Wednesday, March 31, 2010

लघु कथा (व्यंग्य) - पिछला टायर !


वित्तीय बर्ष की समाप्ति और ३१ मार्च को अधिकाँश बैंको में खाते समापने कार्य के तहत सार्वजनिक लेनदेन न होने की वजह से ३० मार्च को ही वेतन बाँट दिया गया था ! इसलिए सेलरी की रकम हाथ में होने की वजह से हमेशा पुराना और उपयोग किया हुआ मोबिल आयल पीने वाले जनाब टायर खान ने भी कल उच्चस्तरीय, बढ़िया किस्म की खरीदकर कुछ ज्यादा ही चढ़ा ली थी! परिणामस्वरुप पिछले टायर को इन्हें स्टैंड (बिस्तर) तक पहुंचाने में ठेल-ठेल कर ले जाना पडा और काफी मशक्कत करनी पडी ! जानकारी के लिए बता दूं कि ये जनाव टायर खान चुकि गाडी के अग्रभाग के टायर है, इसलिए काफी गुरूर इनके अन्दर भरा हुआ है ! पिए में लडखडाती जुबान से अपनी शेखी बघारते हुए और पिछले टायर पर धौंस जमाते हुए कह रहे थे कि मैं तो अपनी मर्जी का मालिक हूँ! जो जिधर मर्जी आयेगी, उधर जाऊँगा और तुम्हे भी मेरा अनुशरण करते हुए मेरे ही पीछे-पीछे आना होगा! तुम्हारी अपनी कोई मर्जी नहीं हो सकती, तुम तो यूँ समझो कि मेरे पैर की जूती हो, तुम्हे तो मेरी ही आज्ञां का पालन करना पडेगा ! जनाव खान की बाते सुन-सुनकर हैंडल महोदय ऊपर से मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, और खुद में ही बडबडा रहे थे, कि बेटा, बड़ी धौंस जमा रहा है उस बेचारे पिछले टायर पर ! मगर यह नहीं सोच रहा कि अगर पिछला टायर भी साथ में चलने से इनकार कर दे, तो यह खुद कहीं नहीं जा सकता ! जब पिछला टायर मेहनत से जोर लगाकर ठेलता है, तब जाके तो यह आगे बढता है, और अपने को तीस मारखां समझ रहा है! साथ ही यह भी भूल रहा है कि ऊपर मैं भी हूँ, मैंने अगर इसे किसी गटर की तरफ घुमा दिया तो जाएगा सीधे जहन्नुम में !

पिछ्ला टायर सहमा सा उसे आहिस्ता-आहिस्ता अभी भी ठेले जा रहा था, और टायर खान उसे गालियाँ देते हुए धौंस जमाते हुए कहे जा रहा था कि तू इस घमंड में मत रहा कर कि तू मुझे ठेलती है, मुझे सहारा देती है! देख लेना, मैं तेरे से भी बढ़कर तीन और टायर अपने पीछे लगाउंगा, तब देखना तू ! अब पिछले टायर के सब्र का भी बांध टूट चुका था, उसने गुस्से में झटके से रुकते हुए वहीं जमीन पर अपने पैर पटके तो जनाव टायर खान जमीन से दो फिट ऊपर हवा में लटक गए ! पिछला टायर बोला, मिंयाँ ये भी मत भूलो कि अगर घर में ज्यादा बिल्लियाँ हो जाए तो फिर एक भी चूहा नहीं मार पाती ! एक टायर तो ठीक से संभलता नहीं, और बड़े ख्वाब देख रहा है चार-चार टायर लगाने के !
पिछले टायर की बात सुन ऊपर से हैंडल मुस्कुरा दिया और गुनगुनाने लगा ;
अपनी तो बस एक ही जान है भाई ,
उसकी हर अदा पर, हम कुर्बान हैं भाई ,
तबसे ही महका है मेरा आँगन,
जबसे उसने थामा है मेरा दामन,
मैंने तो चंद पैसे कमाकर इक मकां बनाया,
अपनी खूबियों से उसने उसे आशियाँ बनाया,
बस एक माली, एक बगिया और दो फूल,
बस यही तो है सुखमय जीवन का असूल,
मैंने तो बस वही गीत गुनगुनाया,
मेरी जान ने जो तराना बनाया,
वह मेरी आन-बान और शान है भाई,
अपनी तो बस एक ही जान है भाई !!!

Tuesday, March 30, 2010

मुहावरे ही मुहावरे !


