Wednesday, May 5, 2010

वो शख्स !


वो एक वृथा शख्स जो 
जिन्दगी से हुआ बोर था ,

और पैदाइशी कामचोर था ,
मेहनत करना नहीं चाहता था ,
और भूखों मरना नहीं चाहता था ,
हरतरफ था उसने हाथ आजमाया,
मगर कहीं भी उसने शकून न पाया,
किन्तु भाग्य 
में बिजनेस का योग था,
देश में फला-फूला 'आईवॉश' उद्योग था, 
अब नाम भले ही उस धंधे का धोखा था,  
मगर उसके लिए तो धंधा बड़ा चोखा था, 
ज्यूँ ही घुसा उस
हाईप्रोफाइल पेशे में 
भैया,
तुरंत लग गई पार उसकी डगमगाती नैया,
बन बैठा इक मकाम का टुक्कड़खोर सदर है,
पॉश इलाके के बड़े से बंगले में उसका घर है।  

17 comments:

  1. अंतिम लाईन में सच्चाई लिख दी :)

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  2. waah ..........kya baat kah di........gazab .

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  3. कविता मजेदार रही ।
    लेकिन गोदियाल जी ये आई वास क्या है ?

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  4. बहुत बढ़िया व्यंग्य रचना है गोदियाल जी ... आपने अंतिम पंक्ति में सच का बखान किया है ...
    पर एक बात कहना चाहूँगा ...
    बन जाओगे नहीं ... बन चुके हैं ... आखिर हमारे देश के वर्तमान मंत्री-संत्री आये कहाँ से हैं ... की के भी इतिहास उठा कर देख लीजिए ... एक भी साफ़ दामन नज़र आये तो कहियेगा ...

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  5. shandaar..............

    jaandaar.........

    teekha vyangya kiya aapne

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  6. अच्छा भविष्य बताया आप ने धन्यवाद

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  7. 'लक' अच्छा रहा तो
    किसी दिन मंत्री-संत्री भी बन जावोगे !!
    और फिर ऐसे ही तो बने हुए हैं

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  8. गोदियाल जी ,आज आपने देश और समाज में हर ईमानदारी के रास्ते पर बेईमानो ने कैसे-कैसे गंदगी फैलाकर, विश्वास नाम की चीज को ही समाप्त कर दिया है ,इसी बात को एक व्यंग के रूप में बहुत ही बखूबी से उतारा है / आशा है समाज और देश में फैले और भी बिमारियों को ऐसे ही अपनी प्रस्तुती से नंगा करते रहेंगे /

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  9. desh ki janta ko aap jese netao ki hi jarurat he

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  10. desh ki janta ko aap jese netao ki hi jarurat he

    nice

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  11. बहुत बढ़िया व्यंग्य रचना है गोदियाल जी .

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  12. मस्त और ज़बरदस्त वाली बात है जी....



    कुंवर जी,

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  13. राजनीति में भी किस्मत आजमाओ .
    इस देश की जनता के खूब मन भावोगे,
    'लक' अच्छा रहा तो
    किसी दिन मंत्री-संत्री भी बन जावोगे !

    आपके मुँह में घी शक्कर!

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  14. बहुत बढ़िया गोदियाल साहब
    लगे रहो .

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  15. ये बात सौफी सदी सच है ... एक बार एम पी या एम एल ऐ बनने में १ करोर खर्च करो १०-२०-१०० हो सके तो ४००० करोर भी कमाओ ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।