लव-जेहाद की मानसिकता के लोगो के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय अभी भले ही उतना अहम् न लगता हो, क्योंकि उनका मकसद तो सिर्फ दूसरे धर्म की लड़कियों को बर्बाद करना मात्र है , मगर इस निर्णय के बाद उन गैर-इस्लामिक लड़कियों और महिलाओ को सचेत हो जाना चाहिए, जो भावनाओं में बहकर अपने लिए मुसीबते खडी करने से नहीं हिचकिचाती।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी को अमान्य और इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ माना जाएगा अगर शादी से पहले महिला ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है। न्यायाधीश विनोद प्रसाद तथा राजेश चंद्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी अमान्य मानी जाएगी और पवित्र कुरान के खिलाफ होगी यदि वह उसका निकाह से पूर्व धर्मांतरण कराने में विफल रहता है। खंडपीठ ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति का पुन: विवाह अवैध माना जायेगा, यदि वह अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना छोड़ देता है और उससे पैदा हुए बच्चों का न्यायोचित तरीके से भरण़ पोषण करने में विफल रहता है।
अदालत ने सोमवार को इलाहाबाद निवासी दिलबर हबीब सिद्दीकी की रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। उसने पिछले वर्ष 29 दिसंबर को खुशबू नाम की हिंदू लड़की से शादी की थी। खुशबू की माँ सुनीता जायसवाल ने आरोप लगाया था कि उसकी नाबालिग बेटी का अपहरण किया गया और सिद्दीकी से शादी करने को मजबूर किया गया।अदालत ने कहा कि इस्लाम के तहत एक से अधिक पत्नी रखना जायज है लेकिन अदालत ने इस तथ्य का कड़ाई से संज्ञान लिया कि खुशबू से निकाह करने से पूर्व सिददीकी ने उसे यह नहीं बताया था कि वह पहले से ही शादीशुदा है और तीन बच्चों का पिता है।
अब गौर से देखा जाए तो इस पूरे प्रकरण से बहुत सी मजेदार बातें सामने आती है , मसलन ;
-वासना के भूखे ये दरिन्दे किस हद तक गिर सकते है कि पहली पत्नी के होते हुए और तीन-तीन बच्चों का बाप होते हुए भी वह एक नाबालिग लड़की का अपहरण करके अथवा उसे बहला-फुसलाकर उससे निकाह करता है।
-और फिर बेशर्मी की हद देखिये कि एक गलत काम को अंजाम देने के बावजूद क़ानून का भी सहारा लेता है।
- इस धर्मनिरपेक्ष देश का एक न्यायालय अपने निर्णय में इस्लाम धर्म और कुरआन का हवाला देकर अपना निर्णय सुना रहा है, क्योंकि आवेदनकर्ता धर्म की आड़ लेकर एक से अधिक बीबियाँ रखना चाहता है।
-अगर इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में कोई अपील नहीं की जाती अथवा निर्णय के विरुद्ध सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय निर्णय को अपरिवर्तित रखता है तो भविष्य में ये लोग अगर किसी गैर-मुस्लिम लडकी को धोखे में रखकर, बिना उसका धर्म परिवर्तन किये शादी करते है तो उसे गैर-कानूनी ठहराया जा सकता है।
-अब यह भी देखने वाली बात होगी कि यह निर्णय सभी गैर-इस्लामिक महिलाओ से की गई शादियों पर भी लागू होता है अथवा नहीं।
-अब हर उस हिन्दू या अन्य धर्म की महिला को मुस्लिम पुरुष से शादी से पहले अपना नाम भी बदलना होगा,अर्थात ये महिलाए बाद में अपना हिन्दू नाम इस्तेमाल कर समाज को भ्रमित नहीं कर पाएंगी।
-वासना के भूखे ये दरिन्दे किस हद तक गिर सकते है कि पहली पत्नी के होते हुए और तीन-तीन बच्चों का बाप होते हुए भी वह एक नाबालिग लड़की का अपहरण करके अथवा उसे बहला-फुसलाकर उससे निकाह करता है।
-और फिर बेशर्मी की हद देखिये कि एक गलत काम को अंजाम देने के बावजूद क़ानून का भी सहारा लेता है।
