ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,
मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।
लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये
और स्वाद का शौकीन, मैं खाता रहा।।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना, कि...
बहुत बाद में समझ आती है, चटोरी जीव पेट का सत्यानाश कर देती है।
ReplyDeleteक्या बात है :)
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