Tuesday, November 16, 2021

खोट

रूप कुरूप नजर जो आये,

अयथार्थ दिशा मे दर्पण देखो, 

तृप्ति हेतु करो जो अर्पण,

उस अर्पण का तर्पण देखो।


क्या बदला है गत बर्षों मे,

नजर न आए, कण-कण देखो,

दृष्टि का यह दोष है कह लो,

सृष्टि बदलती क्षण-क्षण देखो।


पतित प्राण असंख्य जगत मे,

जम्हूरियत का वरण देखो,

बडबोली हो रही दुःशीलता,

आचरण का हरण देखो।


मोल इसकदर डोल रहा क्यों,

सनातन अपना प्रण देखो,

तन-मन और कसैला मत कर,

मन-मंदिर का जनगण देखो।


सुख की इच्छा दुःख का कारण,

माया बडी विलक्षण देखो,

शीश झुकाया दर पर किसके,

मन का व्यग्र समर्पण देखो।


7 comments:

  1. सुख की इच्छा दुःख का कारण,

    माया बडी विलक्षण देखो,

    शीश झुकाया दर पर किसके,

    मन का व्यग्र समर्पण देखो।... सही कहा आपने ।देखने को तो बहुत कुछ है, पर देखता कौन है ? सराहनीय सृजन ।

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  2. बहुत ही सुंदर

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  3. सुख की इच्छा दुःख का कारण,

    माया बडी विलक्षण देखो,

    शीश झुकाया दर पर किसके,

    मन का व्यग्र समर्पण देखो।

    मन को छूने वाली पंक्तियाँ..अगर व्यक्ति ये सब कर ले तो उसकी चिंताओं का हरण हो जाए....

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  4. रूप कुरूप नजर जो आये,
    अयथार्थ दिशा मे दर्पण देखो,
    तृप्ति हेतु करो जो अर्पण,
    उस अर्पण का तर्पण देखो।
    बेहतरीन सृजन

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।