इंडिया टुडे की वेब साईट पर एक खबर पढ़ रहा था कि ६००० वीसा जोकि MEA ने ब्रिटेन स्थित भारतीय दूतावास को कोरियर से भेजे थे, वे गायब हो गए ! सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी हमारी देश विरोधी ताक़त, खासकर आतंकवादी इनका उपयोग किस हद तक इस देश के खिलाफ कर सकते है! मगर अपना देश है कि मस्त है, जोड़-तोड़ के गणित में, सिर्फ वर्तमान में जी रहा है :) ! एक अपनी गोटी फिट करने में मस्त है, तो दूसरा यह सोचने में लगा है कि इसे कहाँ फिट करूँ और तीसरा यही देखने में लगा है कि ये महानुभाव कैसे इस गोटी को फिट करता है ! वाह रे मेरे देश, मेरा भारत महान !
बड़े अफ़सोस के साथ लिख रहा हूँ कि आज हमारे इस लोकतांत्रिक देश का दुखद पहलू यह है कि आजादी के बाद लोकतंत्र की आड़ में इस देश का भाग्य निर्धारित करने का जिम्मा सोनिया गांधी , मनमोहन सिंह , लालू, पासवान, माया ,मुलायम, करूणानिधि, राजा, चिदंबरम और पंवार और येदुरप्पा ( ममता दी का नाम भी लिखता मगर अब उनके प्रति मेरे दिल में सम्मान जाग गया है, वे कम से कम जुबान की तो पक्की हैं ) जैसे राजनेताओं और खासकर कौंग्रेस के हिस्से आया ! जो एक ख़ास वजह से यह सोचते है कि भारत के नागरिक, खासकर वोट देने वाले बेवकूफ है !
बड़े अफ़सोस के साथ लिख रहा हूँ कि आज हमारे इस लोकतांत्रिक देश का दुखद पहलू यह है कि आजादी के बाद लोकतंत्र की आड़ में इस देश का भाग्य निर्धारित करने का जिम्मा सोनिया गांधी , मनमोहन सिंह , लालू, पासवान, माया ,मुलायम, करूणानिधि, राजा, चिदंबरम और पंवार और येदुरप्पा ( ममता दी का नाम भी लिखता मगर अब उनके प्रति मेरे दिल में सम्मान जाग गया है, वे कम से कम जुबान की तो पक्की हैं ) जैसे राजनेताओं और खासकर कौंग्रेस के हिस्से आया ! जो एक ख़ास वजह से यह सोचते है कि भारत के नागरिक, खासकर वोट देने वाले बेवकूफ है !
यह आज वक्त की एक अहम् मांग थी कि यहाँ की जनता एक सुर में अपनी आवाज उठाती, और वक्त ने जो सुअवसर प्रदान किया था, उसका उचित उपयोग करती ! मगर अफ़सोस कि यहाँ के डेमोक्रेसी के चैम्पियन वोटरों को तो सिर्फ लॉलीपॉप खाने का ही शौक है! सब जानते है कि यह सपोर्ट का माया-मुलायम प्रकरण भी एक फूट डालो और राज करो वाली नीति का ही हिस्सा है ! इनकी कारगुजारियों से जनता पिस रही है, फिर भी पूरा देश एक सुर में बोलने को राजी नहीं ! यदि ये तथाकथित अल्पसंख्यकों के शुभचिंतक वाकई उनके प्रति इतने ही चिंतावान होते, ईमानदार होते , तो जैसे इन्होने उच्च जाति के हिन्दुओं की उन्नति के अवसर आरक्षण के माध्यम से बंद किये थे , ६५ सालों में इन्होने संसद और विधानसभाओं में भी अल्पसंख्यकों के लिए ५० प्रतिशत सीटे आरक्षित कर ली होती ! मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि अगर एक बार संसद और विधानसभाओं में ऐसा हो जाता ( साथ ही ३० प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए भी होता ) तो फिर देखते इन अल्पसंख्यकों के चेह्तों के असली चेहरे ! मगर अफ़सोस कि समाज तो इन्होने इस तरह चतुराई से पहले ही बाँट के रख छोड़ा है कि आमजन कुछ नहीं कर सकता !
