Monday, May 31, 2010

सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

आज तुम्हारे वतन में, अच्छे लोगो के टोटे हैं,
पैंदे सबके सब घिस गये, बिन पैंदे के लोटे हैं, 
कोई लल्लू बनके लुडके,कोई चिकना मुलायम,
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो, कर्म ही खोटे हैं।

शोषित की तो यहां पर, 'माया' ही निराली है,
धन लोभियों के दिल सफ़ेद, काया काली है,
अनाज उगाने वाले, हैं कुपोषण के शिकार,
चारा, तोप खाने वाले, गैडे की भांति मोटे हैं।

जनप्रतिनिधि,सिपैसलार व्यस्त चीर हरण में,
चाटुकार लमलेट हैं, 'पास्तामाता' के चरण में,
उल्लू एकदम ही सीधे हुए,तलवे चाट चाटकर,
घर व उदर तो इनके बड़े हो गए, दिल छोटे हैं।

फतवे बेचते, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
एक और बाबरी ढूढ़ रहे, रामराग अलापने वाले,
बुद्दिजीबी युवा के लिए, जीवन प्रतियोगिता है,
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे है।

गांधी तुम्हारे वतन में, अच्छे लोगो के टोटे हैं,
पैंदे सबके सब घिस गये, बिन पैंदे के लोटे हैं।

Friday, May 28, 2010

क्या इसे माओवादी और नक्सली कृत्य तक ही समेट लेना उचित होगा ?



आज तडके हावडा -कुर्ला लोकमान्य तिलक ज्ञानेश्वरी सुपर डीलक्स एक्सप्रेस, जोकि महाराष्ट्रा जा रही थी, के १३ डिब्बे आतंकवादियों द्वारा जगराम से १३५ किलोमीटर दूर खेमसोली और सर्दिया रेलवे स्टेशनों के बीच तडके १:३० बजे रेल पटरी पर किये गए ब्लास्ट की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिसमे अपुष्ट ख़बरों के मुताविक अब तक ७० से अधिक यात्रियों के मारे जाने और करीब २०० के घायल होने की खबर है! इस घटना का एक दुखद पहलू यह भी रहा कि १३ डिब्बों में से ५ डिब्बे बगल वाली उस पटरी पर गिर गए जिस पर एक मालगाड़ी आ रही थी, और फिर वह भी इन डिब्बो से भिड गई!

हालांकि इस दुर्घटना की जिम्मेदारी पीसीपीए नाम के एक मावो समर्थित गुट ने घटनास्थल पर दो बैनर छोड़कर ली है, मगर मैं समझता हूँ कि इस घृणित कार्यवाही को इतने हलके में लेना उचित नही होगा! 'हलके में लेना' शब्द इसलिए इस्तेमाल किया है क्योंकि नक्सली और माओवादी घटनाएं तो हमारे सरकार के लिए हल्की-फुल्की बाते ही बनकर रह गई है ! एक-विभाग किसी दूसरे विभाग के ऊपर दोष मड देगा, प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी दुर्घटना पर खेद व्यक्त कर लाख पचास हजार का मुआवजा लोगो का मुह बंद करवाने के लिए घोषित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेंगे, सरकारी फंड को लूटने के लिए एवं लोगो की आँखों में धूल झोंकने के लिए एक-दो जांच इन्क्वैरिया / कमेटियां गठित कर ली जायेंगी , बस हो गया काम ! लेकिन देशवासियों को, जिनकी कि जान हर वक्त मौत के सौदागरों की शतरंजी चालों के बीच अटकी पडी है इस पूरे प्रकरण को एक दूसरे नजरिये से भी देखने की जरुरत है!

जैसा कि मैं पहले भी कई बार कह चुका कि देश की राजनीति एक बहुत ही घृणित दौर से गुजर रही है! कुर्सी हथियाने और अपना घर भरने के लिए नेता किसी भी हद तक गिरने को तत्पर है! उसे इस बात की कोई परवाह नही कि उसमे कितने निर्दोष मारे जाते है, बस इन्हें तो अपनी आकांक्षाओ की पूर्ति करनी है, अपने तुच्छ निहित स्वार्थों को पूरा करना है! इस घटना के होने, उसके समय, स्थान और कारणों का अध्ययन करने से मुझे जो लगता है, वह है कि इन प्रदेशों में वर्तमान में जारी नक्सली हिंसा की आड़ में माओवाद और नक्सल का मुखौटा पहन, पश्चिम बंगाल में होने वाले २०११ के राज्यस्तरीय चुनावों के मद्देनजर , मतदाता के रुझान को अपने पक्ष में करने हेतु राज्य में सत्ता के लिए लालायित उन सभी राजनितिक दलों की एक घृणित सोची-समझी उस चाल का हिस्सा है,जिसमे मतदाता को विरोधियों के प्रति उकसाने और अपने वोट को पक्ष में करने के लिए अभी से पृष्ठ-भूमि तैयार की जाने लगी है! इस राज्य को आने जाने वाले लोगो को मेरी यही सलाह रहेगी कि वहां जब तक चुनाव नही हो जाते , तब तक सर्वप्रथम आत्मरक्षा बाद को अन्य कार्य है, क्योंकि संकीर्ण स्वार्थों के लिए ऐंसी हरकते फिर दोहराई जा सकती है! इन सरकारों के भरोसे मत रहिये, अगर मान भी लें कि यह सिर्फ एक माओ-नक्सली कृत्य ही है, तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि माववादियों की सप्ताह भर के विरोध की पूर्व धमकी के बावजूद भी निर्दोष नागरिकों के जानमाल की सुरक्षा की कोई पुख्ता व्यवस्था नही की गई!

हकीकत-ए-शहंशाह !

आज सुबह मेल चेक कर रहा था तो इस मेल पर भी नजर गई ! सोचा, थोडा इसमें तोड़-फोड़कर आपका भी मनोरजन किया जाये ! तो लीजिये, परिवार संग (सिर्फ पति-पत्नी ) मिल-बैठकर एन्जॉय कीजिये ;

हो सकता है कि आप दुनिया के राजा हों !



ये भी हो सकता है कि आप दुनिया में सबसे खतरनाक किस्म के प्राणी हों !



या दुनिया वालों के सामने जबरदस्ती शेर बनने की कोशिश करते हों !



होसकता है कि आप आजाद किस्म के मनमौजी हों !




हो सकता है कि आप दूसरों को अपनी मुट्ठी में रख उनपर हुक्म चलाते हो !




हो सकता है कि दूसरे लोग आपको बहुत प्यार करते हों !




ये भी संभव है कि आप सज्जन किस्म के हों !




या फिर एक खतरनाक हत्यारे हो !



लेकिन सच्चाई यही है कि
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जब आप अपने घर में होते है तो ....
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बीबी-बीबी होती है



...Does not matter Who the Hell you are ...


















Thursday, May 27, 2010

२२ साल पुराना गौमुख यात्रा वृतांत !


गौमुख के आगे की तस्वीर ( मैं और विपिन सोनी )

सामने वह बर्फ का ग्लेशियर है








गंगोत्री मंदिर के ठीक आगे सीडियों में बैठे हम लोग




रास्ते में सुस्ताते हुए




गौमुख के रास्ते में श्रीनिवास , मैं और सोनी




मानचित्र पर किल्क कीजिये






अभी चंद रोज पहले मैंने एक लेख ज्योतिषी और भविष्य बाणी से सम्बंधित लिखा था! और जिसमे मैंने गलती से यह दावा कर दिया था कि मैं लगभग सभी विषयों पर लिख चुका हूँ ! लेकिन बाद में घुमक्कड़ी के चैम्पियन , मस्तमौला श्री नीरज जाट जी की एक टिपण्णी प्राप्त हुई , जिसमे उन्होंने मेरे दावे को यह कहकर ख़ारिज कर दिया था कि आपने घुमक्कड़ी पर कुछ भी नहीं लिखा! बाद में मैंने भी रिअलाइज किया कि वास्तव में अभी बहुत से ऐसे क्षेत्र है, जिनको हमने छुआ ही नहीं ! नीरज जी से वादे के हिसाब से आज एक पोस्ट घुमक्कड़ी पर लगा रहा हूँ ! चूँकि यह करीब २२ साल पुरानी बात है, और एल्बम को टटोलने पर जो फोटो मेरे हाथ लगे, उन्हें यहाँ लगा रहा हूँ, हालांकि तस्वीरे पुरानी होने की वजह और कैमरे की गुणवत्ता के हिसाब से बहुत साफ़ नहीं है! फिर भी उम्मीद करता हूँ कि आप थोड़ा बहुत लुफ्त उठाएंगे ! आपने हाल ही में तो नीरज जी के सहयोग से यमनोत्री के दर्शन किये थे तो मैंने सोचा कि क्यों न आपको गंगोत्री के दर्शन करवाऊ !

१० अगस्त ,१९८८ , २२ से २५ साल की उम्र के हम चार लोगो की मित्र-मंडली ( मैं, विपिन सोनी , बलवंत और श्रीनिवास, रास्ते में एक और अनजान मित्र जुड़ गया जो कि तब कहीं ओखला में कोकाकोला में कार्यरत थे और वे भी गौमुख ही जा रहे थे, इसतरह हम लोग पांच हो गए थे ) दिल्ली से ऋषिकेश की रात्रि बस सेवा से रवाना हुए! सुबह ३ बजे ऋषिकेश पहुंचे तो हल्की बारिश ने हमारा स्वागत किया! रोडवेज बस अड्डे से सीधे टीजीएम्ओ के बस अड्डे पहुंचे ! वहाँ से गंगोत्री जाने के लिए जब टिकट खिड़की पर पहुंचे तो कलर्क महोदय बोले की बारिश की वजह से रास्ते ठीक नहीं है, अभी सिर्फ बडकोट और उत्तरकाशी के बीच में ज्ञानसू के पास एक बड़े भूसंख्लन की खबर है, अगर आप फिर भी जाना चाहते है, तो गाडी जहाँ तक जायेगी, उसके आगे का किराया आपको वापस कर दिया जाएगा ! आज की बात होती तो शायद हम ऋषीकेश से ही लौट आते मगर तब हम भी नीरज जी की तरह ही मस्तमौला थे, सो चल पड़े ! ज्ञानसू के पास बहुत बड़ा पहाड़ टूटकर सड़क पर आया हुआ था, अत: ड्राइवर-कंडक्टर ने बसों को लौट-पौट करने का निर्णय लिया ! यानि कि सड़क पर पड़े मलवे के उस पार खडी जो बस गंगोत्री से सवारी लेकर आयी थी, वो ऋषिकेश की बस द्वारा लाई गई सवारियों को लेकर वापस गंगोत्री जायेगी और जो बस ऋषिकेश से आई थी, वो वहीं से वापस ऋषिकेश !

