Friday, January 18, 2013

सैकिंड-हैण्ड देह-नीलामी !




मान लो कि सैकिंड-हैण्ड गाड़ियों / सामान  की तरह ही इंसानों की भी बिक्री / नीलामी का प्रचलन होता तो मैं अपनी नीलामी का जो विज्ञापन निकालता  उसका मजमून कुछ इस तरह का होता :)   



गोदियाल 'परचेत' 
1964- मॉडल, 
माँ-बाप  द्वारा  
दिसम्बर माह में 
उपार्जित करने की 
एक ख़ास वजह शायद 
मूल्यों में वर्षांत मिलने वाली 
भारी छूट का लालच रहा होगा। 
संतोषजनक चालू स्थिति में 
मय समस्त बॉडी-पार्ट्स  
नीलामी के लिए उपलब्ध , 
 'पांच फुट सात  इंच की चेसिस '। 

इच्छुक जन कार्य-दिवस पर 
स्वयं अथवा अपने द्वारा 
विधिवत प्राधिकृत व्यक्ति के मार्फ़त,  
इस सुअवसर का लाभ उठाने 
और ह्रासित मुल्य पर बोली लगाने, 
निम्न पते पर संपर्क करें - 
"ऐज इज, व्हेर इज बेसिस"।।   


15 comments:

  1. गई पुरानी मालिकिन, ओनर-बुक ले साथ ।

    पड़ा कबाड़ी के यहाँ, खपा रहा क्यूँ माथ ।

    खपा रहा क्यूँ माथ, भाव डीजल का बढ़ता ।

    अगर चढ़ाई पड़े, नहीं तू उस पर चढ़ता ।

    अरे खटारा वैन, ख़तम अब हुई कहानी ।

    चला लड़ाने नैन, गई क्या मैम पुरानी ??

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  2. नीलाम हो जाएँ तो खरीदार का पता हमें भी दीजियेगा। क्या पता कब काम आ जाये। :)

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  3. भाई जी आजकल मौज में है ...:-)))
    अपन तो रीसाईकल के काम के भी नही ???
    शुभकामनाये!

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  4. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  5. ताऊ मुंह मांगी कीमत देने को तैयार है.:)

    रामराम.

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  6. लेकिन गरीबी वाकई आदमी को नीलाम कर देती है.
    और कभी दिल बेमोल ही नीलाम करा देता है.

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  7. हा हा हा, अपनी बकत हम कहाँ जानते हैं।

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  8. साठ से अधिक उम्र वाले लोग तौल के भाव में भी नही बिक पायेगे,,,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  9. बहुत खूब
    आज-कल मेडिकल कॉलेजों में भारी माँग है
    पर उन्हें जीवित नहीं चाहिये होता

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  10. नीलामी का यह सिलसिला आगे बढ़ाते हुए ;

    नीलाम होने की खबर पाकर,
    वो आई घर हमारे
    लगाने हमारी बोली,
    अदब से चिलमन उठाकर,
    दिल पर हमारे बिजली गिराकर,
    कातिलाना नजर से हमें देखा,
    हौले से पलकों के दरीचे
    बंद किये और खोली।
    हमें यूं लगा
    किसी ने दाग दी
    सीने में हमारे गोली,
    हाथ सीने पे रख
    हुआ ज्यूं ही मैं खडा,
    एक जज का सा हथोडा
    मेरे सर पे पडा,
    अधेड़ उम्र वहीं सोफे पे
    धडाम हो गया,
    'परचेत' सरेआम नीलाम हो गया।
    ख़त्म हुई बोली,
    और छप्पन-छुरी हमारी हो ली।।

    नोट: कुछ अति उत्साहित सज्जनों ने सफल बोलीकर्ता के बारे में जानकारी चाही थी , लेकिन हमें खेद है कि निविदा अनुबंधों के तहत जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। :))

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  11. नीलामी के बाद भी लिखा जारी रखेंगे न ... वैसे सत्ता वाले ले लेंगे आपको ... उनके अनुसार लिखना होगा फिर ... आखिर मशहूर ब्लोगेर हैं आप ...

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  12. बधाई जी आप नीलाम हो गये । कगरीदार बी छप्पन छुरी .........।
    हमारे तरह टूटे फूटे घुटने वाली तो वही झेल सकते हैं जिन्होने अब तक झेला ।

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  13. @आशा जोगळेकर : हा-हा-हा,,,,,, आशा जी, आपका आभार ! उम्मीद है कि सप्ताहांत में स्ट्रेस कम करने के लिए यह हल्का-फुल्का हास्य-विनोद आपको अच्छा लगा होगा :) :)

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  14. पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं .कबाड़ी भी ले जाने से पहले सोचेगा करूंगा क्या .दवा दारु ,इंटरनेट साले को कौन मुहैया करवाएगा .

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  15. बहुत खूब ,,,,
    हास्य से भरी सुन्दर रचना ,,,
    सादर .

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।