हमारे इस देश की मौजूदा राजनीति समस्या का कोई हल निकालने का तरीका नही निकालती, अपितु उसे जीवित रख उसपर राजनीति करती है, क्योंकि हम हिन्दुस्तानियों ने कभी सच का सामना करना ही नहीं सीखा! जो आज निम्न स्तरीय राजनीति का दौर इस देश में चल रहा है, वह कहाँ से आया ? यह देश जब आजाद हुआ तो जो तुच्छ सांप्रदायिक राजनीति आज के ये होनहार नेता अपने द्वारा बिछाए गए भ्रष्टाचार के दलदल में खेल रहे है, वही उन्होंने आजादी के बाद भी खेली थी ! तब और अब में फर्क सिर्फ इतना था कि वे लोग आज के नेताओं से ज्यादा ईमानदार थे क्योंकि उन्होंने आजादी का आन्दोलन सामने से देखा था !
हमारे इस देश की मौजूदा राजनीति समस्या का कोई हल निकालने का तरीका नही निकालती, अपितु उसे जीवित रख उसपर राजनीति करती है, क्योंकि हम हिन्दुस्तानियों ने कभी सच का सामना करना ही नहीं सीखा! जो आज निम्न स्तरीय राजनीति का दौर इस देश में चल रहा है, वह कहाँ से आया ? यह देश जब आजाद हुआ तो जो तुच्छ सांप्रदायिक राजनीति आज के ये होनहार नेता अपने द्वारा बिछाए गए भ्रष्टाचार के दलदल में खेल रहे है, वही उन्होंने आजादी के बाद भी खेली थी ! तब और अब में फर्क सिर्फ इतना था कि वे लोग आज के नेताओं से ज्यादा ईमानदार थे क्योंकि उन्होंने आजादी का आन्दोलन सामने से देखा था !
आज जिसतरह इस देश के तथाकथित धर्मांध वोटबैंक, स्वार्थी स्योड़ो-सेक्युलर इनकी हाँ में हाँ भरते है, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ और सिर्फ झूट और तुष्टीकरण है और देश के हितों के खिलाफ जा रहा है! उसके बावजूद अगर जानबूझकर देश हितों की अनदेखी कर सिर्फ अपने हितों को सर्वोपरी रखते है , तो आप समझ सकते है कि सदियों पहले अपने देश में एक जयचंद हुआ था, जिसके चलते हम गुलाम हुए! आज तो जयचंदों की भरमार है, इसलिए आगे शायद और भी बुरा समय आने वाला है ! क्या इस विकृत सेक्युलरवाद के मायने सिर्फ इस्लामिक चरमपंथ को पोषित करना मात्र भर रह गया है ? इससे दुखद और हास्यास्पद बात और क्या हो सकती है आज की इस निम्नस्तरीय राजनीतिक ताने-बाने के लिए, कि अभी कुछ महीनो पहले जिस मायावती और मुलायम को उतर-प्रदेश मे कांग्रेस भ्रष्टाचारी से लेकर और पता नहीं क्या क्या इल्जाम लगा आई थी, आज उसी की बैसाखियों पर निर्भर है !
वक्त की मांग है की किसी भी बात का आंख मूंदकर समर्थन करने या विरोध करने से पहले क्या एक साधारण सा सवाल इस सरकार से नहीं पूछा जाना चाइये कि अगर सिर्फ तीन बड़े घोटाले CWG , 2G , और coalgate नहीं होते तो ५ लाख करोड़ रूपये से अधिक तो वैसे ही देश के सरकारी खजाने में होते , तब भी क्या हमें इस तरह ऍफ़ डी आई (FDI )और डीजल के दामों की दया पर निर्भर रहना पड़ता ?