Sunday, April 14, 2013

लघु कथा:-'पराधीन सपनेहु सुख नाही।'



         
स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था  द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्मित और बसाई गई एक कालोनी में पिछले एक दशक से रहते थे। उनकी कालोनी के ज्यादातर निवासी दिनभर दौड़-भागकर इधर से उधर बोझा ढ़ोने का काम करके अपनी रोजी चलाते थे। स्कूटर दम्पति समेत कालोनी के तमाम वाशिंदे यूं तो बहुत सुखी नहीं थे,  किन्तु फिर भी दो जून को  भरपेट मिल जाता था , बस यूं समझिये कि उसी में सुखी रहने की भरपूर कोशिश करते रहते थे।

लेकिन पिछले एक साल से , जबसे उनके पड़ोस में उनके एक नए पड़ोसी, बाइक मियाँ और उनकी पत्नी लूना आकर रहने लगे थे,  स्कूटर जी थोड़ा परेशान चल रहे थे। और उनकी परेशानी का सबब बने थे, खुद  उनके ये नए छरहरे बदन, सुडौल कद-काठी एवं खुशमिजाज, दिल-फेंक बाइक मियाँ। जीवन  की अधेड़ दहलीज पर पहुँच चुके तोंदू स्कूटर मियाँ को न जाने क्यों ऐसा लगता था कि उम्र में उनसे काफी छोटी और कमसिन उनकी बीवी स्कूटी को उनका यह नया आशिक मिजाज पड़ोसी,  बाइक मिंया गली में और सड़क पर आते-जाते लाइन मारता रहता  है। एक बार सोचा  कि  इनकी बीवी से जाकर शिकायत करूँ किन्तु फिर यह सोचकर रुक गए कि उन्हें लगता था कि  चूंकि लूना गरीब मोपेड खानदान से बिलोंग करती थी इसलिए शायद बाइक से दबी रहती थी, उसकी  बाइक पर खास नहीं चलती होगी।    

स्कूटर जी  इन बाइक मिंया की वजह से अक्सर टेंशन में ही रहने लगे थे। चैत मास  के अंतिम पखवाड़े की एक  भरी दोपहर, अपने घर के बाहर गली में पहले से खडी श्रीमती स्कूटी के बगल में कहीं से आकार स्कूटर जी भी खड़े हो गए थे और इससे पहले कि वे अपनी श्रीमती से कुछ कहते, श्रीमती जी ने ही व्यंग्य-बाण छोड़ते हुए पूछा " मेरे तोंदू जानेमन, कहाँ से आ रहे हो हांपते हुए ?" स्कूटर जी भी उसी व्यंगात्मक अंदाज में बोले,"हां, जानेबहार, अब उम्र हो गई है हमारे हांफने की, क्या करें, सब वक्त का तकाजा है। हाँ, तुम तो अभी जवान हो, खूब दौड़ो, फुदको , ये वक्त तुम्हारा है।" श्रीमती  स्कूटी तुरंत भांप गई कि  उनके शायर पतिदेव महाराज सेंटिमेंटल  हुए जा रहे है, अत: उसने झट से बात को घुमाते हुए स्कूटर जी से एक शेर सुनाने की फरमाइश कर डाली। स्कूटर महाराज भला कहाँ बीवी की फरमाइश को अनसुना करते, अत: उन्होंने भी तुरंत एक शेर उसकी खिदमत में हाजिर कर दिया;          

महलों के मालिक हो गए हैं लफंगे, चरस,गांजा,जाम बेचकर,
मिलता नहीं भरपेट कुलीन को,  मेहनत अपना काम बेचकर।
दर-दर भटक रहा आज, हृदय विदीर्ण आमआदमी इस देश में, 
किंतु खूब ऐश कर रहे हैं गांधी, शठ- कुटिल तेरा नाम बेचकर।।  

काफी देर तक इरशाद-इरशाद और वाह-वाह कर चुकने के बाद स्कूटी ने शहर में बढ़ती अव्यवस्था और अराजकता का एक नया राग छेड़ दिया। स्कूटर महाराज जी को तो बस कोई टोपिक चहिए होता है अपनी भड़ांस निकालने को, अत: फिर शुरू हो गए; अरे, भाग्यवान, ज्यादा दूर क्यों जाती हो, अपने इस मोहल्ले में ही देख लो न। अगर कहीं से एक चार पहिये वाला अथवा वाली आकर खडी  हो जाए, तो दुपहियों का गली में आना-जाना दूभर हो जाता है।......... तो तुम क्या सोचते हो  कि  सरकार निम्न आय वर्ग वालों की कलोनी में भी तीस फुट चौड़ी गली छोडती? स्कूटी ने टोकते हुए पूछा।....... हाँ, क्यों नहीं, अगर प्लानिंग में समझदार लोग बैठे हों तो वो सौ साल आगे तक की सोचकर प्लान बनाते है, और तुम तो जानती ही हो कि आजकल तो एक झुग्गी वाला भी कार रखता है। ज़रा अंग्रेजों के जमाने में झांककर देखो तो मालूम पडेगा कि वे जो भी प्लान बनाया करते थे , सौ-दो सौ साल आगे की बात सोचकर बनाते थे। और एक ये आज के प्लानर है, साल भर में ही इनकी प्लानिंग की हवा निकल जाती है। अब सारे ही रिजर्व कोटे और डोनेशन देकर बने प्लानर भर्ती करोगे तो यही सब होगा न । अब पिछले साल का ही वाकया देख लो, अपने मोहल्ले के बुजुर्ग एलएम्एल जी की धर्मपत्नी वेस्पा के सिरदर्द हुआ था और वे डोनेशन से बने डाक्टर झोलाछाप के पास गई तो उसने उनके सिर  पर ही इंजेक्शन घोप दिया था। 

