चढ़े प्यार की खुमारी,
जब मति जाए मारी ,
तशख़ीस न हो वक्त पर
तो लाईलाज है ये
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
तो लाईलाज है ये
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
तशख़ीस=निदान (diagnose)
संक्रामक है यह रोग,
तेजी से पसारता है पांव ,
और मिले इसे जो पलकों की छाँव
तो जाती नहीं फिर तारी ,
बढ़ा देती है दिल की बेकरारी,
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
है व्याधि लाइलाज ,
अनसुलझा है इसका राज,
परहेज़ उत्तम और बचो उससे
जो सूरत कोई नजर आये प्यारी,
वरना उलझा देगी तकदीर बेचारी ,
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
तेजी से पसारता है पांव ,
और मिले इसे जो पलकों की छाँव
तो जाती नहीं फिर तारी ,
बढ़ा देती है दिल की बेकरारी,
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
है व्याधि लाइलाज ,
अनसुलझा है इसका राज,
परहेज़ उत्तम और बचो उससे
जो सूरत कोई नजर आये प्यारी,
वरना उलझा देगी तकदीर बेचारी ,
कम्वख्त इश्क की बीमारी ।
चलो अच्छा हुआ, बिछड़ गई हमसे वक्त से पहले,
ReplyDeleteतुम्हारे लिए हमारे दिल में जो बसती बेकरारी थी..
वाह गौदियाल साहब ... ये बेकरारी कम न करें ... उम्र के साथ इसकी जरूरत तो बढती जाती है ...
प्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!!
आर्यावर्त परिवार
शायर परचेत को सलाम।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कलाम।
जब चढ़ आये भाव,
ReplyDeleteछोड़ चले डर दाँव।
बेहद खूबसूरत गज़ल ....
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