- इस धर्मनिरपेक्ष देश का एक न्यायालय अपने निर्णय में इस्लाम धर्म और कुरआन का हवाला देकर अपना निर्णय सुना रहा है, क्योंकि आवेदनकर्ता धर्म की आड़ लेकर एक से अधिक बीबियाँ रखना चाहता है।
-अगर इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में कोई अपील नहीं की जाती अथवा निर्णय के विरुद्ध सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय निर्णय को अपरिवर्तित रखता है तो भविष्य में ये लोग अगर किसी गैर-मुस्लिम लडकी को धोखे में रखकर, बिना उसका धर्म परिवर्तन किये शादी करते है तो उसे गैर-कानूनी ठहराया जा सकता है।
-अब यह भी देखने वाली बात होगी कि यह निर्णय सभी गैर-इस्लामिक महिलाओ से की गई शादियों पर भी लागू होता है अथवा नहीं।
-अब हर उस हिन्दू या अन्य धर्म की महिला को मुस्लिम पुरुष से शादी से पहले अपना नाम भी बदलना होगा,अर्थात ये महिलाए बाद में अपना हिन्दू नाम इस्तेमाल कर समाज को भ्रमित नहीं कर पाएंगी।
-इसमें भी कोई दो राय नहीं कि बात बात पर अपने धर्म की दुहाई देने और अपने धार्मिक कानूनों को राष्ट्रीय कानूनों से सर्वोपरी मानने वाले ये कुछ धर्म के ठेकेदार आने वाले वक्त में खुद ही यह दलील पेश करने लगे कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में कोई क़ानून धार्मिक आधार पर कैसे निर्णय दे सकता है?
चलिए, अब आगे-आगे देखते है होता है क्या, मगर मैं तो उन सभी गैर-इस्लामिक लड़कियों/ महिलाओं जो अपने लिए कोई मुस्लिम पुरुष जीवन साथी तलाश रहे है,से यही अपेक्षा करूंगा कि जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से पहले इस पहलू पर भी गौर फरमाएं और आने वाली विपदाओं से बचे।
bahut hi badhiya jankari di aur lekh bhi kafi gambhir likha hai........sochne ko majboor karta hai.
ReplyDeleteसही कहा वंदना जी,सोचने पर मजबूर तो कर रहा है ये लेख!जिन्हें सोचना चाहिए वो भी सोचेंगे,पता नहीं...?
ReplyDeleteकुंवर जी,
गोदियाल जी हम आपके दिल से अभारी हैं कि आपने जवलंत समस्या पर अपने विचार बेबाकी से रखकर हिन्दूओं को लब जिहाद के खतरे से सचेत किया।
ReplyDeleteगोदियाल जी ये तो कमीनेपन की हद है कि घर में पत्नी व तीन-तीन बच्चों के होते हुए भी ये राक्षस नबालिग बचियों को भगाकर उनकी जिन्दगी नष्ट कर रहे हैं
गोदियाल जी जिस तरह कोर्ट को फैसला सुनाने के लिए इस्सलाम का सहारा लेना पड़ा वो इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि हिन्दूविरोधियों के सेकुलर गिरोह ने किस हद तक भारत की न्यायप्रणाली को पंगु बना दिया है कि उन्हेंम नयाय करने के लिए संविधान के बजाए सरियत के नियमों का हबाला देना पड़ रहा है।
मुझे ये बात समझ में नहीं आती है कि लड़कियां इतनी आसानी से कैसे फंस जाती है ... अच्छे अच्छे कपडे पहन लिए, कार लेकर आ गए, या महँगी गाड़ी या मोटरसाइकिल पर सवार हो गए, और लड़की को साथ बिठा कर घुमाए, महंगे रेस्तौरांत में खाना खिला दिए और बस लड़कियां अपना तन मन सबकुछ वार देने के लिए तैयार ... पैसे के चकाचौंध से परे इंसान को देखना कब सीखेगी ये लड़कियां ...
ReplyDelete"लव जेहाद" एक मानसिकता है, जिसमें धर्म और राजनीति दोनों जुड़े हुए हैं… लगातार इस विषय में जागरुकता बढ़ाने वाले लेखों की आवश्यकता है खासकर युवा वर्ग में…। लव जेहादियों के "असली" मंसूबे लड़कियों को समझाना जरूरी है…
ReplyDeleteहालांकि "सेकुलरिज़्म" का मुलम्मा फ़िलहाल मजबूत है, लेकिन उसके नीचे की कालिख अब धीरे-धीरे ऊपर आने लगी है… :)
तथ्यों को खोजती हुई पोस्ट ,गहन चिंतन और सार्थक सोच की अभिव्यक्ति /
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने .. ..
