Thursday, June 18, 2020

मूड रंगीन हो तो आप क्यों बाज आते हो, लुत्फ़ उठाने से ...

झूठा-मूठा ही सही, ऐ यार, 
ये तेरा प्यार हमसे,  
मगर तू कब बाज आयेगा, 
दुनियांं को यह दिखाने से।

इस इश्क दरमियाँ हमने, 
ठोकरें क्या कम खाईंं हैं,
जो खिलाने पे आमादा है 
हमको, और तू जमाने से। 

माना कि शुकूंं की 
सभी को जु़स्तु़जू़ है, 
मगर सवाल करती आँखें 
क्यों मुंतज़िर हैं तेरे बहाने से।

छोड दे तोलना हमको तू, 
वक्त की कसौटी से,
अरे नादांं, जताने के बजाए, 
प्यार बढता है छिपाने से ।  

फर्क की परवाह किसको ,
तेरी स्नेह की तिजोरी पर,
जरा, हम भी लूट ले गये
'परचेत', जो तेरे खजाने से।

4 comments:

संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।