Thursday, November 25, 2021

मेरा देश महान....


जहां, छप्पन इंच के सीने वाला भी

यू-टर्न  ले लेता है,

वहां, 'मार्क माय वर्ड्स' कहने वाला पप्पू, 

भविष्यवेता है।

समय की कसौटी...

 


Friday, November 19, 2021

'डेमोक्रेजी'

 कृषि सुधार 'व्हिस्की के पैग' का

तुम्ही बताओ सुरूर क्या था? 

वो 'साला' कानून अगर,

जितना बताया, 

उतना  ही काला था तो लाना जुरूर क्या था?

सालभर आते-जाते, दिल्ली की सीमाओं पर 

जिन्होंने दुर्गति झेली,

ऐ हुजूर, लगे हाथ यह भी बता देते, 

उनका कुसूर क्या था?

#आज जार्ज बरनार्ड शा फिर सही साबित हुए।



Wednesday, November 17, 2021

गूढ़ सत्य






अपने तमाम एहसास हमने, 

कुछ यूं लफ्जो़ मे पिरोए हैं,

तुम साथ तो चेहरे पे मुस्कुराहट बिखेरी,

और अकेले मे रोए हैं।




Tuesday, November 16, 2021

खोट

रूप कुरूप नजर जो आये,

अयथार्थ दिशा मे दर्पण देखो, 

तृप्ति हेतु करो जो अर्पण,

उस अर्पण का तर्पण देखो।


क्या बदला है गत बर्षों मे,

नजर न आए, कण-कण देखो,

दृष्टि का यह दोष है कह लो,

सृष्टि बदलती क्षण-क्षण देखो।


पतित प्राण असंख्य जगत मे,

जम्हूरियत का वरण देखो,

बडबोली हो रही दुःशीलता,

आचरण का हरण देखो।


मोल इसकदर डोल रहा क्यों,

सनातन अपना प्रण देखो,

तन-मन और कसैला मत कर,

मन-मंदिर का जनगण देखो।


सुख की इच्छा दुःख का कारण,

माया बडी विलक्षण देखो,

शीश झुकाया दर पर किसके,

मन का व्यग्र समर्पण देखो।


Saturday, November 13, 2021

शहर मेरा धुआं-धुआं सा है..

 









सहरा मे पसरा हुआ कुहासा है,

और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।

कोई कहे ये 'दिवाली' का रोष है,

कोई  दे रहा 'पराली' को दोष है,

मुफ्त़जीवी, मुरीद हैं गिरगिटों के,

विज्ञापनों से खाली हुआ कोष है।

नेत्र पट्टी क्षुब्ध, तराजू रुआंसा है,

और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।


सभ्य समाज के माथे पर दाग है,

जमुना मे बहता नीर नहीं झाग है,

महामारी से ठंडे पडे है कई चूल्हें,

असहज सीनो मे धधकती आग है।

सोचकर खुश है 'आत्ममुग्धबौना',

नर,खर,गदर्भ, सभी को फा़ंसा है,

और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।



Friday, November 5, 2021

शुभ दीपावली










'दीपोत्सव"

मुल्क़ मे हाकिमों के हुक्मों की गहमा़गहमी़ है।

'दीया' खामोश है और रोशनी सहमी़-सहमी़ है।

डर है, दम घुटकर न मर जाएं, कुछ 'मीं-लार्ड्स',

'भाग' से ज्यादा जीने की, कैंसी गलतफहमी़ है?


Thursday, October 14, 2021

फ़कत़ जिंदा-दिली..

है कहीं अमीरी का गूम़ां

तो कहीं गरीबी का तूफ़ां,

ये आ़बोहवा, मेरे शहऱ की,

कुछ गरम है, कुछ नरम है।


कहीं तरुणाई का योवनवदन

छलकते जाम, हाथों मे रम है,

कहीं उ़म्रदराज़  हुई जो काया,

मुख़ पे झलकता बुढापे का गम है।


है कहीं पर तो फुरसत ही फुरसत

तो पास किसी के वक्त बहुत कम है,

फ़लसफ़ा जिन्दगी का अज़ब 'परचेत',

यथार्थ गायब, बस भरम ही भरम है।





Monday, April 26, 2021

दौर

खौ़फजदा है दुनिया

कोरोना के नाम से,

गुजर रही है जिंदगी

कुछ ऐसे मुकाम से ।

प्यार मे गले मिलना

गुजरी सदी की बात है,

दूर हो जाते हैं अजीज भी,

जरा से जुकाम से।।

Sunday, March 14, 2021

फुलदेई..