हमें उनके इस निर्णय से बड़ा शुकून मिला और झटपट उस बस में जा बैठे ! मगर परेशानी आगे और भी आने वाली थी ! उत्तरकाशी से मुश्किल से ३०-३५ किलोमीटर आगे ही बढे होंगे कि एक और भयंकर लैंडस्लाइड ! भयंकर इसलिए भी थी उसके मलवे के नीचे डीजीबीआर (बौर्डर रोड और्गनाइजेशन ) का एक बुलडोजर चालक समेत दब गया था! डीजीबीआर के जवान और मजदूर उसे बाहर निकालने के लिए वारफूट पर काम कर रहे थे ! अब फिर से वही तरकीब अपनाई जाये जो ज्ञानसू के पास अपनाई गई थी, यानि बसों का लोट-पोट ! वही किया गया, मगर अबके भीड़ बढ़ गई थी क्योंकि सवारियां इधर से दो बसों की थी और उधर सिर्फ एक ही बस थी! किसी तरह सभी यात्रियों को एडजस्ट किया गया, लेडिजों, बच्चों, बूढों को सीट और जवान लोगो को स्टैंडिंग, कुछ स्थानीय सवारियां बस की छत में भी बैठ गई !

बस धीरे-धीरे आगे बढ़ी ! तब जवान थे, बोलने में मुह नहीं थकता था, श्रीनिवास मित्र दूर पहाड़ों पर बने पहाडी मकानों को देखकर मुझसे बार-बार पूछता , यार वहाँ लोग रहते है क्या ? मैं ज्यों ही हाँ में जबाब देता या अपनी सफाई देता त्यों ही विपिन सोनी पूछ बैठता , अच्छा ये बता, ये पहाडी खाते क्या है ? चूँकि मैं पहाड़ों का ही रहने वाला हूँ तो मैं भी पूरी ईमानदारी से उन्हें वहाँ के रहन सहन की विस्तृत जानकारी देता! खामोश और सुनशान पहाड़ों के बीच से निकलती हमारी बस की आवाज ही हमारे कानो में गूंजती थी! बीच में एक जगह पर जहां पर कि इस पहाडी से उस पहाडी पर जाने के लिए सैकड़ों फिट गहरी अंधेरी खाई ( वहाँ शायद ही कभी धूप जा पाती होगी ) के ऊपर से एक संकरा लोहे का पुल था, ज्यों ही बस गुजरी , नीचे देख कई यात्रियों की कंपकंपी छूट गई ! वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर एक और हल्की लैंडस्लाइड हो रखी थी, मगर डीजीबीआर ने उस मलवे को समतल कर बस जाने लायक बना दिया था ! हमारी बस ४५ डिग्री की ढलान लेते हुए जब उस मलवे से गुजर रही थी तो बस में सवार ज्यादातर मराठी यात्रियों के प्राण सूख रहे थे! एक अजीब सी खामोशी थी, कि कड़क और पंजाबी अंदाज में प्यारी सी स्टाइल में बोलने वाले विपिन सोनी ने कहा ; "यार मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई", उसकी इस हरकत पर तुरंत बलवंत बोला ' चुप बे स्साले ....." और फिर ज्यों ही बस ने वह मालवा पार किया एक जोर का ठहाका बस में सवार उन सभी यात्रियों ने लगाया जो उस समय उसकी उस मासूमियत भरी बात को सुनकर खामोश उसका मुह त!क रहे थे!

उसके बाद बस भटवाडी में चायपानी के लिए रुकी , और फिर रात करीब आठ बजे हम गंगोत्री पहुँच गए! वहा जहां पर भागीरथी एक फाल के तरह गिरती है उसपर बने पुल को पार कर हम गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट-हाउस में रात को रुके ! सुबह उस गेस्ट हाउस के कर्मचारी ने हमें जगाया और कहा कि यदि आप लोग गरम पानी से नहाना चाहते है तो गर्म-पानी भी मिल जाएगा! नाह-धोकर हमने गंगोत्री मंदिर के दर्शन किये और फिर चल पड़े २१ किलोमीटर लम्बी गौमुख की दुर्गम और थकाऊ पैदल यात्रा पर! रास्ते में अनेक मनोहारी एवं भयावह तस्वीरे आँखों को देखने को मिली ! करीब ढाई बजे हम गौमुख पहुँच गए थे! वहाँ पर ऑक्सीजन की कमी की वजह से गले की नसे बंद सी होने लगी थी, दम घुटे जैसा लग रहा था! बलवंत तो रो भी पडा था, उसे किसी तरह हमने समझाया बुझाया और वहाँ मौजूद एक चाय की झोपडी नुमा दूकान से उसे गरमागरम २ कप चाय पिलाए और गरम राख उसके गले पर मली ! थोड़ी देर मौजमस्ती करने के बाद हम करेब ३-4  कलोमीटर पीछे लाल बाबा के आश्रम भुज्बासा में रात बिताने को पहुंचे! उन बिषम परिस्थितियों में भी उस बाबा ने वहा यात्रियों के लिए आश्रम में बहुत अच्छा इंतजाम किया हुआ था! रात को बाबा से यह कहानी भी मालूम पड़े कि गौमुख ग्लेशियर से आगे तपोवन में तीन फ्रांसीसी युवतियां एक पहाडी गुफा पर पिछले कई सालों से रह रही है ! गर्मी के मौसम में वे लोग अपने खाने पीने की जरूरी चीजे उस गुफा में संग्रह कर लेती है और फिर सर्दियों के ६ महीने गुफा के अन्दर ही रहकर बिताती है ! सर्दियों में जब तेज बर्फ गिरती है तो वे लोहे की एक लम्बी छड से उस परत को तोड़कर, जो गुफा के मुहाने को ढक देती है, ऑक्सीजन के लिए रास्ता बनाती है!
अगले दिन सुबह उठकर हम वापस गंगोत्री के लिए चल पड़े और रात उत्तरकाशी में बिताई ! फिर हरिद्वार और फिर १४ अगस्त १९८८ को दिल्ली ! दिल्ली पहुँच कर देखा कि नाक और गालों से ही नहीं बल्कि पैरों से भी चमड़ी उतर गई थी ठण्ड से, इससे बचने का सर्वोतम उपाय यह रहता है कि चेहरे पर वास्लिन मलकर गंगोत्री से आगे बढे, रास्ते में बर्फीला पानी न पीकर पानी अपने साथ बोतल पर लेजाये ! बर्फीले पानी से चेहरे को न धोंये, इत्यादि ! तो यह था मेरा २२ साल पुराना गौमुख का यात्रा वृत्तांत ! नीरज भाई की घुमक्कड़ी की मैं इसलिए दाद देता हूँ कि यह काम देखने में जितना आसान दिखता है, असल मैं है नहीं !

यह है गौमुख, गर्मियों मेंभागीरथी यहाँ से उसी बेग से निकलती है जैसे कि गंगोत्री में,









पहाडी जंगली हिरन, इन्हें गढ़वाली में घ्वैड और काखड कहते हैं !


हरिद्वार से चार धाम के रूट, मानचित्र को बड़ा करके देखने के लिए उस पर क्लिक करें !


भुज्बासा, गौमुख से चार किलोमीटर पहले यहाँ पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हॉउस और लाल बाबा का आश्रम है! चित्र को बड़ा देखने के लिए उस पर किल्क करें !   
इतिश्री !!!!



Wednesday, May 26, 2010

"26/11 के अपराधी बनाम मलियाना हाशिमपुरा के दोषी" - क्या यही उच्च सोच है ?


एक तरफ २६/११ का मुंबई हमला, जिसे एक विदेशी मुल्क ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से इस देश पर किया था! और एक तरफ मई १९८७ का मेरठ साम्प्रदायिक दंगा, जिसकी शुरुआत कैसे हुई थी, उसका वर्णन उन दंगो के दौरान दी गई रिपोर्टो में दी गई थी, चंद शुरुआती लाइने आप खुद पढ़ लीजिये ;
"The Beginning of the Tragedy
Large scale rioting began in the early hours of May 19, 1987 and the maximum damage was done just in course of a few hours. On that fateful morning, thousands of people, already incited by inflammatory speeches and slogans broadcast over public address system in mosques, barricaded the national highway, burnt 14 factories, hundreds of shops and houses, vehicles, and petrol pump, and cast scores of people into flames. The sporadic Hindu reaction was revengeful. Meerut continued in flames between May 19 and May 22, with murder, loot, explosions, and wild rumours further fuelling violence. "

उपरोक्त चंद लाइनों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उस साम्प्रदायिक दंगे की जड़ कहाँ थी? मैं व्यक्तिगत तौर पर हर उस घिनौने कृत्य की निंदा करता हूँ जो बेगुनाहों की जान ले , वह चाहे हिन्दू हो अथवा मुस्लिम ! उनमे एक वह डाक्टर भी था जो एक मुस्लिम मरीज के बुलाने पर अपनी कार से उसके घर उसे देखने जा रहा था, और उसकी विरादरी के कुछ दंगाइयों ने उस डॉक्टर को उसकी कार समेत राख में मिला दिया था! इसी तरह इन दंगों में मरने वाले भी लगभग सभी लोग निर्दोष ही रहे होंगे, चाहे वो दंगाइयों के हाथों मरे हो अथवा पुलिस के हाथों ! क्योंकि आग लगाने वाले अपना घृणित कृत्य कर फिर एकतरफ बैठकर संत बन जाते है, और फिर शुरू होता है इन्ही लोगो का झूठ पर झूठ बोलना , तरह-तरह की कहानियां गड़ना ! ये लोग पुलिस ज्यादतियों में मरे अथवा गायब हुए ४० लोगो का जिक्र तो हमदर्दी के साथ करते है, लेकिन उनका जिक्र करना भूल जाते है जो १०० से ज्यादा लोग इन दंगों की भेंट चढ़ गए! मेरठ दंगों की पृष्ठ-भूमि में उस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दंगों की शुरुआत से कुछ दिन पहले यह खबर गरम थी कि अनेक पाकिस्तानी नागरिक मेरठ और आस-पास के क्षेत्रों में छुपे बैठे है, और प्रशासन की कार्यवाही में ऐसे सात लोग पकडे भी गए थे !

अब आता हूँ मुख्य बात पर, आज मुस्लिम जगत के एक ब्लोगर सलीम अख्तर सिद्दकी ने विस्फोट डाट कौम पर एक लेख लिखा है, जिसमे उसने उन दंगों की तुलना २६/११ से की है ! जिसे
आप यहाँ पढ़ http://www.visfot.com/voice_for_justice/3515.htmlसकते हैं! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यह महाशय वही शख्स है, जिन्होंने कुछ महीनो पहले अपने ब्लॉग पर एक लेख लिखकर मुझे इसलिए तुच्छ और गलीच मानसिकता का बताया था, क्योंकि मैं इनकी ऐसी ही साम्प्रदायिक हरकतों का विरोध कर रहा था कि ये अपनी सहूलियत के हिसाब से गुजरात और अन्य दंगों का वह विद्वेष हिन्दुओ के प्रति मुस्लिम समुदाय में किसी तरह जीवित रखना चाहते है! आप उपरोक्त लिंकों पर इनके दोनों लेख पढ़िए और खुद निर्णय लीजिये कि इनका मेरठ दंगो के न्याय की मांग करना बिलकुल जायज है, मगर क्या २६/११ और कसाब से ऐसी तुलना उचित है ?

Tuesday, May 25, 2010

कहाँ ले जाना चाहते हो देश को ?

आपको नहीं लगता कि हमारे प्रधानमंत्री के पास अब बोलने के लिए भी कुछ नहीं बचा? जो इंसान खुद दूसरों की कृपा पर निर्भर हो , वह देश को क्या ख़ाक आत्मनिर्भर बनाने के सपने दिखाएगा? वे कहते है कि मैं तो रिटायर नहीं होना चाहता, मगर यदि राहुल जी आना चाहेंगे तो में रिटायर हो जाउंगा ! आत्मसम्मान तो मानो जैसे इन्होने कहीं पोटली में बांधकर किसी गहरे सूखे कुंए में डाल दिया हो! ईमानदारी का चोला ओढने वाला कोई शख्स अगर अपने उस मंत्री का बचाव कर रहा हो, जिसने सीधे-सीधे देश को ६० हजार करोड़ का चूना लगा दिया हो, तो वह कैसा ईमानदार ?

