इतना तो न बहक पप्पू ,
बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर,
४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,
नादानियां तेरी, कहर बनकर।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
इतना तो न बहक पप्पू
ReplyDeleteशानदार
कौंग्रेस की उम्मीदें
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