जनि प्यारी बेट्ळौंन तख 'फूलदेई'

सुबेरी-सुबेर कै तेरी देळी मा,

वनि, 'फुलदेई' की खबर पौंछी

यख टीवी परै, मेरी 'देहळी' मा।


फूल मेट्या, फूल जनि बेट्ळौंन

सग्वाडि, पुंग्डी, बौण बिटीकी,

नांगि खुट्यौंन, सुबेरी-सुबेर,

चसा पाळा, ह्यूं  मा हिटीकी।


जसिलो ब़िंसरी घाम पौंछी,

डा़ंंडी, पांखी, गद्वारी, भेळी मा,

वनि, 'फुलदेई' की खबर पौंछी

यख टीवी परै, मेरी 'देहळी' मा।

Monday, March 8, 2021

खलिश..

जब वो,

दर्द-ऐ-दिल अपना, 

शब्दों मे न समेट पाया

तो कमबख़्त,

आंसू बनके

उसकी आँखों से छलक आया।

Sunday, March 7, 2021

जम़ाना...

 


जिसदिन से तरसीम ऊपर गया

मिरी शख़्सियत और हैसियत का,

ख़्याल सताने लगा है जमाने को, 

मिरी खै़रियत और  कैफि़यत का।



तरसीम/तर्सीम= लेखाचित्र(graph)



Wednesday, March 3, 2021

ऐ जिंदगी...

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...

अकेला ही रहता हूँ,

हर गम अकेले ही सहता हूँ,

दिनभर दौड-धूप का मारा, 

दुनियांं से थका हारा,

साफ-सफाई का मोहताज.....

पसंद नहीं आएगा तुझको,

ये मेरा कबाड़खाना।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...


यही काफी है मेरे लिए

कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ,

हर गम-ओ-खुशी

तेरे दरमियाँ से गुजरता हूँ,

मगर रूठे जो तू कभी...

तो फिर मनाने को ,

दे न पाऊंगा तुझको

मैं दिल का कोई नज़राना ।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...



Sunday, February 21, 2021

तलब

 बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ, 

मेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ।

हुआ अनुरक्त जबसेे मैं,तेरी हाला का,ऐ साकी,
तलब-ऐ-शाम ढलने का,मैं इन्त्तिजार करता हूँ।


नहीं अच्छा हद से कुछ,कहते लोग हैं मुुुझसे,
मगर तेरे इस़रार पर,मैंं हर हद पार करता हूँ।


खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,मैं इक़रार करता हूँ।


ईशाद तेेरा कुछ ऐसा,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,

जाम-ऐ-शराब-ऐ-मोहब्बत,मैं कब इंकार करता हूँ।

कहे'परचेत',ऐ साकी,है कहने को न कुछ बाकी,
कुछ तो बात है तुझमे,तेरी मधु से प्यार करता हूँ।

Sunday, February 14, 2021

बुजदिलों,अपना कायरकृत्य 'पुलवामा' देखो...










खुद  की हिंसावादी सोच का  कारनामा देखो,

बुजदिलों,  कायराना  कृत्य 'पुलवामा' देखो।


छल कर के जिन वीरों को, तुमने सीना ठोका,

हमारे उन वीरों की शहादत का पंचनामा देखो।


बुझा दिये तुमनें घर, देहलीज़ के चराग जिनके

उम्रदराज़ उन मांं-बाप ने कैसे है दिल थामा देखो।


पलभर मे खत्म हो गई खुशहाल दुनियां जिनकी,

इंतजार मे गुमशुम बैठी शहीदों की वो वामा देखो।


पाखंड तुम्हारे सब पराजित होगे, ऐ क्षद्म-वेशियो,

अपना वह विद्वंशी,दुष्कुलीनजनक ओसामा देखो।


है भूल तुम्हारी,कमजोर समझना सहिष्णुता 'परचेत',

मित्रता सीखो द्वेष प्रेमियों, हमारे कृष्ण-सुदामा देखो।






Friday, February 12, 2021

असमंजस

प्रश्न विकट है, समय निकट है,

देह-ईमान किधर दफना़ऊ? 

