...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Friday, June 26, 2020
Thursday, June 25, 2020
चाण्डक्यचाव !
हो वर्चस्व की यदि अंंतहीन जंग,
उसे मरते दम तक कभी न हारो।
भद्र-प्रतिद्वंद्वी, बर्ताव हो निश्छल,
हो शत्रु कपटी, उसे छल से मारो।।
मरुधर जो उगले, नफरत का लावा,
तीव्र-प्रबल धार छोड, जल से मारो।
निष्क्रिय हो बोले जो,शटुतित धावा,
लक्ष्यसिद्ध शस्त्र साध, बल से मारो।।
विघ्न उपजाना समझो,धर्म है रिपु का,
उसका हल निकाल, उसे हल से मारो।
जिसे फर्क न महसूस हो,मनुष्यत्व का,
ऐसे अकल के मारे को,अक्ल से मारो।।
अक्षम्य है लेकर जान, उसे त्रुटि कहना,
भूल करे इरादतन बैरी तो फल से मारो।
बन जाए अगर कोई मार्ग का बाधक,
वीर-पथगामी बन 'परचेत', तल से मारो।।
Sunday, June 21, 2020
बाप का बरदहस्त !
क्योंकि मैं नादां था
तो, बचपन मे जब भी
मैं, खो लेता था आपा,
गोद उठा लेते थे पापा।
जवां हुआ तो भी नासमझी
और बरदहस्त के बल पर,
हरदम अपना आपा खोया,
हकीकत जमाने की जानी,
तब दस्तूर समझ मे आया,
जब, मैंने अपना पापा खोया।
#Happyfather'sday
तो, बचपन मे जब भी
मैं, खो लेता था आपा,
गोद उठा लेते थे पापा।
जवां हुआ तो भी नासमझी
और बरदहस्त के बल पर,
हरदम अपना आपा खोया,
हकीकत जमाने की जानी,
तब दस्तूर समझ मे आया,
जब, मैंने अपना पापा खोया।
#Happyfather'sday
Saturday, June 20, 2020
अफसोस ये भी...
चलचित्र को बदनाम किया,
स्वार्थी,चरित्रहीन खानों ने,
वतन को नीचा दिखलाया,
कुछ बिके हुए इन्सानों ने।
स्वार्थी,चरित्रहीन खानों ने,
वतन को नीचा दिखलाया,
कुछ बिके हुए इन्सानों ने।
Thursday, June 18, 2020
मूड रंगीन हो तो आप क्यों बाज आते हो, लुत्फ़ उठाने से ...
झूठा-मूठा ही सही, ऐ यार,
ये तेरा प्यार हमसे,
मगर तू कब बाज आयेगा,
दुनियांं को यह दिखाने से।
इस इश्क दरमियाँ हमने,
ठोकरें क्या कम खाईंं हैं,
जो खिलाने पे आमादा है
हमको, और तू जमाने से।
माना कि शुकूंं की
सभी को जु़स्तु़जू़ है,
मगर सवाल करती आँखें
क्यों मुंतज़िर हैं तेरे बहाने से।
छोड दे तोलना हमको तू,
वक्त की कसौटी से,
अरे नादांं, जताने के बजाए,
प्यार बढता है छिपाने से ।
फर्क की परवाह किसको ,
तेरी स्नेह की तिजोरी पर,
जरा, हम भी लूट ले गये
'परचेत', जो तेरे खजाने से।
ये तेरा प्यार हमसे,
मगर तू कब बाज आयेगा,
दुनियांं को यह दिखाने से।
इस इश्क दरमियाँ हमने,
ठोकरें क्या कम खाईंं हैं,
जो खिलाने पे आमादा है
हमको, और तू जमाने से।
माना कि शुकूंं की
सभी को जु़स्तु़जू़ है,
मगर सवाल करती आँखें
क्यों मुंतज़िर हैं तेरे बहाने से।
छोड दे तोलना हमको तू,
वक्त की कसौटी से,
अरे नादांं, जताने के बजाए,
प्यार बढता है छिपाने से ।
फर्क की परवाह किसको ,
तेरी स्नेह की तिजोरी पर,
जरा, हम भी लूट ले गये
'परचेत', जो तेरे खजाने से।
Tuesday, June 16, 2020
पैरोडी, कोरोना जहाँ तेरा देस रे....।
इस तथाकथित आचार, लाचार, सदाचार, ग़ंवार दुनियांं को देख आज एक ही प्रश्न मन मे कौंध रहा, जब तुम्हारे द्वारा इम्पोर्ट किया गया चीनी माल इतना घटिया था तो तुमने 5 महिने बाद भी ,उस माल को उसे लौटाया क्यों नहीं ? , विश्व आज झूठे , मक्कार और स्वार्थी प्राणियों के एक देश के आगे
इतना बेवस क्यों?
हे कोरोना, जल्दी जा रे,.........
