नोट: फिलहाल टिप्पणी सुविधा मौजूद है!
मैं व्यक्तिगत तौर पर इनके ऐसे पचासों महापुरुषों को जानता हूँ जो शेयर ट्रेडिंग से जुड़े है, और उनमे से कुछ तो शेयर ट्रेडिंग वाली वेब साईटों पर "गेस्ट" अथवा "बेनामी" के तौर पर किसी ख़ास शेयर के बारे में, जिनमे इनका अपना हित निहित रहता है, रोज ऐसे सेकड़ो झूठे मैसेज पोस्ट करते रहते है, ताकि लोग भ्रमित हो, इनके जाल में फँस जाए ! दूसरे के धर्म की तो ये बहुत सी खामियां गिनाते है, मगर मैं इनके बुद्धिजीवियों से पूछना चाहूँगा कि क्या इनके धर्म और इनके ग्रन्थ कुरआन में स्टोक मार्केट में शेयर ट्रेडिंग करना निषिद है अथवा नहीं ? क्योंकि वह भी एक सट्टा है, जुआ है !
https://twitter.com/twitter/statuses/982391352800497664
मुझे किसी धर्म विशेष पर उंगली उठाने का शौक तो नहीं था, मगर क्या करे, इन्होने उकसा दिया और मजबूर कर दिया ! हमारे मुस्लिम समाज के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पिछले कुछ समय से इस हिन्दी जगत में न सिर्फ नफरत का आतंक फैला रखा है, अपितु अभी दो दिन पहले एक ने तो हिन्दू महिलाओं पर ही सीधे-सीधे अश्लील बातें अपने ब्लॉग के मार्फ़त यहाँ इस हिन्दी जगत पर लिख डाली ! जिसे में अपने पिछले लेख में उल्लेखित कर चूका हूँ ! ये दूसरे धर्मो की महिलाओं पर तो जो मर्जी बयानबाजी, आरोप, कटाक्ष और अश्लील भाषा अपनी गंदी जुबां से बयाँ कर डालते है, ( हाल में इनके एक तथाकथित विद्वान् का यहाँ उदाहरण दिया जा सकता है जिसने अपनी गंदी जुबा खोल पूरी महिला जाति का यह कहकर अपमान किया कि महिलाए तो सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए होती है!) मगर इन गंदी जुबान वालों ने कभी यह देखने की कोशिश नहीं की कि बुर्के में ढकी उनकी खुद की एक महिला को चांदनी चौक में खड़े होकर गोल गप्पे खाने में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है!
इनके एक बुद्धिजीवी ने कुछ महीनो पहले अपने महान धर्म की विशेषताए बताते हुए लिखा था;
" इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म में दीपावली में जुआ खेलना धार्मिक कार्य है। ईसाई। धर्म में भी जुआ पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए क़ुरआन में बाकी सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2 : 279) islam "
अब सवाल पर आता हूँ ;
इनके एक बुद्धिजीवी ने कुछ महीनो पहले अपने महान धर्म की विशेषताए बताते हुए लिखा था;
" इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म में दीपावली में जुआ खेलना धार्मिक कार्य है। ईसाई। धर्म में भी जुआ पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए क़ुरआन में बाकी सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2 : 279) islam "
अब सवाल पर आता हूँ ;
मैं व्यक्तिगत तौर पर इनके ऐसे पचासों महापुरुषों को जानता हूँ जो शेयर ट्रेडिंग से जुड़े है, और उनमे से कुछ तो शेयर ट्रेडिंग वाली वेब साईटों पर "गेस्ट" अथवा "बेनामी" के तौर पर किसी ख़ास शेयर के बारे में, जिनमे इनका अपना हित निहित रहता है, रोज ऐसे सेकड़ो झूठे मैसेज पोस्ट करते रहते है, ताकि लोग भ्रमित हो, इनके जाल में फँस जाए ! दूसरे के धर्म की तो ये बहुत सी खामियां गिनाते है, मगर मैं इनके बुद्धिजीवियों से पूछना चाहूँगा कि क्या इनके धर्म और इनके ग्रन्थ कुरआन में स्टोक मार्केट में शेयर ट्रेडिंग करना निषिद है अथवा नहीं ? क्योंकि वह भी एक सट्टा है, जुआ है !
https://twitter.com/twitter/statuses/982391352800497664
आज टिप्पणी बॉक्स खुल गयी है !!
ReplyDeleteSriman Godiyal ji, Sabhi mushlim Desho main khul karke LOAN ka karobar chal raha hai, Dikkkat sirf Bharatiy musalamano ke sath hai.
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी,
ReplyDeleteटिपण्णी सुविधा सिर्फ इस पोस्ट के लिए क्योंकि मैंने सवाल पुछा है !
गिरी साहब वही मैं इनसे जानना चाहता हूँ , क्योंकि विशुद्ध इस्लाम की बुदियाद पर इनके भाई-बंधो द्वारा इस देश के टुकड़े कर पकिस्तान बनाने के बाद कराची स्टोक एक्सचेंज के बारे में इनके क्या खयालात है !
