Monday, May 3, 2010

अगर आज कसाब को मृत्यु दंड मिल भी जाता है तो भी क्या...?

२६/११ के मुंबई हमलों की जांच कर रही ट्रायल कोर्ट के स्पेशल न्यायाधीश श्री एम् एल तहल्यानी, उस दरिन्दे कसाब को डेड साल चले न्यायिक उठापटक के बाद आज अपना फैसला सुनायेंगे ! मीडिया में इस बात का बड़ी बेसब्री से इन्तजार किया जा रहा है कि कसाब को क्या सजा मिलती है ! मगर मेरा मानना है कि यह बात ज्यादा महत्व नहीं रखती कि उसे क्या सजा मिलती है ? हमारी न्यायिक जटिलताओं की खिल्ली दुनिया उड़ा चुकी ! कसाब को यह पट्टी किसने पढ़ाई कि तुम नेपाल से भारतीय पुलिस द्वारा पकड़कर लाये जाने की कहानी गड़ो ? इस देश में मौजूद गद्दारों ने ! एक चश्मदीद गवाह माँ, जिसके बेटे से इस दरिन्दे ने पानी पीने को माँगा और फिर उसे गोली मार दी, उस माँ को यह दरिंदा झुठला रहा है, उस मृतक के बच्चों, जिन्होंने बाप को अपने समक्ष मरते देखा, उन्हें यह झुठला रहा है, सी सी टीवी कैमरे को यह झुठला रहा है!

मान लीजिये कि उसे मृत्यु दंड ही मिलता है , तो भी क्या कल उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा ? अभी इसके ऊपर इतनी अदालते है कि वह वक्त आने से पहले ही दरिंदा कसाब बुड्ढा होकर खुद ही मर जाएगा ! हाँ, अब तक ५० करोड़ से अधिक उस दरिन्दे के पालन-पोषण पर खर्च कर चुका यह देश भले ही जवानो को अच्छे किस्म की बुलेट प्रूफ जैकेट न मुहैया करा सके किन्तु कम से कम इसकी दुगनी रकम उसके आगे के लालन-पलान के लिए अपने बजट में समायोजित तो कर ही सकता है !

बस, यही इस केस में एक शकुन वाली बात थी कि यह हरामखोर दरिंदा जीवित पकड़ा गया, नहीं तो सच बोलने वाले बहुत से अल्लाह के नेक बन्दे, वहाँ भी एक नई कहानी गड देते !
ऐ मेरे नेक दोस्त ,
अपनी भी गिरेवाँ में झाँक के देख दोस्त !
दूसरे की जलती आग पर तो कम से कम,
इस कदर न अपनी रोटियाँ सेक दोस्त !!
जख्मों का दर्द जब हद से गुजर जाएगा,
गुलिस्तां ये सारा बिखर जाएगा !
फिर नव-संघर्ष का होगा अभिषेक दोस्त !
ऐ मेरे नेक दोस्त ,
अपनी भी गिरेवाँ में झाँक के देख दोस्त !

16 comments:

  1. "बस, यही इस केस में एक शकुन वाली बात थी कि यह हरामखोर दरिंदा जीवित पकड़ा गया, नहीं तो सच बोलने वाले बहुत से अल्लाह के बन्दे, वहाँ भी एक नई कहानी गड देते"

    आपका रोष हर एक भारतीय का रोष लग रहा है!मगर क्या करे?कहानिया तो अब भी घडी गयी!उन अल्लाह के बन्दों ने तो अब भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी!

    अब देखना यही है कि कितने दिन का दाना-पाणी और उसे हमारे देश का चुगना है!

    कुंवर जी,

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  2. लगता नही कि कुछ होगा.....

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  3. हमले, हिरासत, जांच, ट्रायल कोर्ट, गवाह-सबूत, फैसला, सजा ... ये सब इतना जटिल तो है ही. ऊपर से देश पर मंडराता खतरा
    और क्या बचा.

    कब कैसे संघर्ष होगा और विजय मिलेगी पता नहीं,

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  4. ५० करोड़ से अधिक उस दरिन्दे के पालन-पोषण पर खर्च कर चुका यह देश,

    पचास करोड़ से तो पता नहीं कितनी बुलेट प्रुट जैकेट और आतंकवादियों से निपटने के हथियार सुरक्षा बलो को मिल जाते।

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  5. सुन्दर आलेख..

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  6. फांसी की सजा खत्म करने की बात चल रही है, हो सकता है कि हो भी जाये...

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  7. They won't punish Kasaab.

    They will leave him alive to play havoc in coming years.

    Mera Bharat Mahan !

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  8. you are right godiyaal sahab
    kiya bhi kya ja sakta h ab
    warna aiso ke to case se pahle hi on the spot faisle bol dene chahiye

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  9. इस कमीने को कुछ नही होगा,इसे तो सिर्फ़ जनता के हवाले कर देना चाहिये.... लेकिन वोट बेंक यह सब नही करने देगा जी

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  10. यदि उसे मृत्युदंड ही देना था तो उस पर पचास करोड़ रुपये खर्च करने की क्या आवश्यकता थी? कितने ही गरीबों का भला हो सकता था उन रुपयों से।

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  11. सत्यानाश हो "अमन की आशा" के दुश्मनों का जो फाँसी फाँसी चिल्ला रहे है. फासीवादी कहीं के.

    कसाब तो अमन की आशा की ज्योति धामे पाकिस्तान जाएगा. अमन का दूत बनेगा. शांति शांति शांति. शांति के लिए मरना पड़े तो मरो...बस फासीवादी मत बनो.

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  12. लकीर पीटने के आदी है हम
    कभी वादी तो कभी प्रतिवादी हैं हम

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  13. पचास करोड़ से हो तो बहुत कुछ सकता था, पर वोट बैंक बचाने और बनाने के लिये यह राशि कुछ भी नहीं है।

    आखिर हमीं पर तो सारा भार है मानवाधिकार, न्याय, सहनशीलता, सहिष्णुता दिखाने का।
    कल को हो सकता है कि कोई बहादुरी का अवार्ड भी दे दिया जाये, सरकार की उदारता दिखाने के लिये।

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  14. ये लेख पढ़ कर मुझे ज़मीन पिक्चर याद आ रही है.....कितनी मुश्किल से हमारे सैनिक पकड़ते हैं दुश्मनों को और उन्हें अदालत में छोडना पड़ जाता है....उस पिक्चर में अंत बढ़िया दिखाया था....यही करना चाहिए....ना गवाही.. ना मुकदमा...सीधे मार देना चाहिए...

    और केवल दुश्मनों को ही नहीं गद्दारों को भी....जो देशद्रोह करते हैं...जैसे माधुरी गुप्ता .

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।