तू ही बता के हमको जहन में उतारा क्यों था,
दिल शीशे का था तो पत्थर पे मारा क्यों था?
सारा दोष भी तुम्हारा और चित-पट भी तेरी,
कसूर गर ये हमारा था, तो नकारा क्यों था?
जब तोड़कर बिखेरनी थी,तमन्नायें इसतरह,
फिर मुकद्दर अपने ही हाथों संवारा क्यों था?
खूब शोर मचाया था, अपनी दरियादिली का,
तन-मन इतना ही तंग था तो वारा क्यों था?
नहीं थी तुम्हारी कोई आरजू, कोई जुस्तजू,
तो संग चलने को तुमने हमें पुकारा क्यों था?
बेकसी-ऐ-इश्क, फेरनी ही थी नजर 'परचेत',
तो वक्त-ऐ-साद*तुमने हमको निहारा क्यों था?.
वक्त-ऐ-साद*=खुशहाली में
छवि गूगल से साभार !
Aabhar Yashoda ji
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सटीक और शानदार गजल.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब ....
ReplyDelete
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
बहुत बढ़िया .....
ReplyDelete:-(
ReplyDeleteजय हो, दमदार..
ReplyDeleteशानदार....बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबढिया
तोड़कर बिखेरनी ही थी, तमन्नायें इस तरह,
ReplyDeleteफिर मुकद्दर अपने ही हाथों संवारा क्यों था? ..
सही प्रशन है ... दिल के भाव सहेज दिए आज तो ...
लाजवाब लिखा है ...
टूटे हुए दिल की फरियाद
ReplyDeleteजो भूल गया उसकी याद