सांसे जकडकर भी कह रहा कोविड-१९
बेटा, जंग जारी रख, हिम्मत न हारना।
मगर याद रहे, जिंदगी का ये फलसफा,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
सहुलियत ही नहीं, हुनर से भी सीढियां चढ,
सोच का दायरा बढा, 'मैं' से भी आगे बढ।
आस़ां है कर्ज लेना, मुश्किल है उतारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
अभी ताजा तुझको, यह ऐहसास कराया है,
जो निर्भीक कहता था खुदको, उसे डराया है।
कितनी कठिन है जिंदगी, पिंजड़े मे गुजारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
गुजरी थी कभी जो मदमस्त होकर, वो जवानी
बुरा जो वक्त आया तो मांग न सकी पानी।
दुनियांं बहरी हो 'परचेत',तो फिजूल है पुकारना,
खटिया से बाहर कभी, पैर मत पसारना।।
बेटा, जंग जारी रख, हिम्मत न हारना।
मगर याद रहे, जिंदगी का ये फलसफा,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
सहुलियत ही नहीं, हुनर से भी सीढियां चढ,
सोच का दायरा बढा, 'मैं' से भी आगे बढ।
आस़ां है कर्ज लेना, मुश्किल है उतारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
अभी ताजा तुझको, यह ऐहसास कराया है,
जो निर्भीक कहता था खुदको, उसे डराया है।
कितनी कठिन है जिंदगी, पिंजड़े मे गुजारना,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
गुजरी थी कभी जो मदमस्त होकर, वो जवानी
बुरा जो वक्त आया तो मांग न सकी पानी।
दुनियांं बहरी हो 'परचेत',तो फिजूल है पुकारना,
खटिया से बाहर कभी, पैर मत पसारना।।
सार्थक और सटीक रचना
ReplyDeleteआभार आपका, खरे सहाब।
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
"मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सामयिक और सुन्दर सुझाव के साथ सार्थक रचना।
ReplyDeleteआभार आपका
ReplyDeleteबिलकुल सही कोराना को हराना है तो सावधानी रखे
ReplyDeleteसुन्दर रचना
आभार आपका।
Deleteसार्थक प्रस्तुति यथार्थ को इंगित करती.
ReplyDeleteवाह !लाजवाब
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार, आप सभी का।
ReplyDelete