Wednesday, May 26, 2010

"26/11 के अपराधी बनाम मलियाना हाशिमपुरा के दोषी" - क्या यही उच्च सोच है ?


एक तरफ २६/११ का मुंबई हमला, जिसे एक विदेशी मुल्क ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से इस देश पर किया था! और एक तरफ मई १९८७ का मेरठ साम्प्रदायिक दंगा, जिसकी शुरुआत कैसे हुई थी, उसका वर्णन उन दंगो के दौरान दी गई रिपोर्टो में दी गई थी, चंद शुरुआती लाइने आप खुद पढ़ लीजिये ;
"The Beginning of the Tragedy
Large scale rioting began in the early hours of May 19, 1987 and the maximum damage was done just in course of a few hours. On that fateful morning, thousands of people, already incited by inflammatory speeches and slogans broadcast over public address system in mosques, barricaded the national highway, burnt 14 factories, hundreds of shops and houses, vehicles, and petrol pump, and cast scores of people into flames. The sporadic Hindu reaction was revengeful. Meerut continued in flames between May 19 and May 22, with murder, loot, explosions, and wild rumours further fuelling violence. "

उपरोक्त चंद लाइनों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उस साम्प्रदायिक दंगे की जड़ कहाँ थी? मैं व्यक्तिगत तौर पर हर उस घिनौने कृत्य की निंदा करता हूँ जो बेगुनाहों की जान ले , वह चाहे हिन्दू हो अथवा मुस्लिम ! उनमे एक वह डाक्टर भी था जो एक मुस्लिम मरीज के बुलाने पर अपनी कार से उसके घर उसे देखने जा रहा था, और उसकी विरादरी के कुछ दंगाइयों ने उस डॉक्टर को उसकी कार समेत राख में मिला दिया था! इसी तरह इन दंगों में मरने वाले भी लगभग सभी लोग निर्दोष ही रहे होंगे, चाहे वो दंगाइयों के हाथों मरे हो अथवा पुलिस के हाथों ! क्योंकि आग लगाने वाले अपना घृणित कृत्य कर फिर एकतरफ बैठकर संत बन जाते है, और फिर शुरू होता है इन्ही लोगो का झूठ पर झूठ बोलना , तरह-तरह की कहानियां गड़ना ! ये लोग पुलिस ज्यादतियों में मरे अथवा गायब हुए ४० लोगो का जिक्र तो हमदर्दी के साथ करते है, लेकिन उनका जिक्र करना भूल जाते है जो १०० से ज्यादा लोग इन दंगों की भेंट चढ़ गए! मेरठ दंगों की पृष्ठ-भूमि में उस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दंगों की शुरुआत से कुछ दिन पहले यह खबर गरम थी कि अनेक पाकिस्तानी नागरिक मेरठ और आस-पास के क्षेत्रों में छुपे बैठे है, और प्रशासन की कार्यवाही में ऐसे सात लोग पकडे भी गए थे !

अब आता हूँ मुख्य बात पर, आज मुस्लिम जगत के एक ब्लोगर सलीम अख्तर सिद्दकी ने विस्फोट डाट कौम पर एक लेख लिखा है, जिसमे उसने उन दंगों की तुलना २६/११ से की है ! जिसे
आप यहाँ पढ़ http://www.visfot.com/voice_for_justice/3515.htmlसकते हैं! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यह महाशय वही शख्स है, जिन्होंने कुछ महीनो पहले अपने ब्लॉग पर एक लेख लिखकर मुझे इसलिए तुच्छ और गलीच मानसिकता का बताया था, क्योंकि मैं इनकी ऐसी ही साम्प्रदायिक हरकतों का विरोध कर रहा था कि ये अपनी सहूलियत के हिसाब से गुजरात और अन्य दंगों का वह विद्वेष हिन्दुओ के प्रति मुस्लिम समुदाय में किसी तरह जीवित रखना चाहते है! आप उपरोक्त लिंकों पर इनके दोनों लेख पढ़िए और खुद निर्णय लीजिये कि इनका मेरठ दंगो के न्याय की मांग करना बिलकुल जायज है, मगर क्या २६/११ और कसाब से ऐसी तुलना उचित है ?

20 comments:

  1. गोदियाल जी जितनी भी ऐसी वारदात होती है उसमे हमारे शोध के अनुसार,हमारे व्यवस्था में बैठे गद्दारों का हाथ जरूर होता है और सारे ओप्रेसन का संचालन उन्ही के द्वारा होता है / ऐसे गद्दारों को जब तक इमानदार खूपिया अधिकारीयों के रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं दी जाएगी स्थिति नहीं सुधरेगी /

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  2. "अपने में खोट, दूसरों पे चोट, काम इनका यही रह गया हैं,

    जिसमे हो दोष , कसोटी में खोता वही होश, अंजाम इनका यही रह गया हैं"


    खुद को उनसे तुलना करके क्यों नीचा देखते हो गोदियाल साहब टेंशन मत लो इनका काम तो यही हैं फिर इनको क्या कहना

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  3. "उनमे एक वह डाक्टर भी था जो एक मुस्लिम मरीज के बुलाने पर अपनी कार से उसके घर उसे देखने जा रहा था, और उसकी विरादरी ने उस डॉक्टर को उसकी कार समेत राख में मिला दिया था!"

    अब और क्या कहे....

    जो खुद एक आतंकवादी हो वो तो ऐसी तुलना करेगा ही.....अरे सूअर का पेट एक चीज खाकर ही भरता है......और वो हर जगह वही चीज तलाशता फिरता है....

