Tuesday, August 20, 2013

विश्व मच्छर दिवस ! (पुन: प्रकाशित )!

आज और कल(आज दोपहर बाद से कल दोपहर तक ) भाई-बहन के अटूट प्रेम और पवित्र बंधन का त्यौहार रक्षा बंधन है, अत: आप सभी मित्रों को सर्व-प्रथम इस पावन पर्व की मंगलमय कामनाऐ!

शायद आप लोग भी जानते होंगे कि आज ही के दिन पर एक और महत्वपूर्ण दिवस भी है और वह है " 

विश्व मच्छर दिवस (वर्ल्ड मोंसक्विटो डे )"



वैसे तो इस निकृष्ट, मलीन और दूसरों का खून चूसने वाले प्राणि को कौन नहीं जानता और कौन इससे आज दुखी नहीं है !  मगर, शायद ही बहुत कम लोग जानते होंगे कि साल में एक दिवस इस दुष्ट प्राणि के नाम पर भी मनाया जाता है, और वह दिन है, २० अगस्त ! 

इसलिए आइये, इस विश्व मच्छर दिवस पर एक पल के लिए, किसी अन्य जीव से अधिक मानवीय पीड़ा का कारण बनने वाले इस कलंकित रोगवाहक प्राणि के बारे में थोड़ा मनन किया जाए! सन १८९७ में लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. रोनाल्ड रॉस द्वारा इसका श्रीगणेश किया गया था, और न्यू जर्सी स्थित अलाभकारी संस्था अमेरिकी मच्छर कंट्रोल एसोसिएशन ने मलेरिया के संचरण की खोज का पूरा श्रेय उन्हें ही दिया! इस उपलब्धि की बदौलत उन्हें सन 1902 में चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था ! 

हालांकि हमारे अन्ना की ही भांति उनका भी प्रारम्भिक उद्देश्य इस दोयम दर्जे के भ्रष्ट और अराजक प्राणि की कारगुजारियों से उत्पन्न होने वाले सामाजिक विकारों और जन-धन के नुक्शान के बारे में जनता को जागरूक करना और इनके द्वारा फैलाए जाने वाली नैतिकपतनेरिया,डेंगू और चरित्रगुनिया जैसी बीमारियों पर प्रभावी लोकपाल लगाना था, मगर हर चीज इतनी आसान कहाँ होती है ! बुरी चीजें अच्छी चीजों के मुकाबले अधिक तीव्र गति से फैलती है, इन बुराइयों का साथ देने के लिए देश, दुनिया में इन्ही की नस्ल के और भी बहुत से परजीवी मौजूद होते है जिन्हें भले और बुरे प्राणि में फ़र्क़ करने की कसौटी बताते-बताते थक जाओगे मगर वे समझना ही नहीं चाहते,क्योंकि उनके खून में भी वही गंदगी मौजूद है! अत: इनपर लगाम कसने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी आज ये सभ्य समाज के लिए नासूर बन गए है! इसके चलते हर साल विश्व में तकरीबन दस लाख लोग, जिनमे अधिकाँश युवा और बच्चे होते है, असामायिक मौत का ग्रास बन जाते है!


एक बात ध्यान रखने योग्य है कि सरल प्राणि जब अपने न्यायोचित हितों के लिए सत्य के सहारे आगे बढ़ता है तो वह किसी को दुःख न पहुंचाने का हर संभव प्रयास करने के बावजूद भी जंगे मैदान में प्रत्यक्ष तौर पर सक्रीय होने की वजह से कईयों की नाराजगी भी मोल ले लेता है और उसे बहुत-सी अनचाही परेशानियां उठानी पड़ती है ! जबकि निकृष्ट जीव अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए अनेकों चालबाजिया और प्रपंच खड़े करता है तथा अनगिनत तुच्छ और छद्म-तरीके अपनाकर खुद को भला और ईमानदार प्राणि दर्शाने के लिए परदे के पीछे छिपे रहकर अपने काले कारनामों को अंजाम देने की कोशिश करता है! प्राणि समाज के लिए घातक इस जीव ने आज हर तरफ अपना जाल फैलाकर एकछत्र राज स्थापित कर लिया है, जिसको चुनौती देना ही एक बड़ी चुनौती बन गई है! आज हमारे समक्ष इस मौस्क्वीटो मीनेस से निपटने के सीमित उपाय ही मौजूद रह गए है ! जंगलराज के विधान आज आम आदमी के दरवाजे, खिडकियों की जालियों और मच्छरदानियों को धराशाही कर इनके लिए ऐसी अराजक भूमि तैयार करने में लगे है, जहां ये बिना रोक-टोक किसी का भी खून चूस सकें !



यह बात अब सर्वविदित है कि पिछले कुछ दशकों में भारत-भूमि इन मच्छरों के लिए एक सर्वोपयुक्त जगह बनकर उभरी है! अपनी रणनीति के हिसाब से यह दुष्ट जीव अलग-अलग पालियों (दिन, शाम,रात ) में भ्रमित कर, मौक़ा देख अन्य प्राणियों का न सिर्फ खून चूसता है बल्कि उन्हें घातक बीमारियाँ भी दे जाता है! इसमें से एक ख़ास नश्ल का खतरनाक मच्छर तो पिछले ६० से भी अधिक सालों से अपना कुलीन राज चला रहा है और हाल ही में इनके सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ने शोषित प्राणि समाज का खून चूसने में अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले है! आज मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार मादा मच्छर समूचे अभिजात वर्ग पर हावी है, वह इसलिए नहीं कि वह इतनी सक्षम है बल्कि इसलिए कि उनके इर्द-गिर्द मौजूद पट्ठों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि राजवंश की आड़ में वे आम-आदमी का खून बेशर्मी से चूस सकते है !



