Friday, August 9, 2013

अब तू ही बता……।



















तू ही बता के हमको जहन में उतारा क्यों था,
दिल शीशे का था तो पत्थर पे मारा क्यों था?

सारा दोष भी तुम्हारा और चित-पट भी तेरी,

कसूर गर ये हमारा था, तो नकारा क्यों था?

जब तोड़कर बिखेरनी थी,तमन्नायें इसतरह,

फिर मुकद्दर अपने ही हाथों संवारा क्यों था?

खूब शोर मचाया था, अपनी दरियादिली का,

तन-मन इतना ही तंग था तो वारा क्यों था?

नहीं थी तुम्हारी  कोई आरजू, कोई जुस्तजू,

तो संग चलने को तुमने हमें पुकारा क्यों था?

बेकसी-ऐ-इश्क, फेरनी ही थी नजर 'परचेत', 

तो वक्त-ऐ-साद*तुमने हमको निहारा क्यों था?.

 वक्त-ऐ-साद*=खुशहाली में
छवि गूगल से साभार !

11 comments:

  1. वाह, बहुत ही सटीक और शानदार गजल.

    रामराम.

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  2. शानदार....बधाई

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  3. तोड़कर बिखेरनी ही थी, तमन्नायें इस तरह,
    फिर मुकद्दर अपने ही हाथों संवारा क्यों था? ..

    सही प्रशन है ... दिल के भाव सहेज दिए आज तो ...
    लाजवाब लिखा है ...

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  4. टूटे हुए दिल की फरियाद
    जो भूल गया उसकी याद

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।