...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Thursday, November 5, 2015
Monday, November 2, 2015
संशय
क्षद्म-दाम-वाम के नापतोल बहुत हो गए, क्या करें,
सब रंग फीके पड़ गए घोल बहुत हो गए, क्या करें।
कलतलक जिन्हें जानता न था, श्वान भी गली का,
ऐसे दुर्बुद्धिवृन्दों के मोल बहुत हो गए , क्या करें।
जिसको भी देखो,यहां से वहाँ लुढ़कता ही जा रहा,
ये थालियों के बैंगन गोल बहुत हो गए, क्या करें।
कथानक अंतर्निहित मद का खो दिया संचार ने,
डुगडुगी बजाने को ढोल बहुत हो गए , क्या करें।
हरतरफ से उद्विकास की छिजने लगी अब "आश",
'परचेत' तृभूमि में "होल"बहुत हो गए, क्या करे।
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संशय!
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