ReplyDeleteगोदियाल जी! हम तो आपको सिर्फ यह बताने आये हैं कि हमारे भरोसे मत रहना क्योंकि हम तो आपके सवाल जवाब नहीं दे सकते, कोई ज्ञानी ही दे पायेगा।
ReplyDeleteनम्बर एक बातः आप गलत कहते हो कुरआन हमारा है, मेरी जानकारी में कुरआन में कहीं नहीं कहा गया यह मुसलमानों का है, वह तुम्हारा भी है कुरआन सारी मानवजाति का है
ReplyDeleteअगर यह गलत हो तो कोई बताये कहां लिखा है कि कुरआन मुसलमानों को वह सबके लिये है वर्ना आपकी यह पहली बात गलत
मुसलमान को जैसे वार्षिक 2.5 पतिशत दान देना अनिवार्य है, पांच समय अल्लाह को याद करना अनिवार्य है उसी तरह कुरआन के हर शब्द से निकले हुक्म पर चलना भी अनिवार्य है, नहीं चलता तो उसके लिये सजा है
ReplyDelete, वह क्या है उसके लिये हमसे कुछ न कहलवाओ आसान सा इसका नाम ''नाम का मुसलमान'' है,
खुद देख लो, कुरआन में साफ जुआ बारे में क्या आता हैः
quran:
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो॥5. अल-माइदा 90॥
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?॥91॥
अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो और बचते रहो, किन्तु यदि तुमने मुँह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है॥92॥
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे पहले जो कुछ खा-पी चुके उसके लिए उनपर कोई गुनाह नहीं; जबकि वे डर रखें और ईमान पर क़ायम रहें और अच्छे कर्म करें। फिर डर रखें और ईमान लाए, फिर डर रखे और अच्छे से अच्छा कर्म करें। अल्लाह सत्कर्मियों से प्रेम करता है॥5. अल-माइदा 93॥
umar bhai ne jo likha he vahi har musalman ka farz he
ReplyDeleteश्रीमान कैरानवी साहब , मेरे मूल सवाल का जबाब नहीं दिया आपने ? मैंने पूछा था कि क्या शेयर मार्केट में सट्टा/जुआ खेलना इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है ?
ReplyDeleteनफरत जो भी फैलाता है उसको उचित नहीं कहा जा सकता चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। मुसलमानों का अमल इस्लाम नहीं है। इस्लाम है -कुरआन और मुहम्मद साहब की जीवनी। यह सच है कि आज के ज्यादातर मुसलमान इस्लाम से दूर है।
ReplyDeleteरही बात शेयर मार्केट को लेकर नजरिया। हर उस कंपनी का शेयर इस्लाम के मुताबिक हराम है जिसका व्यवसाय इस्लाम के मुताबिक हराम है। जैसे-बैंक कारोबार,शराब व्यवसाय,मनोरंजन व्यवसाय,सुअर के गोश्त का कारोबार आदि। इसी तरह उस कंपनी का शेयर भी हराम है जिसके कारोबार का बड़ा हिस्सा ब्याज पर लिए पैसे पर चल रहा है। इनके अलावा कई कम्पनियों के शेयर इस्लाम के मुताबिक हलाल है यानी वे खरीदे जा सकते है। इसके मायने यह हुए कि ना तो शेयर ट्रेडिंग पूरी तरह हराम है और ना हलाल। शेयर पर निर्भर करता है कि वह हलाल केटेगरी में आता है या हराम की। कई वेबसाइट यह सुविधा देती है जिससे हलाल हराम का पता लगाया जा सकता है। पहले यह सुविधा मनी कंट्रोल पर भी थी।
गोदियाल साहब अच्छा सवाल उठाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।
आदरणीय गोदिलयाल जी, मैंने विस्तार से जवाब दिया है, पूरी पोस्ट पर जवाब देना जरूरी था, आखिर हम साईबर मौलाना कहलावें, साथ में माशा अल्लाह एक मौलाना का फतवा भी आ गया,
ReplyDeletefinal:
खिलाफ है
शेयर मार्केट में सट्टा/जुआ खेलना
वह नाम के मुसलमान हैं
रही बात पाकिस्तान की तो उसकी बात दूसरे भाई करेंगे हम तो दूसरे 52 इस्लामी देशों की जाने उनमें हर मुसलमान को यही शिक्षा दी जाती है जहां रहो वहां के वफादार रहो, पाकिस्तान में गलत शिक्षा दी जाती है उसकी बताने की आवश्यकता कहां है सबको पता है
अरे मेरे सहजात बुर्के पर तो जवाब अधूरा रह गया उसका हम देदेते हैं इसी को कहीं पहले कहा था फिर कह देते हैं
ReplyDeleteबुरका बुलेट प्रूफ जाकिट का नाम दिया जा सकता है, नारी जो नहीं दिखाना चाहती वह ना दिखे, बुर्के वाली के हम तुम हर कहीं नजर नहीं डाल सकते, बल्कि कहीं भी नहीं डाल सकते, जबकि सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की
सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की,
सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की,
List of a few Stock exchanges in Muslim countries:
ReplyDeleteKarachi Stock exchange
Dhaka stock exchange
Kuala Lumpur Stock Exchange
Kuwait Stock Exchange
Jakarta Stock Exchange
Nigerian Stock Exchange
Amman Stock Exchange
Nairobi Stock Exchange
Bahrain Stock Exchange
गोदियाल साहब, टिप्पणी बॉक्स खोलने के लिये धन्यवाद… आपके सवाल से कई नये-नये सवाल खड़े हो गये हैं…
ReplyDelete1) कैरानवी साहब फ़रमाते हैं कि पाकिस्तान की बात मत करो वहाँ गलत शिक्षा दी जाती है… नया सवाल कि जिन बाकी के 52 देशों की वह बात कर रहे हैं क्या वहां इस्लामिक बैंकिंग पद्धति लागू है?
