Wednesday, January 30, 2013

जनतंत्र रूपी चिलमन और (अ)धर्मनिर्पेक्षता !



शाहरुख ख़ान समेत भारत के उस बड़े तबके से मुझे कोई शिकायत नहीं है, जो यह सोचता है कि तमाम पड़ोसी मुल्कों समेत भारत को पाकिस्तान के साथ भी अच्छे संबंध रखने चाहिए, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में परस्पर सहयोग हो, खेल हो, संगीत हो अथवा व्यापार, क्योंकि हर मुल्क में बुरे और भले दोनों ही तरह के लोग होते है, और मेरे हिसाब से जब हम किसी मुल्क के पूरे आवाम के प्रति अपनी कोई राय बनाते है तो कम से कम हमें वहाँ पर सिर्फ कुछ नमूने उठाकर उसके आधार पर अंतिम निष्कर्षों पर नहीं पहुंचना चाहिए। बहुत से अमनपरस्त लोग उधर भी है और इधर भी। ये बात और है कि उनके और हमारे अमनपरस्ती के पैमाने भिन्न-भिन्न है।

हमारे देश में अभिव्यक्ति की "तथाकथित" स्वतंत्रता है और जिसका भरपूर लाभ सभी मौक़ा-परस्त उठा भी रहे है। हो भी क्यों न, हरेक को अपनी बात कहने का पूरा हक़ है। लेकिन इस तमाम कहने सुनाने की प्रक्रिया के दौरान कुछ बातें ऐसी भी हो जाती है जो कहीं कोई टीस दिलों पर छोड़ जाती है। अब तक दूसरों की ही लिखी हुई कहने बाले सुपरहीरो ने एक पत्रिका के माध्यम से जब अपनी बात कही तो लोग यह देख कर चकित थे कि दूसरे की जुबाँ बोलने वाला एक एक्टर इतनी बेहतरीन लेखनी भी चला सकता है। लेकिन लिखते वक्त यह ऐक्टर गलती यह कर गया कि इन्होने भूलबश या फिर जानबूझकर दिमाग इस्तेमाल नहीं किया। वे ये भूल गए कि भावाभेश या फिर किसी स्वार्थ की आड़ में उनकी बचकानी हरकतें धूर्त लोगों को मौकापरस्ती का न्यौता दे सकतीं हैं। 

इस विवाद को खुद उन्होंने जन्म करीब 3 साल पहले ही तब दे दिया था,जब आईपीएल में खिलाड़ियों की नीलामी के दौरान जब कमान उनके अपने हाथ में थी,  तब खुद तो किसी पाकिस्तानी खिलाडी को लेने की याद उन्हें नहीं आई, किन्तु  बाद में उन्हें पाकिस्तानी खिलाड़ियों का बहुत ख्याल आया और इस मुद्दे पर उनकी आँखों से खूब  घडियाली आंसू बहने लगे थे। इसी सिलसिले में बाद में जब किसी ने  उनसे पूछा  कि आपने अपनी बारी क्यों नहीं पाकिस्तानी खिलाडियो  को लिया ? तो उनका जबाब भी खूब  हास्यास्पद था। वे बोले उन्हें तेज़ गेंदबाज़ की ज़ूरूरत थी इसलिए उन्होंने पाकिस्तानी खिलाड़ी को नहीं ख़रीदा। वाह !. इसका मतलब ये निकला कि पाकिस्तान में कोई तेज़ गेंदबाज़ ही नहीं था। 

परिणाम यह निकला की खुद की मौकापरस्ती के चक्कर में उन्होंने धूर्त लोगों को भी मौकापरस्ती का न्यौता दे दिया। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए था कि हमारा पडोसी हमारी अच्छाई का गलत फ़ायदा उठता है। हमारी अहिंसा वादी विचारधारा को हमारी कमजोरी समझता है। हमें पाकिस्तान से अच्छे सम्बन्ध रखना चाहिए पर अगर वो अपनी हद पार करे तो उसका मुंह तोड़ जवाब भी देना चाहिए, जिसका प्रदर्शन हमने उचित मौकों पर हमेशा चूका। और जिसकी वजह से यह हमारा धूर्त पड़ोसी और धूर्त हुआ। अपने अल्पसंख्यक होने का रोना रोने की बजाये उन्हें इतिहास का यह कटु सत्य समझना चाहिए था कि भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, उसके बावजूद भी मुसलमानों को इस देश में अधिकारों के मामले में छला नहीं गया। उन्हें जो बहुसंख्यक हिंदुओं से बढ़कर धार्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता यहाँ दी गयी, वो पाकिस्तान के मुसलमानों को भी हासिल नहीं है। शियाओं और अहमदियों का कत्लेआम रोज की बात है। अल्पसंख्यक  हिन्दुओं का वहां क्या हश्र हुआ यह किसी से छुपा नहीं है। तो श्रीमान, हम,  यानी इस देश के करोड़ों आम लोग, जिन्होंने आपको सिर्फ आपकी काबिलियत के आधार पर सर-आँखों पर बिठाया है,वो तो अपने इस सुपर हीरो से सिर्फ  इतना चाहता था कि जब वह बेशर्म पाकिस्तानी दरिंदा हमदर्दी दिखाने का नाटक कर रहा था तो उसे उसी वक्त आपकी तरफ से कहा जाना चाहिए था " कीप यौर माउथ शट।" बस, आम नागरिक तो सिर्फ इतना सा देखना, सुनना चाहता था। . 

