Sunday, March 14, 2021

फुलदेई..












जनि प्यारी बेट्ळौंन तख 'फूलदेई'

सुबेरी-सुबेर कै तेरी देळी मा,

वनि, 'फुलदेई' की खबर पौंछी

यख टीवी परै, मेरी 'देहळी' मा।


फूल मेट्या, फूल जनि बेट्ळौंन

सग्वाडि, पुंग्डी, बौण बिटीकी,

नांगि खुट्यौंन, सुबेरी-सुबेर,

चसा पाळा, ह्यूं  मा हिटीकी।


जसिलो ब़िंसरी घाम पौंछी,

डा़ंंडी, पांखी, गद्वारी, भेळी मा,

वनि, 'फुलदेई' की खबर पौंछी

यख टीवी परै, मेरी 'देहळी' मा।

Monday, March 8, 2021

खलिश..

जब वो,

दर्द-ऐ-दिल अपना, 

शब्दों मे न समेट पाया

तो कमबख़्त,

आंसू बनके

उसकी आँखों से छलक आया।

Sunday, March 7, 2021

जम़ाना...

 


जिसदिन से तरसीम ऊपर गया

मिरी शख़्सियत और हैसियत का,

ख़्याल सताने लगा है जमाने को, 

मिरी खै़रियत और  कैफि़यत का।



तरसीम/तर्सीम= लेखाचित्र(graph)



Wednesday, March 3, 2021

ऐ जिंदगी...

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...

अकेला ही रहता हूँ,

हर गम अकेले ही सहता हूँ,

दिनभर दौड-धूप का मारा, 

दुनियांं से थका हारा,

साफ-सफाई का मोहताज.....

पसंद नहीं आएगा तुझको,

ये मेरा कबाड़खाना।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...


यही काफी है मेरे लिए

कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ,

हर गम-ओ-खुशी

तेरे दरमियाँ से गुजरता हूँ,

मगर रूठे जो तू कभी...

तो फिर मनाने को ,

दे न पाऊंगा तुझको

मैं दिल का कोई नज़राना ।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...



सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...