तू डाल-डाल,मैं पात-पात,नहले पे दहले ठन गए,
जबसे यहाँ कुछ अपने मुह मिंया मिट्ठू बन गए।

ताव मे आकर हमने भी कुछ तरकस के तीर दागे,
बडी-बडी छोडने वाले, सर पर पैर रखकर भागे

अक्ल पे पत्थर पड गये क्या, आग मे घी मत डालो,
दूसरों पर पत्थर फेकना छोडो, अपना घर संभालो

समझदार नहीं धर्म की आंच पर रोटियाँ सेका करते,
कांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते।

हमेशा एक ही लकडी से हांकना ठीक सचमुच नहीं ,
मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तक बाकी कुछ नहीं ।

आंखों मे धूल झोंक,खुद को तीस मारखा बताते हो,
चोर-चोर मौसेरे भाई हो,खिचडी अगल पकाते हो।

अपुन तो सौ सुनार की, एक लोहार की पे चलते है,
चिराग तले अन्धेरा है आपके, काहे फालतू में जलते है।

हम सब जानते है कि दूर के ढोल सुहाने होते है,
नहीं समझदार लोग बहती गंगा में हाथ धोते है।

कार्टून कुछ बोलता है !

ताजा खबर : सरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का फिर से गठन करने का फैसला लिया, जिसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी होंगी, और उनका काम आम मुद्दों पर सरकार को सलाह देना होगा !



सर जी , तुस्सी मजाक कर रहे हो जी,आज तक आप बिना सलाह के ही काम कर रहे थे क्या ?

-छवि गुगुल से साभार

Monday, March 29, 2010

आस्था से ये प्यार कैसा !

कृत्य मे हो अगर संदिग्धता, करे कोई ऐतबार कैसा, 
नजर न आये मिजाज नीरव, नम्र तेरा व्यव्हार कैसा।

पाले रखे हों जब जिगर मे,  अंत्य ख्याल प्रतिघात के,
फ़रमाबरदार अल्लाह का बन, आस्था से  प्यार कैसा।

निकले न हों जुबां से कभी, सरस स्नेह के दो लफ़्ज भी,
रिपु बना के अग्रज को, जेहाद मुक्ति का आधार कैसा।  


भोग के लोभ मे लबे-राह, बना लिया इक आशियाना,
वसीला बना अशक्त-ए-पर्दानशीं, सर्ग का करार कैसा।

खुदा के फ़जल से बनी जब, कृति अनवरत संसार की,
पाने को अज्ञेय जन्नत हो रहा, इसकदर बेकरार कैसा।

एक ही माटी से ढाले जब उसने सभी एक ही चाक पर,
कहे, तोड डाल काफ़िरे-घडों को, अरे यह कुम्हार कैसा।  


गैर के मजहब की भी स्तुति करना सीख,निन्दा नही,
जब इन्सानियत ईश धर्म है, फिर तेरा अहंकार कैसा।  

- अंत्य = तुच्छ -फ़रमाबरदार=आज्ञाकारी
- लबे-राह= सड्क किनारे -वसीला= जरिया,
- अग्रज= बडा भाई - सर्ग= सृष्टि, रिपु= शत्रु

हमारे सरकारी विभाग नहीं सुधरेंगे !

सरकारी विज्ञापन मे पहले तो एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी को अपने देश का आइकॉन बना डाला, फिर दिल्ली को पाकिस्तान मे दिखा दिया, और अब कुछ दिनों से समाचार पत्रों मे रोज प्रकाशित हो रहे केन्द्रीय उत्पाद एंव सेवा कर विभाग के एक विज्ञापन ने सेवा करदाताओं को खासा भ्रमित कर रखा है। एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी गलती। कभी-कभी लगता है कि आरक्षण, भ्रष्ठ नेताओं और अफ़सरशाहों की चमचागिरी और चाटुकारिता तथा घूस लेकर अयोग्य व्यक्तियों को सरकारी पदों पर रखने के दुष्परिणाम अब खुलकर सामने आने लगे है। जबाबदेही नाम की तो कोई चीज ही नही रह गई। अब आप देखिये इस विज्ञापन को, जिसमे रिटर्न जमा करने की अन्तिम तिथि ३१ मार्च बताई गई है, जबकि ३१ मार्च टै़क्स जमा करने की अन्तिम तिथि है। करदाता भ्रमित है, और पूछ रहे है कि जब टैक्स जमा करने की अन्तिम तिथि ही ३१ मार्च है तो भला उसी दिन पर कोई रिटर्न कैसे फाइल कर सकता है । लगता है कि शायद विज्ञापनदाताओं को यही मालूम नही कि टै़क्स जमा करने और रिटर्न भरने मे क्या अन्तर है, या फिर कोई इस और गौर करने की जुर्रत ही नहीं कर रहा ? लोग परेशान हों तो हों। ऐसी छोटी-मोटी गलतियां तो हो ही जाती है !


कृपया चित्र पर क्लिक करें

मार-मार कर भी एक “सच्चा मुसलमान” बनाने की कवायद, कैसे, आइये देखें ?


