झूठा-मूठा ही सही, ऐ यार,
ये तेरा प्यार हमसे,
मगर तू कब बाज आयेगा,
दुनियांं को यह दिखाने से।
इस इश्क दरमियाँ हमने,
ठोकरें क्या कम खाईंं हैं,
जो खिलाने पे आमादा है
हमको, और तू जमाने से।
माना कि शुकूंं की
सभी को जु़स्तु़जू़ है,
मगर सवाल करती आँखें
क्यों मुंतज़िर हैं तेरे बहाने से।
छोड दे तोलना हमको तू,
वक्त की कसौटी से,
अरे नादांं, जताने के बजाए,
प्यार बढता है छिपाने से ।
फर्क की परवाह किसको ,
तेरी स्नेह की तिजोरी पर,
जरा, हम भी लूट ले गये
'परचेत', जो तेरे खजाने से।
ये तेरा प्यार हमसे,
मगर तू कब बाज आयेगा,
दुनियांं को यह दिखाने से।
इस इश्क दरमियाँ हमने,
ठोकरें क्या कम खाईंं हैं,
जो खिलाने पे आमादा है
हमको, और तू जमाने से।
माना कि शुकूंं की
सभी को जु़स्तु़जू़ है,
मगर सवाल करती आँखें
क्यों मुंतज़िर हैं तेरे बहाने से।
छोड दे तोलना हमको तू,
वक्त की कसौटी से,
अरे नादांं, जताने के बजाए,
प्यार बढता है छिपाने से ।
फर्क की परवाह किसको ,
तेरी स्नेह की तिजोरी पर,
जरा, हम भी लूट ले गये
'परचेत', जो तेरे खजाने से।
उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
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