2) भारत की कौन सी बड़ी कम्पनी है जो बिना ब्याज के पैसे पर शेयर मार्केट में उतरी हो?
3) यदि इस्लाम के मुताबिक ब्याज लेना-देना हराम है, तो क्या सेविंग खातों पर मिलने वाला ब्याज भी हराम है, इसे लागू किया जाये तो सभी मुसलमानों को भारतीय बैंकों से अपने खाते बन्द करने पड़ेंगे, क्योंकि ब्याज तो सभी खातों, एफ़डी आदि पर मिलता है।
4) आज भारत में लाखों मुस्लिम भाई बैंक, ब्याज, फ़ाइनेंस, शेयर मार्केट आदि के कामों से जुड़े हैं, तो फ़िर तथाकथित काफ़िरों के पीछे पड़ने की बजाय, मुस्लिम बुद्धिजीवी पहले अपने भाईयों को ही क्यों नहीं सुधारते?
5) गोदियाल जी, क्या कभी आपने सुना है कि बरेली या देवबन्द से दाऊद इब्राहीम या अबू सलेम के खिलाफ़ मौत का फ़तवा आया हो, कि इन्होंने जुए, सट्टे, दारू, ड्रग्स, नकली नोट का धंधा करके इस्लाम का नाम बदनाम किया है इसलिये कुरआन के मुताबिक इन्हें जल्द से जल्द मौत की सजा दी जाये?
विद्वानों को तकलीफ़ ना हो इसलिये… बाकी के सवाल नहीं पूछूंगा :)
मजा आ रहा है सभी कुछ पढ़ कर कृपया टिप्पणी बॉक्स खुला रहने दें, वैसे इस्लाम के नाम पर कुरआन की जितनी छीछालेदर इसके अनुयायी स्वयं करते हैं शायद कोई और नहीं करता, कारण; वह न तो वैज्ञानिक है न तार्किक.चाहे इस्लाम हो या ईसाई धर्म इन्हें बने(प्रचलित हुए) अभी क्रमश चौदह सौ और दो हजार साल हुए हैं तो इनमे सुधार की जरुरत है, पर वास्तव में डर फतवों का है. हिन्दू धर्म या संस्कृति (वैदिक धर्म, सनातन धर्म, आर्य धर्म कुछ भी कह लें) एक अरब अट्ठानबे करोड़ आठ लाख तरेप्पन हजार दो सौ दस वर्ष पुराना है. इतनी पुरानी संस्कृति होने के कारण कुछ बुराईयाँ आ ही जाती हैं कुछ दूसरों को देख कर आ जाती हैं. कैरानवी साहब को तो ये बता दो कि हिन्दू संस्कृति एक पुस्तक पर आधारित नहीं है. इतनी पुस्तकें(ग्रन्थ) हैं कि ये नाम लेने लगें तो पूरी जिंदगी बीत जाये.
ReplyDeleteAnd last but not least;
ReplyDeleteSaudi Stock Exchange
एकदम दुरुस्त फरमाया सुरेश जी और संकर फुलारा जी, फिर तो विप्रो का कारोबार ही अब तक ठप्प हो जाना चाहिये था !
ReplyDeleteनम्बर एक बातः आप गलत कहते हो कुरआन हमारा है, मेरी जानकारी में कुरआन में कहीं नहीं कहा गया यह मुसलमानों का है, वह तुम्हारा भी है कुरआन सारी मानवजाति का है
ReplyDeleteअगर यह गलत हो तो कोई बताये कहां लिखा है कि कुरआन मुसलमानों को वह सबके लिये है वर्ना आपकी यह पहली बात गलत...
