देशवासियों तुम हमें सत्ता देंगे
तो हम तुम्हें गुजारा भत्ता देंगे।
सारे भूखे-नंगों की जमात को,
बिजली-पानी,कपड़ा-लत्ता देंगे।
विकास के वादे पे शक करलो,
विनाश,भ्रष्टाचार अलबत्ता देंगे।
तुम हमको शहद खिलाओ,हम
तुम्हें मधुमक्खी का छत्ता देंगे।
इंतिख़ाबात तुरुफ का पत्ता देंगे। इंतिख़ाबात =चुनाव
टहलुआ बन हमारे तलवे चाटो, टहलुआ=गुलाम
वरना बता तुम्हें हम धत्ता देंगे।
क्या बात है, बहुत खूब
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य ..
यह तो है ही गोदियाल साहब.
ReplyDeleteसीधा साधा हिसाब है..
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य |
ReplyDeleteपहला शब्द "तुम" के जगह "आप" हो जाए तो पंक्ति सही लगेगी |
अरे,आपने तो सारी पोल खोल दी !
ReplyDeleteये दिया घुमा के
ReplyDeleteसर्वप्रथम टिपण्णी के लिए आप सभी का आभार! @ ई. प्रदीप कुमार साहनी जी, कविता के भावो में "आप" जैसे शब्द को डालने की गुंजाइश नहीं थी इसलिए तुम शब्द इस्तेमाल किया है। दूसरे शब्दों में राज सत्ता वाले अपने गुलामों को "आप" शब्द शायद ही इस्तेमाल करते हो ! :) खैर, सजेशन आपका अच्छा था।
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ReplyDeleteमुस्कुराते हुए आपने लगाया जोर का चाटा
इसमें किसी को कोई नहीं है घाटा.
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।
ReplyDeleteबहुत खूब तंज किया है सर आज के राजनीतिक प्रबंध पर .
तुम हमको शहद खिलाओ,हम
ReplyDeleteतुम्हें मधुमक्खी का छत्ता देंगे।
:):) बहुत बढ़िया ... यही होता है ।
राजनीति का सही रूप रंग ढांचा खींच दिया ...
ReplyDeleteबहुत भिगो भिगोकर मारा है. वैसे जरूरत भी इसी की की है.
ReplyDeleteरामराम.