चित्र दैनिक हिन्दुस्तान के सौजन्य से !

दीनी तालीम हासिल करने के लिए दिल्ली के मदरसे में दाखिला लिए बच्चों के साथ मारपीट व अश्लील हरकत करने का मामला सामने आया है। मदरसे से भाग कर शनिवार सुबह पुराने गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर बदहवास हालत में भटक रहे चार किशोरों ने आपबीती सुनाकर मामले का खुलासा किया। पूरी खबर यहाँ पढ़ सकते है !

Saturday, March 27, 2010

अर्थ हावर ????

जानना चाह रहा था कि आज अर्थ हावर के दौरान मैं सड़क पर ड्राइव कर रहा हूँगा, क्या गाडी लाईट बंद करके चलानी पड़ेगी ?

कुरुक्षेत्र से एक रिपोर्ट !

धर्म पर अधर्म की विजय के लिए कुरुक्षेत्र में घमासान जारी है! बढ़ती महंगाई, अराजकता और भ्रष्टाचार से देश की बदहाली को न देखने की कसम खा, गांधारी ने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली है! मामा शकुनी का अपना अमर मोहरा जब से थाली का वैंगन बना इधर से उधर लुडक रहा है, तभी से मामा शकुनी ने सीटी बजाना शुरू कर दिया है! पांचाली का माया मोह अपनी सारी हदे तोड़ चुका है! धृतराष्ट्र का प्रतिनिधि बूढा होकर खुद इतना असहाय सा हो गया है कि खुजली होने पर दरवारियों को कहता है कि थोड़ा खुजला दो! इस पूरे युद्ध का गहराई से निरीक्षण करने से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि देश को कृष्ण की कमी हर जगह हर वक्त खल रही है, उनकी गैर-मौजूदगी से युद्ध दिशाहीन सा हो गया है ! भीष्मपितामह मृत्यु शय्या पर लेटे-लेटे चुपचाप तमाशा देख रहे है ! निकट भविष्य में सिंहासन को युधिष्टर मिलने की भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है! खैर,जो भी है मगर शनै:-शनै: धर्म पर अधर्म द्वारा विजय प्राप्त करने की यह लड़ाई एक दिलचस्प मोड़ ले रही है !

एक तरफ जहां सब लोग अपना ध्यान कुरुक्षेत्र पर ही केन्द्रित किये बैठे है, वही दूसरी तरफ देश में क़ानून और न्याय व्यवस्था इतनी कमजोर और सत्ता स्वामिभक्त हो गई है कि १८ साल बाद भी बाबरी का जिन्न जब तब सिर उठाकर खडा हो जाता है! अपनी सहूलियत के हिसाब से १८ साल बाद गवाह से गवाही दिलवाकर मुद्दे को ज़िंदा रखने का भरसक प्रयास किया जाता है! जब-जब ५- ६ दिसम्बर आएगा, देश में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की जायेगी ! इसलिए नही कि इसी दिन पर यूनियन कार्बाईड के प्लांट से गैस रिश्ने से हजारो मर गए थे ! ऐसे आलतू-फालतू तो मरते ही रहते है, मगर वह इसलिए कि इस दिन बाबरी मस्जिद का वह जर्जर ढांचा गिराया गया था ! जो कि इस देश के मुस्लिमो के आस्था का प्रतीक था ! आस्था बड़ी होती है, देश तो चलता रहता है! जब तक हमारा सेकुर्लरिज्म रहेगा, हमारे मुसलमान भाई यूँ ही सडको पर ०६ दिसम्बर को प्रदर्शन करते रहेंगे! इसलिए नहीं कि उनके आस्था के प्रतीक को गिरा दिया गया बल्कि इसलिए क्योंकि इसी से तो युवा मुस्लिमो में अपने धर्म के प्रति कुर्वानी का जोश और जज्वा पैदा होता है! और वे दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, बैंगलोर और मुंबई जैसी कार्यवाही को अंजाम देने में सक्षम हो पाते है ! अफसोस कि एक जागरूक और शिक्षित मुस्लिम भी वास्तविक धरातल को समझने, तुलनात्मक और वक्त की नजाकत के हिसाब से व्यवहार करने में दिलचस्पी नही रखता ! अपने उस ज़न्नत जाने और ७२ वर्जिन को पाने की जिद में बस दार-उल-हद और डर-उल-ब्रांड के दर्शन कर इसे पवित्र युद्ध ( जेहाद) की संज्ञा देने से नही हिचकिचाता ! जेहादी संस्थानों ने भी सिर्फ़ यही सिखाया कि जब दुनिया देखती है तो हमेशा शिकायती लहजे(whine) में बात करो, और जब दुनिया सोती है तो चोट (hit) करो !

