Wednesday, January 20, 2021

जिह्व-स्वाद।

 ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,

 मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।

 लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये

और स्वाद का शौकीन, मैं खाता  रहा।।

2 comments:

  1. बहुत बाद में समझ आती है, चटोरी जीव पेट का सत्यानाश कर देती है।

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मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...