Monday, May 31, 2010

सबके सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

आज तुम्हारे वतन में, अच्छे लोगो के टोटे हैं,
पैंदे सबके सब घिस गये, बिन पैंदे के लोटे हैं, 
कोई लल्लू बनके लुडके,कोई चिकना मुलायम,
साम्यनिर्धन हिताषियों के तो, कर्म ही खोटे हैं।

शोषित की तो यहां पर, 'माया' ही निराली है,
धन लोभियों के दिल सफ़ेद, काया काली है,
अनाज उगाने वाले, हैं कुपोषण के शिकार,
चारा, तोप खाने वाले, गैडे की भांति मोटे हैं।

जनप्रतिनिधि,सिपैसलार व्यस्त चीर हरण में,
चाटुकार लमलेट हैं, 'पास्तामाता' के चरण में,
उल्लू एकदम ही सीधे हुए,तलवे चाट चाटकर,
घर व उदर तो इनके बड़े हो गए, दिल छोटे हैं।

फतवे बेचते, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
एक और बाबरी ढूढ़ रहे, रामराग अलापने वाले,
बुद्दिजीबी युवा के लिए, जीवन प्रतियोगिता है,
हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे है।

गांधी तुम्हारे वतन में, अच्छे लोगो के टोटे हैं,
पैंदे सबके सब घिस गये, बिन पैंदे के लोटे हैं।

26 comments:

  1. बहुत सटीक व्यंग...आज के राजनीतिज्ञों पर....:):)

    आपकी ( यूँ भी बावफा होते हैं लोग ) ग़ज़ल को .. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. waah bahut sundar vyang sirf raajneetigyo par hi nahi...har ek insaan par fit hoti hai ye kavita...jahan hame fayada milega ham wahin ludhak jaayenge...

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  3. किन्तु दिल छोटे हो गए है,


    wah...................



    http://drsatyajitsahu.blogspot.com

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  4. सही चोट की है... आखिरी लाइनों तक

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  5. गोदियाल साब,
    बहुत बढिया विचार
    अभी आया है एक समाचार
    पेंदे लगाने का कारखाना करना है तैयार

    जय जोहार जय जोहार जय जोहार

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  6. "फतवे बेचने लगे, धर्म की भट्टी पे आग तापने वाले,
    कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
    हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"

    खतरनाक वाली बात है जी आज तो....

    कुंवर जी,

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  7. बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
    जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
    कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
    खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
    ...bahut hi satik byangya ,raajniti par karara chot.

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  8. किन्तु दिल छोटे हो गए है,

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  9. शर्म जिन होने बेच खाई वो क्या जाने की इज्जत किस चिडिया का नाम है, इन मै से कई नेता तो किसी चपडासी की ओलाद है, लेकिन कभी सरकार ने नही पुछा कि भाई इन १०,२० सालो मै यह धन दोलत कहां से आई??

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  10. बढ़िया व्यंग! ,,,हम तो ये हालात देख कुछ और छोटे हो गए!

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  11. bahut hi sundar shabdon mein halat ka vivechan kar diya.

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  12. तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
    धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
    साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
    जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!

    बहुत बढ़िया गोदियाल साहब .

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  13. बापू,अब तेरे देश में,अच्छे लोगो के टोटे हो गए है
    जिधर देखो,सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है!

    लाजवाब व्यंग्य रचना गोदियाल साहब! एकदम सटीक!

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  14. जात ना पूछे .................पात ना पूछे ................. ना पूछेगा तेरा धर्मा...........रुब तेरा पूछेगा ओह बन्दे .................क्या था तेरा कर्मा !!

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  15. व्यंग्यात्मक रूप से बहुत शानदार पोस्ट....

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  16. बापू, अब तेरे देश में,
    अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
    जिधर देखो, सब के सब
    बिन पैंदे के लोटे हो गए है !
    कोई लल्लू बन के लुडक रहा,
    कोई चिकना मुलायम,
    खुद को अमर बताने वाले,
    खा-खा के मोटे हो गए है !!

    हकीकत से रूबरू कराती रचना!

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  17. बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
    जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

    भई गोदियाल जी क्या बात कही है ।
    बहुत बढ़िया ।

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  18. बापू, अब तेरे देश में, अच्छे लोगो के टोटे हो गए है ,
    जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !

    क्या ये देश अब बापू वाला देश रह भी गया है .... मुझे तो शक है ...

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  19. कोई और बाबरी ढूढ़ रहे, राम का राग अलापने वाले !
    हकदार का हक़ मारने को, रिजर्वेशन कोटे हो गए है,"


    बहुत दिनों तक याद रहेगी यह लाइन !

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  20. बहुत जोरदार व्यंग्य है।बधाई।

    तेरे इस देश के गरीब की तो माया भी निराली हो गई,
    धन चिंता में दिल सफ़ेद और काया भी काली हो गई !
    साम्यनिर्धन हिताषियों के तो कर्म ही खोटे हो गए है,
    जिधर देखो, सब के सब बिन पैंदे के लोटे हो गए है !!

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  21. अहिंसा का झुनझुना थमाकर वो तो सबके बापू हो गये,
    जान लुटा दी जिन वीरों ने, उनके नाम भी छोटे हो गये।
    क्या गोदियाल जी, शुरू में ही मूड............

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  22. वाह! कमाल कर दिया आपने, सटीक चित्रण!

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  23. इसे कहते हैं हास्य-व्यंग्य...

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  24. कोई लल्लू बन के लुडक रहा, कोई चिकना मुलायम,
    खुद को अमर बताने वाले, खा-खा के मोटे हो गए है !!
    तीखा व्यंग्य और सटीक भी

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  25. गोदियाल साहब अच्छा तीखा व्यंग्य है। अच्छा लगा पढ़कर।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।