अंत में यही कहूँगा कि आज के समय में इस देश में कौरवो और पांडवो में से कोई भी पक्ष ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह नही कर रहा, सब के सब केवल वोट बैंक की राजनीति तक सिमट कर रह गए है! अपनी कमज़ोरी छुपाने के लिए दूसरों की बुराई करना, बस यही इस धर्म युद्ध का मकसद रह गया है ! बूढ़े योधाओ के सिर में "भेजा" नहीं है,! किसी ने ठीक ही कहा है कि ;
"खुजली इनके ख़ुद को है, पर पब्लिक को नोच रहे हैं,
धूल जमी इनके चेहरे पर, और ये दर्पण को पोंछ रहे है "
देश की प्रमुख समस्या वह नहीं है जो हम देख रहे है, बल्कि भ्रष्ट और बूढ़ा नेतृत्व है। जब तक योग्य और शिक्षित युवाओं के हाथ में इस युद्ध का नेतृत्व नही चला जाता, तब तक देश नपुंसक की भांति यह उम्मीद करता रहेगा कि अमेरिका हमारे विरोधी पक्ष पर सैनिक कार्यवाही करके हमें हमारी समस्या से मुक्त करा देगा !

Friday, March 26, 2010

ऐसी नहीं तो वैसी आयेगी, मगर आयेगी जरूर !


कल ही एक खबर पर ध्यान गया था, खबर थी ; भारत और बांग्लादेश पिछले 30 साल से बंगाल की खाड़ी में स्थित एक छोटे से टापू पर अपना अपना दावा ठोक रहे थे। ग्लोबल वार्मिग ने इसे शांत कर दिया। सुंदरवन का यह न्यू मूर टापू सागर में समा गया। विस्तृत खबर यहाँ पढ़ सकते है "जिसके लिए 30 साल से लड़ रहे थे, वह डूब गया !" यानि कुदरत ने झगडे की जड़ ही मिटा कर रख दी । जैसा कि आप लोग भी जानते है कि काफी समय से एक ख़ास आशंका इलेक्ट्रोनिक मीडिया में और अंतर्जाल पर खासा चर्चा का विषय रहा है कि २०१२ के अंत तक पृथ्वी पर प्रलय आने वाली है। में न तो अन्धविश्वाशी हूँ और न ही में यह जानता हूँ कि यह प्रलय कब और कैसे आयेगी, लेकिन जिस तरह से पृथ्वी पर हालात बन रहे है, जिन्हें आप और हम लगातार महसूस भी कर रहे है तो आपको भी नहीं लगता कि देर-सबेर कुछ न कुछ तो जरूर होने वाला है। आइसलैंड में एक ज्वालामुखी पिछले हफ्ते भर से धधक रहा है और उसने अगर पूरे क्षेत्र (१०० वर्ग कि. मी.) की बर्फ पिघला दी तो क्या होगा ? में आपको डराने की कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि सच्चाई से रूबरू करवा रहा हूँ । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कुदरत भी अब कपटी इंसान से दो-दो हाथ कर लेने के मूड में है। खैर, यह एक अनिश्चित किस्म की आशंका है, जो हो भी सकती है और नहीं भी।

लेकिन एक को निश्चित किस्म की आशंका मैं यहाँ व्यक्त करने जा रहा हूँ, वह है पाकिस्तान की तरफ से बढ़ता परमाणु ख़तरा। हमें इस गलत फहमी में नहीं रहना होगा कि पाकिस्तान ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि उसे भी ऐसा करने से पूर्व अपने अस्तित्व के बारे में सोचना होगा। पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है, और भारत का कट्टर दुश्मन। अत: वहाँ के हालात, लोगो की मानसिकता, पाकिस्तान की अविश्वसनीयता और पूर्व इतिहास को देखकर यह कहा जा सकता है कि वहाँ की सियासी सत्ता के चार केन्द्रों सेना, सरकार,आईएसआई और आतंकी संगठनों में बैठा कब कोई सिरफिरा कठमुल्ला अपनी भड़ास निकालने के लिए ऐसी नादानी कर बैठे, कहा नहीं जा सकता। दूसरी बात यह भी है कि कि जिस अमेरिका को हम अपना दोस्त मानकर चलते है वह निहायत एक ... क़िस्म का स्वार्थी दूकानदार है, जो सिर्फ उसे सलाम करता है जो उसकी दुकान पर माल खरीदने जाता है,अथवा जहां उसे अपना फायदा दिखता है। बराक ओबामा को ही देख लीजिये चुनाव के समय क्या लम्बी-लम्बी छोड़ रहे थे जनाव, और अब असली रंग दिखाने लगे। मैं तो थोड़ा हटकर यह कहूंगा कि हमारे ऊपर जो अमेरिका और चीन की छत्रछाया तले पाकिस्तान के परमाणु बम की तलवार लटकी है, वह कभी न कभी हमें तो कष्ट पहुंचाएगी ही, मगर अमेरिका के व्यवहार को देखते हुए हम भी यह दुआ करे कि ओसामा कभी भी उसके हाथ न लगे, और ओसामा की भी परमाणु इच्छा पूरी हो , ताकि प्रलय आये तो पूरा विश्व डूबे, अकेले हम क्यों ?

