Wednesday, November 17, 2021

गूढ़ सत्य






अपने तमाम एहसास हमने, 

कुछ यूं लफ्जो़ मे पिरोए हैं,

तुम साथ तो चेहरे पे मुस्कुराहट बिखेरी,

और अकेले मे रोए हैं।




5 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
    ' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. उम्दा, हृदय स्पर्शी!

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।