खैर, अंत में यही कहूंगा कि सिर और चेहरे पर चिलमन की महता भी तभी है जब सुघड़ निर्पेक्षता संतुलित परिधानों में हरवक्त  सजी-संवरी नजर आए, ऐसा नहीं की अपनी सहूलियत के हिसाब से तुम सिर्फ अपने फायदे के लिए, अपने वक्त पर ही संवारो । अगर आप दूसरे को साम्प्रदायिक बता रहे है तो आपने अपने अल्पसंख्यक  होने का राग किस धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे तले अल्पा?

9 comments:

  1. शा'रुख का रुख साफ़ है, आय पी एल में पस्त ।
    पाक खिलाड़ी ले नहीं, मौका-मस्त-परस्त ।
    मौका-मस्त-परस्त, बने प्रेसर गौरी पर ।
    कमल हसन अभ्यस्त, बना बेचारा तीतर ।
    हैं बयान के वीर, बने पुस्तक के आमुख ।
    नंदी बंदी पीर, कमल शिंदे से शा'रुख ।।

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  2. शाहरुख़ खान ने ठीक ही कहा है उसका पाकिस्तान ने भी ठीक जबाब दिया है यह विषय तो हिन्दुओ के सोचने का है आखिर जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ तो ये यहाँ क्यों हैं--? इन्हें तो पहले यहाँ से चले जाना चाहिए और जिन मुसलमानों को यहाँ कष्ट है उनके लिए पाकिस्तान का दरवाजा खोल देना चाहिए.

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  3. शाहरुख और अजहरुद्दीन जैसे लोग मौकापरस्त होतें हैं लेकिन वो यह नहीं जानते कि अगर सांप्रदायिक आधार पर उनके साथ भेदभाव होता तो वो लोग जिन बुलंदियों पर आज पहुंचे हैं वहाँ तक कतई नहीं पहुँच सकते थे और नाहीं इस तरह के लेख लिखने का मौका उन्हें मिलता !!

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  4. यहां के लोगों में गुलामी घर कर गयी है तो ऐसे लोगों को कैसे पहचाने.

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  5. यह सत्‍य है कि 9-11 की घटना के बाद से अमेरिका और यूरोप में मुस्लिमों के प्रति भेदभाव बढ़ा है लेकिन भारत में नहीं अन्‍तर आया है। इसलिए यदि किसी को भी शिकायत है तो वह‍ उन देशों से करे या फिर मुस्लिम देशों को संदेश दे कि कुछ लोगों की हरकतों से सारी कौम बदनाम होती है, उनपर अंकुश लगाने के लिए सभी आगे आएं। भारतीय लोगों को तो हर तरफ से खामियाना भुगतना पड़ रहा है, विदेश में भी हिन्‍दुओं और सिक्‍खों पर आक्रमण यह कहकर हो रहे हैं कि वे पाकिस्‍तान और हिन्‍दुस्‍तान का अन्‍तर नहीं समझते। अभी कुछ दिन पूर्व ही एक महिला ने एक भारतीय को रेल से धक्‍का देकर मार डाला था। हमें और शाहरूख जैसे लोगों को विश्‍व में अमन कायम करने की पहल करनी चाहिए ना कि स्‍वयं को विश्‍व में स्‍थापित करने के लिए कुछ भी लिखना या बोलने की आजादी मांगनी चाहिए। अमेरिका में कहीं भी भारतीय और पाकिस्‍तान में अन्‍तर नहीं है वे उन्‍हे एशियायी कहते हैं।

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  6. पता नहीं क्यों पर परिस्थितियों का लाभ उठाने की ताक में सभी रहते हैं।

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  7. समान अवसर प्राप्त होते हुए भी पता नहीं कब तक अल्पसंख्यक होने का राग अलापते रहेंगे...

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  8. राह अलापने से ही तो बीन बजती है. वर्ना पूछेगा कौन?

    रामराम.

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  9. सहमत हूँ आपसे, भेदभाव की शिकायत तो विभिन्न समुदायों वाले देश में अक्सर सभी को होती हैं, चाहे अल्पसंख्यक हो या बहु-संख्यक, इसमें इतना रोना रोने की आवश्यकता नहीं है। वैसे भी अगर किसी से कोई शिकायत थी तो उसी समय कहने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी, अभी क्या पता किसकी बात में कितना दम है?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।