Sunday, January 10, 2021

खलिश..

मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली थी

जब यह सफ़र-ए-जिन्दगी, ऐ दोस्त!

तुमने नींद मे खलल डालकर, 

स्वप्न विच्छेदन कर दिया

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संशय !

मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...