अगर देखा जाए तो यह जो गठबंधन सरकारों का दौर इस लोकतंत्र में आया है, वह राजनीति में भ्रष्ट लोगो के लिए एक वरदान की तरह है! राजनेता का पिछले सत्र में कैसा भी चरित्र और व्यावहारिक रिकॉर्ड रहा हो, बस वह दो-चार अपने गुंडे-मवालियों के साथ जीतकर सदन में पहुच जाए, उसके बाद सत्ता की मलाई उसके मुह पर होती है! किसी की भी कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी नहीं, हर कोई मजबूरी और एक दूसरे पर दोषारोपण करता है! और कौंग्रेस जैसी पार्टिया ऐसे मौकों पर गठबंधन सरकारों की मजबूरियों की दुहाई देकर वह सब कर रही है, होने दे रही है, जो देश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है, या फिर आगे चलकर घातक सिद्ध होगा ! सवाल यह है कि क्या बहुमत के लिए गठबंधन की आड़ में इन्हें वो सब करने दिया जाये ?

वैसे तो मैं भी जानता हूँ कि मेरा यहाँ इसतरह का सुझाव कोई मायने नहीं रखता, फिर भी कहना चाहूंगा कि अभी भी अगले आम चुनाव के लिए ४ साल का वक्त है और अगर देश का जागरूक नागरिक इस सरकार को चुनाव सुधारों के लिए संविधान में कुछ सशोधन करने को मजबूर करे तो निश्चित तौर पर आगे चलकर यह देशहित में होगा ! क्योंकि आज भ्रष्टाचार की जड़ ऐसी बन गई है कि कोई भी चोर-उचक्का अपने दो चार सदस्य लेकर सरकार में शामिल हो जाता है और फिर मनमानी करता है ! इसे रोकना होगा, वरना यह देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होगा! कोई आमूलचूल परिवर्तन की जरुरत नहीं, बस करना सिर्फ इतना है कि संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाये हों ;
१. चुनाव पश्चात कोई भी गठबंधन बनाने पर रोक
२.राष्ट्रपति का चुनाव भी जनता के द्वारा और उसी समय पर जबकि देश में आम-चुनाव हो रहे हो !
३. अधिकतम 4 पार्टियों के बीच चुनावी संघर्ष !
४. यदि कोई भी दल सदन में निर्धारित बहुमत लाने में विफल रहता है तो सरकार उस दल की बनेगी जिसका राष्ट्रपति चुना गया हो, और वह सरकार राष्ट्रपति प्रणाली की तरह राष्ट्रपति ही चलाएगा, यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत मिल जाता है तो वह मौजूदा संसदीय प्रणाली के हिसाब से प्रधानमंत्री के अधीनस्थ सरकार चला सकती है! लेकिन चुनाव के बाद कोई भी गठबंधन बना कर सरकार चलाने का दावा नहीं कर सकता !
५. यही सब बातें राज्य सरकारों पर भी लागू हों !
६. आज अपने को जिम्मेदारी से बचने के लिए बहुत सी बाते राज्य सरकारों पर छोड़ दी जाती है और देश का मुखिया साफ़ बच निकलता है !
राज्यों और स्थानीय निकायों से कुछ अधिकार केंद्र को वापस लेने चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि उनका ठीक इस्तेमाल नहीं हुआ ! ऐसी व्यवस्था के जाने चाहिए कि हर नागरिक की सुरक्षा और रहन-सहन की जिम्मेदारी देश के मुखिया की हो !

अंत में यही कहूँगा कि अगर देश को सही दिशा देनी है तो जागो देशवासियों जागो ! अभी हाथ में चार साल का वक्त है !

Monday, May 24, 2010

यूं भी बावफा होते है लोग !


ये दिल निसार करके जाना 
कि राहे जफा होते है लोग,
सच में, हमें मालूम न था 

कि यूं भी बावफा होते है लोग !

सोचते थे कि नेमत है 

खुदा की ये जज्बा,
इल्म न था कि 
वफ़ा की कस्मे खाने वाले, 
इस कदर बेवफा होते है लोग !

दिल और आँख का 

ऐसा आपसी 
देखा जो समन्वय 'परचेत',
नजर देखे, दिल शकूं पाए, 

मनीषी ऐसे ही नफ़ा होते है लोग !

Saturday, May 22, 2010

मेरी भविष्यबाणी जिसके शत-प्रतिशत सच निकलने की उम्मीद है !

अगस्त २००८ के आस-पास मैंने ब्लॉग-जगत में कदम रखा था! तबसे ब्लोगर मित्रों और सम्माननीय पाठकों की प्रेरणा पाकर मैंने एक लघु उपन्यास, ४१ कहानिया , करीब १७५ कवितायेँ, गजल , करीब इतने ही आलेख भिन्न-भिन्न विषयों पर और दो-चार कार्टून ( हालांकि उसमे ग्राफिक्स निम्न स्तर की थी) लिखे ! यानि कहने का मतलब यह है कि लगभग हर विषय को छुआ ! काफी दिनों से सोच रहा था कि मुझसे एक विषय छूट गया है, और वह है भविष्य-बाणी और ज्योतिषी ! यहाँ ब्लॉग जगत पर बहुत से ज्योतिषी के ज्ञांता, जिनमे कुछ डाक्टर लोग भी शामिल है, समय-समय पर ज्योतिषी विषय के आधार पर भविष्यबाणिया करते रहते हैं ! हाल ही में एक डाक्टर साहब ने तो इस बारे में कुछ दावे भी किये कि उनकी भविष्यबाणी सही निकली ! तो मैंने भी सोचा कि क्यों न मैं भी इस क्षेत्र मैं अपना हाथ आजमाऊ , वैसे भी जातिगत आधार पर मैं आजकल का कलयुगी पंडत यानि ब्राह्मण हूँ!

तो चलिए आज मैं भी एक ऐसी भविष्यबाणी करने जा रहा हूँ , जो देख लेना शत-प्रतिशत सच निकलेगी! नहीं निकली तो मैं अपनी मूछे थोड़ा-थोड़ा कटवा दूंगा ! मेरी भविष्यबाणी महंगाई से जूझते लोगो के लिए है और जो इस प्रकार से है;
नक्षत्रों के हिसाब से ( मेरे पात्डेनुसार ) ग्रह बता रहे है कि शनि की साढे साती इस देश के गरीब तबके पर आने वाले दो-ढाई सालों तक ज्यों की त्यों बनी रहेगी , परिणामस्वरूप महंगाई से कोई राहत नहीं मिलने वाली ! हाँ, देश के अमीर और भ्रष्ट तबके पर बृहस्पति अपनी ख़ास कृपा-दृष्टि बनाए रखेंगे जिससे उनके फलने-फूलने के और अवसर मिलेंगे ! अगर २१ दिसंबर २०१२ का माया कलेंडर सत्य साबित नहीं हुआ तो २०१४ के आमचुनाव की सुगबुगाहट, २०१३ के मध्यांतर के बाद से हमारी अर्थव्यवस्था खराब उत्पादन के बावजूद भी, बिना उत्तम बर्षा के भी, बिना औद्योगिक प्रगति के भी और बिना विदेशी संस्थागत निवेशकों की रूचि के भी, ग्रहों की कृपा-दृष्ठी की वजह से देश में रिकॉर्ड खाद्यान उत्पादन दिखायेगी, औद्योगिक वृद्धि दिखायेगी, धन की प्रचुरता दिखायेगी , इत्यादि-इत्यादि ! परिणामस्वरूप कीमतों में गिरावट आयेगी , इन्फ्लेशन १७ प्रतिशत (सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ) से घटकर ६-७ प्रतिशत पर आ जाएगा और सब कुछ सस्ता ही सस्ता, इन्काम टैक्स में छूट, सस्ते दरों पर लोंन इत्यादि-इत्यादि ! और देश में फिर से इंडिया शाइनिग जैसी भ्रान्ति एक बार फिर से फैल जायेगी ! ध्यान रहे कि यह स्थिति २०१३ के अगस्त से २०१४ के अगस्त-सितम्बर के मध्य तक ही रहेगी ! एक बार ठीक-ठाक चुनाव हो जायेंगे तो फिर सितम्बर के बाद से महंगाई बढनी शुरू हो जायेगी!

तो महंगाई की मार से जूझ रहे आप सभी से मेरा निवेदन है कि आप सब दृडता से २०१३ की उस शुभ घड़ी का इंतजार करें, और तब तक फिलहाल नमक-रोटी से ही काम चलाये !
जय हिंद !

Thursday, May 20, 2010

ये नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही है !


नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही होता है यह बात एक बार फिर से सिद्ध कर दिखाई है, थाईलैंड में मौजूदा प्रधानमंत्री अभिसित वेज्जाजिवा की सरकार के विरुद्ध पिछले मार्च से 'रेड सर्ट' आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे वहाँ के विपक्षी नेतावों ने। यह आन्दोलन सही था अथवा गलत, इस बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा । हाँ, इतना जरूर बता दूं कि इस आन्दोलन में हिस्सा ले रहे ज्यादातर आन्दोलनकारी वहाँ के किसान और शहरी तबके के गरीब लोग थे।

मध्य मार्च से शुरू हुआ यह आन्दोलन थाईलैंड को अराजकता के दौर में धकेल चुका है, और अब तक करीब ७५ लोग इसमें मारे जा चुके है, व करीब १८०० लोग घायल हुए है। जिनमे से ४५ लोग सिर्फ सैन्य बलों के साथ झडपों में मारे गए। हाल ही में इन विपक्षी आन्दोलनकारी नेताओ ने सरकार की वार्ता की पहल को ठुकरा दिया था, आन्दोलनकारी लोगो ने भी मौत को गले लगाने, किन्तु आन्दोलन ख़त्म न करने का संकल्प लिया था । परिणाम स्वरुप पिछले दो दिनों से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में सेना ने बल प्रयोग कर इन आन्दोलनकारियों को खदेड़ दिया। जिसमे ७ लोग मारे गए, उनमे से एक इटली का फोटोग्राफर भी था।

हैरानी की बात यह थी कि लोगो को मौत की हद तक लड़ने के लिए भड़काने वाले इन रेड सर्ट आन्दोलनकारी नेतावों ने जब अपनी जान पर बन आते देखा तो झटपट समर्पण कर दिया। आन्दोलन के प्रमुख नेताओ नत्तावुत सैकुआ और सोम्योत प्रुक्सकसेम्सुक ने अपनी गिरफ्दारी देते हुए लोगो का धन्यवाद किया और उन्हें अपने -अपने घरों को लौट जाने की अपील की। उनकी इस हरकत पर वहाँ के आन्दोलनकारी फूट-फूट कर रो पड़े ;

(अब रो के भला क्या फायदा, नेता तो अपना काम कर गया , छवि गूगल से साभार )

मेरी जानकारी के मुताविक मजे की बात तो यह है कि मरने वालों में से एक भी नेता नहीं मरा। लोगो को हिंसक वारदातों के लिए भड़काने वाले, और ७५ लोगो की मौत के जिम्मेदार ये नेता अब आने वाले समय में हो सकता है कि थाईलैंड की सरकार की गद्दी भी पा जांए। और फिर ये अपने घर भरेंगे, मगर इस आन्दोलन में मरा कौन ? नुकशान किसका हुआ ? और लुटा कौन? यह आन्दोलनकारी नेताओ के लिए कोई ख़ास अहमियत नहीं रखता। साधारण सी बात है कि एक आम आदमी और देश को यह सब भुगतना पडा और भविष्य में भी भुगतना पडेगा । तो ये नेता की प्रजाति ही कुछ ऐसी है, दुनिया भर में।

अब एक गंभीर सवाल आप लोगों और अपने देश की जनता से ; हमारी सरकार कहती है कि वे माओ और नक्सली आतंकवादियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं करेगी, क्योंकि वे अपने ही लोग है। अब मेरा सवाल , मान लो अगर आने वाले समय में कभी भी, किसी भी वजह से, हमारे देश में भी थाईलैंड जैसी कोई स्थिति बन जाती है, लोग इसी तरह का कोई आन्दोलन कर सड़क पर उतर आते है, पुलिस व्यवस्था नाकाम साबित होती है, तो क्या तब भी सरकार उन आन्दोलनकारियों( जोकि अपने ही देश के लोग होंगे ) के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं
करेगी ?

