Saturday, May 25, 2013

बिखरे अल्फाज़ !


  

हमने तो ऐ खुदा,खुद अहाते आफतों के लांघे थे, 
क्यों हमारे आल्हाद सारे, तुमने सूली पे टाँगे थे।  
ज़न्नत पाने की ख्वाइश, हमने पाली ही कब थी,
इस दोज़ख में ही सिर्फ दो पल शुकून के मांगे थे।
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डेमोक्रेसी रह गई, अब सिर्फ यहाँ पर नाम की,  
बात करता नहीं कहीं कोई, इंसान के काम की।
नेता चल रहे है लेकर तुष्ठिकरण की वैसाखियाँ,  
कोई हिंदुत्व की पकडे हुए है, कोई इस्लाम की। 

और अगर देश हित की सोचते हो तो यही कहूंगा कि  


गूंगी, हया-विहीन  न कोई मन-मोहनी हो,  
महंगाई डायन सी लगती न कोई सोहनी हो,
कुटिल-सारथियों की अब कोई दरकार न हो,
लुंठक-बटमारों की यहाँ कोई सरकार न हो ! 
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जन जड़-चेतन में फिर से 
नव-चेतना अलख जगानी होगी,
संघवद्ध होकर शठ-भंजन को, 
सबको आवाज उठानी होगी।  
आचार, ईमान, शरम बेचता, 
सत्ता के खातिर होकर अंधा,
नेता बन फल-फूल रहा,  
कुटिलों का प्रच्छन्न गोरख धंधा,
डैड - टैडवाद के विरुद्ध सभी को, 
ठोस मुहीम चलानी होगी,
मौजूदा पद्धति में य़कीनन, 
मुकम्मल तबदीली लानी होगी।

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बड़े ही अजीब-ओ-गरीब,ये जिन्दगी के फलसफे हैं,
इन्हें समझ पाने की चाह में, हम मीलों तक नपे है।
उम्र गुजरी,सिर्फ किस्मत बुलंद करने की होड़ में , 
एक अकेली जान लेकर न जाने कहाँ-कहाँ खपे है। 

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जबकि हमें  भी ये मालूम था 
कि यहाँ वक्त 
किसी  के लिए भी नहीं ठहरता, 
जूनून की हद तो देखिये 
कि हम फिर भी  
हर गुजरते हुए लम्हे पर 
मुसल्सल ऐतबार करते रहे।







Wednesday, May 22, 2013

आज का क्रिकेट गीत !




इन पापी लोगो (IPL) ने,
इन पापी लोगो (IPL) ने,
इन पापी लोगो ने लगा दिया जी सट्टा मेरा......,
हो जी हो  सट्टा  मेरा,
हां जी हाँ सट्टा  मेरा.........।

हमरी न मानो श्री420 से पूछो,
हां  हाह्ह्ह्ह्ह  हाँ हमरी न मानो,
हमरी न मानो भैया श्री420 से पूछो,
जिसने शबाब और शराब में बिठाया भट्टा मेरा......,
हो जी हो भट्टा मेरा,
हां जी हाँ भट्टा  मेरा.........। 


हमरी न मानो विंदू फिक्सर से पूछो,
हां हाह्ह्ह्ह हाँ..........
हमरी न मानो,
हमरी न मानो विंदू फिक्सर से पूछो,
बोंलीवुड पर भी लगाया जिसने बट्टा मेरा......,
हो जी हो बट्टा मेरा,
हां जी हाँ बट्टा  मेरा.........।


इन पापी लोगो (IPL) ने,
इन पापी लोगो (IPL) ने,
इन पापी लोगो ने लगा दिया जी सट्टा मेरा......,
हो जी हो  सट्टा  मेरा,
हां जी हाँ सट्टा  मेरा.........। 


हमरी न मानो दिल्ली सिपहिया से पूछो,
हां हाह्ह्ह्ह हाँ........
हमरी न मानो,
हमरी न मानो दिल्ली-सिपहिया से पूछो,
चुपके-चुपके किया जिसने सबूत इकट्ठा मेरा......,
हो जी हो इकट्ठा  मेरा,
हां जी हाँ इकट्ठा  मेरा.........। 


इन पापी लोगो (IPL) ने, 
इन पापी लोगो (IPL) ने, 
इन पापी लोगो ने लगा दिया जी सट्टा मेरा......, 


Friday, May 17, 2013

My heart cries !




















My heart cries

when


in front of my eyes, 

a fresh

graft scandal erupts,

I try to closely monitor

the folk and the corrupts.

All I can see is


bridging cultures,

jaws, paws and claws

of cruel greedy vultures,

hoofed beast everywhere

in the form of voters,

here and there



lie, cajole, cringe floaters.


Seeing locomotion of 

the wildebeests and


false pledges of 

 vulturous animals,

I have reached to 


this regrettable conclusion

that I live among

bunch of 

crooks and criminals.


Monday, May 13, 2013

विचलित मन !


हर घर से होकर गुजरती नियति की गली है,   
न हीं मुकद्दर के आगे,यहां किसी की चली है,  
नीरस लम्हों का सफ़र,किंतु सकूं के दो पल, 
जो हंसकर गुजार दे , वही जिन्दगी भली है। 

पिछले तकरीबन एक माह से जिन्दगी की रेल, बस यूं समझिये कि पटरी से उतरी हुई है। पहले कम उम्र में एक परिजन की असामयिक मृत्यु से अस्त-व्यस्त था , और अब अपना प्रिय श्वान जोकि पिछले १3 वर्षों से घर में, घर के एक सदस्य की भांति था, पिछले ४-५ दिनों से अन्न-जल त्यागकर इस बेदर्द जहां से प्रस्थान की तैयारी में है। खैर, यही दुनिया का दस्तूर है, सोचकर  विचलित मन ने बहलने की कोशिश में कुछ टूटा-फूटा काव्य समेटा है, प्रस्तुत कर रहा हूँ  ;        



वो क्या डरेंगे भला, कहीं बाहर सफ़र में,
जो कफ़न बांधे फिरतें हो, हर वक्त सर में।

निरर्थक है उनसे स्नेह का ध्येय रखना,
द्वेष, नफरत समाई हो जिनकी नजर में।

सेज फूलों की पाने की चाह उनसे कैसी,
शूल बोते जो अपने ही गृह  की डगर में।

खैरात में वो किसे क्या कोई पतवार देंगे,
कश्ती जिनकी फंसी हो खुद ही भंवर में।

सरल भी बहक जाए,है कुटिल खेल ऐसा,
सच भी रख दें उलझाके अगर-मगर में।

खुदा के बन्दे को जब यकीं नहीं खुदा पर,
नजर क्या आयेगा उसे दुआ के असर में।

संगीनों के पहरे में रहकर हैं बाजू दिखाते,
नामर्द क्या जाने,क्या चल रहा है नगर में।

डरी,सहमी रहें गलियाँ भी भरी दोपहरी में,
वो अकेले चलकर तो देखें ज़रा रहगुजर में,   

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।