खबर: "केंद्रीय कैबिनेट ने सूचना का अधिकार कानून में संशोधन को हरी झंडी दे दी है। संशोधन के बाद अब राजनीतिक पार्टियां आरटीआई के दायरे से बाहर रहेंगी यानि अब आप किसी राजनीति पार्टी से कोई सवाल नहीं पूछ सकेंगे।
अब राजनीतिक पार्टियां जनता के सवालों का जवाब नहीं देंगी यानि आप आरटीआई के तहत किसी भी राजनीतिक पार्टी के फंड वगैरह की जानकारी नहीं मांग पाएंगे। पार्टियों को आरटीआई कानून से बाहर रखने को लेकर एक्ट में संशोधन पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद मानसून सत्र में इसे पास करवाने की तैयारी है।
दरअसल राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने के सीईसी के निर्देश से बचने के लिए ये एक्ट में ही बदलाव की कवायद हो रही है।
सेंट्रल इंफोर्मेशन कमीशन के 3 जून को सभी पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने की कवायद शुरु की थी जिसके मुताबिक 15 जून तक तमाम राजनीतिक पार्टियों को सार्वजनिक सूचना अधिकारी की नियुक्ति करना था लेकिन सीपीआई को छोड़कर किसी भी पार्टी ने इस पर अमल नहीं किया।
यहां तक की आरटीआई कानून लाने का श्रेय लेने वाली कांग्रेस को भी इससे एतराज था। आरटीआई एक्ट में बदलाव पर आम आदमी पार्टी ने सख्त ऐतराज जताया है।
इस मसले पर सभी पार्टियों की एकजुटता से यह संशोधन होना तय है और जनता को पार्टियों का सच जानने का हक नहीं मिलने वाला।"
जबाब: by Gurumit Singh Tuteja
एक राजा था जिसकी प्रजा हम भारतीयों की तरह ही सोई हुई थी ! बहुत से लोगों ने कोशिश की प्रजा जग जाए ..किन्तु हे राम !…. जागरूक लोग चाहते थे कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो जनता उसका विरोध करे, लेकिन प्रजा को कोई फर्क नहीं पड़ता था ! राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये, प्रजा चुप रही ! राजा ने अजीबो- गरीब टैक्स लगाए, प्रजा चुप रही ! राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन प्रजा फिर भी चुप रही ! एक दिन राजा के दिमाग मे एक शरारत सूझी, उसने एक अच्छे-खासे चौड़े रास्ते को खुदवा कर उसके ऊपर एक पुल बनवा दिया .. जबकि वहां पुल की कतई ज़रूरत नहीं थी! .. प्रजा फिर भी चुप थी, किसी ने नहीं पूछा कि भाई यहा तो किसी पुल की ज़रूरत ही नहीं है आप काहे बना रहे है ? जब पुल तैयार हो गया तो राजा ने अपने कुछ सैनिक उस पुल पे खड़े करवा दिए और पुल से गुजरने वाले हर व्यक्ति से टैक्स वसूला जाने लगा, फिर भी किसी ने कोई विरोध नहीं किया ! फिर राजा ने अपने सैनिको को हुक्म दिया कि जो भी इस पुल से गुजरे,उससे टैक्स वसूलने के साथ-साथ उसको 4 जूते भी मारे जाए और एक शिकायत पेटी भी पुल पर रखवा दी कि किसी को अगर कोई शिकायत हो तो शिकायत पेटी मे लिख कर डाल दे, लेकिन प्रजा फिर भी चुप ! राजा खुद ही जाकर रोज़ शिकायत पेटी खोल कर देखता कि शायद किसी ने कोई विरोध किया हो, लेकिन उसे हमेशा पेटी खाली मिलती !बहुत दिनो के बाद अचानक एक दिन एक चिट्ठी मिली ... राजा खुश हुआ कि चलो कम से कम एक आदमी तो जागा ,,,,, जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमे लिखा था - "हुजूर, पुल पर जूते मारने वाले आपके सैनिको की तादाद कम है, जिससे पुल पर पीक हावर में जाम की स्थिति बनी रहती है , कृपया जूते मारने वालों की संख्या बढ़ा दी जाए ... हम लोगो को काम पर पहुंचने मे अक्सर देरी होती है ! "
भवदीय,
एक नागरिक !
इस विषय पर तो सारी पार्टियाँ एकजुट भी हैं ... :)
ReplyDeleteअपना स्वार्थ हो वहां सब एकजुट हैं, दिखावे का विरोध है. कहानी बिल्कुल सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
:-) Sahi hai...
ReplyDeleteek acchhe chitra ki prastuti------!
ReplyDeleteइस विषय पर ऐसी खबर से पहले ही लिखा मेरा लेख (सूचना का आरक्षण) तो आपने पढ़ ही लिया होगा। बाकी क्या कहूँ।
ReplyDeleteकहानी वाला हाल ही है लोग जागने को तैयार ही नहीं है !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(3-8-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
जनता की चिंता किसे रहती है ..न जनता को न सरकार को ...उन्हें तो चलना बस एक के पीछे एक ...
ReplyDeleteबहुत सही ..
जूती जूता खाय के, जन मन जीव अघाय |
ReplyDeleteमहँगाई का बोझ भी, उठा उठा मुसकाय |
उठा उठा मुसकाय, शिकायत वह ना जाने |
मंदिर मस्जिद जाय, बहाने अश्रु बहाने |
कारिन्दे हुशियार, बोलती उनकी तूती |
राजा तानाशाह, दिलाते हम मजबूती |
All Dacoits are safe now.
ReplyDeleteहैसही बात है मुझे भी लग तो रहा था कि पीक अवर में ट्रैफिक इस पुल पे कुछ ज्यादा हो तो जाता है ...
ReplyDeleteवाह , बहुत सुंदर
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
गजल
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_4.html
अपने मतलब पर सब एक हो जाते हैं !
ReplyDeleteवाह जी वाह ... कितना जोर का तमाचा पर आवाज़ भी आए और कोई उससे जागे तो ...
ReplyDeleteसन्नाट कटाक्ष किया है।
ReplyDeleteसहमत
ReplyDeleteअसली तस्वीर तो यही है।