एक पंक्ति हास्य

आज मेल से मिले एक पंक्ति हास्य का हिन्दी रूपांतरण यहाँ आपके मनोरंजनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ ;

[1] नियमित झपकी लेने से बुढ़ापा रोकने में मदद मिलती है , खासकर तब, जब आप गाड़ी चला रहे हो !

[2] एक बच्चे के होने से आप माता पिता बनते है, और दो होने से रेफरी !

[3] शादी एक रिश्ता है जिसमें एक व्यक्ति हमेशा सही होता है, और दूसरा पति होता है!

[4 ] मैं इस बात में भरोसा रखता हूँ कि अपना टैक्स हँसते हुए देना चाहिए! मैंने कोशिश की - लेकिन वे नकदी चाहते थे !

[5] आप बुरा महसूस मत कीजिये, बहुत सारे लोग होते है, जिनमे कोई प्रतिभा नहीं होती !

[6] उससे शादी मत करो जिसके साथ आप रहना चाहते है, उससे शादी करो जिसके वगैर आप रह नहीं सकते , मगर दोनों ही परिस्थितियों में आपको बाद में पछताना पडेगा !

[7[] तुम प्यार नहीं खरीद सकते, लेकिन आप इसके लिए भारी भुगतान करते हैं!

[8] बुरे राजनीतिज्ञों को वे अच्छे नागरिक चुनते है, जो वोट नहीं देते !

[9] मेरी पत्नी और मैं हमेशा समझौता करके चलते है ! मैं मान लेता हूँ कि मैं गलत हूँ और वह मेरे साथ सहमत होती हैं !

[10] जो खुद पर हँस नहीं सकते वेयह काम दूसरों पर छोड़ दें !

[11 ] अगर किसी काम को करने की बजाय पुरानी बातों को याद करने में ज्यादा मजा आ रहा है तो समझ लो तुम बूढ़े हो रहे हो !

[12] इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक शादीशुदा आदमी कितनी बार नौकरी बदलता है , क्योंकि हर बार उसका पाला उसी मालिक से ही पड़ता है !

[13] बचत सबसे बढ़िया बात है, खासकर तब जब यह तुम्हारे माता पिता ने तुम्हारे लिए किया हो !

[14]; बुद्धिमान व्यक्ति कुछ कहता है, क्योंकि उसके पास कहने के लिए कुछ है, और मूर्ख भी कुछ कहता है, क्योंकि उसे कुछ कहना है !

[15] मरीज : लंबे जीवन जीने के लिए कोई तरीका है?
डॉ.: शादी कर लो.
मरीज : उससे क्या होगा ?
डॉ.: तुम्हारे दिमाग में लम्बे जीने का ख्याल ही कभी नहीं आयेगा !

[16] शादी के वक्त जोड़े एक दुसरे का हाथ क्यों पकड़ते है ? यह लड़ाई शुरू होने से पहले हाथ मिलाते हुए मुक्केबाजों की तरह एक औपचारिकता है !

[17] पत्नी: जानेमन आज हमारी शादी की सालगिरह है, हमें क्या करना चाहिए?
पति: आओ हम खड़े होकर 2 मिनट का मौन रखे !

[18] अजीब बात है कि लोग प्रेम विवाह और अरेंज्ड मैरेज पर चर्चा करते है , जैसे ऐसा लगता है कि मरने से पहले कोई पूछ रहा है कि आत्महत्या बेहतर रहेगा या फिर क़त्ल हो जाऊ ?

[19] दुनिया में बस एक ही परिपूर्णबच्चा होता है, और हर माँ अपने पास उसके होने का दावा करती है !

[20] दुनिया में सिर्फ एक ही आदर्श पत्नी होती है, और वह हर पड़ोसी के पास होती है !

[२1) आदतन किसी बात पर लोग अक्सर कहते है "ऊपर छत पे "... "नीचे बेसमेंट में" , अब इन्हें कौन समझाए कि छत हमेशा ऊपर और बेसमेंट नीचे ही होता है !

Tuesday, March 23, 2010

शहीदों के प्रति भी इनकी मानसिकता में खोट है !