Tuesday, May 18, 2010

संयम बरतने की आड़ जब वैचारिक नपुंसकता की हद को पार कर जाए !



आपको याद होगा कि इस साल की शुरुआत के पहले दिन, यानि १ जनवरी, २०१० को हमारे गृहमंत्री ने पाकिस्तान को यह नसीहत दी थी;
" नयी दिल्ली १ जनवरी, 2010: केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने पाकिस्तान से मांग की कि वह अपनी जमीन पर संचालित होने वाले आतंकवादी ढांचों को नेस्तानाबूद करे. श्री चिदंबरम ने यहां कहा कि पाकिस्तान आतंकवादी ढांचो को खत्म करे.......... पाकिस्तान में आतंकवादी ढांचों की मौजूदगी को लेकर चिंता जताते हुए गृहमंत्री ने मांग की कि इन ढांचों को तत्काल नेस्तानाबूद किया जाना चाहिए."

इस खबर से यह तो स्पष्ट होता है कि दूसरों को नसीहत देना कितना आसान काम है और हम उसमे कितने माहिर है।लेकिन जब उन नसीहतों को अपने पर लागू करने की चुनौती आती है तो हम नैतिक मूल्यों की बात करने लगते है । ऐसा भी नहीं कि ये नसीहते हमारे शीर्षस्थ नेतावों ने पहली बार ही दी हो, इतिहास गवाह है कि उन्हें जब-जब मौक़ा मिला, तालिवान और पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रान्तों में फैले कबायली सरदारों के आतंकवादी संगठनों पर भी उन्होंने जमकर बयानबाजी की। और दूसरी तरफ इनके अपने देश में क्या हो रहा है, माओवादी और नक्सली आतंकवादी यहाँ क्या कर रहे है, और इसको रोकने के लिए हमारे ये जिम्मेदार नेता कितनी जिम्मेदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे है, वह सर्वविदित है।

पाकिस्तान और भारत का एक शर्मनाक तुलनात्मक अध्ययन करें तो हम पायेंगे कि जिस पाकिस्तान को हम बुरा-भला कहने, कोई भी दोष मडने से नहीं चूकते, वह फिर भी हमसे बेहतर स्थिति में है। पाकिस्तान तो फिर भी इस आतंकवाद के सहारे कुछ अर्जित कर रहा है, हमने तो केवल और केवल गंवाया ही है। इस आतंक की बलि-बेदी पर भेंट होने वालो को हमारी सरकार मुआवजे का आश्वासन और यह घृणित कृत्य करने वालो को बस कुछ कोरी भभकिया देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है, और फिर सुरु होता है एक और इसी प्रकार की कहानी दोहराए जाने का इन्तजार ।

* हम कहते है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है, तो क्या हमारे देश में नक्सल-माओ, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आतंकवाद नहीं है?

* अगर हम कहते है कि पाकिस्तान अपने पश्चिमोतर प्रान्तों को नियंत्रित कर पाने में असफल है, तो हम अपने इस नक्सल आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों को नियंत्रित कर पाने में कितने सफल है ?

* हम आरोप लगाते है कि वहाँ का आतंकवाद सरकार, राजनितिक और आई एस आई पोषित है, तो क्या यह भी बताने की जरुरत है कि यहाँ का नक्सल-माववादी आतंकवाद किसके द्वारा पोषित है ?

* और सिर्फ यह कह भर देना कि विश्व में आतंकवाद पाकिस्तान से संचालित है, हमें इन आरोपों से मुक्त नहीं कर देता कि हमारे पड़ोसी देशो श्रीलंका, नेपाल, भूटान , बांग्लादेश और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी आतंकवाद पैदा करने में हमारी भूमिका का दोष मडा है।

* तालिबानी आतंकवाद का तो हम जमकर विरोध करते है लेकिन कोई यह देखने की कोशिश भी करता है कि तालिबानी और नक्सली आतंकवाद में फर्क क्या है ? जैसा भी घृणित कृत्य, चाहे वह स्कूल भवनों को उडाना हो, संचार और यातायात तंत्र को नुकशान पहुंचाना हो, निरीहों पर अत्याचार करना हो, तालिबानी करते है, वही सब तो ये नक्सली आतंकवादी भी कर रहे है।


आज जब इस देश में लाल आतंकवाद बुरी तरह अपनी जड़े जमा चुका है, और न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। तो ऐसे वक्त में भी हमारे ये नेतागण इसमें अपने लाभ-हानि का चिटठा ढूंढ रहे है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अप्रत्यक्ष तौर पर हमारे अधिकाँश नेतागण इसे अपने लिए एक कुबेर के खजाने और जनता की दृष्ठि भर्मित करने का एक पुख्ता उपाय मानते है। नक्सलवाद के नाम पर उन क्षेत्रों, जहां नक्सलवाद मौजूद है, देश के खजाने से मोटी रकमें विकास के नाम पर लूटने का अवसर प्रदान करती है, क्योंकि इन्हें मालूम है कि उन क्षेत्रों में जाकर किसी की यह देखने की हिम्मत नहीं कि जो पैसा सरकारी खजाने से भेजा गया था, वह इस्तेमाल कहाँ हुआ ? दूसरी तरफ यह फायदा भी है कि इन नक्सली कृत्यों की वजह से जनता का ध्यान सरकार की कमियों,खामियों और ज्वलंत मुद्दों से बँट जाता है। और ये नेतागण समय-समय पर परस्पर विरोधी बयान देकर लोगो को बर्गलाने का पूरा प्रयास करते है।

दूसरी तरफ ये नक्सली नेता जिनकी सिंचाई की जमीन बिहार, बंगाल , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ , आन्ध्र प्रदेश और एम् पी से लेकर दक्षिणी दिल्ली की पॉस कालोनियों एवं यहाँ के एक नेहरु के नाम पर चलाई जा रही वामपंथ की दूकान तक फैली है, अपनी इस कायरतापूर्ण हरकत को सही ठहराने के लिए ये देशद्रोही दलील देते है कि गरीबी, भूख, बीमारी और निर्वासन जनता के बीच असंतोष को पहुंचाता है। आजादी के ६० से अधिक वर्षों के गुजर जाने के बावजूद भी सरकार ने इनके लिए स्कूलों के रूप में इतनी अच्छी सुविधाएं प्रदान नहीं की, तथा शिक्षा, स्वच्छता, शहरी और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाए मुहैया कराने में सरकारी तंत्र विफल रहा है। क्या ये इस बात का जबाब दे पाएंगे कि उपरोक्त राज्यों में रोज कोई न कोई स्कूल , रेलवे स्टेशन, चिकत्सालय और अन्य सरकारी भवनों को ये बारूद से उडा रहे है, तो परिणाम क्या होगा ? प्रगति रुकेगी, इनके बच्चे स्कूल नहीं पढ़ पायेगे, इसलिए वे भी कल बन्दूक उठाकर नक्सली बनेगे। इनके बीबी बच्चो को उचित चिकित्सकीय सहायता नहीं मिलेगी क्योंकि डॉक्टर को भी अपनी जिंदगी प्यारी है, इस लिए इनके इलाको में कौन जायेगा? और कल फिर ये कायर खाते पीते तबके के तथाकथित लाल मानसिकता के बुद्धिजीवी देश और दुनिया को दोष देने के लिए यह बौद्धिक पाखण्ड करने लगे कि ये आदिवासी पिछड़ गए, तो जो ये कर रहे है क्या वह उचित है ? उन अनपढ़-गवार आदिवासी लोगो को, उनकी भावनावो को ये अपना करूणामई संगीत सुना-सुना कर भड़काते रहेंगे तो वे सुधरेगे कहा से?

जिन पर देश को चलाने की जिम्मेदारी है, तुच्छ स्वार्थों के लिए अगर आज वे कहते है कि चूँकि ये नक्श्ली अपने ही लोग है अत: अपने ही देश के भीतर हम अपने लोगो पर बल प्रयोग नहीं कर सकते, तो मैं पूछना चाहूँगा कि क्या नगा, मिजो और मणिपुरी तथा असमी लोग किसी गैर-मुल्क के लोग थे ? अमृतसर और स्वर्ण मंदिर किसी विदेशी मुल्क में था ? आज जब कभी कोई आन्दोलन कर रहा होता है और भीड़ अगर अनियत्रित हो जाए तो आपका पुलिस बल गोली चलाकर कई लोगो को मार देता है, उसवक्त क्या आप ये देखते है कि कौन उपद्रवी है और कौन आम नागरिक? यदि नहीं तो फिर नक्श्लियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, यह ढकोसलेबाजी क्यों? कितना हास्यास्पद है कि हमारी सेनाओं के प्रमुख कहते है कि हम अपने लोगो के खिलाफ टैंक, कैनन और मिसाइल इस्तेमाल नहीं कर सकते।जानकार अच्छा लगता है कि अपनी निष्क्रियता छुपाने के लिए 'अपने लोगो " को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है , मगर यह किससे पूछा जाए कि जो हजारों लोग इन नक्सलियों की वजह से अब तक मौत के मुह में जा चुके, वो किसके लोग थे ?

ठीक है , यदि इनके खिलाफ सेना का पूर्ण इस्तेमाल करना उचित नहीं तो आंशिक इस्तेमाल तो किया ही जा सकता है ? हमारे अर्धसैनिक बलों की तादाद में भी पिछले एक दशक में कई गुना वृद्धि हो चुकी है , उनका सही और पूर्ण इस्तेमाल करते हुए जब वे मोर्चे पर नक्सलियों से लड़ रहे हों तो उन्हें वायु सेना तो अपने लड़ाकू हैलीकॉप्टरों से मदद कर सकती है? अर्धसैनिक बलों को आप उचित प्रशिक्षण और हथियार तो मुहैया करा सकते है ? यहाँ एक मंत्री के साथ २०-२५ कारों का काफिला गुजरता है (बेवजह) और यह जानते हुए भी कि वहाँ कदम-कदम पर मौत बिछी है , क्यों इतने सारे जवानो को एक ही ट्रक में ठूंस दिया जाता है ? डीजल ज्यादा कीमती है या फिर एक जवान की जान ?