चले जा.....अरे हो, कोरोना,
जहाँ तेरा देस रे, कोरोना जहाँ तेरा देस,
अरे हो, तोहे देखूँ तो लागे ठेस रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
लाल लाल लाल ध्वजा ओढ़े,
जग में फिरे बहार,
हाय गाल गाल सुलगे रे तेरी,
जिया जले हमार,
छैयां पड़े जहाँ तोरी रे
संक्रमण फैले वहां तोरी रे
अरे हो, बदला कैसे तूने भेस रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
घूम घूम के बीजिंग की गली-गली,
जाना शी-पिंग के द्वार,
मोड़-मोड़ पे फंसी मिले,
उस हरामी की कार,
जब राह में घायल तेरी बाजेगी
सारी धरती गगन तले नाचेगी
अरे हो, मुख पे काला तेरे शेष रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
चले जा..जहाँ तेरा देश रे..।
इतना बेवस क्यों?
हे कोरोना, जल्दी जा रे,.........
चले जा.....अरे हो, कोरोना,
जहाँ तेरा देस रे, कोरोना जहाँ तेरा देस,
अरे हो, तोहे देखूँ तो लागे ठेस रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
लाल लाल लाल ध्वजा ओढ़े,
जग में फिरे बहार,
हाय गाल गाल सुलगे रे तेरी,
जिया जले हमार,
छैयां पड़े जहाँ तोरी रे
संक्रमण फैले वहां तोरी रे
अरे हो, बदला कैसे तूने भेस रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
घूम घूम के बीजिंग की गली-गली,
जाना शी-पिंग के द्वार,
मोड़-मोड़ पे फंसी मिले,
उस हरामी की कार,
जब राह में घायल तेरी बाजेगी
सारी धरती गगन तले नाचेगी
अरे हो, मुख पे काला तेरे शेष रे,
कोरोना जहाँ तेरा देस।
चले जा..जहाँ तेरा देश रे..।
Sunday, June 14, 2020
वक्त का पहिया।
इक्कीसवीं सदी मे भी अश्वेतों का जीने का हक,
गला दबाकर छीन लिया करता था जो कलतक,
असहिष्णुता और रंग-भेद पर ही पूरी दुनिया को,
ज्ञान बांटा करता था वो,"श्वेत वर्चस्वधारी बुडबक"।
किंतु, ऐसा वक्त का पहिया घूमा, खुल गई पोल,
सडकों पे उतरे अश्वेत,बजाके नश्लवाद का ढोल,
बिगुल बजा, अमेरिका, यूरोप से आस्ट्रेलिया तक,
अब,हटाये और गिराए जा रहे,तमाम श्वेत स्मारक।
शस्त्र-कोरोना लेकर, कुदरत ने भी डाका डाला है,
दिलों मे आग धधक रही,जहां मे भडकी ज्वाला है,
व्यर्थ हुई 'परचेत' चमक-दमक, क्षमता ऐसी मारक,
न कर्ता कोई नये विश्व-युद्ध का,और न कोई कारक।
#हरजीवनमायनेरखताहै
Every lives matter.
Saturday, June 13, 2020
अ वीकेड,..। कंट्री कौल्ड 'चाह'हिना ...।
तमाम सामाजिक दूरियांं बरतते हुए,
हम ह़िंदुस्तानियो ने तो सदी गुजार दी
और, अब ये कमबख्त चीनी वायरस,
हमें दूरियाँ बरतने की सलाह दे रहा। 😀
हम ह़िंदुस्तानियो ने तो सदी गुजार दी
और, अब ये कमबख्त चीनी वायरस,
हमें दूरियाँ बरतने की सलाह दे रहा। 😀
Friday, June 12, 2020
वक्त का पहिया।
हम जब समाज मे किये थे प्रवेश
उस बदलते समाज की देहरी से,
तो सिर्फ़, संस्कार हमारे साथ थे,
हमारे लाख समझाने पर भी, वो
हमारा साथ छोडने का राजी न थे।
मगर, वक्त की विडम्बना तो देखिए,
जब जमाने का रंग चढा हम पर, तो
"संस" हमें दरकिनार कर गए, और
तथाकथित हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा पर,
"कारों" ने वर्चस्व हासिल कर लिया।।
उस बदलते समाज की देहरी से,
तो सिर्फ़, संस्कार हमारे साथ थे,
हमारे लाख समझाने पर भी, वो
हमारा साथ छोडने का राजी न थे।
मगर, वक्त की विडम्बना तो देखिए,
जब जमाने का रंग चढा हम पर, तो
"संस" हमें दरकिनार कर गए, और
तथाकथित हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा पर,
"कारों" ने वर्चस्व हासिल कर लिया।।
Friday, June 5, 2020
अचरज।
नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का,
जहां वाले, है कैसा
ये सम्मिश्रण तेरा,
उल्लास मे हताश का।
'कोरोना' संरचना
कोई कारण तो नहीं,
मानवता के विनाश का,
'आश' की आस मे
ये कब खत्म होगा,
इंतजार इक निराश का।।
क़त्ल की ये कैसी
खौफना़क साजिश,
है जुनून कैसा
ये सत्यानाश का,