पिछले दो घंटे से भेल्ला बैठा था, सोचा क्यों ना एक यात्रा आज उन ब्लोगों की कर लूं, जिन्होंने हमारे इन अमर शहीदों के बारे में आज इस शहीद दिवस के सुअवसर पर लिखा है! अब आप कहोगे कि यहाँ भी तुम्हे साम्प्रदायिकता नजर आ रही है , लेकिन क्या करू , मुझे कडवे सच झुठलाने की आदत भी नहीं है! आपको विस्वास न हो तो आप खुद ही सत्यता का परिक्षण कर सकते है, सांच को आंच क्या ? आप देख सकते है ये ख़ास विरादरी के कुछ महान विद्वान् , ज्ञांता यहाँ सुबह से कुछ चुनिन्दा, इनके मन पसंद ब्लोग्स पर, दिन भर कूडा-करकट फेंकने में व्यस्त है! बटला हाउस एनकाउन्टर में मारे गए आतंकियों के पोस्ट्मोरटम में व्यस्त है, लेकिन इस ख़ास गुट के किसी एक भी माई के लाल ने अब तक एक टिपण्णी उन ब्लोगों पर जाकर अपने उन शहीदों को श्रधान्जली के तौर पर नहीं की ! तो यह क्या दर्शाता है, आप खुद अंदाजा लगा सकते है ?

Sunday, March 21, 2010

साठ साल मे अक्ल न आई.....!


साठ साल मे अक्ल न आई,  देश के कुछ बदरंगो को,
चुन-चुन के ताजो-तख़्त दिया, लुच्चे और लफ़ंगो को ॥

बाग़ उजाडने वाले ही अब, बन बैठे बाग़ के माली हैं ,
जुर्म-अपकार के फूल खिले हैं, बगिया मे बदहाली है  ॥


जाति-समाज मे हवा दे रहे है, बे-फ़िज़ूल के पंगो को,
चुन-चुन के ताजो-तख़्त दिया, लुच्चे और लफ़ंगो को ॥

जन-नुमाइंदी की आड़ में होता सारा गडबड झाला है,
जन पैंसे को तरस रहा, कंठ इनके द्रव्य की माला है ॥

धन-कुबेर की चाबी सौंप दी, पथ-छाप भिखमंगों को,
चुन-चुन के ताजो-तख़्त दिया, लुच्चे और लफ़ंगो को ॥

लूट-खसौट ही उद्देश्य रह गया, इस आज  के नेता का,

तथ्य झुठलाना ही काम रह गया, यहां कानूनबेता का ॥

पथ-भ्रष्ठ कर युवा शक्ति को, पैदा कर रहे हुड-दंगो को,

चुन-चुन के ताजो-तख़्त दिया, लुच्चे और लफ़ंगो को ॥

Saturday, March 20, 2010

खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !



सुना था,जब-जब अराजकता के बादल घिरते है,
यहाँ, आवारा हर कुत्ते के दिन फिरते है !

कमोबेश,कुछ ऐसा ही परिस्थिति अबकी भी बार है,
दूषण - प्रदूषण से हुआ हर तंत्र बीमार है !


क्या कहने,अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !


उसकी तो,बस नजर, अपने बाहुल्य बढ़ाई में है,
पांचों उँगलियाँ घी में,सिर कढाई में है !


हर तरफ,जिधर देखो, अराजकता ही नजर आती है,
रोटी की जगह टॉमी, बटर-ब्रेड खाती है !


ऐसी तो,बादशाहत, हरगिज देखी न सुनी थी हमने,
अवाम-ए-हिंद, कभी किसी बड़े लाट के भी !


क्या कहने, अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !

Friday, March 19, 2010

मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते और ...




घृणा-नफरत की पौध के दाने से पले हो,
सारा जग गुणहीन है, बस, तुम ही भले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!

तनिक दूसरों पर पंक उछालने से पहले,
खुद की गरेवाँ में भी झांक लिया करो !
हर बात पे जिसका वास्ता देते हो तुम,
भले-मानुष कम से कम उससे तो डरो !!

जो तुम्हारी न सुने वो काफिर नजर आये,
गैर की आस्था से क्यों इस कदर जले हो!
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!

मुंह से निकलती भले हो अमन की बाते,
मगर कृत्य ने सदा खून-खराबा दिखाया !
कथनी और करनी में फर्क  इंतना क्यों ,
सदाचार ऐसा यह तुमको किसने सिखाया !!

जिस सांचे में प्रभु ने तमाम दुनिया ढली,
मत भूलो उसी सांचे में तुम भी ढले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!

Thursday, March 18, 2010

मुस्लिम बुद्धिजीवियों से सिर्फ एक सवाल !