सी आर पी ऍफ़ की ६२ वीं बटालियन पर हाल में हुआ हमला एक आपदा थी, जो इन्तजार कर रही थी।माओवादी सिर्फ आसान निशानों पर ही हमला करते है क्योंकि वही इन कायरों की मूल योग्यता है। अपने कार्य नैतिकता और जमीनी स्तर पर कमजोर नेतृत्व की वजह से सी आर पी ऍफ़ भी उनके लिए एक आसान निशाना है। और जैसा कि आप लोग भी जानते होंगे कि मध्यम और उच्च स्तर पर इनका नेतृत्व आईपीएस लॉबी के हाथ में होता है, जिन्हें सैन्य और अर्धसैन्य मामलों की ख़ास जानकारी नहीं होती, और वे वहीं तक योग्य है जहां तक वे प्रेस कौन्फेरंस में कुछ चटपटा बयान दे और जनता की भावनाओं से खेले। जबकि उन्हें करना यह चाहिये था कि जो एक चुनौती भरा काम उन्हें मिला है, उसे सही से अंजाम तक पहुंचाए। अगर आज दंतेवाडा इतनी परेशानी पैदा कर रहा है तो निश्चित रूप से स्थानीय, राज्य और केन्द्रीय खुफिया मशीनरी का ढाचा वहाँ बुरी तरह ढह गया है ।

आज जरुरत है , हर उस जिम्मेदार नागरिक को यह बात भली प्रकार से समझने की कि किसी भी समस्या को अगर ज्यादा देर तक अनदेखा किया जाता रहे तो वह बाद में बिकराल रूप धारण कर लेती है । थाईलैंड इस बात का ताजा उदाहरण है कि कैसे वहाँ लाल कमीज वाले आन्दोलनकारियों ने उस देश को अराजकता के दौर में धकेल दिया है। किन्तु इस देश में शीर्ष पर विराजित अपार वैभव सम्पन्न विभूतियों की नपुंसकता को दूर करने का कोई रामबाण उपाय फिलहाल नहीं सूझता।बस अफ़सोस इस बात का है कि देश अपना चरित्र खोता जा रहा है। अंत में यही कहूँगा कि अभी भी वक्त है Force should be met with force, and the blackmailers should be made to understand that they cannot blackmail society with their killing.

चलते-चलते ये चार कविता की लाइने भी ;

खुद को यथेष्ट
भ्रष्टाचार के दल-दल में डुबो रहे है,
ये नुमाइंदे
आजकल बेफिक्री की नीद सो रहे है !
खाने को लूट की दौलत,
पीने को जनता का खून,
भागीरथ की
मुफ्त की गंगा बह रही,ये हाथ धो रहे है !!


जनता से उगाहे कर से ही
चलता सब काम इनका,
चाक-चौबंद सुरक्षा ऐसी,
घुस न पाए घर में तिनका !
जिन्होंने पैदा किये
अपने वीर सपूत देश के खातिर,
उन्हें इनके तुच्छ
मंसूबों की बलिबेदी पर खो रहे है!!

देश में अब खून की होली
हर रोज खेली जा रही,
जन-अश्रुओं को ये
नोटों की माला में पिरो रहे है!
खुद को यथेष्ट
भ्रष्टाचार के दल-दल में डुबो रहे है,
ये नुमाइंदे
आजकल बेफिक्री की नीद सो रहे है!!

Sunday, May 16, 2010

छिटपुट !


आज के इस अवसादपूर्ण वातावरण मे इन्सान की रोजमर्रा की जिन्दगी एक मशीन बन कर रह गई है। और जिसकी रोज की दिनचर्या मे ज्यादातर लम्हे इन्सान को ढेर सारी उलझनों मे ही उलझाकर तनावग्रस्त बनाये रखते है। मगर साथ ही कभी-कभी इन्सान के जीवन मे उन कुछ खुशहाल पलों का भी एक भिन्न तरह का योगदान रहता है, जो उसे तनाव तो देते है मगर खुद की चिन्ता-फिकर से थोडा हटकर, देश और दुनिया के बारे मे भी सोचने का अवसर प्रदान करते है।

जैसा कि विदित है कि आज रविवार है, यानि छुट्टी का दिन। और मै समझता कि मानव सभ्यता के विकास का वह दौर शायद सबसे विद्धतापूर्ण दौर रहा होगा, जिसमे निति निर्धारको और निर्णयकर्ताओं ने यह दूरदर्शितापूर्ण बात इन्सान के जीवन के लिये तय की कि हर इन्सान को साप्ताहिक अवकाश लेना/देना जरूरी है।

इन्सान इत्मिनान से फुर्सत के पलों मे अपने-अपने स्वभाव, शारीरिक गुणों और मानसिक क्षमताओ के बलबूते भिन्न-भिन्न कल्पनाओं की उडाने उड्ता है। ये काल्पनिक उडाने हमारे आस-पास घटित हो रहे घटनाक्रम पर बहुत कुछ निर्भर करती है। ऐसे ही कुछ विचार फुर्सत के चन्द लम्हों मे मुझे भी अक्सर उद्ववेलित करते रहते है, जिनमे से कुछ को मैं निम्न प्रकार से आप लोगो के समक्ष पेश कर रहा हूं;

अ) एक खबर: फलां-फलां नेता ने फ़लां-फ़लां व्यक्ति द्वारा उसके काले कारनामे उजागर करने पर उन कारनामों की बात को न सिर्फ़ फर्जी बताया बल्कि उसे अपने खिलाफ एक साजिश भी करार दिया और उस फ़लां-फलां व्यक्ति पर मान-हानि का दावा ठोकने की धमकी भी दे डाली।
मैं क्या सोच रहा था ?: मैं सोच रहा था कि आज जबकि हर कोई इस बात को भली भांति जानता है कि आज राजनीति मे अधिकाशत: चोर, डाकू, कातिल, लुटेरे,बलात्कारी, भ्रष्टाचारी ही घुसे पडे है, जिनका कोई दीन-ईमान नही। और जिस इन्सान का कोई ईमान ही नही, भला उसका मान कैसा? इस पतन के लिये कोई और नही बल्कि ये नेता ही खुद जिम्मेदार है, तो क्या अब हमारे कानूनों मे यह सुधार लाने की जरुरत नही है कि कोई भी राजनेता मान-हानि का दावा नही कर सकता ?

आ) एक खबर:एक ट्रक ने तीन लोगो को कुचलकर मार डाला, पुलिस ने ट्रक ड्राइवर को गिरफ़्तार कर उस पर नकारात्मक ड्राइविंग का आरोप लगाते हुए, गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया।
मैं क्या सोच रहा था: ट्रक ड्राइवर पर ट्रक को ठीक से चलाने की जिम्मेदारी थी, जिसमे असफ़ल रहने पर उसे सजा भुगतनी पडेगी। देखा जाये तो प्रधान-मन्त्री और उसके मन्त्री मण्डल के सदस्य भी एक तरह से ड्राइवर ही है, जिन पर देश को ठीक से चलाने की जिम्मेदारी होती है। अगर वे लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह ठीक से नही करते और परिणामस्वरूप यदि देश मे लोग मरते है तो क्या इनपर भी नकारात्मक ड्राइविंग का आरोप लगाते हुए गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा नही चलना चाहिये ?

इ) एक खबर:सी आई ए के एक पूर्व विश्लेषक के मुताविक अगर अब अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ तो पाक का खात्मा हो जायेगा।
मै क्या सोच रहा था: मुम्बई हमलों के बाद हमें संयम बरतने और पाक से वार्ता की नसीहत देने वाले ये गोरी चमडी के रंगभेदी और नश्लभेदी बन्दर दुनिया को अपने बाप की जागीर अभी तक समझते है। ये खुद इतने बडे मूर्ख हैं या फिर हमे ही मूर्ख समझते है कि आतंकवाद के खिलाफ लडाई लड्ने के लिये पाकिस्तान को नौसैनिक विमान और हथियार दे रहे है। क्या हम इतना भी नही समझते कि पाकिस्तान की नौसेना को अमेरिकी सहायता का आतंकवाद के खिलाफ लडाई मे भला क्या औचित्य?

ई) एक खबर: २९ अप्रैल २०१० को चीन के टाक्सिंग शहर के एक किंडरगार्टेन के २९ बच्चों को चाकू मारने वाले वहां के एक बेरोजगार युवक को वहां की अदालत ने १५ दिन के भीतर-भीतर मौत की सजा सुना दी।
मैं सोच रहा था: अपने देश मे तो एक विदेशी आतंकी को भी सालों तक मौत की सजा नही दी जाती, ऊपर से करोडो उसके लालन-पालन पर खर्च किये जाते है। इससे क्या कभी हमारा (अ) न्याय-तंत्र कोई सबक लेगा?

आज बस इतना ही, वैसे बाइ दी वे आप लोग क्या सोचते है?

Thursday, May 13, 2010

कार्टून कुछ कहता है !

खबर : गडकरी ने लालू और मुलायम को सोनिया का कुत्ता कहा!



पापा ये बीजेपी वाले भी न... हमारी
इज्जत का ज़रा भी ख्याल नहीं रखते !

कार्टून कुछ बोलता है !

खबर: देवबंद ने दो नए फतवे जारी किये, एक के अनुसार महिलाओ को काम पर भी पर्दा करना होगा, और दूसरा मर्द बैंक की नौकरी नहीं कर सकते !


अरे मिंया , जरा एक बढ़िया क्वैलिटी का दिखाना.........
मनमोहन जी को गिफ्ट देना है उनकी.... छठी वर्षगाँठ पर !!





















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"ब्लोगर मीट"

मेरे पास फतवा है, तेरे पास क्या है ?

.............................................. मेरे पास खाप है !


छवि गूगल से साभार

Wednesday, May 12, 2010

लव- जेहाद में नया ट्विस्ट लाएगा इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह महत्वपूर्ण निर्णय !