स्कूटर दम्पति के बीच घर के बाहर गली में जिस जगह पर यह गुफ्तगू चल रही थी, वहाँ वे आपस में थोड़ा फासला बनाकर खड़े थे, यानि कि  मिंया-बीवी आपस में एक दूसरे से सटकर खड़े  नहीं थे, उनके बीच में काफी फासला था।  और  स्कूटर जी के बोलने का क्रम तब अचानक टूट गया जब कहीं से आकर उनका पड़ोसी बाइक उनके ठीक बीच में खडा हो गया था, मानो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में हो। पहले से ही उनसे जले-भुने बैठे स्कूटर महाराज जी यह देख अपना आपा खो गए और उन्हें अपशब्द कहने लगे।  

बाइक मिंया में एक और खासियत उस वक्त नजर आयी जब स्कूटर जी की तरह उन्होंने अपना संतुलन नहीं खोया और अपशब्द  सुनने के बाद भी शांत स्वर में मुस्कुराते हुए स्कूटर महाराज जी को समझाने लगे कि देखो स्कूटर मियाँ, आप हमारे से सीनियर हैं, इसलिए हम आपका सम्मान करते है। मुझे लगता है कि आप किसी गलतफहमी का शिकार हो गए है। आप कृपया मेरी दो बातों पर गौर फरमाइयेगा; पहली तो यह कि इस दुनिया में तमाम चीजे सिर्फ अपनी मर्जी के मालिक नही होते। हर कोई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर किसी दूसरे  के द्वारा ही गवर्न (संचालित) होते हैं। अब अपने बुजुर्ग मुखिया माननीय मौन सिंह को ही देख लीजिये, कौन सी पावर नहीं है उनके हाथ में आज, किन्तु उनकी बेचारगी देखिये, रिमोट किसी और के हाथ में है। इसलिए आपका यह सोचना कि  मैं खुद आकर आप पति-पत्नी के बीच में खडा हो गया, सरासर गलत है। दूसरी बात, आप मुझे एक समझदार गृहस्थ लगते है, इसलिए कह रहा हूँ कि घर के अन्दर आपका दाम्पत्य जीवन कैसा है इससे किसी को कुछ सरोकार नहीं, किन्तु जब घर से बाहर गली अथवा सड़क पर हो तो दूसरों की नजरों में अपने सांसारिक संबंधों  में इतना फासला मत रखिये कि पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे को खड़े होने की जगह मिल जाए।                                

अचानक स्कूटर जी के पिछवाड़े पर किसी के पैर के तलवों का एक जोर का झटका सा पड़ा  और स्कूटर जी फट-फट की आवाज करते हुए जाग गए। अरे, तो क्या मैं यह एक सपना देख रहा था? आँखे मलते हुए स्कूटर जी सोचने लगे, किन्तु वे सपने में बाइक मिंया के मुह से समझदारी की बातें सुनकर,मन ही मन उनकी वाकपटुता के कायल हो गए थे। पल भर बाद जब स्कूटर महाराज जी अपनी गली से बाहर निकल रहे थे तो बाइक मिंया को उन्होंने उसी स्थान पर खड़े पाया जहां वे अक्सर खड़े हुआ करते है। कभी जो बाइक मियाँ उन्हें फूटी आँख नहीं सुहाते थे, आज  स्कूटर जी ने एक मुस्कराहट भरी नजर बाइक मिंया की तरफ बिखेरी थी  और जाते-जाते उन्हें टाय (बाय) कहना नहीं भूले। बाइक मियाँ, स्कूटर महाराज के व्यवहार में इस अचानक आए बदलाब से हैरान थे।          

7 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया कथा है. लोग समझेंगे.

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  2. 'पराधीन सपनेहु सुख नाही।
    व्यंग भरी सुंदर कथा ,आभार

    Recent Post : अमन के लिए.

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  3. बहुत शानदार, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. विचारपूर्ण लघुकथा
    सुंदर प्रस्तुति


    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  5. रोचक, इनके रूपक सदा ही हमारे बीच पाये जाते हैं।

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  6. सुन्दर -
    शुभकामनायें आदरणीय ||

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  7. सारे ही रिजर्व कोटे और डोनेशन देकर बने प्लानर भर्ती करोगे तो यही सब होगा न ................जबर्दस्‍त कटाक्ष।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।