नोट: फिलहाल टिप्पणी सुविधा मौजूद है!
मुझे किसी धर्म विशेष पर उंगली उठाने का शौक तो नहीं था, मगर क्या करे, इन्होने उकसा दिया और मजबूर कर दिया ! हमारे मुस्लिम समाज के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पिछले कुछ समय से इस हिन्दी जगत में न सिर्फ नफरत का आतंक फैला रखा है, अपितु अभी दो दिन पहले एक ने तो हिन्दू महिलाओं पर ही सीधे-सीधे अश्लील बातें अपने ब्लॉग के मार्फ़त यहाँ इस हिन्दी जगत पर लिख डाली ! जिसे में अपने पिछले लेख में उल्लेखित कर चूका हूँ ! ये दूसरे धर्मो की महिलाओं पर तो जो मर्जी बयानबाजी, आरोप, कटाक्ष और अश्लील भाषा अपनी गंदी जुबां से बयाँ कर डालते है, ( हाल में इनके एक तथाकथित विद्वान् का यहाँ उदाहरण दिया जा सकता है जिसने अपनी गंदी जुबा खोल पूरी महिला जाति का यह कहकर अपमान किया कि महिलाए तो सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए होती है!) मगर इन गंदी जुबान वालों ने कभी यह देखने की कोशिश नहीं की कि बुर्के में ढकी उनकी खुद की एक महिला को चांदनी चौक में खड़े होकर गोल गप्पे खाने में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है!

इनके एक बुद्धिजीवी ने कुछ महीनो पहले अपने महान धर्म की विशेषताए बताते हुए लिखा था;
" इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म में दीपावली में जुआ खेलना धार्मिक कार्य है। ईसाई। धर्म में भी जुआ पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए क़ुरआन में बाकी सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2 : 279) islam "

अब सवाल पर आता हूँ ;

मैं व्यक्तिगत तौर पर इनके ऐसे पचासों महापुरुषों को जानता हूँ जो शेयर ट्रेडिंग से जुड़े है, और उनमे से कुछ तो शेयर ट्रेडिंग वाली वेब साईटों पर "गेस्ट" अथवा "बेनामी" के तौर पर किसी ख़ास शेयर के बारे में, जिनमे इनका अपना हित निहित रहता है, रोज ऐसे सेकड़ो झूठे मैसेज पोस्ट करते रहते है, ताकि लोग भ्रमित हो, इनके जाल में फँस जाए ! दूसरे के धर्म की तो ये बहुत सी खामियां गिनाते है, मगर मैं इनके बुद्धिजीवियों से पूछना चाहूँगा कि क्या इनके धर्म और इनके ग्रन्थ कुरआन में स्टोक मार्केट में शेयर ट्रेडिंग करना निषिद है अथवा नहीं ? क्योंकि वह भी एक सट्टा है, जुआ है !

https://twitter.com/twitter/statuses/982391352800497664

Wednesday, March 17, 2010

अरे भाई जी, किसी ने ये सवाल भी पूछे क्या ?

जहां तक माया की "माया" का सवाल है, हमारे उत्तराँचल में पूर्वजों के जांचे-परखे दो बहुत ख़ूबसूरत मुहावरे प्रचलित है, जो समय की कसौटी पर खरे भी उतरे है ! इनमे से एक किसी जाति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है, इसलिए उसका जिक्र नहीं करूंगा, मगर दूसरा मुहावरा है, "औतागु बल धन प्यारु" अर्थात जो संतानविहीन होते है, उन्हें धन अत्यधिक प्रिय होता है!

आज जहाँ तक इस देश की नौकर शाही और राजनीति का सवाल है! यह पूरी की पूरी जमात ही भ्रष्टाचार के दलदल में इस कदर धसी है कि अगर आप इन्हें इस दलदल से निकालने जाओगे तो खुद भी धस जावोगे ! इस बारे में आज ही भारतीय नागरिक - इंडियन सीटिजन जी की एक टिपण्णी पढ़ रहा था, और उससे मैं काफी सहमत भी लगा ! उस लम्बी टिपण्णी का कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है ;

