कितनी हास्यास्पद बात है कि २६/११ के शर्मनाक आतंकवादी मुंबई हमले, और उसके बाद की कार्यवाही में यह स्पष्ट हो जाने के बाद कि यह हमला पाकिस्तान की सरकारी तंत्र के द्वारा नियोजित था, जिस भारत को आक्रामक होना चाहिए था, वह कोने में बचाव की मुद्रा में खडा है, और जिस देश को इस घटिया हरकत के लिए शर्मशार होना चाहिए था, वह आक्रामक है ! अगर थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि बलूचिस्तान में भारत अपनी खुफिया एजेन्सी के मार्फ़त हस्तक्षेप कर रहा है, तो क्या हम पाकिस्तान को इतना भी टका सा जबाब नहीं दे सकते कि तुम अगर हमारे देश में पिछले ६० सालो से खून खराबा करते आ रहे हो, तो हम क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे ? हाल के शर्म-अल-शेख की बैठक के नतीजे और उसके बाद की पाकिस्तानी प्रतिक्रियाओं और वहाँ के अखबारों की मन-गढ़ंत कहानियो से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में वास्तविक शान्ति स्थापित करने के प्रति कितना गंभीर है !
हम शायद यह जानते नहीं, या फिर जान-बूझकर नादान बने रहते है कि अमेरिका एक ऐंसा स्वार्थी दूकानदार है जो मोहल्ले में सिर्फ उसे सलाम करता है, जो उसकी दुकान पर सामान खरीदने जाता है! आखिर अमेरिकी विदेश मंत्री को बार-बार यह सफाई देने की क्यों जरुरत पड़ती है कि वह पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने के लिए भारत पर कोई दबाब नहीं डाल रहे ! एक सार्वभौमिक राष्ट्र के रूप में कब हम बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपने निर्णय स्वयं ले पाने में समर्थ होंगे? क्योंकि इस बारे में अनेको बार अमेरिका को सवाल झेलने पड़ते है कि जब वे भारत दौरे पर जाते है, तो फिर उसी दौरान पाकिस्तान क्यों जाते है? इसलिए अभी हाल की भारत यात्रा पर आने से पूर्व श्रीमती क्लिंटन ने यह स्पष्ठीकरण दिया कि वह पाकिस्तान नहीं जा रही, मगर साथ ही भेंट के लिए पाकिस्तानी विदेशमंत्री को फुकेट, थाईलैंड में बुला लिया, यह क्या दर्शाता है ?
हमे यह भली प्रकार से जान लेना होगा कि चाहे अमेरिका को हम जितना मर्जी चिकना करने के लिए घी के घडे में रख ले, वह खुरदुरा ही रहेगा, और भारत का कभी भी एक सच्चा मित्र नहीं बन सकता ! हमें मित्रता की कसौटी पर अमेरिका को रूस के समतुल्य रखने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए ! रही बात पकिस्तान की, तो हमें यह समझना होगा कि एक मायने में समूची पाकिस्तान समस्या ही हमारी नादानियों का परिणाम है, वह बस एक समस्या की बुनियाद पर खडा झूठ का पुलिंदा मात्र है, और कुछ नहीं ! भूतकाल में हमने जितने भी प्रयास उसके साथ शान्ति के लिए किये, उसके क्या नतीजे अब तक निकले ? कुछ महीनो पहले इसी झूठ पर मैंने एक कविता लिखी थी, आपके मनोरंजनार्थ एक बार फिर से यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ :
हद-ए-झूठ !
रंगों की महफिल में सिर्फ़ हरा रंग तीखा,बाकी सब फीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
झूठ भी ऐंसा कि एक पल को, सच लगने लगे !
दिमाग सफाई के धंदे में,इन्होने न जाने कितने युवा ठगे,
गुनाहों को ढकने के लिए, खोजते है नित नए-नए तरीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
जुर्म का अपने ये रखते नही कोई हिसाब !
भटक गए राह से अपनी,पता नही कितने कसाब,
पाने की चाह है उस जन्नत को मरके,जो पा न सके जीके !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
इस युग में सत्य का दामन, यूँ तो छोड़ दिया सभी ने !
असत्य के बल पर उछल रहे है,आज लुचे और कमीने,
देखे तो है बड़े-बड़े झूठे, मगर देखे न इन सरीखे !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
दहशतगर्दी के इस खेल में मत फंसो मिंया जरदारी !
पड़ ना जाए कंही तुम्ही पर तुम्हारी यह करतूत भारी,
करो इस तरह कि कथनी और करनी में, न फर्क दीखे !
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,मगर
झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे !!
-पी.सी. गोदियाल
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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झूठ पर बड़ी धाँसू कविता लिख डाली !
ReplyDeleteशुक्रिया विवेक जी !
ReplyDeleteपाक-अमेरिका की साथ-गाँठ पर आपका लेख पढ़ा. और आपकी बातों से अक्षरश सहमत हुई... अमेरिका कभी भी भारत का मित्र नहीं बन सकता है...कारण, भारत-रूस मित्रता को पचा पाना उसके लिए असंभव है...इन गोरों की एक बहुत ही कामिनी प्रवृति होती है 'मुंह में राम बगल में छुरी, मौका देखि पंजरे में हूरी' अगर अमेरिका मित्रता का हाथ बढाये तब भी विश्वास योग्य नहीं है...
ReplyDeleteपाकिस्तान की बात.....पाकिस्तान पिछले ६० वर्षों से ऐड के पैसों पर ही जी रहा है, आज से २० वर्ष पहले तक पाकिस्तान में इंडस्ट्री के नाम पर एक सेफ्टी पिन तक बनाने का कारखाना नहीं था, उनके बज़ट को ५०% उनकी defense के खर्चे में ही जाता था. अब उनलोगों ने थोडी बहुत इंडस्ट्री लगायी है.. भारत की पॉलिसी शुरू से ही लचर सी रही है वर्ना पाकिस्तान को बहुत पहले ही दबाया जा सकता था... सबसे पहली गलती की थे इंदिरा गाँधी ने जीती हुई ज़मीन वापस करके...उसके बाद गलतियों पर गलतियां करते जाना...जब पार्लियामेंट पर हमला हुआ उस घटना को भारत ने जिस तरीके से डील किया वह किसी भी भारतीय के लिए शोभ और दुःख एवंम लज्जा की बात है, उस समय आक्रमण आवश्यक था, दूसरी बात हमारे जितने भी spokes person हैं विदेशों के लिए किसी काम के नहीं हैं, अच्छा वक्ता होना ख़ास करके विदेश मंत्रालय में बहुत ज़रूरी है, पाकिस्तान इस मामले में बहुत ही creative है उसके जितने भी spokes person होते हैं सभी बहुत ही अच्छे वक्ता है जिससे अच्छी धाक बनती है बहार के मुल्क में.....हमारे यहाँ बहुत कमी है सभी वेवकूफ ही नज़र आते हैं...
यह ऐसा विषय है जिसपर मैं पता नहीं कितना कह जाऊ...
लेकिन अच्छा लगा यह देख कर की आपके और मेरे विचारों में बहुत ज्यादा समानता है ....
बहुत ख़ुशी हुई पढ़ कर..
धन्यवाद..
अदा जी , मेरे लेख के प्रति आपने जो रूचि दिखाई और जबाब में जो विश्लेषण दिया, उसे देख बहुत अच्छा लगा, शुक्रिया
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