चहूंओर, गिद्ध हैं, गीदड़ हैं। 

डाल-डाल से, ताल-ताल से,

हैं नज़र गढा़ए निष्ठा-भक्षी, 

शठ,लुच्चे-लफंगे, लीचड़ हैं। 

गजब येह भंवरधारा,'परचेत',

कुटिल, कपटमय कीचड़ हैं,

पतितता के आकंठ मे डूबे, 

जहां भ्रष्टाचार के बीहड़ हैं।।

Sunday, February 7, 2021

प्रकृति



तवाही का मंजर-ए-खौफ़, ऐ मानव, 

तू अपने दिल मे पाले रखना,

क्षंणभंगूर सी है यह जिंदगी,

 कुदरत की ये तस्वीरे संभाले रखना।

एकाकीपन का सबब..

मत पूछ मुझसे, इस ढलती हुई उम्र के 

मेरे एकाकीपन का सबब, ऐ जिन्दगी !

बस, यूं समझ कि यह सब तेरे कर्ज की 

अगली किश्त अदाइगी़ की जद्दोजहद है।

Saturday, February 6, 2021

एक सम्बोद्धन, मिया खलीफा के सगे भाइयों को...









निर्लज़्ज़ता व दम्भ़ भरी फि़जा़ देख,

कुछ यूं सा अहसास हुआ 'परचेत',

गद्दारी,अपने ही लहू मे छिपी रही होगी

वरना, किसी को  तीन-तीन गुलामियां 

इत्थेफाक़न ही नसीब नहीं हुआ करती ।

Tuesday, February 2, 2021

सच का सामना।











ये वह बांंध है, जो  

गढ-हिमालय के टिहरी मे

पवित्र भागीरथी की लहरों पे लेटे है,

यौवन के अपने इस 

बुलंद शिखर पर,

स्व:वदन, दिव्य छटा लपेटे है,

ऐ जहां वाले, 

भागीरथी के इस द्वारपाल  को

कभी उम्रदराज न होने देना

क्योंकि, वह अपने अंदर उफनते 

समन्दर की सी, गहराइयां समेटे है।



Sunday, January 31, 2021

प्रश्न

फिरकापरस्ती एंव सियासी चाल के

जहां असंख्य मुरीद हों ऐसे,

गणतंत्र किसान ट्रैक्टर परेड की आढ मे

लालकिले के दीद हों ऐसे,

फिर तो सोचते ही रहो 'परचेत' कि

देश-हित के फैसले मुफी़द हों कैसे।

Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्रपर्व का हर्ष और विसाथद..

वैरियों से जुडे हों जिनके तार ऐसे,

कृषक भेष मे लुंठक, बटमार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, देश-छवि शर्मशार ऐसे।


इधर ये, वीरों के शौर्य को सलाम करके 

लोग करते गणतंत्र पर्व को साकार ऐसे ,

उधर वो, लालकिले को  रौंदने मे लगे हैं,

कुछ फसादी, तुच्छ-स्वार्थी मक्कार ऐसे।


नेताओं की महत्वाकांक्षा ने कर रखा

सम्पूर्ण व्यवस्था के तंत्र को लाचार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, वतन-छवि शर्मशार ऐसे।


सभी ब्लॉग मित्रों  को  गणतंत्र दिवस की 

हार्दिक शुभकामनाएं।🙏










Friday, January 22, 2021

आग्रह..

वक्त की कीमत, हमेंं 

मत समझा ऐ दोस्त, 

समय अपना व्यतीत के,

हमारा तो पीछा ही 

नहीं छोडते ये कमबख़्त, 

कुछ पछतावे अतीत के।


Thursday, January 21, 2021

टीस..

