नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का,
जहां वाले, है कैसा
ये सम्मिश्रण तेरा,
उल्लास मे हताश का।
'कोरोना' संरचना
कोई कारण तो नहीं,
मानवता के विनाश का,
'आश' की आस मे
ये कब खत्म होगा,
इंतजार इक निराश का।।
क़त्ल की ये कैसी
खौफना़क साजिश,
है जुनून कैसा
ये सत्यानाश का,
गुफा अंधेरी,अंतहीन,
सर्वथा टेडी-मेडी,
परिणाम शिफ़र तलाश का।
ये कौन है,
आया कहाँ से भेष धरकर,
मदमास मे बदमाश का,
नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का।
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का,
जहां वाले, है कैसा
ये सम्मिश्रण तेरा,
उल्लास मे हताश का।
'कोरोना' संरचना
कोई कारण तो नहीं,
मानवता के विनाश का,
'आश' की आस मे
ये कब खत्म होगा,
इंतजार इक निराश का।।
क़त्ल की ये कैसी
खौफना़क साजिश,
है जुनून कैसा
ये सत्यानाश का,
गुफा अंधेरी,अंतहीन,
सर्वथा टेडी-मेडी,
परिणाम शिफ़र तलाश का।
ये कौन है,
आया कहाँ से भेष धरकर,
मदमास मे बदमाश का,
नजर आता नहीं,
कहीं दूर तक कोई,
तिनका इक आश का।
सुन्दर और समसामयिक रचना।
ReplyDeleteसुन्दर और सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह!बहुत खूब !पता नहीं कौन ,कहाँ से आया ,जो सभी को इतना हैरान कर रहा है ।
ReplyDeleteआभार आप सब का।
ReplyDeleteसामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteइन्सानी फ़ितरत ने किसी को बख़्शा कहाँ?अति का यही परिणाम होता है.
ReplyDeleteनियति हँसती है इन्सान रोता है.
सटीक बात, प्रतिभा जी🙏
ReplyDelete