इसी की परिणिति का फल है कि आज प्राणी-जगत के हर कोने से विरोध की चिंगारी सुलगने लगी है,और जिसे ये मोटी चमड़ी के स्वार्थी और धोखेबाज मलीन जीव देखकर भी अनदेखा कर रहे है! अब वक्त आ गया है कि इस घृणित प्राणि के काले कारनामों पर प्रभावी रोक लगाईं जाये ! इनके प्रभुत्व वाले क्षेत्र में इनके प्रजनन पर ठोस नियंत्रण रखा जाए, ताकि इनकी भावी पीढ़िया भी अपनी घटिया खानदानी परम्पराओं को आगे भी इसीतरह क्रमबद्ध तरीके से चलाकर समाज को दूषित न कर सके! इसके लिए एक कारगर तरीका यह भी है कि अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते वक्त हम यह सुनिश्चित करे कि राजवंश तकनीक DDT (damn dynasty techniques ) पर लानत भेजी जाए और हर पहलू का गंभीरता से मूल्यांकन किया जाए ! 

सोये में इन्होने मासूम लोगो का बहुत खून चूस लिया, और अब वक्त आ गया है जागने का ! वर्ना याद रखिये कि एक भोला-भाला सा दिखने वाला मच्छर-मरियल सडियल ( एम्एम्एस ) भी समूचे क्षेत्र के प्राणियों को हिंजड़ा बना सकता है ! 

जय हिन्द  !

  

Monday, August 19, 2013

हो गए हैं हम क्यों खुदगर्ज इतने !

   

पैदा हुए हैं कहाँ से, ये मर्ज इतने,
हो गए हैं हम क्यों खुदगर्ज इतने।

गुज़रगाह बन गए हैं, सेज-श्रद्धेय,

अगम्य हो गए जबसे फर्ज इतने।

       वफ़ा का चलन, सिकुड़ता जा रहा,        

दम तोड़ते जा रहे क्यों अर्ज इतने।

सिर्फ स्व:हित पर सिमट गई सोचें,
बुलंदियों पे 'पहले मैं' के तर्ज इतने।


लहलुहान है सहरा, रिश्तों के खूं से,

वारदात-ऐ-बेवफाई होते दर्ज इतने।


तामील का आता,जब दौर अपना, 

तभी आते हैं आड़े क्यों हर्ज इतने। 

 रेहन रखी क्यों है, गरिमा 'परचेत',   
हमपे किस-किसके हुए कर्ज इतने।  


गुज़रगाह=street बन गए हैं सेज-श्रद्धेय= elders'bed


अगम्य=congested हो गए जबसे फर्ज इतने।

Sunday, August 18, 2013

स्वर्ग कामना एवं तीन लोकों की अवधारणा !




सामने जो सत्य है उसको नजरअंदाज कर,  सोच को किसी असंभव, अनदेखे और अनजाने से ब्रह्माण्ड मे ले जाकर खुद के और दुनियां के अन्य प्राणियों के आस-पास एक विचित्र  मायावी जाल बुनना इंसान की पुरानी फितरत है। किन्तु साथ ही वह इस प्रशंसा का भी हकदार है कि इन्ही विलक्षण खूबियों की ही वजह से आज से कई हजार साल पहले ही उसने वो बुलंदियां छू ली थी, जिन्हें आज का मानव एक बार फिर से हासिल करने की जुगत में लगातार प्रयासरत है। लेकिन, कभी-कभी आश्चर्य इस बात का भी होता है कि आज भी इस संसार में इंसानों का एक बहुसंख्यक वर्ग उन कुछ अतीत में बुनी गई मायावी मिथ्याओं से परे हटकर नहीं देखना चाहता, जिनकी प्रमाणिकता  भी संदेह के घेरे में है।    

इस बात पर तो शायद ही किसी को आपत्ति हो कि इस दुनियाँ में जितने भी धर्म और उप-धर्म हैं, वे सभी, किसी न किसी रूप में लोक तथा परलोक की अवधारणा पर विश्वास करते हैं।  अब भले ही स्वर्ग और नर्ग (नरक नहीं, नरक शब्द किसी प्रताड़ना गृह का ध्योतक है ) की उनकी अवधारणाओं मे ख़ासा अंतर ही क्यों न हो। कर्मवाद का प्रस्तुतीकरण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तौर पर हर धर्म का आधारभूत सिद्धांत है। धर्म-शास्त्रों के आधार पर अपने कर्मो के ऐवज में  प्राणिमात्र को  इस लोक और परलोक में होने वाली फल प्राप्ति अवधारणा  इसी कर्मवाद के सिद्धांत के अंतर्गत आती है। पुण्य और पाप  इस कर्मवाद की दो प्रमुख कड़ियाँ हैं। स्वर्ग प्राप्ति की कामना प्रत्येक प्राणि का प्रथम लक्ष्य होता है, जबकि नर्ग जाने वाले पथ से होकर गुजरना  हर कोई वर्जना चाहता है,  अब उसके अनुरूप वह कर्मों को यथोचित गति भले ही न दे।