लव-जेहाद की मानसिकता के लोगो के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय अभी भले ही उतना अहम् न लगता हो, क्योंकि उनका मकसद तो सिर्फ दूसरे धर्म की लड़कियों को बर्बाद करना मात्र है , मगर इस निर्णय के बाद उन गैर-इस्लामिक लड़कियों और महिलाओ को सचेत हो जाना चाहिए, जो भावनाओं में बहकर अपने लिए मुसीबते खडी करने से नहीं हिचकिचाती।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी को अमान्य और इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ माना जाएगा अगर शादी से पहले महिला ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है। न्यायाधीश विनोद प्रसाद तथा राजेश चंद्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी अमान्य मानी जाएगी और पवित्र कुरान के खिलाफ होगी यदि वह उसका निकाह से पूर्व धर्मांतरण कराने में विफल रहता है। खंडपीठ ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति का पुन: विवाह अवैध माना जायेगा, यदि वह अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना छोड़ देता है और उससे पैदा हुए बच्चों का न्यायोचित तरीके से भरण़ पोषण करने में विफल रहता है।

अदालत ने सोमवार को इलाहाबाद निवासी दिलबर हबीब सिद्दीकी की रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। उसने पिछले वर्ष 29 दिसंबर को खुशबू नाम की हिंदू लड़की से शादी की थी। खुशबू की माँ सुनीता जायसवाल ने आरोप लगाया था कि उसकी नाबालिग बेटी का अपहरण किया गया और सिद्दीकी से शादी करने को मजबूर किया गया।अदालत ने कहा कि इस्लाम के तहत एक से अधिक पत्नी रखना जायज है लेकिन अदालत ने इस तथ्य का कड़ाई से संज्ञान लिया कि खुशबू से निकाह करने से पूर्व सिददीकी ने उसे यह नहीं बताया था कि वह पहले से ही शादीशुदा है और तीन बच्चों का पिता है।
अब गौर से देखा जाए तो इस पूरे प्रकरण से बहुत सी मजेदार बातें सामने आती है , मसलन ;
-वासना के भूखे ये दरिन्दे किस हद तक गिर सकते है कि पहली पत्नी के होते हुए और तीन-तीन बच्चों का बाप होते हुए भी वह एक नाबालिग लड़की का अपहरण करके अथवा उसे बहला-फुसलाकर उससे निकाह करता है।
-और फिर बेशर्मी की हद देखिये कि एक गलत काम को अंजाम देने के बावजूद क़ानून का भी सहारा लेता है।
- इस धर्मनिरपेक्ष देश का एक न्यायालय अपने निर्णय में इस्लाम धर्म और कुरआन का हवाला देकर अपना निर्णय सुना रहा है, क्योंकि आवेदनकर्ता धर्म की आड़ लेकर एक से अधिक बीबियाँ रखना चाहता है।
-अगर इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में कोई अपील नहीं की जाती अथवा निर्णय के विरुद्ध सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय निर्णय को अपरिवर्तित रखता है तो भविष्य में ये लोग अगर किसी गैर-मुस्लिम लडकी को धोखे में रखकर, बिना उसका धर्म परिवर्तन किये शादी करते है तो उसे गैर-कानूनी ठहराया जा सकता है।
-अब यह भी देखने वाली बात होगी कि यह निर्णय सभी गैर-इस्लामिक महिलाओ से की गई शादियों पर भी लागू होता है अथवा नहीं।
-अब हर उस हिन्दू या अन्य धर्म की महिला को मुस्लिम पुरुष से शादी से पहले अपना नाम भी बदलना होगा,अर्थात ये महिलाए बाद में अपना हिन्दू नाम इस्तेमाल कर समाज को भ्रमित नहीं कर पाएंगी।
-इसमें भी कोई दो राय नहीं कि बात बात पर अपने धर्म की दुहाई देने और अपने धार्मिक कानूनों को राष्ट्रीय कानूनों से सर्वोपरी मानने वाले ये कुछ धर्म के ठेकेदार आने वाले वक्त में खुद ही यह दलील पेश करने लगे कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में कोई क़ानून धार्मिक आधार पर कैसे निर्णय दे सकता है?

चलिए, अब आगे-आगे देखते है होता है क्या, मगर मैं तो उन सभी गैर-इस्लामिक लड़कियों/ महिलाओं जो अपने लिए कोई मुस्लिम पुरुष जीवन साथी तलाश रहे है,से यही अपेक्षा करूंगा कि जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से पहले इस पहलू पर भी गौर फरमाएं और आने वाली विपदाओं से बचे।

Tuesday, May 11, 2010

कार्टून कुछ बोलता है !




तुम्हे मालूम है कि देश से अगर
एक भला और ईमानदार इंसान चला जाए तो क्या होगा ?



जी सर , एक सौ पच्चीस करोड़ लोगो का भला हो जाएगा !!!

अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है !

आज उदित है तपस, तुम्हे जलना है,
सांझ दस्तक देगी , तुम्हे  ढलना है।  

आसान न सही जोखिमी जिन्दगी,
पहाड़ सा डटना, हिम सा गलना है।

छीने न  कोई  पवन से खुसबूओ को,
चट्टान बन तूफानों का रुख बदलना है।

थककर रोक लो कदम, मुमकिन नहीं,
अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है।  

आई.एम्.ऍफ़ की ग्रीस (यूनान) को खैरात------- संस्थागत नश्लवाद की फिर जीत !




अभी कल परसों, यह खबर तो आप लोगो ने भी पढी-सुनी होगी कि यूरोपीय संघ के वित्त मंत्रियों के विशेष सम्मेलन में ग्रीस को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कम से कम 5 खरब यूरो (करीब ३१० खरब रूपये ) की राहत राशि दिए जाने पर सहमति कायम हुई है। ताकि ग्रीस का ऋण संकट न बढ़े और यूरो स्थिर रहे। साथ ही कल इस खबर से पूँजी बाजारों में भी नकली चमक आ गई थी कि अन्तराष्ट्रीय मुद्रा-कोष भी ग्रीस को २५० खरब यूरो (यानी करीब १५५ खरब रुपये ) खैरात (बेल-आउट पैकेज) के तौर पर देगा। जैसा कि आपलोग जानते ही होंगे कि अपनी अतिव्ययी जीवन शैली की वजह से ग्रीस काफी समय से भारी वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। और अभी कुछ समय पहले तो सरकार द्वारा इस वित्तीय संकट को कम करने के लिए मितव्ययता (ऑस्टेरिटी) लाने और टैक्स लगाने तथा नागरिकों को दी जाने वाली अनेको रियायतों और छूटों में कमी करने की घोषणा की तो वहाँ हिंसक दंगे भड़क उठे थे, और वहाँ के समाजवादियों ने एक बैंक पर धावा बोल दिया था , जिसमे अनेक लोगो को जान से भी हाथ धोना पडा था।

सवाल मेरा यह है कि हमारी ये अन्तराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाए किसी गरीब देश को तो ऋण देते वक्त उसे बीसियों तरह की हिदायते भी देती है, ये तथाकथित सभ्य पश्चिमी राष्ट्र अविकसित देशो को भेदभाव और मानवाधिकारों से सम्बंधित बड़ी-बड़ी नसीहते देते फिरते है, और बड़ी मुश्किल से इन दुनिया के गरीब देशों को ऋण मिल पाता है जबकि दूसरी तरफ आलसी ग्रीसवासियों के अपव्ययी जीवन शैली के बचाऊ में इस कदर पैसा बरसा रहे है ! ये आलसी(समाजवादी ) ग्रीसवासी ५३ वे साल में तो रिटायर हो जाते है, इन्हें हर त्यौहार और छुट्टी का बोनस मिलता है , त्यौहार पर ये ३ घंटे का ढेर सारा खाना खाते है, (ये समझिये कि बस खाते ही रहते है ) और उसके बाद दोपहर की नींद भी इनके सिस्टम का हिस्सा है ! (3hours fiesta(eating binge) and after that 3 hours siesta(sleeping binge) और इनकी इस जीवन शैली को १५० खरब रूपये की खैरात देकर बचाने की कवायद आई एम् ऍफ़ कर रहा है।

दूसरी तरफ इनका कोई पूछने वाला नहीं ;


अब इसे पश्चिम का संस्थागत नश्लवाद नहीं कहोगे तो और क्या कहोगे ?

Monday, May 10, 2010

कूटनीतिक तौर पर देखा जाए तो सबसे सफल राष्ट्र कहा जा सकता है पाकिस्तान को !


पाकिस्तान एक नाकाम राष्ट्र है, पाकिस्तान एक अस्थिर और असफल राष्ट्र है...पाकिस्तान एक आतंकवादी राष्ट्र है, पाकिस्तान की नीव ही घृणा की बुनियाद पर पडी है, पाकिस्तान का कोई ईमान नहीं है, इत्यादि, इत्यादि, ऐसी बाते तो हम लोग अक्सर बोल, सुन लिया करते है, मगर यह बात सुनने में बड़ी अटपटी लगेगी, अगर मैं कहूँ कि पाकिस्तान कूटनीतिक तौर पर दुनिया का एक सबसे सफल राष्ट्र है।

यूँ तो पाकिस्तानियों ने "मौके का फ़ायदा उठाना" वाला गुरुमंत्र प्राचीन मुग़ल आक्रमणकारियों से ही सीख लिया था, किन्तु अलग पाकिस्तान राष्ट्र के बन जाने के बाद उन्होंने इस कहावत को यथार्थ के धरातल पर बखूबी उतारा। आज हम जितना मर्जी पाकिस्तान को बुरा-भला कहे, लेकिन सच्चाई यही है कि पाकिस्तान ने अपने जीने का जुगाड़ बखूबी ढूंढ लिया है। ज़रा सोचिये , क्या था पाकिस्तान के पास ऐसा जिसकी बदौलत वह दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों के सामने खडा हो पाता? वह आज भले ही हर दूसरे हफ्ते भीख का कटोरा लेकर पश्चमी राष्ट्रों के आगे हाथ फैलाता नजर आता हो, मगर हम यह भूल जाते है कि भीख मांगना भी एक कला है, और हर भिखारी उसे पाने में सफल नहीं हो पाता। उसके पंजाब और सिंध प्रांत को छोड़ दे तो बाकी प्रदेशो में तो वहाँ के वाशिंदों के खाने के लिए भी पर्याप्त अनाज नहीं हो पाता। अगर वह दुनिया के अन्य देशो को निर्यात करने हेतु अपनी आतंकवाद की फसल नहीं तैयार करता तो आज उसकी स्थिति सूडान,युगांडा और ईथियोपिया से भी बदत्तर होती। उसके पश्चिमोतर प्रान्तों में जिस तरह के वार-लोर्ड रह रहे है , अगर उनके समक्ष गैर इस्लामिक देशो का हौवा नहीं खडा किया गया होता तो वे आपस में पाकिस्तानियों का ही रोज कत्लेआम करते रहते ।

उस देश के पास कुछ ख़ास संसाधन न होते हुए भी , आज दुनिया का सबसे बड़ा हथियार यानि परमाणु बम है, लम्बी दूरी तक मार करने वाले मिसाइल है, संयुक्त राष्ट्र में पैरवी के लिए दो स्थाई सदस्य , अमेरिका और चीन पक्के तौर पर है। अमेरिका हर वक्त दोस्ती के लिए उसके आगे पीछे घूमता रहता है, उसे सारे उन्नत लड़ाकू हथियार और विमान दे रहा है, हर साल अरबों डॉलर फ्री में दे रहा है, यह जानते हुए भी कि यही पाकिस्तान उसके डसने के लिए जहरीले नाग पैदा कर रहा है, और पाल रहा है। अभी हाल का ही वाकया ले लीजिये, उसके एक नाग ने न्यूयार्क के लोगो को डसने की एक असफल कोशिश की। अभी तो अमेरिका दुनिया को दिखाने के लिए उस पर गुर्रा रहा है, आँखे तरेर रहा है मगर देखना, कुछ ही दिनों बाद वह उसके लिए करोडो डालर की अगली किश्त मंजूर करने वाला है। चीन हर संभव सैन्य और असैन्य तकनीकी सहायता उसे दे रहा है, मुस्लिम राष्ट्र सारे उसके पक्ष में है, और इस्लामिक आतंकवाद का मुख्य पोषक सउदी अरबिया उसे करोडो की सहायता देता है। यानि फ्री-फंड का बैठकर खा रहा है । हमारा तो जब कोई राष्ट्रपति अमेरिका जाता है तो उसके तो कपडे भी उतरवा लिए जाते है, मगर पाकिस्तान का वहां एक मंत्री भी रेड कारपेट सम्मान पाता है, एयरपोर्ट पर । आज दुनिया का बच्चा-बच्चा भी पाकिस्तान का नाम जानता है, वह भले ही आतंकवाद की ही वजह से क्यों न हो। अभी कुछ सालों पहले तक तो पश्चिम के लोग इंडोनेशिया और इंडिया में फर्क ही नहीं कर पाते थे। वो तो भला हो ओसामा बिन लादेन का जो उसकी वजह से अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्रों ने आतंकवाद का अर्थ समझा, नहीं तो भारत में चल रहे पाकिस्तानी आतंकवाद से कितने लोग परिचित थे ? भारत को परेशान करना उसका जन्मजात मकसद था और वह उसमे पूरी तरह सफल रहा। भारत से जब ऐसी खबरे जाती है कि कसाब पर अब तक पचास करोड़ रूपये खर्च हो चुके भारत के, तो मन ही मन मुस्कुराता होगा। बेशर्म बनकर दुनिया को मूर्ख बनाता है तो वो भी तो उसकी एक खासियत ही है जीने (survive) की।

तो अब आप ही बताईये कि पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र किस नजरिये से है?