मुसलमान को जैसे वार्षिक 2.5 पतिशत दान देना अनिवार्य है, पांच समय अल्लाह को याद करना अनिवार्य है उसी तरह कुरआन के हर शब्द से निकले हुक्म पर चलना भी अनिवार्य है, नहीं चलता तो उसके लिये सजा है
, वह क्या है उसके लिये हमसे कुछ न कहलवाओ आसान सा इसका नाम ''नाम का मुसलमान'' है,
खुद देख लो, कुरआन में साफ जुआ बारे में क्या आता हैः
quran:
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो॥5. अल-माइदा 90॥
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?॥91॥
अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो और बचते रहो, किन्तु यदि तुमने मुँह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है॥92॥
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे पहले जो कुछ खा-पी चुके उसके लिए उनपर कोई गुनाह नहीं; जबकि वे डर रखें और ईमान पर क़ायम रहें और अच्छे कर्म करें। फिर डर रखें और ईमान लाए, फिर डर रखे और अच्छे से अच्छा कर्म करें। अल्लाह सत्कर्मियों से प्रेम करता है॥5. अल-माइदा 93
नफरत जो भी फैलाता है उसको उचित नहीं कहा जा सकता चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। मुसलमानों का अमल इस्लाम नहीं है। इस्लाम है -कुरआन और मुहम्मद साहब की जीवनी। यह सच है कि आज के ज्यादातर मुसलमान इस्लाम से दूर है।
रही बात शेयर मार्केट को लेकर नजरिया। हर उस कंपनी का शेयर इस्लाम के मुताबिक हराम है जिसका व्यवसाय इस्लाम के मुताबिक हराम है। जैसे-बैंक कारोबार,शराब व्यवसाय,मनोरंजन व्यवसाय,सुअर के गोश्त का कारोबार आदि। इसी तरह उस कंपनी का शेयर भी हराम है जिसके कारोबार का बड़ा हिस्सा ब्याज पर लिए पैसे पर चल रहा है। इनके अलावा कई कम्पनियों के शेयर इस्लाम के मुताबिक हलाल है यानी वे खरीदे जा सकते है। इसके मायने यह हुए कि ना तो शेयर ट्रेडिंग पूरी तरह हराम है और ना हलाल। शेयर पर निर्भर करता है कि वह हलाल केटेगरी में आता है या हराम की। कई वेबसाइट यह सुविधा देती है जिससे हलाल हराम का पता लगाया जा सकता है। पहले यह सुविधा मनी कंट्रोल पर भी थी।
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और "देवस्थान" और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो॥5. अल-माइदा 90॥
ReplyDeleteकैरानवी मियाँ,देवस्थान तो हटा लेते अपनी(या कुरान) की इस लाइन से!
या कुछ और मतलब है यहाँ देवस्थान से या गलती से लिखा गया है!
खाई जो भी हो आदरणीय गोदियाल जो ये अवसर प्रदान करने के लिए
हार्दिक धन्यवाद!
कुंवर जी,
खाई को खैर पढ़ा जाए..
ReplyDeleteकुंवर जी,
aapka sawaal suchmuch jawaabneey hai
ReplyDeletesahi jawaab dhoondh raha hoon, mila toh zaroor doonga
aapne bahut hi badhiya shabdo me blogjagat me nafrat faila rahe logo k bare me likha hai....parantu aapka bhi koi haq nahi banta hai is vishay par kuch likhne ka..aap bhi kahi na kahi inhi logon ki line me khade hao
ReplyDeleteइस्लाम में मूर्तिपूजा हराम है..
ReplyDeleteलेकिन फिर मजारों पर क्या होता है? हो सकता है कि मेरा ज्ञान गलत हो, जहां तक मुझे पता चला है कि दफनाये हुये व्यक्ति के ऊपर ही मजार बनाई जाती है...
उसमें तो पूरा शरीर जो मिट्टी बन चुका होता है, रखा होता है.
"मुस्लिम बुद्धिजीवियों से सिर्फ एक सवाल !"
ReplyDeleteगौदियाल जी, जवाब तो आपको एक नहीं ढेरों मिल जायेंगें लेकिन सिर्फ उसी एक सवाल का नहीं जो कि आपने पूछा है :-)
इंसानियत सब से बड़ी चीज है। सभी धर्म हमें बांधते हैं,इतना कि हम इंसानियत तक भूल जाते हैं। आज यह संभव ही नहीं कि कोई किसी भी धर्म को अपने मूल रूप में स्वीकार कर सके। यही कारण है कि जो कोई भी किसी धर्म के मूल स्वरूप को दुनिया में देखना चाहता है वह आग्रही हो जाता है। यह आग्रह उसे इंसानियत से गिरा देता है।
ReplyDeleteयह फिजूल की बहसें हैं। किसी खुदा या पैगम्बर या अवतार पर ईमान लाने से पहले खुद पर ईमान लाना जरूरी है। यदि लोग पहले खुद को पहचानें और खुद पर विश्वास करने लगें तो उस से बड़ा कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजबाब होगा तो मिलेगा, जब कोई अपनी कमजोरी के बारे में बताये तो कैसे बोलते बनेगा, अभी तो सब अपनी बगल झांक रहे हैं।
