Wednesday, July 22, 2009

सूरज चाँद से मिला !



आज तडके,
दूर गगन में,
एक अरसे के बाद,
फुरसत से,
सूरज अपनी महबूबा,
चाँद से मिला,
और कुछ पलों तक
दोनों एक दूसरे को
निहारते रहे, जी भर के !

भले ही उनका
यह मधुर मिलन,
देखने वालो को,
खूब भा गया !
मगर सोचता हूँ कि,
वो मिले तो आसमां में थे,
फिर धरा पर क्यों,
अँधेरा छा गया ?

फिर सोचता हूँ कि हो न हो,
ये आशिक अभी भी
पुराने ख्यालातों के है,
इनपर अभी तक,
पश्चिम का जादू नहीं चला !
वरना इसतरह,
रोशनी बुझाकर क्यों
अँधेरे मे एक दूसरे को,
प्यार करते भला ?

14 comments:

  1. Beje namskaar,Tumharu dayan kewal potge per rendho,
    Apda uttrakhand te bhi dekha beje.
    Te podegya bana tumun apda reet rewaj,sanskareti.apdu lebaash sab kuch bulyali beje,
    Tum ta ek sacha uttrakhnde ne hwe sakda beje,
    jara tu logo ka bara ma bhi socha joonuttrakhand ka bana apdo baledaan dele.to ki ne che kya podege beje.tumhare che kya khali podge.podge te sabu ki che beje.
    Me te bahut hi boru lagdu che beji...

    ReplyDelete
  2. Beje namskaar,Tumharu dayan kewal potge per rendho,
    Apda uttrakhand te bhi dekha beje.
    Te podegya bana tumun apda reet rewaj,sanskareti.apdu lebaash sab kuch bulyali beje,
    Tum ta ek sacha uttrakhnde ne hwe sakda beje,
    jara tu logo ka bara ma bhi socha joonuttrakhand ka bana apdo baledaan dele.to ki ne che kya podege beje.tumhare che kya khali podge.podge te sabu ki che beje.
    Me te bahut hi boru lagdu che beji...

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  3. वाह प्रेम की कोमल एहसास से भरी रचना..........प्रकृति के दो खूबसूरत आभूषणों को जोड़ कर लिखी अनुपम कृति है...... चित्र भी लजवाब है

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  4. उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया दिगंबर नासवा जी !

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  5. Excellent! Its True "Writers think beyond the Sun and Moon"

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  6. क्या बात कही आपने......वाह ! वाह ! वाह !

    बहुत ही सुन्दर रचना....

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  7. एक कोमल एवं सुन्दर रचना के लिए बधाई!!

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  8. बहुत सुंदर रचना। जरा विस्तार अधिक पा गई। स्लिम रहती तो औऱ सुंदर लगती।

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  9. आज तडके,
    दूर गगन में,
    एक अरसे के बाद,
    फुरसत से,
    सूरज अपनी महबूबा,
    चाँद से मिला,
    और कुछ पलों तक
    दोनों एक दूसरे को
    निहारते रहे, जी भर के ।

    बुत खूब!!
    वाह.. पी.सी.गोदियाल जी।
    कवि हो ना..
    इसीलिए रवि तक पहुँच ही गये।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।