मान लो कि सैकिंड-हैण्ड गाड़ियों / सामान की तरह ही इंसानों की भी बिक्री / नीलामी का प्रचलन होता तो मैं अपनी नीलामी का जो विज्ञापन निकालता उसका मजमून कुछ इस तरह का होता :)
गोदियाल 'परचेत'
1964- मॉडल,
माँ-बाप द्वारा
दिसम्बर माह में
उपार्जित करने की
उपार्जित करने की
एक ख़ास वजह शायद
मूल्यों में वर्षांत मिलने वाली
भारी छूट का लालच रहा होगा।
संतोषजनक चालू स्थिति में
मय समस्त बॉडी-पार्ट्स
नीलामी के लिए उपलब्ध ,
मय समस्त बॉडी-पार्ट्स
नीलामी के लिए उपलब्ध ,
'पांच फुट सात इंच की चेसिस '।
इच्छुक जन कार्य-दिवस पर
स्वयं अथवा अपने द्वारा
विधिवत प्राधिकृत व्यक्ति के मार्फ़त,
विधिवत प्राधिकृत व्यक्ति के मार्फ़त,
इस सुअवसर का लाभ उठाने
और ह्रासित मुल्य पर बोली लगाने,
निम्न पते पर संपर्क करें -
"ऐज इज, व्हेर इज बेसिस"।।
"ऐज इज, व्हेर इज बेसिस"।।
गई पुरानी मालिकिन, ओनर-बुक ले साथ ।
ReplyDeleteपड़ा कबाड़ी के यहाँ, खपा रहा क्यूँ माथ ।
खपा रहा क्यूँ माथ, भाव डीजल का बढ़ता ।
अगर चढ़ाई पड़े, नहीं तू उस पर चढ़ता ।
अरे खटारा वैन, ख़तम अब हुई कहानी ।
चला लड़ाने नैन, गई क्या मैम पुरानी ??
नीलाम हो जाएँ तो खरीदार का पता हमें भी दीजियेगा। क्या पता कब काम आ जाये। :)
ReplyDeleteभाई जी आजकल मौज में है ...:-)))
ReplyDeleteअपन तो रीसाईकल के काम के भी नही ???
शुभकामनाये!
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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ताऊ मुंह मांगी कीमत देने को तैयार है.:)
ReplyDeleteरामराम.
लेकिन गरीबी वाकई आदमी को नीलाम कर देती है.
ReplyDeleteऔर कभी दिल बेमोल ही नीलाम करा देता है.
हा हा हा, अपनी बकत हम कहाँ जानते हैं।
ReplyDeleteसाठ से अधिक उम्र वाले लोग तौल के भाव में भी नही बिक पायेगे,,,,
ReplyDeleterecent post : बस्तर-बाला,,,
बहुत खूब
ReplyDeleteआज-कल मेडिकल कॉलेजों में भारी माँग है
पर उन्हें जीवित नहीं चाहिये होता
नीलामी का यह सिलसिला आगे बढ़ाते हुए ;
ReplyDeleteनीलाम होने की खबर पाकर,
वो आई घर हमारे
लगाने हमारी बोली,
अदब से चिलमन उठाकर,
दिल पर हमारे बिजली गिराकर,
कातिलाना नजर से हमें देखा,
हौले से पलकों के दरीचे
बंद किये और खोली।
हमें यूं लगा
किसी ने दाग दी
सीने में हमारे गोली,
हाथ सीने पे रख
हुआ ज्यूं ही मैं खडा,
एक जज का सा हथोडा
मेरे सर पे पडा,
अधेड़ उम्र वहीं सोफे पे
धडाम हो गया,
'परचेत' सरेआम नीलाम हो गया।
ख़त्म हुई बोली,
और छप्पन-छुरी हमारी हो ली।।
नोट: कुछ अति उत्साहित सज्जनों ने सफल बोलीकर्ता के बारे में जानकारी चाही थी , लेकिन हमें खेद है कि निविदा अनुबंधों के तहत जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। :))
नीलामी के बाद भी लिखा जारी रखेंगे न ... वैसे सत्ता वाले ले लेंगे आपको ... उनके अनुसार लिखना होगा फिर ... आखिर मशहूर ब्लोगेर हैं आप ...
ReplyDeleteबधाई जी आप नीलाम हो गये । कगरीदार बी छप्पन छुरी .........।
ReplyDeleteहमारे तरह टूटे फूटे घुटने वाली तो वही झेल सकते हैं जिन्होने अब तक झेला ।
@आशा जोगळेकर : हा-हा-हा,,,,,, आशा जी, आपका आभार ! उम्मीद है कि सप्ताहांत में स्ट्रेस कम करने के लिए यह हल्का-फुल्का हास्य-विनोद आपको अच्छा लगा होगा :) :)
ReplyDeleteपराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं .कबाड़ी भी ले जाने से पहले सोचेगा करूंगा क्या .दवा दारु ,इंटरनेट साले को कौन मुहैया करवाएगा .
ReplyDeleteबहुत खूब ,,,,
ReplyDeleteहास्य से भरी सुन्दर रचना ,,,
सादर .