जीव-शरीर जो कि पंच तत्वों से बना होता है, मृत्यु उपरान्त उन्हीं तत्वों यानि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश तत्वों में विलीन हो जाता है। जो बची रह जाती है,  वह है सिर्फ़ आत्मा, और शरीर के मृतप्राय: हो जाने पर यह आत्मा जिसके तीन मुख्य घटक मन, बुद्धि और संस्कार होते है, उन्हें लेकर निकल पड़ती है एक नए जीव-शरीर की तलाश में। आत्मा के घटकों की कार्य प्रणाली यह होती है कि आत्मा जब जिस जीव शरीर में होती है उसके मन से प्रभावित हुई बुद्धि के निर्णय लेने के तत्पश्चात उस जीव-शरीर द्वारा प्रतिपादित कार्य संस्कार बन जाता है।  यानि  कि मन, बुद्धि को प्रभावित करता है और फिर बुद्धि के निर्देशानुसार शरीर जो कार्य करता है, उसे कर्म कहते हैं।    मृत्य उपरान्त दूसरा शरीर धारण करते वक्त आत्मा प्राणि के दिवंगत शरीर में उसके साथ  मौजूद रहे इन्ही तीन मुख्य घटकों को साथ लेकर नव-अंकुरित शरीर में प्रवेश करती है। इसी आधार पर जभी तो अक्सर यह आशंका या उम्मीद व्यक्त करते लोगो को सुना जाता है कि अमुक  प्राणि पर शायद उसके पूर्व-जन्म के कर्म असर डाल रहे है।

उपरोक्त ये जो बाते मैंने कही, ये सब सुनने, पढने और  जानने के लिए शास्त्रों, किताबों और लोगों से प्राप्त ज्ञान को आधार माना जा सकता है। और देखा जाए तो  निश्चित तौर पर ये युग और काल की निहायत उच्चस्तरीय माप की बातें हैं।  लेकिन जैसा कि मैं कह चुका कि जीवन दर्शन, प्रकृति और प्राणि विज्ञान या यूं कहूँ कि कुदरत के हर पहलू पर इस जग मे  हर इंसान का अपना एक भिन्न नजरिया होता है। और इन तमाम सांसारिक रहस्यों और तथ्यों को वह उसी ख़ास नजरिये  देखता  है। मैं भी जब इन तमाम बातों पर गौर फरमाने बैठता हूँ तो न सिर्फ़ उस बुनियादी बातों तक ही सीमित रह पाता हूँ अपितु, इस बाबत कभी-कभार तो बड़े ही हास्यास्पद नजरिये मन-मस्तिष्क में हिलौरे मारने लगते है।  

जैसा कि मैंने पूर्व  में कहा, हम जानते हैं कि तमाम धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक शास्त्रों के मुताबिक समस्त ब्रह्माण्ड में तीन लोक मौजूद हैं; पहला स्वर्ग लोक, दूसरा नर्ग लोक और तीसरा पाताल लोक। अब, कोई यह पूछे कि ये लोक हैं कहाँ तो शायद प्रमाण सहित कोई संतोषजनक जबाब तो किसी के भी पास न हो। वैसे, मानने को मैं भी इन मान्यताओं और पौराणिक धर्म-ग्रंथों एवं शास्त्रों की बात का समर्थन करता हूँ। इन तीनो लोको के प्रति इस जगत की यह आम अवधारणा है कि स्वर्ग में नारायण(देवता) , नर्ग में नर(इंसान ) एवं  पिचाश(राक्षश)  तथा पाताल में गुप्त-खजाने  (कुबेर) का वास होता है। मान्यता है कि अच्छे कर्म करने वाला प्राणि मृत्य उपरांत स्वर्ग मे नारायण के दरवार की शोभा बढ़ाते हुए उन तमाम सुखों का भोग करता है, जिसका वर्णन हमारे पौराणिक ग्रंथों में अलग-अलग मतावलंब के अनुसार भिन्न-भिन्न है। और जिसके कर्म इस अवधारणा के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते, उसे मृत्यु पश्चात सृष्ठि संचालकों द्वारा नर्ग से नरक की ओर धकेल दिया जाता है। और रही बात पाताल की तो इसे इन तमाम पौराणिक और प्राचीन ग्रंथों  और विचारधाराओं मे ज्यादातर रहस्यमय ही रहने दिया गया है।
       