ReplyDeleteकृष्णजी को समर्पित ब्लॉग जरुर देखियेगा।
गोदियाल साहब के असली सवाल का जवाब मैं ऊपर दे चुका हूं। फिर से मेरे भाइयों गौर करो।
ReplyDeleteहर उस कंपनी का शेयर इस्लाम के मुताबिक हराम है जिसका व्यवसाय इस्लाम के मुताबिक हराम है। जैसे-बैंक कारोबार,शराब व्यवसाय,मनोरंजन व्यवसाय,सुअर के गोश्त का कारोबार आदि। इसी तरह उस कंपनी का शेयर भी हराम है जिसके कारोबार का बड़ा हिस्सा ब्याज पर लिए पैसे पर चल रहा है। इनके अलावा कई कम्पनियों के शेयर इस्लाम के मुताबिक हलाल है यानी वे खरीदे जा सकते है। इसके मायने यह हुए कि ना तो शेयर ट्रेडिंग पूरी तरह हराम है और ना हलाल।
यह साफ है कि शेयर मार्केट ना पूरी तरह हलाल है और ना पूरी तरह हराम। कई शेयर हलाल हंै और कई हराम।
अगर आपको फिर भी मेरी बात पर यकीन नहीं हैं तो इस वेबसाइट http://iio.moneycontrol.com/ पर आकर चैर करें कि कौन-कौनसे शेयर इस्लाम के हिसाब से उचित है और क्यों और कौन-कौनस हराम है और क्यों। यह वेबसाइट शेयर मार्केट की मशहूर वेबसाइट है
दुनिया के तमाम धर्म अपने अपने अंदाज में विशेष प्रकार के जीवन पद्दति देते हैं...इस्लाम भी एक जीवन पद्धति देता है, जिसमें कारोबार करने के तौर तरीके भी शामिल हैं। लेकिन दुनिया क्रूसेड, धर्मयुद्ध और जेहाद से आगे निकल चुकी है...स्वतंत्ता, समानता और बंधुत्व के नारों के साथ मानवीय व्यवहार को संचालित करने के लिए नये नये तंत्र भी इजाद किये गये हैं और किये जा रहे हैं...स्टाक मार्केट भी इन्हीं तंत्रों में से एक है...अबे इसे इस्लाम, हिंदुत्व और ईसाइत के नजरिये से देखना संकुचित विचारधारा का ही सूचक है...स्टाक एक्चेंज अपने आप में एक संपूर्ण आधुनिक मैकेनिज्म है, जिसके अपने ही तौर तरीके हैं...अब बुद्धिजीवी लोग चूल्हे जलाकर खिचड़ी पकाते रहे...इस पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है...स्टाक एक्चेंज सभी धर्मों से ऊपर की चीज है...खरीद बिक्री मानव का स्वाभिक प्रकृति है...समय-समय पर विभिन्न धर्मों ने इसे रेगुलेट करने की कोशिश की है...लेकिन अब खरीद बिक्री का कारोबार धर्मों की चौहद्दी से बाहर निकल चुका है...इससे संबंधित बेतुकी बातों को धुनने का कोई मायने मतलब नहीं है.
ReplyDelete@गोदियाल जी,
ReplyDeleteदरअसल सूद और प्रोफिट दो अलग अलग चीज़ें हैं. सूद खाने वाला कर्ज़दार से हर कीमत पर अपना ब्याज वसूल लेता है, चाहे कर्ज़दार की दशा कितनी ही खराब क्यों न हो, सूदखोर को अपना परसेंट निश्चित रूप से चाहिए. जबकि प्रोफिट लेने वाला बिजनेस के चढ़ाव या गिराओ के अनुसार अपना हिस्सा लेता है और अगर बिजनेस में घाटा हो जाए तो पूँजी लगाने वाले को वह घाटा भी सहन करना होता है. इस्लाम में सूद के लिए मना है लेकिन प्रोफिट के लिए नहीं. और शेयर में प्रोफिट ही दिया जाता है, या कम्पनी अगर घाटे में गई तो घाटे में भी पैसा लगाने वाले का शेयर होता है.
अब रही बात जुए की, तो जुए और शेयर में फर्क है. शेयर का मतलब है बिजनेस जिसके लिए इस्लाम में रोक नहीं, जबकि जुए का मतलब है की कई लोगों का पैसा एक व्यक्ति की जेब में पांसे की चाल पर पहुँच जाए, जुए में बिना कोशिश एक मालदार हो जाता है और बाकी बर्बाद, यह समाज के लिए ज़हर है जबकि अच्छा बिजनेस समाज के लिए फायेदेमंद होता है.
बाकी इस्लामिक बैंकिंग के बारे में यहाँ पढ़ें.
आलोक साहब
ReplyDeleteजब आप खुद यह बात कह रहे हैं कि इस्लाम एक जीवन पद्धति है तो फिर भला व्यापार को उस जीवन पद्धति से अलग कैसे रखा जा सकता है? रही बात आपका यह कहना कि-
स्टाक एक्चेंज सभी धर्मों से ऊपर की चीज है...खरीद बिक्री मानव का स्वाभिक प्रकृति है...समय-समय पर विभिन्न धर्मों ने इसे रेगुलेट करने की कोशिश की है...लेकिन अब खरीद बिक्री का कारोबार धर्मों की चौहद्दी से बाहर निकल चुका है...इससे संबंधित बेतुकी बातों को धुनने का कोई मायने मतलब नहीं है.
मैं इस बात से असहमत हूं। क्योंकि जिस तौर-तरीके में इंसानी भलाई को प्रमुखता दी गई हो वह कभी अप्रसांगिक नहीं हो सकता।
आलोक साहब जरूरी नहीं कि आप मेरी इस बात से सहमत हो लेकिन मेरा ऐसा ही मानना है।
Dinesh Ray Dwivedi ji ki baat par dhyaan diya jaye..