Saturday, May 8, 2010

एक गजल- सहमे गुल



तज पुरा-रीतियां ज़माना निकला,नए-नए अभियानों पर,
बदल गई है अब दुनिया, सभ्यता के दरमियानों पर ॥

न स्वयम्बर की दरकार रही 
अब, न युवराजों की जंग,
जंक खाती जा रही तलवारें भी ,पडे-पडे मयानों पर ॥

क्या पूनम,क्या अमावस,क्या शुक्ल क्या कृष्ण पक्ष,
सूरज ग्रहण लगा रहे है नित,चांद के आशियानों पर ॥


उत्कंठा के चरम,उजाड़ रहा खुद माली ही गुलशन को ,
गुल सहमा ऐतवार करे कैसे,गुलशन के सयानों पर॥

काबिले भरोसा रहा न कोई,'परचेत' यक़ी करे किस पर,
यहां लोग भरोसा करते भी है तो गिरगिट के बयानों पर ॥

कसाब के बहाने कुछ सवाल !

ब्लोगर मित्रों, ब्लोग-जगत के माध्यम से यह मोटी बुद्धि का इन्सान चन्द सवाल इस देश से पूछना चाह्ता है। जैसा कि आप सभी जानते है कि परसों ही मुम्बई की एक स्पेशल अदालत ने २६/११ के एकमात्र जीवित बचे (सरकारी रिकार्ड के मुताविक) पाकिस्तानी दरिन्दे, मुह्म्मद अजमल कसाब को मौत की सजा सुनाई है। जैसा कि आप सभी लोग भी जानते होंगे कि इस महान लोकतंत्र के न्याय कानूनो के मुताविक कोई भी अपराधी तब तक सिर्फ़ उसके द्वारा किये गये अपराध का आरोपी (charged) मात्र कहा जाता है, जब तक कि उसका अपराध साबित न हो जाये, और न्यायालय उसे उस अपराध के लिये दोषी करार न दे। एक बार अदालत का निर्णय आ जाने के बाद वह घोषित (convicted) अपराधी कहलाने लगता है।

अब मुख्य मुद्दे पर आता हूं। मान लेते है कि कल तक सरकार की यह चिंता नि:सन्देह जायज थी कि उसे डर था कि कहीं दुशमन पडोसी मुल्क कसाब की सुरक्षा मे सेंध लगाकर इस जांच को प्रभावित करने की कोशिश न करे। इसलिए कसाब की सुरक्षा के नाम पर इस देश के टैक्स दाता की गाढी कमाई के ५० करोड रुपये स्वाह: होना लाज मी था। लेकिन अब न्यायालय मे वह दोषी करार दिया जा चुका है, और उसे सजा-ए-मौत दी जा चुकी है। कसाब को जिन्दा पकडने की २.५ करोड प्रतिमाह के हिसाब से अब तक हमने तत्परता से कीमत चुकाई है, मगर कल जब यह बात समाचारों मे सुनी कि महाराष्ट्र सरकार आगे भी कसाब की सुरक्षा मे कोई कोताही नही बरतेगी और इसी उदारता से उस पर खर्च करती रहेगी, तो निश्चित तौर पर कुछ सवाल जहन मे कौंधने स्वाभाविक थे। मुझे चिंता हुई कि यह जो धन इस दरिन्दे पर दोनो हाथों से लुटाया जा रहा है, वह है किसका ? और उसे अब इसतरह उदारता पूर्वक दोनो हाथो से लुटाने का औचित्य क्या रह गया है?

मैं एक सवाल सरकार की हां मे हां मिलाने वाले मीडिया से भी पूछना चाहुंगा कि अब जबकि कसाब मुजरिम घोषित किया जा चुका है। देश और विदेश मे पाकिस्तान के षड्यन्त्र का पर्दाफ़ाश हो चुका है और समूची दुनिया को इस बाबत सन्देश बखूबी पहुंच चुका है, तो इस बात का क्या औचित्य है कि हमारी सरकार उस पर इस तरह आगे भी देश का कीमती धन लुटाती रहे ? उसे भी अफ़्जल गुरु की तरह जेल मे रखा जा सकता है। सर्वप्रथम तो यह बात उठती है कि क्या हमारे देश मे जेलों की सुरक्षा इतनी कमजोर है, जो कसाब को इस तरह की विशेष सुरक्षा दी जा रही है? या सरकार को अपनी जेलों के सुरक्षा तन्त्र पर भरोसा ही नही, या फिर हमे कसाब के नाम पर देश का कीमती धन लुटाने का शौक है ? दूसरा यह कि मान लीजिये यदि आम प्रकार के सुरक्षा तन्त्र के बावजूद भी दुश्मन हमला कर किसी तरह कसाब को मार देता है या फिर अपहरित कर ले जाता है, तो तब भी अब ज्यादा क्या फर्क पडता है? यदि हम यह सोच रहे है कि उसके रहते हम उसके पाकिस्तानी आंकाओं पर दबाव बनाये रखेगे, तो पिछ्ले १७-१८ महिने मे तो ऐसा कुछ भी नही दिखा, जो ये लोग अब कर लेंगे। मुझे तो आशंका यह भी होती है कि कहीं कसाब के बहाने इस महान लोकतांत्रिक देश मे अन्दर ही अन्दर एक और नया आई पी एल तो नही खेला जा रहा ?


Thursday, May 6, 2010

भई आखिर इंडिया ससुर जी की प्रोपर्टी जो ठहरी, ऊपर से सालो की कृतज्ञंता भी काबिले-तारीफ़ !


उनके लिए हैदराबाद क्रिकेट एसोशियेशन बोले तो साले लोगो की जमात, और जिमखाना बोले तो ससुर जी की प्रोपर्टी ! जी गलत मत समझिये, बिलकुल सही कह रहा हूँ ! कुछ ऐंसा ही मामला है ! जवाईं राजा जब से बिटिया रानी के साथ पाकिस्तान से लौटे है , शहर भर के चाचाससुर और ताऊससुर उनकी खिदमत में कोई गुस्ताखी नहीं होने दे रहे! शहर भर के साले लोग जीजा जी की आवाभगत में अपना सब कुछ न्योछावर करने पर आमदा है! जीजाजी जिस गली का रुख करते है, कृतज्ञं साले लोग उनके स्वागत के लिए वहीं लंबलेट हो जाते है!

इन जवाईं राजा पर उनके देश की क्रिकेट एसोशियेशन (पीसीबी ) ने इस वर्ष मार्च में एक साल के लिए बैन लगा दिया था ! लेकिन ससुराल ( हैदराबाद ) आकर जनाव खूब प्रैक्टिस कर रहे है ! कल यानी बुधवार को उन्होंने हैदराबाद क्रिकेट एसोशियेशन की नाक तले जिमखाना में एक घंटे तक प्रेक्टिस की! उनके साथ में उनकी पत्नी और हैदराबाद क्रिकेट एसोशियेशन के पूर्व सचिव वी चामुंडेश्वरनाथ भी थे! आपको याद होगा कि सन २००० में मैचफ़िक्सिंग के आरोपों के बाद इंडियन क्रिकेट बोर्ड द्वारा अजहरुद्दीन पर जीवन पर्यंत बैन लगाए जाने के बाद उन्हें देश और विदेश के किसी भी क्रिकेट मैदान पर खेलने नहीं दिया गया ! लेकिन जवाईं राजा की आवाभगत में, वह भी तब जबकि जवाईं राजा पाकिस्तान के हों , अपना देश भला कैसे ऐसी गुस्ताखी कर सकता हैं ? विस्तृत खबर कृपया यहाँ पढ़े !

'अपराध उद्योग' को हार्दिक शुभ-कामनाये !

वोये, लख-लख बधाईयाँ तेनु "नेताजी", "भाई", "गुरु", 'उस्ताद" और 'बोस" जी ! अब तो आपके उद्योग के लिए देश की सर्वोच्च न्यायालय की ओर से भी एक और रियायत मिल गई है ! अब देखना चंद हफ़्तों में ही आपकी कम्पनियों के शेयर किन ऊँचाइयों को छूंते है !

यह तो थी इस दिन-दुगने रात-चौगुने फलते-फूलते उद्योग को मेरी तरफ से शुभकामनाये ! मगर साथ ही यह एक गंभीर चिंता का विषय भी है, कि "महा-महिम" ( पता नहीं यह गुलामों वाली भाषा बोलना हम कब बंद करेंगे ) सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय से जिसमे उसने जांच एजेंसियों द्वारा संदिग्ध के नारको टेस्ट और ब्रेन मैपिंग को अवैध करार दिया है, अपराध जगत को एक और निरंकुशता या यूँ कहे कि मुगली घुट्टी मिल गई है! यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हम हिन्दुस्तानियों में स्वजागृति की हमेशा कमी रही है, और जो बात हम डंडे के बल पर ज्यादा अच्छे ढंग से समझ पाते है, वह प्यार-प्रेम से नहीं समझ पाते ! ( We deserve to be ruled ) और काफी हद तक वो कहावत भी हम पर चरितार्थ होती है " उंगली पकड़कर पौंचा पकड़ना " ! यह मैं भी मानता हूँ कि नारको टेस्ट ने आजतक जांच एजेंसियों को बहुत ज्यादा उत्साहित परिणाम नहीं दिए, मगर एक जघन्य अपराधी के दिल से पहले तो यह खौफ खत्म कर देना कि उसे हमारे तथाकथित क़ानूनवेताओं, विद्वानों, और मानवाधिकार संस्थाओं के चलते मृत्यु-दंड जैसा कठोर दंड नहीं मिलने वाला, उसके ऊपर से यह भी खौफ ख़त्म कर देना कि जांच एजेंसिया उससे सच नहीं उगलवा सकती, पुलिस उससे सबूत ढूढने के लिए टॉर्चर भी नहीं कर सकती, भला कहाँ की समझदारी है ? देश में पहले से ही अपराध अपने चरम पर है ! इन सबके चलते भला अपराधी को अब डर किस बात का रहेगा? फांसी होनी नहीं, नौकरी नहीं है, खाने को कुछ नहीं है, निकम्मे हो तो राह चलते किसी को भी चाकू घोंप दो , आपको जेल हो जायेगी ! और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है , डाक्टर लगे है ! हा-हा , ज्यादा न कहकर बस यही कहूंगा कि भगवान् बचाए इस देश को !