कहना अनुचित न  होगा कि इन पौराणिक और धार्मिक बातों से कोई भी आस्थावान व्यक्ति तो परिचित होता ही है, किन्तु जो लोग आस्थावान नहीं है, मेरा यह मानना है कि  जिज्ञासा बस वे भी इस विषय मे जानकारी तो हासिल करते ही है। यानि कि वो भी इन तमाम अलौकिक और पौराणिक बातो से परिचित तो अवश्य ही होते हैं। इसलिए मेरा यह आलेख उस अवधारणा के  बाबत उन्हें कोई ख़ास रोचक जानकारी अलग से उपलब्ध नहीं करा सकता। लेकिन,  जैसा कि  मैंने ऊपर कहा,  आज की परिस्थितियों का अवलोकन करते वक्त इस अवधारणा के सम्बन्ध में कभी-कभार लीक से हटकर जो विचार ( अब इन्हें आप हास्यास्पद की संज्ञा भी दे सकते हैं ) मेरे मानस पटल पर कौंधते है, उन्हें मैं संक्षेप में यहाँ व्यक्त करना चाहूंगा; 

हम जब बच्चे थे, तो नन्हे दिमाग में कुछ जटिल सवाल उत्पन्न होते थे, मसलन,  दादी-नानी की कहानियों में अक्सर राक्षस प्रमुख किरदार हुआ करते थे जिनका उन कहानियों में प्रमुख रोल होता था, छल-कपट, झूठ बोलकर और तरह-तरह के मुखौटे पहन, क्षद्म-भेष धारण कर निरपराध मानव जाति को सताना, उनका वध करना, उन्हें लूटना। कहानी पढने, सुनने के तत्काल बाद एक अबोध सा प्रश्न मन में जन्म लेता था कि अब वो राक्षस कहाँ गए होंगे क्या वे भी डायनासोरों की तरह समूल नष्ट हो गए ? धार्मिक कहानियाँ, रामायण, महाभारत इत्यादि पढने, सुनने से सवाल कौंधते थे कि  दुर्गा माता के चार और रावण के दस सिर कैसे रहे होंगे?जब मानवों और दानवों का युद्ध होता था तो जब मानव दानवों का मुकाबला करने में खुद को असहाय महसूस करता था तो स्वर्ग से देवताओं को मदद के लिए बुलावा किस माध्यम से भेजता होगा? देवता लोग स्वर्ग से  धरती (नर्ग) में कैसे पहुँचते होंगे? जब देवता खुद इतने पराक्रमी थे तो बहुत से मौकों पर वे भी भला दानवों से कैसे हार जाते थे? दानव धरती तो खैर जीत ही लेते थे, किन्तु भला स्वर्ग पर विजय प्राप्त  करने किस रास्ते  पहुँचते रहे होंगे ? ये देवता लोग गोरे उजले और इंद्र के महल में नाचने वाली नृत्यांग्नायें गोरी और ख़ूबसूरत ही क्यों होती थी? संजय के पास आखिर वो कौन सी तकनीक थी जो वह महल में बैठा-बैठा धृतराष्ट्र को युद्ध-क्षेत्र का सीधा प्रसारण(लाइव-टेलिकास्ट ) सुना देता था ?    इत्यादि-इत्यादि।

समय के साथ-साथ इन सभी सवालों के जबाब हमें खुद-व-खुद मिलते चले गए। आप भी इस बात से वाकिफ होंगे कि हाल ही मे अनेक मौकों पर खोजकर्ताओं ने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि रावण जोकि एक ब्राहमण राक्षस था, उसने उस जमाने मे वो उन्नत तकनीक हासिल कर रखी थी, जो आज का इंसान २१ वी  सदी में पहुंचकर भी नहीं कर पाया। उसके पास में पुष्पक विमान थे, सोने की लंका थी,पहाड़ों को खोदकर सुरंग बनाने की तकनीक थी। धरा की मुख्यत: दिशाए चार होती हैं और विस्तृत तौर पर दस दिशाए होती है, चूँकि माँ दुर्गा के पास वो शक्ति थी कि एक साथ चारों दिशाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती थी, इसलिए उसे चतुर मुण्ड (चार सिर वाली ) की संज्ञा दी गई। इसी तरह रावण को भी दस सिर वाला कहा गया, क्योंकि उसे दसों दिशाओं में एक साथ नजर रखने की उन्नत तकनीक हासिल थी। उदाहरण के तौर पर  कुछ-कुछ वैसे ही  मिलती-जुलती  तकनीक,जिसके माध्यम से  पिछले चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ चार शहरों में जनता को संबोधित किया था। 

