इतना तो न बहक पप्पू ,
बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर,
४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,
नादानियां तेरी, कहर बनकर।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
इतना तो न बहक पप्पू ,
बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर,
४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,
नादानियां तेरी, कहर बनकर।
वतन-ए-हिंद से लग्न लगानी है तो,
वक्ष पे 'राम' लगाना होगा।
'धर्म-निरपेक्षता' की कपट प्रवृत्ति को
अब 'वीराम' लगाना होगा ।।
शहर में किराए का घर खोजता
दर-ब-दर इंसान हैं
और उधर,
बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में
कतार से,
हवेलियां वीरान हैं।
'बेचारे' कहूं या फिर 'हालात के मारे',
पास इनके न अर्श रहा न फर्श है,
नवीनता का आकर्षण ही
रह गया जीने का उत्कर्ष है,
इधर तन नादान हैं
और उधर,
दिलों के अरमान हैं।
बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में
कतार से,
हवेलियां वीरान हैं।।
इतना तो न बहक पप्पू , बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे, नादानियां तेरी, कहर बनकर।