Wednesday, May 5, 2010

वो शख्स !


वो एक वृथा शख्स जो 
जिन्दगी से हुआ बोर था ,

और पैदाइशी कामचोर था ,
मेहनत करना नहीं चाहता था ,
और भूखों मरना नहीं चाहता था ,
हरतरफ था उसने हाथ आजमाया,
मगर कहीं भी उसने शकून न पाया,
किन्तु भाग्य 
में बिजनेस का योग था,
देश में फला-फूला 'आईवॉश' उद्योग था, 
अब नाम भले ही उस धंधे का धोखा था,  
मगर उसके लिए तो धंधा बड़ा चोखा था, 
ज्यूँ ही घुसा उस
हाईप्रोफाइल पेशे में 
भैया,
तुरंत लग गई पार उसकी डगमगाती नैया,
बन बैठा इक मकाम का टुक्कड़खोर सदर है,
पॉश इलाके के बड़े से बंगले में उसका घर है।  

Tuesday, May 4, 2010

कसाब, हम और हमारा क़ानून- कुछ सवाल !

कल मैंने कसाब पर एक छोटा सा लेख लिखा था ! और उसमे जो लिखा था वह उस एक आम भारतीय के नजरिये से था, जो यह मानता है कि इस दरिन्दे ने अनेक निर्दोष मासूमों की जिन्दगी छीन ली ! मगर एक दूसरा पहलू भी है, जिसे मैं आज एक समीक्षक के नजरिये से प्रस्तुत करना चाहता हूँ ; जैसा कि आप सभी को मालूम है कि २६ नवम्बर, २००८ को दस पाकिस्तानियों ने इस देश की व्यावसायिक राजधानी कहे जाने वाले महानगर, मुंबई पर एक बड़े ही सुनियोजित ढंग से धावा बोल दिया था और सरकारी आंकड़ों के मुताविक १६६ बेगुनाहों का क़त्ल कर दिया था, जिनमे से अनेक पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान भी थे !

उसके बाद जैसा कि अमूमन होता है, हमने और हमारे बिना रीढ़ के नेतावों ने कुछ समय तक काफी हुंकारें भरी, भभकिया दी अपने पड़ोसी दुश्मन मुल्क को ! और उसके बाद....?? सब पहले जैसा........!! और करने बैठ गए अगले हमले का इन्तजार ! खैर, इन बातों को छोडिये, लेकिन अगर आपको याद हो तो हमारी जांच एजेंसियों, हमारे शीर्षस्थ नेतावो, और यहाँ तक कि अमेरिकी जांच और खुफिया एजेंसियों ने कई बार यह बात स्पष्ट की है कि इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तान में बैठे आतंकी आंकाओ के अलावा पाकिस्तानी सेना, और आई एस आई ( जिसका सीधा अर्थ हुआ कि पाकिस्तान मुल्क और उस मुल्क की सरकार ) का भी सीधा हाथ था, अर्थात यह हमला पाकिस्तान ने किया था! आप शायद यह भी नहीं भूले होंगे कि १९९९ में कारगिल जब शुरू हुआ था तो पाकिस्तान ने सीधे तौर पर यही कहा था कि वह हमला भी आतंकियों ने किया था, यहाँ तक कि उसने उस युद्ध में मरे अपने सैनिक भी वापस नहीं लिए और उनके अंतिम संस्कार का काम भी भारतीय सेना को ही करना पडा !

खैर, मैं इसके ज्यादा डिटेल में नहीं जाना चाहता, बल्कि इसे सिर्फ यहाँ भूमिका के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ! अब बात करते है, युद्ध बंदियों की ! इस बारे में बीसवीं सदी के प्रारम्भ से लेकर १९४९ तक जनेवा कन्वेंशन और अन्य फोरमों पर अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने समय-समय पर परिभाषित किया है! अन्तराष्ट्रीय क़ानून कहता है कि "prisoners of war, in international law, persons captured by a belligerent while fighting in the military. International law includes rules on the treatment of prisoners of war but extends protection only to combatants. This excludes civilians who engage in hostilities (by international law they are war criminals; see war crimes) and forces that do not observe conventional requirements for combatants (see war, laws of)."

युद्ध बंदी की उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि युद्ध बंदी ( prisoners of war ) वह है जो किसी देश की मिलिट्री की तरफ से लड़ रहा हो, और जिसे बंदी बना लिया गया हो! आपको यह भी मालूम होगा कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और उसके बाद वियतनाम और कोरिया युद्ध में तो इन अन्तराष्ट्रीय नियोम कानूनों की तो धज्जियां उडी ही, मगर अपने पड़ोसी मुल्कों, चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध में इन कानूनों को कम ताक पर नहीं रखा गया ! १९७१ के बांग्लादेश युद्ध के बाद अपनी दरियादिली दिखाकर हमारे नेताओ ने तो पाकिस्तान के एकलाख युध्बंदी लौटा दिए, मगर कारगिल युद्ध में हमारे युवा वीर सैनिक लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के साथ पाकिस्तान ने क्या किया, इतना तो शायद आप भी नहीं भूले होंगे ! खैर, यह भी छोडिये !

अब मुख्य बात पर आता हूँ , आपको फिर याद दिलाना चाहता हूँ कि १९९९ में कारगिल युद्ध के बाद हमारे उदार दिल (बिना रीढ़ के ) नेतावों ने जहां पाकिस्तान के युद्ध में मारे गए सैनिको और आतंकियों ( वहाँ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ) को भारतीय सीमा में ही खुद दफनाया, वहीं पाकिस्तान के अपने युद्ध बंदियों को सीधे तौर पर वापस लेने से मना करने पर उन्हें अन्तराष्ट्रीय रेड-क्रास के हवाले कर पाकिस्तान को लौटा दिया था ! तो अब चंद सवाल ;

-क्या कसाब एक युद्ध बंदी नहीं है ( उपरोक्त कारगिल के और इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कि जिसमे हमारे देश के शीर्षस्थ नेतावो ने पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया था कि मुंबई हमले में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का हाथ था) ?
-कसाब कोई भाड़े का कातिल नहीं था, जिसने पैसे के लिए अथवा किसी व्यक्तिगत बदले के लिए यहाँ लोगो का क़त्ल किया ! उसे दुश्मन मुल्क ने तैयार करके इस देश पर हमले के लिए भेजा था, और जो हमले के वक्त बंदी बना लिया गया, तो क्या किसी सिविल कोर्ट को इस पर अपना फैसला देने का अधिकार है ? यदि है तो फिर कारगिल के बंदियों को क्यों लौटाया गया, उनपर क्यों नहीं मुकदमा चला ? यह ज्यादती सिर्फ कसाब के साथ ही क्यों ?
-कसाब, भी तो पाकिस्तानी सेना की तरफ से कारगिल की तरह इस देश पर अपने देश से चलकर युद्ध करने आया था! अपने देश के निर्देशों पर उसने हमला किया, वह लड़ा, पकड़ा गया, अगर हम उस युद्ध का प्रतिवाद ठीक से नहीं कर पाए ( पाकिस्तान को उसकी भाषा में जबाब देकर ) तो इसमें कसाब का क्या दोष ?
-जनरल मुशरफ तो कारगिल का अकेला आर्किटेक्ट था, कसाब ने तो सिर्फ १६६ लोगो को मारा, मुशरफ ने तो हजारों लोगो का क़त्ल किया/ करवाया ! फिर उसकी क्यों हमने दिल्ली और आगरा में लाल कारपेट बिछाकर आवाभगत की ?

अरे और तो और,इतिहास गवाह है कि जिस इंसान ने हमें सच में नरक की सीमा तक सताया, हमने उसके सम्मान में अपने देश की राजधानी की सड़क का नाम "औरंगजेब रोड " रखा है! क्या कसाब भी हमसे आगे चलकर कुछ ऐसी ही उम्मीद कर सकता है ?

Monday, May 3, 2010

अगर आज कसाब को मृत्यु दंड मिल भी जाता है तो भी क्या...?

२६/११ के मुंबई हमलों की जांच कर रही ट्रायल कोर्ट के स्पेशल न्यायाधीश श्री एम् एल तहल्यानी, उस दरिन्दे कसाब को डेड साल चले न्यायिक उठापटक के बाद आज अपना फैसला सुनायेंगे ! मीडिया में इस बात का बड़ी बेसब्री से इन्तजार किया जा रहा है कि कसाब को क्या सजा मिलती है ! मगर मेरा मानना है कि यह बात ज्यादा महत्व नहीं रखती कि उसे क्या सजा मिलती है ? हमारी न्यायिक जटिलताओं की खिल्ली दुनिया उड़ा चुकी ! कसाब को यह पट्टी किसने पढ़ाई कि तुम नेपाल से भारतीय पुलिस द्वारा पकड़कर लाये जाने की कहानी गड़ो ? इस देश में मौजूद गद्दारों ने ! एक चश्मदीद गवाह माँ, जिसके बेटे से इस दरिन्दे ने पानी पीने को माँगा और फिर उसे गोली मार दी, उस माँ को यह दरिंदा झुठला रहा है, उस मृतक के बच्चों, जिन्होंने बाप को अपने समक्ष मरते देखा, उन्हें यह झुठला रहा है, सी सी टीवी कैमरे को यह झुठला रहा है!

मान लीजिये कि उसे मृत्यु दंड ही मिलता है , तो भी क्या कल उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा ? अभी इसके ऊपर इतनी अदालते है कि वह वक्त आने से पहले ही दरिंदा कसाब बुड्ढा होकर खुद ही मर जाएगा ! हाँ, अब तक ५० करोड़ से अधिक उस दरिन्दे के पालन-पोषण पर खर्च कर चुका यह देश भले ही जवानो को अच्छे किस्म की बुलेट प्रूफ जैकेट न मुहैया करा सके किन्तु कम से कम इसकी दुगनी रकम उसके आगे के लालन-पलान के लिए अपने बजट में समायोजित तो कर ही सकता है !

बस, यही इस केस में एक शकुन वाली बात थी कि यह हरामखोर दरिंदा जीवित पकड़ा गया, नहीं तो सच बोलने वाले बहुत से अल्लाह के नेक बन्दे, वहाँ भी एक नई कहानी गड देते !
ऐ मेरे नेक दोस्त ,
अपनी भी गिरेवाँ में झाँक के देख दोस्त !
दूसरे की जलती आग पर तो कम से कम,
इस कदर न अपनी रोटियाँ सेक दोस्त !!
जख्मों का दर्द जब हद से गुजर जाएगा,
गुलिस्तां ये सारा बिखर जाएगा !
फिर नव-संघर्ष का होगा अभिषेक दोस्त !
ऐ मेरे नेक दोस्त ,
अपनी भी गिरेवाँ में झाँक के देख दोस्त !

Sunday, May 2, 2010

अरमां अपने पास जगा।

जीना है तो आस जगा, 
दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है, 

मन में यह विश्वास जगा।

हलक उतरता जाम न हो, 

मय कैसे बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, 

पीना है तो प्यास जगा।

हमदर्द कोई दिल तोड़ न दे , 

कहीं राह अकेला छोड़ न  दे ,
हो हमराही जन्म-जन्म का , 
ये तीरे-जिगर अभिलाष जगा।  

छूटे का अफ़सोस न कर, 
किस्मत का दोष न कर,
मायूसी में  आशाओं के 
अरमां अपने पास जगा।  

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...