गुफा अंधेरी,अंतहीन,
सर्वथा टेडी-मेडी,
परिणाम शिफ़र तलाश का।
ये कौन है,
आया कहाँ से भेष धरकर,
मदमास मे बदमाश का,
नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का।
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का,
जहां वाले, है कैसा
ये सम्मिश्रण तेरा,
उल्लास मे हताश का।
'कोरोना' संरचना
कोई कारण तो नहीं,
मानवता के विनाश का,
'आश' की आस मे
ये कब खत्म होगा,
इंतजार इक निराश का।।
क़त्ल की ये कैसी
खौफना़क साजिश,
है जुनून कैसा
ये सत्यानाश का,
गुफा अंधेरी,अंतहीन,
सर्वथा टेडी-मेडी,
परिणाम शिफ़र तलाश का।
ये कौन है,
आया कहाँ से भेष धरकर,
मदमास मे बदमाश का,
नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का।
Wednesday, June 3, 2020
नसीहत-ए-कोरोना।
सांसे जकडकर भी कह रहा कोविड-१९
बेटा, जंग जारी रख, हिम्मत न हारना।
मगर याद रहे, जिंदगी का ये फलसफा,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
सहुलियत ही नहीं, हुनर से भी सीढियां चढ,
सोच का दायरा बढा, 'मैं' से भी आगे बढ।
आस़ां है कर्ज लेना, मुश्किल है उतारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
अभी ताजा तुझको, यह ऐहसास कराया है,
जो निर्भीक कहता था खुदको, उसे डराया है।
कितनी कठिन है जिंदगी, पिंजड़े मे गुजारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
गुजरी थी कभी जो मदमस्त होकर, वो जवानी
बुरा जो वक्त आया तो मांग न सकी पानी।
दुनियांं बहरी हो 'परचेत',तो फिजूल है पुकारना,
खटिया से बाहर कभी, पैर मत पसारना।।
बेटा, जंग जारी रख, हिम्मत न हारना।
मगर याद रहे, जिंदगी का ये फलसफा,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
सहुलियत ही नहीं, हुनर से भी सीढियां चढ,
सोच का दायरा बढा, 'मैं' से भी आगे बढ।
आस़ां है कर्ज लेना, मुश्किल है उतारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
अभी ताजा तुझको, यह ऐहसास कराया है,
जो निर्भीक कहता था खुदको, उसे डराया है।
कितनी कठिन है जिंदगी, पिंजड़े मे गुजारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
गुजरी थी कभी जो मदमस्त होकर, वो जवानी
बुरा जो वक्त आया तो मांग न सकी पानी।
दुनियांं बहरी हो 'परचेत',तो फिजूल है पुकारना,
खटिया से बाहर कभी, पैर मत पसारना।।
एक अफसोस....।।
30-32 साल पहले युवावस्था मे जब पहली झलक मे यमनोत्री धाम देखा था तो उस वक्त की उस जगह का आखों देखा चित्रण कुछ यूं था:
दूर पहाड़ी ओठ से आती लकीराकार एक स्वच्छ निर्मल नीर धार...। नीचे पहाड़ी की ओठ मे बना एक प्राचीन मंदिर..। मंदिर के आसपास टिन की चादरों और तिरपाल की छत से ढके कुछ खपरैल, चाय-पानी की दुकानें...। बस, अन्यथा सब कुछ निर्जन।
आज... यहां जो तस्वीर चस्पा कर रहा हूँ वो गत बर्ष की है, जो मैंने कही से उठा ली थी। उसपर नजर गई तो
बडा दुख हुआ यह देखकर कि आज भी सब कुछ वैसा ही है, कुछ नहीं बदला इन 30 सालों मे... या यूं कहूं कि पहले वह तीर्थ स्थल ज्यादा आकर्षक नजर आता था।
कुछ सवाल जो मन मे खटके:-
1) क्या हमारी सरकारें जो फाइव ट्रीलियन के सपने सजोती हैं, और पिछले 19 सालों से जहां राज्य स्तर की सरकार भी है, जो देवस्थानों के स्वामित्व को पाने को तत्पर है, क्या इतनी गरीब है कि मंदिर के आस-पास के खपरैलों और छप्परनुमा दुकानों को एक आकर्षक लुक न दे सके?
2) अगर, यह एक हिंदू तीर्थस्थल न होकर किसी और का धार्मिक स्थल होता तो क्या पूर्ववत सरकारें भी इसके प्रति इतनी उदासीन रहती?
यह चित्र मैने श्री तरुण पाल जी की फेसबुक वाल से लिया है। 30-32 साल पहले कुछ यूं था यमनोत्री धाम। |
मैं समझता हूँ, मात्र कुछ ही लाख रुपयों के इंवेस्टमेंट से इस स्थान का स्वरूप ही बदल जाता, मगर अफसोस...।
Monday, June 1, 2020
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