जहां, छप्पन इंच के सीने वाला भी
यू-टर्न ले लेता है,
वहां, 'मार्क माय वर्ड्स' कहने वाला पप्पू,
भविष्यवेता है।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
जहां, छप्पन इंच के सीने वाला भी
यू-टर्न ले लेता है,
वहां, 'मार्क माय वर्ड्स' कहने वाला पप्पू,
भविष्यवेता है।
कृषि सुधार 'व्हिस्की के पैग' का
तुम्ही बताओ सुरूर क्या था?
वो 'साला' कानून अगर,
जितना बताया,
उतना ही काला था तो लाना जुरूर क्या था?
सालभर आते-जाते, दिल्ली की सीमाओं पर
जिन्होंने दुर्गति झेली,
ऐ हुजूर, लगे हाथ यह भी बता देते,
उनका कुसूर क्या था?
#आज जार्ज बरनार्ड शा फिर सही साबित हुए।
अपने तमाम एहसास हमने,
कुछ यूं लफ्जो़ मे पिरोए हैं,
तुम साथ तो चेहरे पे मुस्कुराहट बिखेरी,
और अकेले मे रोए हैं।
रूप कुरूप नजर जो आये,
अयथार्थ दिशा मे दर्पण देखो,
तृप्ति हेतु करो जो अर्पण,
उस अर्पण का तर्पण देखो।
क्या बदला है गत बर्षों मे,
नजर न आए, कण-कण देखो,
दृष्टि का यह दोष है कह लो,
सृष्टि बदलती क्षण-क्षण देखो।
पतित प्राण असंख्य जगत मे,
जम्हूरियत का वरण देखो,
बडबोली हो रही दुःशीलता,
आचरण का हरण देखो।
मोल इसकदर डोल रहा क्यों,
सनातन अपना प्रण देखो,
तन-मन और कसैला मत कर,
मन-मंदिर का जनगण देखो।
सुख की इच्छा दुःख का कारण,
माया बडी विलक्षण देखो,
शीश झुकाया दर पर किसके,
मन का व्यग्र समर्पण देखो।
सहरा मे पसरा हुआ कुहासा है,
और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।
कोई कहे ये 'दिवाली' का रोष है,
कोई दे रहा 'पराली' को दोष है,
मुफ्त़जीवी, मुरीद हैं गिरगिटों के,
विज्ञापनों से खाली हुआ कोष है।
नेत्र पट्टी क्षुब्ध, तराजू रुआंसा है,
और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।
सभ्य समाज के माथे पर दाग है,
जमुना मे बहता नीर नहीं झाग है,
महामारी से ठंडे पडे है कई चूल्हें,
असहज सीनो मे धधकती आग है।
सोचकर खुश है 'आत्ममुग्धबौना',
नर,खर,गदर्भ, सभी को फा़ंसा है,
और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।
'दीपोत्सव"
मुल्क़ मे हाकिमों के हुक्मों की गहमा़गहमी़ है।
'दीया' खामोश है और रोशनी सहमी़-सहमी़ है।
डर है, दम घुटकर न मर जाएं, कुछ 'मीं-लार्ड्स',
'भाग' से ज्यादा जीने की, कैंसी गलतफहमी़ है?
इतना तो न बहक पप्पू , बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे, नादानियां तेरी, कहर बनकर।