Tuesday, December 31, 2019

स्वरचित एक पैरोडीःः😂

👍🏼🥃🍻🍾 Bye-Bye 2019🖐️✋🤚🙏
स्वर
कर लें जितनी जांचे, आयोग जितने बिठा ले,
नये साल मे फिर से करेंगे मिलकर नये घोटाले....
हम भारत वाले, हम भारत वाले.....।

आज पुराने हथकंडों को छोड़ चुके हैं,
क्या देखें उस एटीएम को जो तोड चुके हैं.....
नेट के दर पे जा पहूंचा है आज जमाना,
साइबर ठगों से हम भी नाता जोड चुके हैं।
नया है क्या, फीके पड गये पासवर्ड ताले....
हम भारत वाले, हम भारत वाले.....।

अभी लूटने है हमको कई और खजाने,
भ्रष्टाचार के हैंं अभी दरिया और बहाने....
अभी तो हमको है समूचा देश लुटाना,
धन- दौलत के नए नये हैं खेल रचाने ।
लग्जरी गाडी, उजली पोशाक, कारनामे काले...
हम भारत..............।।।

आओ मेहनतकश पर मोटा टैक्स लगाए,
नेक दिलों को भी जबरन बेईमान बनाए....
माल्या और नीरव मोदी की इस भूमि को,
पीएनसी के रंगों से कुछ  यूं करके सजाएं
कि हरतरफा ईमानदारी के पड जाएं लाले.....
हम भारत वाले, हम भारत वाले......

-उम्मीद करता हूँ मेरी यह पैरोडी पढकर कुछ बेईमान 2020 मे सुधर जाने का रिजोल्यूशन बनाएंगे।😂

Monday, December 30, 2019

आगाज इक्कीसवीं सदी का ।

आज से करीब ग्यारह साल पहले मैने एक कविता कह लो या गजल कह लो, लिखी थी। अफसोस होता है यह देखकर की आज भी वो अपनी कसौटी पर खरी है। साल 2019 की विदाई मे आप भी उसका लुत्फ उठाइए।

नफ़रत के दहन मे सुलगता शिष्ट ये समाज देखा ,
अमेरिकी द्वी-बुर्ज देखे और मुंबई का ताज देखा।  

आतंक का विध्वंस देखा कश्मीर से  कंधार तक ,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं, ऐसा तेरा आगाज देखा।


सब लड़खड़ाते दिखे, यक़ीन, ईमान , धर्म-निष्ठा,
छलता रहा दोस्त बनकर , हर वो धोखेबाज देखा।


बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट,आडम्बरों का, इक नया अंदाज देखा।

साथ जीवनवृति के कभी, आहार था जो दीन का ,
उसे खून के आंसू रुलाता, मंडियों में प्याज देखा।

माँ दिखी अपने शिशु को, घास की रोटी खिलाती,
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा।  


फक्र था चमन को जिस, अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखट-ऐ-दबंगचंड की, दम तोड़ता वो नाज देखा।



जी-हजूरी देखी  'परचेत', मुलाज़िमत मुलाज़िमोंं की,
वंशवादी चाबुक से  चलता , सिर्फ जंगल-राज देखा। 

Sunday, December 29, 2019

अथाह उदारिता !



कुछ 'परदेशी' और 
कुछ 'जयचंदी' गिद्ध,
जो पहले ही प्रदूषित कर चुके थे 
परिवेश को,
जहर पिलाने की फिराक मे हैं, 
इस देश को।
सम्भल जाओ
ऐ, रहम दिल मातरे वतन,
वरना मुश्किल होगा 
बर्दाश्त कर पाना ऐंसी ठेस को।।

चित्र विकिपीडिया से साभार।

Saturday, December 28, 2019

ऐ बेवफा नींद !


इतनी तिरस्कृति-तिरस्कार,
तू हरगिज न कभी मुझसे पाती,
अगर, ऐ बेहया नींद !
मेरे जितना करीब तू दिन को
दफ्तर मे आ रही थी,
उतना ही रात को बिस्तर मे आती।

Friday, December 27, 2019

दिल्ली-एनसीआर

ये दिल्ली-एनसीआर,
अजीब शहर है यार।
सिर्फ़ प्रदूषण अखण्ड,
बाकी सब खण्ड-खण्ड।
राजस्थानी रेत तपे, पडे गर्मी,
पहाड़ों मे हिम पडे तो ठंड।
बरसात मे चौतरफ़ा सैलाब,
तुनकमिजाज आफ़ताब ।
सर्दियों मे धुंध प्रचण्ड,
गर्मियों की लू झण्ड ।
कडक जुबां,
सडक व्यापार,
सिर्फ और सिर्फ
पैसों का प्यार।
ये दिल्ली-एनसीआर,
अजीब शहर है यार।।

              

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...