ReplyDeleteमुझे इस फैसले के टिके रहने के आसार कम ही नजर आते हैं... देखिये.. आशा तो खैर रखनी ही चाहिये..
ReplyDeleteगोंदियल जी कोई भी लड़की किसी से भी शादी करे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये उसका निजी मामला है। पर जब कोई हिन्दू लड़की किसी मुस्लमान से शादी करने के बाद अपने हिन्दू नाम के पीछे मुस्लिम सरनेम लगाती है तो मुझे बड़ा बुरा लगता है जैसे गौरी खान, सीता खान, पार्वती खान। अगर कोई लड़की मुस्लमान से शादी करने से पहले इस्लाम अपनाएगी तो शायद उसका नाम भी बदल जायेगा और हम हिन्दू अपमानित महसूस नहीं करेंगे।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारीपूर्ण आलेख..कुछ विचार जागे, लिखता हूँ बाद में.
ReplyDeleteएक अपील:
विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
नफ़रत में डूबकर आदमी ग़लत काम कर तो देता है लेकिन जब उसपर सत्य प्रकट होता है तो फिर उसे अहसास होता है कि जिसे वह धर्म की सेवा समझ रहा था , वास्तव में वह तो अधर्म था ।
ReplyDeleteवेद
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः
मैं तुम सबको समान मन्त्र से अभिमन्त्रित करता हूं ।
ऋग्वेद , 10-191-3
कुरआन
कु़ल या अहलल किताबि तआलौ इला कलिमतिन सवाइम्-बयनना व बयनकुम
तुम कहो कि हे पूर्व ग्रन्थ वालों ! हमारे और तुम्हारे बीच जो समान मन्त्र हैं , उसकी ओर आओ ।
पवित्र कुरआन , 3-64
- शांति पैग़ाम , पृष्ठ 2 , अनुवादकगण ः स्वर्गीय आचार्य विष्णुदेव पंडित , अहमदाबाद , आचार्य डा. राजेन्द प्रसाद मिश्र , राजस्थान , सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ , रामपुर
एक ब्रह्मवाक्य भी जीवन को दिशा देने और सच्ची मंज़िल तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है । जो भी आदमी धर्म में विश्वास रखता है , वह यक़ीनी तौर पर ईश्वर पर भी विश्वास रखता है । वह किसी न किसी ईश्वरीय व्यवस्था में भी विश्वास रखता है । ईश्वरीय व्यवस्था में विश्वास रखने के बावजूद उसे भुलाकर जीवन गुज़ारने को आस्तिकता नहीं कहा जा सकता है ।
ईश्वर पूर्ण समर्पण चाहता है । कौन व्यक्ति उसके प्रति किस दर्जे समर्पित है , यह तय होगा उसके ‘कर्म‘ से , कि उसका कर्म ईश्वरीय व्यवस्था के कितना अनुकूल है ?
इस धरती और आकाश का और सारी चीज़ों का मालिक वही पालनहार है । हम उसी के राज्य के निवासी हैं । सच्चा राजा वही है । सारी प्रकृति उसी के अधीन है और उसके नियमों का पालन करती है । मनुष्य को भी अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिये और उस सर्वशक्तिमान के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिये ताकि हम उसके दण्डनीय न हों ।
वास्तव में तो ईश्वर एक ही है और उसका धर्म भी , लेकिन अलग अलग काल में अलग अलग भाषाओं में प्रकाशित ईशवाणी के नवीन और प्राचीन संस्करणों में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को चाहिये कि अपने और सबके कल्याण के लिए उन बातोंं आचरण में लाने पर बल दिया जाए जो समान हैं । ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
आज की पोस्ट भाई अमित की इच्छा का आदर और उनसे किये गये अपने वादे को पूरा करने के उद्देश्य से लिखी गई है । उन्होंने मुझसे आग्रह किया था कि मैं वेद और कुरआन में समानता पर लेख लिखूं । मैंने अपना वादा पूरा किया । उम्मीद है कि लेख उन्हें और सभी प्रबुद्ध पाठकों को पसन्द आएगा ।
http://blogvani.com/blogs/blog/15882
खंडपीठ ठीक फैसला दिया है मुस्लिम व्यक्ति की दूसरे धर्म की महिला से शादी अमान्य मानी जाएगी और पवित्र कुरान के खिलाफ होगी
ReplyDeletequran:
और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें॥॥2:221॥
.......