बीच तुम्हारे-हमारे ये रिश्ते, 

यूं न इसतरह नासाज़ होते, 

फक़त,इसकदर दूरियों मे 

सिमटे हुए न हम आज़ होते,

तुम्हारी सौगंध, हम 

हर लम्हे को बाहों मे समेटे रखते,

थोडा जो अगर तुम्हारे,

मर्यादा मे रखे अलफाज़ होते।

Wednesday, January 20, 2021

जिह्व-स्वाद।

 ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,

 मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।

 लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये

और स्वाद का शौकीन, मैं खाता  रहा।।

Tuesday, January 19, 2021

विचलन..

टलोलता ही फिर रहा हूँ उम्र को, 

तभी से मैं हर इक दराज़ मे,

जबसे, कुछ अजीज ये कह गये कि

'परचेत' तू अब, उम्रदराज़ हो गया।


Sunday, January 17, 2021

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ..







अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।


हो क़दरदान तुम बहुत, 

गुल़रुखों के नगमा-ए-साज के,

तारों भरी रात, 

नयनोँ मे बरसात, 

धुन कौन सी बजाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


अजीबोग़रीब अफ़साने हैं, 

इस मुक्त़सर सी जिंदगी के,

लबों पे कबतक लिए फिरूँ, 

क्यों न कागज़ पर उतर जाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


थे अबतक हम भी खामोश

तेरी खामोशी को देखकर,

हमें महफिलों की शान नहीं बनना,

सिर्फ़ बात तुम्हें दिल की बता पाऊँ।

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।।



Thursday, January 14, 2021

नश्तर..

उधर सामने खडे थे संस्कार,

बनकर के मेरे पहरेदार,

संकुचायी सी मैं कुछ बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


तुम्हारे जैसे बहुतेरे मिले हमको,

जिंदगी की राह मे मन डुलाने वाले,

किन्तु, फिर भी कभी मैं डोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


शक्ल से भले ही कोई बांके लगे हो,

बेकार है, बांकी जो अगर उसकी,  

अपनी  खुद की भाषा-बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


अरे वो तमाम पैमानों के पैरवीकारो,

नापने से कद कभी बढता नहीं, गर

मनसाही जो कभी अपनी तोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


Sunday, January 10, 2021

बिम्बसार

तुम न कभी अश्क बहाना, ऐ दोस्त,

क्यूंकि तुम बे'गम' हो,

ये तुम्हारा धुर्त 'शो'हर तो,

यूं ही, मजे लेने के खातिर रो लेता  हैं।

खलिश..

मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली थी

जब यह सफ़र-ए-जिन्दगी, ऐ दोस्त!

तुमने नींद मे खलल डालकर, 

स्वप्न विच्छेदन कर दिया

Thursday, January 7, 2021

अन्तरद्वंद







यारअब बता भी दो, 

छुपा रही हो जो हमसे, 

अपना वो दर्द जौन सा ।

कुछ तो बात होगी वरना, 

ये नजरें तुम्हारी  हमको,

यूं 'कातर ' न नजर आती।।


Tuesday, January 5, 2021

अजनबी तपन..

 दिल मे ही अटक गई , वो छोटी सी ख़लिश हूँ,

यकीनन, न तो मैं राघव हूँ और ना ही तपिश हूँ।

मुद्दत से,अकेला हूँ दूर बहुत, करीबियों से अपने,

मगर न जाने क्यों ऐ 'परचेत', इसी मे मैं खुश हूँ।

Sunday, January 3, 2021

उम्मीद कायम है...

 








उम्मीदों से भरा ये मिज़ाज अच्छा है, 

जश्न मनाने का ये रिवाज़ अच्छा है,

आगे चलके गुल जो भी खिलाये मगर,

 इस नये साल का आगाज़ अच्छा है।

Friday, January 1, 2021

Ambition


 











As cliché as 

this might sound, 

it is really true,

what goes around 

comes around.  

So, it would be 

appropriate always

that the flight of 

our wishes

should always match 

the reality of the ground .








प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।