ReplyDeleteकुरान में सब अच्छा ही लिखा है , फिर इस्लाम दुनियां के लिए आतंक का पर्याय क्यों है.अकेले भारत की बात नहीं विश्व की बात करता हूँ! क्या दुसरे ग्रंथों में बुरी चीजों को बुरा नहीं कहा गया.फिर कुरान न मानने वालों को काफ़िर कह कर दारुल हरब और दारुल इस्लाम का मोर्चा क्यों खोल कर रखा गया है. इसे बंद किये बिना दुनियां में शांति नहीं हो सकती !दूसरा इस देश के कितने देशभक्त मुस्लमान हैं जिन्होंने आतंक के विरुद्ध खुल कर बोला हो!
ReplyDelete@जैदी जी, कैरानवी जी : आपने अपना वक्तव्य को ठीक ढंग से समझाने की कोशिश की है लेकिन आज के बिज़नस वातावरण में शुद्ध मुनाफा और ब्याज पर हुए मुनाफे का आंकलन कर पाना नामुमकिन है. ग्लोबलाइजेशन के कारण आप ये कतई नहीं पता कर सकते की आपने जिस कंपनी में निवेश किया है उसका पैसा कहाँ कहाँ और किस व्यपार में लगा है. आज बैंक, शेयर बाजार का व्यापार हुआ या Fixed Income Bonds, Syndicate Loans, Asset Backed Securities, Mortgage Backed Securities, Credit Default Swaps, Credit Linked Notes, Consolidated Loan / Bond Obligations, Warrants आदि ये सब financial instruments अमूमन ब्याज के धंधे के ही पर्यायवाची है. जिस प्रकार जुए में एक पांसे में पैसा इधर से उधर हो जाता है कमोबेश वैसा ही हाल इन financial instruments का भी है. एक गलत या सही transaction और लाखो या करोडो रूपये / डॉलर इधर से उधर. अब Shariah fund, Green fund, Ethical fund, Sovereign fund आदि आ रहे है, लेकिन हमें समझना है की असल में हमाम में सब नंगे है. इन फंड्स का मुख्य उद्धेश भी शुद्ध मुनाफा कमा कर अपने निवेशको को बेहतर रिटर्न्स देना ही होता है.
ReplyDeleteकहा जाता है की आपके धर्म में ब्याज हराम है. हम सब जानते है की भारत विश्व में एक अकेला देश है जो हज सब्सिडी देता है, ठीक उसी तर्ज पर क्या सरकार को सब मुस्लिम भाइयो को बैंक में रखे सेविंगस अकाउंट और फिक्स्ड डिपोसिट अकाउंट पर ब्याज बंद कर देने सम्बंधित विधेयक पास कर देना चाहिए.
गोदियाल साहब सबसे पहले तो शुक्रिया ,टिप्पणी बाक्स खोलने के लिये । आपका ईमेल आईडी भी नही था ।
ReplyDeleteजो धर्म सैकड़ों हजारों साल पुराने हैं ,आज के समय में बदलाव की जरूरत है ,जो नही बदलेगा उसमें कट्टरता हावी रहेगी ,इंसानियत कम होगी ।
इन्हें चाहिये की कूप-मंडूक न बने रहें ।
गोदियाल जी सवाल तो आपका दुरुस्त है .., पर इस्लामिक ज्ञानियों का जवाब घटिया है | खैर उनसे सही जवाब की आशा करना ही बेकार है |
ReplyDeleteमुस्लिम ज्ञानियों से मुझे भी एक सवाल पूछना है : क्या कुरआन में इस्लाम और अल्लाह के नाम पर इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा बेकसूरों का खून बहाना जायज है ?
@Nikhilपहले तो आपको एक नेक सलाह दूंगा कि कही पर लिखने से पहले इतनी हिम्मत बटोरो कि अपनी सही पहचान बता सको ! मैं जानता हूँ कि इस देश ने बहुत से कायर सदियों से पाले है, जिनकी वजह से देश ४-४ बार गुलाम हुआ और आज बहुत से ऐसे कायार ही देश की छाती पर मूंग दल रहे है ! मैंने जानबूझकर बेनामी वाला ऑप्शन यहाँ टिपण्णी के लिए बंद रखा, नहीं तो अब तक बहुत से कायर बेनामी बनकर अपनी अन्दर की गंध बहार निकल चुके होते ! तर्कसंगत बहस एक अलग चीज होत्ती है और सिर्फ कीचड उछालना दूसरी ची इसमें फर्क करना सीखो!
ReplyDeleteaapka swal sachmuch jayaj h
ReplyDeletemeine www.islamonline.net se kuch copy karke aap ko bheja h aap khud hi apne swal ka jawab aur usme se nikalne wale swal dundh lena
In his well-known book, The Lawful and the Prohibited in Islam, the prominent Muslim scholar, Sheik Yusuf Al-Qaradawi, states:
"While permitting a variety of games and sports, Islam prohibits any game which involves betting, that is, which has an element of gambling in it. We have already quoted the saying of the Prophet, 'He who says to his friend: 'Come, let us gamble,' must give charity.' It is not lawful for the Muslim to seek relaxation and recreation in gambling, nor is it lawful for him to acquire money through it.