Indian Citizen से सहमत होना पडता है कि इस फैसले के टिके रहने के आसार कम ही नजर आते हैं...
विचार किजियेः यदि वह उसका निकाह से पूर्व धर्मांतरण कराने में विफल रहता है। यानि बिना उसका धर्म परिवर्तन किये शादी करते है तो उसे गैर-कानूनी ठहराया जा सकता है
मुझे लगता है इससे तो धर्म परिवर्तन और अधिक होगा क्यंकि शादी के लिये इस जरूरी शर्त को भी पहले ही पूरा करने का भरपूर प्रयत्न किया जायेगा
गोदियाल जी , जब अपना पैसा खोटा हो तो दुकान दार को दोष क्यो दे... इन लडकियो को अकल आनी चाहिये...जब मां बाप रोकते है , ओर इन्हे समझाते है तो इन की आजादी आडे आती है, हम आप कुछ नही कर सकते, चोर तो चोरी करेगा उस का यह कर्म है, काश इन लडकियो को अकल आये जो इन के जाल मै फ़ंसती है
ReplyDeleteगोदियाल जी xकुरानx शब्द कापी पेस्ट के कारण लिखा गया, जिसके लिये मैं अल्लाह से माफी चाहता हूं सही ग्रंथ का नाम कुरआन लिखना था
ReplyDeleteविचार शून्य जी, बात सिर्फ अगर नेक दिली से जीवन साथी चुनकर सीता देवी से सीता खान बनने तक की हो तो वह भी चलेगा मगर अगर लड़के ने धर्म का सहारा लेकर बदनीयती से यह करने की सोची है तो ऐसी साजिशों का पर्दाफाश किया जाना जरूरी है ! अब इसी केस में देख लीजिये एक तो धर्म की आड़ लेकर गलत काम किया ऊपर से देश के कानूनों का भी नाजायज फायदा उठाना चाहता है ! मुझे अयोध्या केस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है मगर अभी हाल में जिस तरह तब श्री आडवाणी की सुरक्षा अधिकारी रही मुस्लिम महिला ( तब हिन्दू थी ) ने अपने पुराने नाम की आड़ में भ्रांतियां फैलाई , वैसे तरह के फायदे उठाने की मानसिकता पर इससे रोक लगेगी !
ReplyDeleteअनवर भाई आपने वेद कुरआन नाम को फिर सिद्ध कर दिया इस तरह की पोस्ट हर बार की तरह भाईचारे को ही बढ़ावा देगी
ReplyDeleteआज की पोस्ट भाई अमित की इच्छा का आदर और उनसे किये गये अपने वादे को पूरा करने के उद्देश्य से लिखी गई है । उन्होंने मुझसे आग्रह किया था कि मैं वेद और कुरआन में समानता पर लेख लिखूं । मैंने अपना वादा पूरा किया । उम्मीद है कि लेख उन्हें और सभी प्रबुद्ध पाठकों को पसन्द आएगा ।
हम न्यायालय के इस फैसले का पूरा सम्मान करते हैं. न्यायालय ने पूरी तरह इस्लामी शरीयत के अनुसार ही फैसला दिया है.
ReplyDeleteन्यायलय का फैसला एकदम उचित है.
ReplyDeleteपर एक बात अवश्य है, हर नाम का सम्बन्ध किसी धर्म विशेष से नहीं होता है, जैसे कि सुगंध, समीर, पवन, साहिल, सानिया, आबिद, आफताब, निशा, किरण इत्यादि, इन जैसे अनेको नाम किसी न किसी तत्व के संबोधक होते हैं और किसी भी मज़हब के मानने वालो के द्वारा रखे जा सकते हैं.
लोगों को जागरूक करने वाली पोस्ट है...क़ानून भी ना जाने क्या क्या नियम बना देता है...
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