अब थोड़ा सा प्रकाश स्वर्ग, नर्ग और पाताल पर भी डाल लेते है। जब मैं अपने उस  तथाकथित हास्यास्पद नजरिये से इस बारे में  सोचता हूँ तो मेरा मानना यह रहता है कि ये तीनो ही स्थान इसी धरा पर मौजूद हैं।  हाँ, मेरा यह भी मानना है कि समय-समय पर स्वर्ग रूपी स्थान ने अपनी जगह बदली है, जबकि नर्ग और पाताल की भौगोलिक स्थिति मे कोई ख़ास परिवर्तन नहीं आया। आप यह भी जानते ही होंगे कि धरती पर परिवर्तन के दौर चलते रहते है, कभी ग्लोबल वार्मिंग तो कभी हिम युग। एक ख़ास अवधि में जहां धरती का एक बड़ा हिस्सा बर्फ का रेगिस्तान बन जाता है तो कभी उत्तरी ध्रुब और दक्षिणी ध्रुब हरे-भरे प्रदेश ! और शायद जब धरती गर्म थी तो ये दोनों ध्रुब स्वर्ग कहलाते थे (जैसे एक जमाने में कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता था )। फिर जब हिम-युग शुरू हुआ तो शायद  ये उन्नत तकनीकधारी और विकसित स्वर्गवासी गोरी चमड़ी के देवता लोग, उठकर यूरोप आ गए होंगे , और बाद में उत्तरी अमेरिका भी चले गए होंगे  और फिर यही स्थान स्वर्ग बन गए ?  रही बात मानव और दानव की तो  शायद वे सदा से ही इसीतरह  नर्ग में ही आपस में एक दूसरे से  ही जूझते आ रहे है ? और जो यह कहा जाता है कि दानवों ने  स्वर्ग पर भी कई बार आक्रमण किया तो आज के परिपेक्ष में ९/११ को इस कड़ी में देखना क्या उचित होगा? क्या यह कहना उचित होगा कि इंद्र जी के सफ़ेद महल में स्वर्ग सुंदरियों का नाच-गायन आज भी होता है ? अब रही बात पाताल लोक की, तो पाताल को हम इन अर्थों में भी लेते है कि यह समुद्र तल से नीचे मौजूद कोई स्थान है। कुबेर के गुप्त खजानों को अपने पास समेटे कहीं यह जगह स्वीटजरलैंड तो नहीं?

मैं जब अपने इस तथाकथित हास्यास्पद नजरिये को आधार बनाकर थोड़ा और आगे  झाँकने  की कोशिश करता हूँ तो मुझे हास्य मिश्रित अनुभूतियाँ प्राप्त होने लगती है। मैं देख रहा होता हूँ कि पापी आत्माएं किस तरह चोरी से इकठ्ठा किये अपने धन को पातळ लोक ले जाने के लिए उतावली है। जिसे देखो उसे स्वर्ग जाने की होड़ लगी है, खासकर धन्ना सेठों को। जिसे स्वर्ग का वीसा मिल जाये वो अपने को धन्य समझने लगता है।कुछ जो सद्कर्मी थे, वो नर्ग मे जन्म लेने के बावजूद स्वर्ग पहुँचने में कामयाब रहे और वहीं बस गए। आजकल ऐश कर रहे है।  कुछ पापी लोग ऐसे भी होंगे जो स्वर्ग पहुँचने के बावजूद वापस नर्ग लौट आये हों शायद ? कुछ ऐसे भी पापी होंगे  जो किसी सद्कर्मी की आड़ लेकर खुद भी स्वर्ग तो पहुँच गए, मगर वहां भी अपने कुकर्मों से बाज नहीं आते होंगे , और ये जलनखोर किसी और को वहाँ का वीसा न देने का इंद्र से बार-बार अनुरोध भी करते रहते होंगे। खैर, स्वर्ग के लिए लालायित  सभी तरह की आत्माओं से मैं तो अंत में यही कहूंगा कि अपने कर्म सुधारिये, अच्छे कर्म कीजिये,अगले जन्म में आपको स्वर्ग  का वीसा लेने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।

जय हिन्द !                                                          


             


पुण्य,पुनीत  और पावन,पवित,
तमाम,भूलोकवासी आत्माओं !
दुष्ट, निंद्य, एवम पापी, पतित,
सभी लुच्ची-लफंगी दुरात्माओं !

मत भूलो, तुम निक्षेपागार हो,
स्वामी नहीं सिर्फ पट्टेदार हो।
हस्ती पाई तुमने जगतमाता से,
पट्टे पर ले, एक देह विधाता से।

फिर तुम्हारा यह आचार कैसा,
भंगुर काया का अहंकार कैसा।    
आना है वह दिन-वार किस दिन,  
ख़त्म होगा पट्टा-करार जिस दिन।  

रखना है हरवक्त यह याद तुमको,
करना है वो जिस्म आज़ाद तुमको।
छोड़ने से पहले वह कुदरत का बाडा,
चुकाना भी होगा कुछ वाजिब भाडा।

इसलिए, हे दुरात्माओं, अब जागो,
नामुनासिब के खातिर यूं न भागो,
दुष्कर्म को न और अपने गले डालो,
सद्कर्म ही सिर्फ अपना ध्येय पालों।।

Saturday, August 17, 2013

आज यह पोस्ट अपने देश की युवा-शक्ति को समर्पित है !


यह एक सर्वविदित तथ्य है कि किसी भी देश की वास्तविक शक्ति उस देश का युवा-वर्ग होता है। और इसकी एक हल्की सी झलक इस देश ने गत वर्ष १६ दिसंबर को घटित एक शर्मनाक घटना के विरोध स्वरुप दिल्ली और देश के अन्य भागों में देखी।   कुछ कर गुजरने का जो जज्बा युवा शक्ति के अन्दर होता है, उसकी कोई बराबरी नहीं हो सकती, उसका कोई तोड़ नहीं। बस, जरुरत होती है तो सिर्फ उस युवा-शक्ति के सही मार्ग निर्देशन की। वह एक तपता हुआ लोहा है, जिसे, जिस रूप में ढालना चाहो, ढाल सकते हो।