There are sound and noble objectives behind this strict prohibition of gambling:
The Islamic teachings urge the Muslim to follow Allah's directives for earning a living, to use natural laws and direct means for the attainment of his objectives, and to employ such causes to produce the desired effects. Gambling, which includes raffling or the lottery, on the other hand, makes a person dependent on chance, 'luck' and empty wishes, taking him away from honest labor, serious work and productive effort. The person who depends on gambling loses respect for the laws of causation which Allah has established and commanded people to use.
"m to sirf ye jaanta hu ki koi bhi dharam kabhi sampuran ho sakta h."
kya aisa ho sakta h?
dharam hamari seekh ke liye hote h ki jab kabhi ham kuch galat karne chale to ek baar apne purwajo ke bataye raste ko soch le aur agar hame lage ki hum galat h to uska sudhar kar le.
mera manna h ki DHARAM insaan ne banaye h INSAAN dharam ne nhi
ha agar koi dharam kisi jaanwar ki soch badal kar use wakai insaan bana de to us DHARAM KE koi tulna nhi ki ja sakti.
mujhe nhi pata ki aap kis waad viwaad ke baad is swal par pahunche h m to sirf itna maanta hu ki hame apne dharam aur majhab se jude sawalo ka jawab aapas me hi baate karke mil sakta h .
"jo kisi INSAAN ko galat raste pe chalaye wo DHARAM nhi aur jo insaan DHARAM ke naam pe kisi BEGUNAAH ko kast pahunchaye wo INSAAN nhi
AAP KO EK BAAR FIR IS SWAL KE LIYE DHANYAWAAD
Thanks alot, Sanjeev Ranaji,
ReplyDeletegood rana ji,
ReplyDeleteform me aa raho..
kunwar ji,
aap ydi hdees ki schchai jan loge to kya hoga us me jo jo bate manvta ke viroodh likhi hain aur unhe hi ye apna aadrsh man kr chlte hain
ReplyDeletedr.ved vyathit
hanek bat rh gai ki ye hindoo viroodhi tippni yoon hi nhi aa rhi haion in ke pichhe bhi koi n koi bdi shajish ki boo aa rhi hai jis se desh savdhan nhi hua to desh ko is ka bhut bda khmiyaja bhugtna pd skta hai inhe apne mt ki to hr bat achchi lgti hai pr doosre ke dhrm ki bhi ye matr burai hi dhoondhte hai jo in se jroor koi aur kra rha hoga kyon ki n to vha manvta hai nhi prani matr ki bra bri yh unhe nhi dikhai dega jhooth aur dhokha to in ke mt ka vishesh hthiyar hai jo in ki pustkon ne jgh jgh mhima poorvk bhra pda hai
ReplyDeletedr. vde vyathit
गोदियाल जी जो लोग मक्का -मदीना तक की यात्रा भीख में मिले पैसों पर करते हों,जिस पत्र में खाते हैं उसी में छेद करना जिनकी आदत हो,नमकहरामी और गद्दारी जिनके खून में हो उनसे हम और उमीद भी क्या कर सकते हैं ।
ReplyDeleteab pata nahi aapki kya problem hai??maine aapke bahut se lekh padhe hain...aur bahut se blogs par aapki tippni bhi padhi hai...usi adhaar par maine apni ray likhi hai...aap to jhaptane hi lag gaye...agar aapko meri baat theek nahi lagi to dusre tareeke se bhi jawaab de sakte the..aap bhi dusre blogs par tippni kiya karte hain...(tippnai nahi khilli udate hain)aur aise jawaab ki umeed nahi karte.rahi baat mere naam ki wo ek dum saaf akshro me likha hua hai...waise maine abhi blog likhna shuru nahi kara hai par koshish karunga ki jaldi hi shuru kara jaye.
ReplyDeleteगोदियाल साहब,
ReplyDeleteये भी पूछना चाहिए आपको...
क्या मुस्लिम देशों में बैंक हैं ?
और अगर हैं तो क्या वो बैंक सूद ले रहे हैं?
और अगर ले रहे हैं तो किस आधार पर...??
सौदी अरब के सारे बैंक कुरआन के हिसाब से नाजायज ठहराए जाने चाहिए....फिर चाहे वो हबीब बैंक हो या कोई भी बैंक...
दूसरी बात...वहां के शेख जो अमेरिका कनाडा में इन्वेस्टमेंट करते हैं और सूद लेते हैं वो किसी हिसाब से जायज है...सारे शेखोने ने अपने पैसे इन्ही देशों में सूद प्र लगा रखा है क्या वो सही मायने में मुसलमान हैं...
ओसामा बिन लादेन ने सारा पैसा बुश की कंपनी में लगा कर सूद से बनाया और जेहाद चलाया क्या वो सही मायने में एक सच्चा मुसलमान है ?
