चलचित्र को बदनाम किया,
स्वार्थी,चरित्रहीन खानों ने,
वतन को नीचा दिखलाया,
कुछ बिके हुए इन्सानों ने।
स्वार्थी,चरित्रहीन खानों ने,
वतन को नीचा दिखलाया,
कुछ बिके हुए इन्सानों ने।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
:):) :)
ReplyDeleteकुछ कहाँ हैं बहुत सारे हैं हर जगह हैं बिके हुऐ
कुछ दिखते हैं सामने रहते हैं बाकी रहते हैं छिपे हुऐ।