युवा शक्ति के मार्ग-दर्शन अथवा मार्ग-निर्देशन की जरुरत की जब हम बात करते है तो उस दर्शन अथवा निर्देशन  का तात्पर्य यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि हम उन्हें ज्ञान बाँट रहे है। उनके पास पहले से ही कहीं अधिक मात्रा में वह ज्ञान मौजूद होता है, जिसे हम उन्हें बांटने की कोशिश कर रहे होते हैं।  बहुत लम्बा न खीचते हुए यही कहूँगा कि हालांकि मैं भी भला अपने देश के इन तमाम होनहार युवाओं को क्या सलाह दे सकता हूँ, किन्तु उनसे इतना जरूर कहूंगा कि वे हमेशा विवेक से काम लें और जोश में होश न गंवाएं। इस दुनिया में बहुत से कुटिल लोग भरे पड़े है जो अपने नि:हितार्थ और स्वार्थपूर्ति के लिए आपको भटका सकते है, बहका सकते है।  मसलन, मुल्ला उमर और जवाहिरी को ही ले लीजिये, लादेन की ही तरह ये कायर भी खुद तो कहीं छुपकर चार-चार बीवियों संग गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे, और पथभ्रष्ट युवाओं को मानव बम में तब्दील कर रहे हैं।  देश हित में क्या सही है और कौन सी कुर्बानी मानवता के हित के लिए है, इसकी परख हमारे भारतीय युवाओं को मुझसे भी अधिक होगी , इसकी मुझे पूर्ण उम्मीद है।               

अब तनिक ज़रा नीचे के चित्र पर गौर फरमाइए। हालांकि स्पष्ट कर दूं कि मुझे मिस्र के वर्तमान हालात से कुछ भी नहीं लेना देना और मैं यह चित्र सिर्फ अपने देश के युवाओं की जानकारी के लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ;

     


अब ज़रा नीचे के लिंक पर जाकर वीडियों  में खुद देख लीजिये कि जोश में होश गवाने वाले कैसे कुर्बानी देते है और उनमे कुर्बानी  का जोश भरने वाले, ऐन वक्त पर जब अपनी जान पे बन आती है तो कैसे भाग खड़े होते है; 
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=AK1fP-n9qtc

इसलिए आप से आग्रह करूंगा कि कभी भी किसी के उकसावे में आकर होश खोने से पहले हर बात को नाप-तोलकर परखें और फिर कदम आगे बढाये !

Friday, August 9, 2013

अब तू ही बता……।



















तू ही बता के हमको जहन में उतारा क्यों था,
दिल शीशे का था तो पत्थर पे मारा क्यों था?

सारा दोष भी तुम्हारा और चित-पट भी तेरी,

कसूर गर ये हमारा था, तो नकारा क्यों था?

जब तोड़कर बिखेरनी थी,तमन्नायें इसतरह,

फिर मुकद्दर अपने ही हाथों संवारा क्यों था?

खूब शोर मचाया था, अपनी दरियादिली का,

तन-मन इतना ही तंग था तो वारा क्यों था?

नहीं थी तुम्हारी  कोई आरजू, कोई जुस्तजू,

तो संग चलने को तुमने हमें पुकारा क्यों था?

बेकसी-ऐ-इश्क, फेरनी ही थी नजर 'परचेत', 

तो वक्त-ऐ-साद*तुमने हमको निहारा क्यों था?.

 वक्त-ऐ-साद*=खुशहाली में
छवि गूगल से साभार !

Thursday, August 8, 2013

नया दौर !

बड़े-बड़ों के हौंसले, सियासत की चौखट पर डिग जाते है,
खुदा मेहरबां हो तो सर पे गधों के भी ताज टिक जाते है।  
वो दुप्पट्टे, वो चुनर, गँवा लेती हैं जिनको लुटी अस्मतें,  
जनपथ की फुटपाथ-हाट पे अकसर, वो भी बिक जाते हैं।  


























Sunday, August 4, 2013

धार्मिक भावनाएं क्या हुई, कोई छुई-मुई हो गई !

तमाम जंगल के बीहड़ों में जो कुछ घटित हो रहा हो, उससे क्या उस जंगल का राजा अंविज्ञ रह सकता है?  या फिर यूं कहा जाए कि यदि उसे उसके राज्य में अन्याय होता दिखाई न दे, तो फिर क्या ऐसे नजरों से लाचार प्रतिनिधि को राजा  बने रहने का कोई हक़ है? यदि उसे हमेशा किसी तीसरे ने ही आकर  जगाना है, तो पूरे जंगलात के लिये यह निश्चिततौर पर एक बड़ी चिंता का विषय है।  और इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या उसे जगाने वाला भी वाकई ईमानदार प्रयास कर रहा है, या सिर्फ खानापूर्ति,  ताकि सिर्फ सुहानुभूति बटोरने के लिए जंगल की तमाम वादी की आँखों मे धूल झोंक सके ?  

