन मे हाथ बंटा लिया करो, बेटा। किचन का काम कुछ सीखा रहेगा तो भविष्य मे पता नहीं कब काम आ जाए।"

रेल की पीठ से सिर के पिछले हिस्से को टिकाते हुए भरी आंखों  और डबडबाई आवाज मे रेली बडबडाई, "वो पापा, सोने दो ना....प्लीज"।

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सबक: अगर शादी की सोच रहे हो तो पहले एक अदद घर का इ़तजाम कर लेना चाहिए।😀 कौन जाने, क्या पता कब कुत्ते-बिल्ली, चमगादड़ खाने वाले जीव कौनसा वायरस उपजाकर दूसरों के यहां भेज दें? साथ ही यह भी पक्का 
मानकर चलेंं कि मां-बाप बेवजह सलाह नहीं देते।

Monday, March 16, 2020

लुटियंस का तिलिस्म।


मासुमियत भरी आवाज मे, आज
बिटिया यूं ही मुझसे पूछ बैठी,
पापा, राजधानी के एक खास इलाके को
लुटियंस जौन क्यों कहते हैं?

मैंने भी सहजता भरे अन्दाज मे
सरल शब्दों मे उसे बताया, बेटा,
बामपंथी झूकाव वाला वो खास एक
अभिजात्य वर्ग, स्वहित मे जिसने
हमेशा औरों का किया उत्सर्ग,
आजादी उपरांत, यह देश जौन-जौन
तस्सली से लूटे हैं, वो वहां रहते हैं,
इसीलिए, उसे लुटियंस जौन कहते हैं।😀

Tuesday, March 10, 2020

आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। रंगों का यह त्योहार आपके जीवन को भी रंगीन बनाए, एवं हर ख़ुशी, सुख, समृद्धि,स्वास्थ्य, वैभव एवं ऐश्वर्य प्रदान करें, यही कामना।

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...