    कुंवर जी,

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  4. JI WO PEHLE WALA LINK NAHI KHUL RAHA HAI....

    KUNWAR JI,

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  5. कुंवर जी आप उनके ब्लॉग के सीधे इस लिंक पर भी पढ़ सकते है;
    http://haqbaat.blogspot.com/2010/05/2611.html

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  6. Godiyaal saahab bilkul sahi muddaa uthaayaa hai aapne. actuaaly system ke gaddar hi isake doshi hai.sarakar sirf highlighted matter ko chunakar our faisalaa kar logo ko bhram me daalati hai.nyaay-vyavastha puri tarah charamara gayee hai.

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  7. Godiyaal saahab bilkul sahi muddaa uthaayaa hai aapne.....

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  8. गोदियाल जी आज तक जिने भी दंगे शुरू हुए हैं उन में से अदिकतर की शुरूआत मुलमानों ने ही की है वो भी दंगे से पहले मस्जिद में इकट्ठे होकर योजना बनाकर । आप गुजरात दंगो को ही ले लिजीए शुरूआत की मुसलामनों ने हिन्दूओं को जिन्दा जलाकर सारा दोष चाल जिया गया हिन्दूओं पर इनके पालतू कुतों सेकुलर हिन्दूओं द्वारा।
    गोदीयाल जी बस यही इसलाम है कतलोगारद दंगा फसाद नमक हरामी
    इनका कुछ सोचना पड़ेगा।

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  9. सलीम अख्तर के विचार एकतरफा है. असल में ऐसे ही लोगो का समर्थन पाकर भारत में आतंकवाद पनप रहा है. ये लोग ही आम भारतीय मुस्लिम को बरगलाते हैं. वैसे देखा जाय तो इस्लाम की बुनियाद ही आक्रामकता पर रखी गयी है अतः एक आम मुस्लिम को भड़काकर आतंकवादी बनाना बहुत आसान है. वैसे ये जमाना भी प्रोपेगंडा का है. अभी कल ही की बात हैं मेरे दोस्त के घर में एक चोर पकड़ा गया. लोगों ने उसकी पिटाई करने के बाद उसे पुलिस में दे दिया. पता है इसके बाद क्या हुआ. चोर का तो पता नहीं पर जिन लोगों ने उसकी पिटाई की थी वो सारी रात थाने में काट के आये.

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  10. Samsamyaik chintanpurn lekhan ....
    yahi durbhagya hai bahut se jagah parilakshit hota hai....
    Saarthak lekh ke liye dhanyavaad.

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  11. दर-असल ये ही असली साम्प्रदायिक हैं जो काले को सफेद और सफेद को काला कर देते हैं. गोयबल्स के वंशज हैं और हिन्दुओं की यह कमजोरी है कि वह इन सबों को और इनकी विचारधाराओं को सहन करते हैं... सहिष्णु हैं..

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  12. आप सभी पाठकों के विचारों का मैं तहेदिल से सम्मान करता हूँ ! एक बात जो निष्कर्ष के तौर पर मुझे दीख रही है , वह यह कि इनके ये तथाकथित घटिया और गलीच मानसिकता के ब्लोगर्स भले ही जो कहे, अपने गिरे सोच के समकक्ष दूसरों को रखे , जो चाहे कहे मगर सच यही है कि चाहे वह गोधरा के पश्चात गुजरात हो या फिर मेरठ जहां भी हिन्दुओ ने डटकर मुकाबला किया, इनकी हिम्मत नहीं हुई कि फिर वह दोहरा सके , आप सन १८८७ से पहले का मेरठ का इतिहास देख लें हर दुसरे साल पर वहाँ हिन्दू-मुस्लिम दंगा होता था जोकि मुख्यत: मुस्लिम प्रायोजित होता था , लेकिन १९८७ के बाद नहीं हुआ इसके लिए पुलिस और पी ए सी भी बधाई की पात्र है !

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  13. गोदियाल जी इनका इलाज यही है शांति चाहिए तो इन्हें सबक सिखाना जरूरी है

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  14. दोनों ही बिरादरियों में गिने चुने ही लोग हैं, जो भीड़ को भड़काकर अपनी खुद की रोटियां सेंक लेते हैं, कसूरवार भीड़ भी है, जो आंख बन्द करके इन लोगों की बात मान लेती है सिर्फ़ इसलिये कि वो एक ही धर्म या बिरादरी से संबंध रखते हैं।
    जो थोड़े से लोग राष्ट्रवादी सोच रखते हैं, वो दोनों तरफ़ से प्रताड़ित होते हैं।
    तलवार, हथियार और गुंडागर्दी के सामने शराफ़त और गांधीगिरी काम नहीं आती। मिलावटी और बनावटी इतिहास लिखकर और पढ़ाकर पढ़ने वालों का ब्रेनवाश कर दिया गया है।

    बढिया लिखा है गोदियाल साहब आपने।

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  15. सार्थक पोस्ट है गोदियाल जी।

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  16. सार्थक पोस्ट है गोदियाल जी।

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  17. कांटे को निकालना है तो काँटा ही चाहिए, फूल से काँटा नहीं निकलता ...

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  18. विचारणीय और सार्थक पोस्ट...और मेरठ की बात तो आपने बिलकुल सही कही है....१९७४ के बाद का तो पता नहीं पर इससे पहले हर साल दंगे होते थे...मैंने मेरठ से ही १९७४ में स्नातकोत्तर किया है ...इस लिए मालूम है...

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  19. पानी सर से निकल रहा है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।