और ठीक इसी सन्दर्भ में  श्रीमती सोनिया गांधी के उस पत्र को भी रखा जा सकता है, जो उन्होंने कल इस देश के प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह को लिखा और जिसमे उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि आईएएस अधिकारी सुश्री  दुर्गा शक्ति के साथ कोई अन्याय न हो। उत्तर प्रदेश में बैठे  चालाक लोग तो मानो इसका पहले से ही सटीक जबाब तैयार रखे बैठे थे, और उन्होंने भी तुरंत ही पूछ लिया कि क्या श्रीमती गांधी ने ऐसे ही आदेश अपने दामाद के जमीनी विवाद के  सिलसिले में उस वक्त भी प्रधानमंत्री को दिए थे जब हरियाणा के एक आईएएस  अधिकारी श्री खेमका के साथ अन्याय हो रहा था? और उससे भी अहम् सवाल यह कि मान लीजिये कि यूपी सरकार केंद्र की नहीं सुनती तो क्या केंद्र, मुलायम सिंह से बैर मोल ले सकती है ?
नोएडा में एक ख़ास सम्प्रदाय के लोग सुश्री दुर्गा शक्ति के खिलाफ नारे लगाते और प्रदर्शन करते हुए ! 

खैर, इस देश के राजनेताओं की तो बात ही कुछ और है, और देखा जाए तो सही मायने में आजादी सिर्फ चंद उन बेशर्म , कुटिल और धूर्त समाजविरोधी तत्वों को ही मिली है, जिनका स्थान  किसी जागरूक जनता और  न्यायसंगत शासन के तहत  सिर्फ और सिर्फ जेल होता है। लेकिन ताज्जुब तो  मुझे इस मूर्ख जनता पर होता है, जो यह भी नहीं समझ पाती कि ऐसे तुच्छ लोगों का साथ देकर वे आखिरकार हासिल क्या कर रहे है,  बुरा किसका कर रहे है,  गड्डे किसके लिए खोद रहे है? मान लीजिये कि कोई एक छोटा सा राज्य है जहां की जनता गरीब है, और दो संप्रदायों में बंटी है। एक सम्प्रदाय के लोग नौकरीपेशा और व्यवसायी हैं और दूसरे सम्प्रदाय के लोग कृषक और ठेलियों में सब्जी इत्यादि बेचने वाले है। परिणामत: नौकरीपेशा समुदाय की  क्रय-शक्ति भी कमजोर है और वे मुश्किल से सिर्फ बहुत आवश्यक सामान ही खरीद पाते है, इससे कृषक और ठेलियों पर कारोबार करने वाले समुदाय की बिक्री भी सीमित है। अब अचानक एक अच्छा शासन होने की वजह से वह राज्य प्रगति करने लगता है,  व्यवसायियों का व्यापार बढने लगता है और  नौकरीपेशा लोगो की तनख्वाह में भी अच्छी खासी  बढ़ोतरी हो जाती है।  तो निश्चिततौर पर उनकी क्रय-शक्ति बढ़ने से वे अधिक मात्रा में और भिन्न-भिन्न प्रकार की सब्जियां और फल खरीदने लगेंगे। इसके परिणामस्वरूप बिक्री बढ़ने से उन कृषको, छोटे फल और सब्जी बिक्रेताओं  की आय और रहन-सहन भी निश्चित तौर पर बढ़ेगा, जो अबतक बड़ी मुश्किल से ही दो जून की रोटी जुटा पाते थे।  

कुल मिलाकर बात यह कि बजाये चोर-गुंडे-मवालियों का साथ देने  के, उन बातों का साथ दे जिससे देश प्रगति करेगा, तो प्रत्यक्ष हो अथवा परोक्ष, भला तो सभी का होना है। लेकिन ऐसी बाते तो सिर्फ बुद्धिमान लोगो को ही समझाई जा सकती है, बेवकूफों को नहीं। हमारी धार्मिक किताबें हमें बहुत अच्छी-अच्छी बाते सिखाती है कि झूठ मत बोलो, स्त्री पर अत्याचार मत करो, इन्साफ का साथ दो, किसी जबरन कब्जाई  भूमि पर कोई धार्मिक-स्थल मत बनाओ, हिंसा मत फैलाओ इत्यादि-इत्यादि। लेकिन कहते तो हम लोग अपने को इन पवित्र ग्रंथों  का अनुयाई है और करते इनके ठीक विपरीत है,  वह भी एक पवित्र महीने में।  जबकि सारे सबूत, गवाह, यहाँ का क़ानून यह कह रहा है कि दुर्गा शक्ति के साथ अन्याय हुआ है।   और यह बात आपको-हमको  अखबारों, ख़बरिया टीवी चैनलों से पल-पल मालूम भी हो रही है, उसके बावजूद भी ये हाल है, हम अन्याय का साथ दे रहे हैं !!??

हमारे इन अज्ञानी भाई-बन्धो  को समझना होगा कि छद्म-धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाए आज के ये  तमाम राजनेता सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए हमारा इस्तेमाल  कर रहे है, अपना तो घर भर रहे है किन्तु हमारी भावी पीढ़ियों के लिए गड्डे खोद रहे है। जो ये भ्रष्ट गिरगिट अपने धर्म, अपने लोगो, अपने देश  के नहीं हुए, वे तुम्हारे क्या हो पायेंगे भला ?     सोचो-सोचो, अभी भी वक्त को पकड़ा जा सकता है !!                                       

Saturday, August 3, 2013

ख्याल एक बैंक का











कभी सोचता हूँ कि एक बैंक खोलू,
हर सुविधा बैंकों की ही तरज दूंगा,
न तो मैं किसी को  कोई दरद दूंगा,
न किसी तरह का कोई मरज दूंगा,   
मैं न सिर्फ नेक दिल वालों को ही, 
बल्कि जरज को भी अलगरज दूंगा,    
चाहे कोई लौटाए या न लौटाए, मगर
हाथ उसके बेड़ी नहीं, कंठ सरज दूंगा,   
वो देते हैं सिर्फ भौतिक सुखों के वास्ते, 
किंतु, मैं मोहब्बत के लिए भी करज दूंगा।   


  जरज = बदमाश  अलगरज= बेपरवाह    सरज= माला      

तुम हमें एसएमएस भेजो  न भेजो,मर्जी तुम्हारी,
किंतु अलगरज हम नहीं, ये है अलगर्जी तुम्हारी।.