पी.सी.गोदियाल जी आप इस बाक्सं को खुला ही रहने दे, आप के शान दार लेख पढने के बाद टिपण्णि देने के समय मन मार कर जाना पडता है, ओर बस एक सही का निशान ही लगाना पडता है, इस लेख पर बहुत कुछ कहा सुना जा चुका है सवाल तो बहुत है....लेकिन जबाब कोन देगा???
ReplyDeleteधन्यवाद
भाटिया साहब , कोशिश करूंगा, इस लगाव के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया !
ReplyDeleteDamdar artical likha hai apne
ReplyDeletesahi sawal utaye hai
Damdar artical likha hai apne
ReplyDeletesahi sawal utaye hai
इंसानियत सब से बड़ी चीज है। सभी धर्म हमें बांधते हैं,इतना कि हम इंसानियत तक भूल जाते हैं। आज यह संभव ही नहीं कि कोई किसी भी धर्म को अपने मूल रूप में स्वीकार कर सके।
ReplyDeleteगोदियाल जी सवाल तो आपका दुरुस्त है .., पर इस्लामिक ज्ञानियों का जवाब घटिया है | खैर उनसे सही जवाब की आशा करना ही बेकार है |
ReplyDeleteThanks for doing good work in hindi blog media and I am extremely sorry that I am writing this email in English. My Hindi typing is not really good and at times either it fails to give the meaning I wish to convey or demands lot of time for rigorous rephrasing.
ReplyDeleteI am writing this email as a comment here because i couldn't find your email ID. I wish to draw your attention towards the recent advertisement campaign by Hero Honda(http://www.youtube.com/watch?v=isJozut1FCI). The campaign not only promotes rash driving/motor biking, it is also extremely derogatory to people like you and me. In this campaign they start with a warning but question is, is that enough when your advertisement ends with a sentence like "thinking is such a waste of time". Its like saying don't murder somebody and in the end telling that murder is so much enjoyable! every year so many young/teenage people succumb to bike accident and you are telling them thinking is waste of time! Also what about thinkers of this country, you are telling them that they are biggest idiots. We are still importing most of the ideas from west but sentences like this takes it to entire different level, As a blogger you are a thinker and please spread awareness through your popular blog.
I am going to request other bloggers also hopefully at least one of the popular blogger would listen to me, please help me in condemning this advertisement.
Yours
Nilam
Jai Hind
शेयर बाज़ार में लिस्टेड ऐसी कौन सी कम्पनी है जिसने ब्याज पर फंड न उठाया हो? और जो कम्पनी ब्याज पर लेन देन कर रही है, वह स्वतः ही गैर इस्लामी हो गई. फिर कंपनियों के शेयर में पैसा लगाना हरम के सिवा क्या है?
ReplyDeleteजो कंपनी डेरिवेटिव इंस्ट्रुमेंट्स और डिबेंचर इश्यु करती है , वह तो खुल्लमखुल्ला ब्याज आधारित फंडिंग लेती है. शेयर बाज़ार में कितनी ऐसी कम्पनी है जिसने डिबेंचर इश्यु न किये हों, या स्वाप न किया हो? शायद ऐसी कोई कम्पनी साउदी स्टोक एक्सचेंज में भी न हो. और तो और साउदी सरकार खुद तेल के सौदों की बकाया रकम पर ब्याज वसूलती है.
क्या स्वाप, बोंड और डिबेंचर में डील करने वाली किसी कंपनी में पैसा लगाना हराम नहीं? स्वाप बोंड और डिबेंचर का नफे नुक्सान से कोई सम्बन्ध नहीं, चाहे फायदा हो या नुकसान तयशुदा दर से चक्रवृद्धि ब्याज देना ही पड़ेगा.
क्या ऐसी कंपनियों से पगार लेने वाले मुसलमान, इनमे पैसा लगाने वाले मुसलमान, इनके बोंड / डिबेंचर खरीदने वाले मुसलमान, इनमे मालिकाना हक़ रखने वाले मुसलमान गैर इस्लामिक तरीके से आजीविका नहीं कमा रहे हैं?
अर्थशास्त्र भले ही ब्याज(सूद) को मूलधन का किराया, शुल्क या कुछ और माने, लेकिन इस्लाम धर्म में ब्याज को अनुचित माना गया है। इस्लाम के मुताबिक ब्याज एक ऐसी व्यवस्था है जो अमीर को और अमीर बनाती है तथा गरीब को और ज्यादा गरीब।
ReplyDelete– इस प्रकार यह शोषण का एक जरिया है, जिसे लागू करने से इंसानों को बचना चाहिए। इस्लाम ब्याज को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करता।
इससे अमीरों का तो फायदा होता है, लेकिन गरीब इसकी बेरहम मार से बच नहीं सकते थे।
ये है कुरआन की शिक्षा, आप अपनी सोच अपने पास रखिये, सारे लोग ये काम करते है इसका ये मतलब नहीं होता की ये सही है, आप दुनिया के लोगों और मुसलमानों पे तो उंगली उठा सकते हो मगर हमारे कुरान शरीफ पे नहीं. अब आप खुद समझ लेना की अंधड़ कोण है ?