अभी कल परसों, यह खबर तो आप लोगो ने भी पढी-सुनी होगी कि यूरोपीय संघ के वित्त मंत्रियों के विशेष सम्मेलन में ग्रीस को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कम से कम 5 खरब यूरो (करीब ३१० खरब रूपये ) की राहत राशि दिए जाने पर सहमति कायम हुई है। ताकि ग्रीस का ऋण संकट न बढ़े और यूरो स्थिर रहे। साथ ही कल इस खबर से पूँजी बाजारों में भी नकली चमक आ गई थी कि अन्तराष्ट्रीय मुद्रा-कोष भी ग्रीस को २५० खरब यूरो (यानी करीब १५५ खरब रुपये ) खैरात (बेल-आउट पैकेज) के तौर पर देगा। जैसा कि आपलोग जानते ही होंगे कि अपनी अतिव्ययी जीवन शैली की वजह से ग्रीस काफी समय से भारी वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। और अभी कुछ समय पहले तो सरकार द्वारा इस वित्तीय संकट को कम करने के लिए मितव्ययता (ऑस्टेरिटी) लाने और टैक्स लगाने तथा नागरिकों को दी जाने वाली अनेको रियायतों और छूटों में कमी करने की घोषणा की तो वहाँ हिंसक दंगे भड़क उठे थे, और वहाँ के समाजवादियों ने एक बैंक पर धावा बोल दिया था , जिसमे अनेक लोगो को जान से भी हाथ धोना पडा था।
सवाल मेरा यह है कि हमारी ये अन्तराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाए किसी गरीब देश को तो ऋण देते वक्त उसे बीसियों तरह की हिदायते भी देती है, ये तथाकथित सभ्य पश्चिमी राष्ट्र अविकसित देशो को भेदभाव और मानवाधिकारों से सम्बंधित बड़ी-बड़ी नसीहते देते फिरते है, और बड़ी मुश्किल से इन दुनिया के गरीब देशों को ऋण मिल पाता है जबकि दूसरी तरफ आलसी ग्रीसवासियों के अपव्ययी जीवन शैली के बचाऊ में इस कदर पैसा बरसा रहे है ! ये आलसी(समाजवादी ) ग्रीसवासी ५३ वे साल में तो रिटायर हो जाते है, इन्हें हर त्यौहार और छुट्टी का बोनस मिलता है , त्यौहार पर ये ३ घंटे का ढेर सारा खाना खाते है, (ये समझिये कि बस खाते ही रहते है ) और उसके बाद दोपहर की नींद भी इनके सिस्टम का हिस्सा है ! (3hours fiesta(eating binge) and after that 3 hours siesta(sleeping binge) और इनकी इस जीवन शैली को १५० खरब रूपये की खैरात देकर बचाने की कवायद आई एम् ऍफ़ कर रहा है।
दूसरी तरफ इनका कोई पूछने वाला नहीं ;
सवाल मेरा यह है कि हमारी ये अन्तराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाए किसी गरीब देश को तो ऋण देते वक्त उसे बीसियों तरह की हिदायते भी देती है, ये तथाकथित सभ्य पश्चिमी राष्ट्र अविकसित देशो को भेदभाव और मानवाधिकारों से सम्बंधित बड़ी-बड़ी नसीहते देते फिरते है, और बड़ी मुश्किल से इन दुनिया के गरीब देशों को ऋण मिल पाता है जबकि दूसरी तरफ आलसी ग्रीसवासियों के अपव्ययी जीवन शैली के बचाऊ में इस कदर पैसा बरसा रहे है ! ये आलसी(समाजवादी ) ग्रीसवासी ५३ वे साल में तो रिटायर हो जाते है, इन्हें हर त्यौहार और छुट्टी का बोनस मिलता है , त्यौहार पर ये ३ घंटे का ढेर सारा खाना खाते है, (ये समझिये कि बस खाते ही रहते है ) और उसके बाद दोपहर की नींद भी इनके सिस्टम का हिस्सा है ! (3hours fiesta(eating binge) and after that 3 hours siesta(sleeping binge) और इनकी इस जीवन शैली को १५० खरब रूपये की खैरात देकर बचाने की कवायद आई एम् ऍफ़ कर रहा है।
दूसरी तरफ इनका कोई पूछने वाला नहीं ;
गोदियाल साहब ये मत पूछो इन साले(मेरी भाषा के लिए मुआफी) राजनीतिको से की सिर्फ घटिया राजनीती ही जानते हो की कुछ और भी जानते हो
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक अच्छा लेख
आभार
क्या करें सर.. किस-किस को दोष द्ज़िये किस किस को रोइए.. :(
ReplyDeleteसटीक लेख... इन राजनीतिबाजों को धोने का मन तो मेरा भी करता है...
ReplyDeleteदीपक जी , हम लोग अपने मन का गुबार इसतरह से ही निकाल लेते है, और कर तो कुछ भी नहीं सकते , क्योंकि जिसे करना था वह खुद ही गुलाम बना बैठा है !
ReplyDeleteकौन पूछेगा? जब देने वालों ने पैमाने बना रखे हैं कि अमीर यदि तकलीफ़ में आयेगा तो उसे अमीर समझते हुये उस हिसाब से सहायता दी जायेगी और गरीब को और गरीब होना ही है तो उसे क्यों मदद दी जाये? जरा समझा किजिये.:)
ReplyDeleteरामराम.
इस नालायक (यूनान) को पिछले २००० साल से 'पैम्पर' किया जा रहा है।
ReplyDeleteगोदियाल सर जी आपने बहुत सही सवाल दागें हैं , इतना कुछ होने के बावजुद हमारी सरकार इनके ही तलवे के निचे रहती है ।
ReplyDeleteअरे वो तो बताता ही रहता है कि उसकी नजरो में इस देश की क्या औकात है,कुछ लोग अपनी औकात को ही देश की औकात समझ उसके (.......) चाटते रहते है!पता नहीं कब वो समझेंगे इस फर्क को.......?
ReplyDeleteकुंवर जी,
कुछ समय पहले गन्दी राजनीति थी ...अब राजनीति शब्द नहीं है ..केवल 'गन्दी' ही बचा है ....???
ReplyDeleteबेचारे गरीब के भाग्य में तो यही कुछ बदा है....फिर चाहे वो गरीब इन्सान हो या कोई देश..
ReplyDeleteजब यूरोपीय संघ का गठन हुआ था, तब भी कुछ देशों ने इस "आलसी समाजवादी सूअर" को EU में क्यों लिया जा रहा है, ऐसा प्रश्न उठाया था, लेकिन तब उसे दरकिनार कर दिया गया… अब भुगतो…।
ReplyDelete"आलसी देशों" और "जेहादी गुफ़ाओं" को ॠण मिलना ही क्यों चाहिये?