Friday, August 2, 2013

खबर-जबाब !

खबर: "केंद्रीय कैबिनेट ने सूचना का अधिकार कानून में संशोधन को हरी झंडी दे दी है। संशोधन के बाद अब राजनीतिक पार्टियां आरटीआई के दायरे से बाहर रहेंगी यानि अब आप किसी राजनीति पार्टी से कोई सवाल नहीं पूछ सकेंगे।
अब राजनीतिक पार्टियां जनता के सवालों का जवाब नहीं देंगी यानि आप आरटीआई के तहत किसी भी राजनीतिक पार्टी के फंड वगैरह की जानकारी नहीं मांग पाएंगे। पार्टियों को आरटीआई कानून से बाहर रखने को लेकर एक्ट में संशोधन पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद मानसून सत्र में इसे पास करवाने की तैयारी है।
दरअसल राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने के सीईसी के निर्देश से बचने के लिए ये एक्ट में ही बदलाव की कवायद हो रही है।
सेंट्रल इंफोर्मेशन कमीशन के 3 जून को सभी पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने की कवायद शुरु की थी जिसके मुताबिक 15 जून तक तमाम राजनीतिक पार्टियों को सार्वजनिक सूचना अधिकारी की नियुक्ति करना था लेकिन सीपीआई को छोड़कर किसी भी पार्टी ने इस पर अमल नहीं किया।
यहां तक की आरटीआई कानून लाने का श्रेय लेने वाली कांग्रेस को भी इससे एतराज था। आरटीआई एक्ट में बदलाव पर आम आदमी पार्टी ने सख्त ऐतराज जताया है।
इस मसले पर सभी पार्टियों की एकजुटता से यह संशोधन होना तय है और जनता को पार्टियों का सच जानने का हक नहीं मिलने वाला।"


जबाब: by Gurumit Singh Tuteja

एक राजा था जिसकी प्रजा हम भारतीयों की तरह ही सोई हुई थी ! बहुत से लोगों ने कोशिश की प्रजा जग जाए ..किन्तु हे राम !…. जागरूक लोग चाहते थे कि  अगर कुछ गलत हो रहा है तो जनता उसका विरोध करे, लेकिन प्रजा को कोई फर्क नहीं पड़ता था ! राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये, प्रजा चुप रही ! राजा ने अजीबो- गरीब टैक्स लगाए, प्रजा चुप रही ! राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन प्रजा फिर भी चुप रही ! एक दिन राजा के दिमाग मे एक शरारत सूझी, उसने एक अच्छे-खासे चौड़े रास्ते को खुदवा कर उसके ऊपर एक पुल बनवा दिया .. जबकि वहां पुल की कतई ज़रूरत नहीं थी! .. प्रजा फिर भी चुप थी, किसी ने नहीं पूछा कि  भाई यहा तो किसी पुल की ज़रूरत ही नहीं है आप काहे बना रहे है ? जब पुल तैयार हो गया तो राजा ने अपने कुछ सैनिक उस पुल पे खड़े करवा दिए और पुल से गुजरने वाले हर व्यक्ति से टैक्स वसूला जाने लगा, फिर भी किसी ने कोई विरोध नहीं किया ! फिर राजा ने अपने सैनिको को हुक्म दिया कि जो भी इस पुल से गुजरे,उससे टैक्स वसूलने के साथ-साथ उसको 4 जूते भी मारे जाए और एक शिकायत पेटी भी पुल पर रखवा दी कि किसी को अगर कोई शिकायत हो तो शिकायत पेटी मे लिख कर डाल दे, लेकिन प्रजा फिर भी चुप ! राजा खुद ही जाकर रोज़ शिकायत पेटी खोल कर देखता कि शायद किसी ने कोई विरोध किया हो, लेकिन उसे हमेशा पेटी खाली मिलती !बहुत दिनो के बाद अचानक एक दिन एक चिट्ठी मिली ... राजा खुश हुआ कि चलो कम से कम एक आदमी तो जागा ,,,,, जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमे लिखा था - "हुजूर, पुल पर जूते मारने वाले आपके सैनिको की तादाद  कम है, जिससे पुल पर पीक हावर में जाम की स्थिति बनी रहती है , कृपया जूते मारने वालों की संख्या बढ़ा दी जाए ... हम लोगो को काम पर पहुंचने मे अक्सर देरी होती है ! "

भवदीय,
एक नागरिक !




कार्टून कुछ बोलता है- पासवर्ड चोरी का डर !


प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।