ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,
मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।
लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये
और स्वाद का शौकीन, मैं खाता रहा।।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...
बहुत बाद में समझ आती है, चटोरी जीव पेट का सत्यानाश कर देती है।
ReplyDeleteक्या बात है :)
ReplyDelete