Saturday, December 28, 2019

ऐ बेवफा नींद !


इतनी तिरस्कृति-तिरस्कार,
तू हरगिज न कभी मुझसे पाती,
अगर, ऐ बेहया नींद !
मेरे जितना करीब तू दिन को
दफ्तर मे आ रही थी,
उतना ही रात को बिस्तर मे आती।

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व्यथा

  तुझको नम न मिला और तू खिली नहीं, ऐ जिन्दगी ! मुझसे रूबरू होकर भी तू मिली नहीं।