"माया की माला पर ही हमला क्यों? बाकियों को क्यों बख्शा जा रहा है?? मायावती को लखनऊ में नोटों की माला पहनाई गयी, जिस पर जांच बैठ चुकी है. क्या सिर्फ इसलिये कि यह सबके सामने पहनाई गयी थी? इससे पहले मुलायम सिंह सैफई में करोड़ों रुपये की लागत से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बोइंग उतरने लायक हवाई पट्टी बनवा चुके हैं. जिस पर उनका हवाईजहाज उतरता भी रहता है. पिछले टेन्यूर में लालू तीन सौ उनहत्तर बार रेलवे के विशेष सैलून में यात्रा करते हैं और बाद में एक विशेष पास भी जारी होता है जिसमें कि वह सपरिवार एसी-प्रथम में यात्रा करने के हकदार होते हैं. कांग्रेस ने नेहरू-इंदिरा-राजीव की याद में न जाने कितने स्मारक बनवाये और पैसा खर्च किया. अन्य सत्ताधारी दलों के हिस्से में भी ऐसी चीजें अवश्य होंगी. सत्ताधारियों के अकस्मात ही अरबपति बनने के किस्से अब आश्चर्य से नहीं देखे जाते. जनता के पैसे पर अफसर और नेता मौज करते हैं. प्रश्न यह नहीं है कि मायावती ने क्या किया या मुलायम ने क्या किया. प्रश्न यह है गरीब जनता की भलाई पर जो पैसा खर्च होना चाहिये वह नेता और अफसर अपने ऊपर कैसे खर्च कर लेते हैं? उनसे जबावतलबी क्यों नहीं होती, उनके विरुद्ध जांच बिठाकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. एक जस्टिस के विरुद्ध अमानत में खयानत के आरोप के बारे में सरकार चुप्पी साध चुकी है. यदि वह जस्टिस सही थे तो उनके विरुद्ध आरोप क्यों लगाये गये और यदि आरोप ठीक थे तो फिर अब चुप्पी क्यों ?...... "

तो सारी बातें अपनी उपरोक्त टिपण्णी में जनाव भारतीय नागरिक- इंडियन सीटिजन जी ने साफ़ कर दी , लेकिन जो एक ख़ास बात है, शायद उस पर किसी का ध्यान नहीं गया ! और वह बात है, देश में हमारी आंतरिक सुरक्षा व्यवथा के चाक-चौबंद होने की पोल !!!! जैसा कि बताया गया है कि मायावती के लिए १०००-१००० रुपयों ( अब ये भी खुदा जाने कि नोट असली थे, या फिर पाकिस्तान से आई किसी खेप के माध्यम से अन्दर छुपे माल को वाईट करने के लिए इस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है :)) की माला कर्नाटका के मैसूर में तैयार गई थी ! तो अब सवाल उठते है कि;
१) मैसूर से माला लखनऊ पहुँची कैसे ?
२)किस रूट से पहुँची?
३)किस यातायात के माध्यम के मार्फ़त पहुँची?
४) माला जिस ढंग से बनाई गई थी, उससे ऐसा तो नहीं लगता कि उसे ठूंस कर किसी बैग या अटेजी में लाया गया हो , क्योंकि ऐसे में माला अपना सौन्दर्य खो डालती ! तो यह साफ़ है कि उसे अच्छी पैकिंग में लाया गया ! तो यदि वो हवाई जहाज से लाइ गई तो क्या यही हमारी हवाई सुरक्षा तैयारियां है कि एअरपोर्ट पर मौजूद सिक्योरिटी यह खोज पाने में असमर्थ रही कि इतनी बड़े मात्रा में इंडियन कैरेंसी हवाई जहाज से ले जाई जा रही है ?
५) कोई सज्जन यह तर्क न दे कि चूँकि वह उत्तरप्रदेश सरकार की मुहर पर ले जाया गया होगा इसलिए किसी ने भी उसे चेक करने की कोशिश नहीं की ! क्या सरकारों की मुहरों पर आप कुछ भी देश में इधर से उधर कर सकते है ?
६) यदि उसे सड़क मार्ग से लाया गया, तो ये चेकपोस्टों पर बैठे भरष्ट, निकम्मे नौकरशाह क्या कर रहे थे ? जब किसी व्यवसायी का कोई माल सड़क मार्ग से जाता है और खुदानाखास्ता बिल में कुछ त्रुटी हो गई तो ये लोग मोटी रकम वसूलने के बाद वाहन को रिहा करते है, ये उस वक्त कहाँ थे ?
७) अब आखिरी तर्क यह दिया जाएगा कि यह हो सकता है कि वह माला लाल/नीली बत्ती लगी किसी सरकारी एम्बेसडर कार से लाई गई होगी , तो सवाल यह है कि ऐसी बत्ती लगी कारों में आप देश के एक कोने से दूसरे कोने तक कुछ भी ले जा सकते हो, बेख़ौफ़ ?

तो भाई जी, यह है हमारी आंतरिक सुरक्षा की तैयारियां! जरुरत है हमें अपनी अंतरात्मा को टटोलने की, जल्दी टटोलिये कहीं बहुत देर न हो जाए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Tuesday, March 16, 2010

दूसरे का तो ये बुर्के पर बनाया कार्टून भी नहीं बर्दाश्त कर पाते और ...


किसी और के धर्म पर कीचड उछालने, अश्लील बाते लिखने, छद्म नामो से लिखने और टिपण्णी करने में इन्हें ज़रा भी परहेज नहीं । यहाँ देखे , यही नहीं कि इनका एक तथाकथित बुद्धिजीवी ही कीचड उछाल रहा हो, यहाँ हिन्दी ब्लॉगजगत में मौजूद इनके अधिकाँश बुद्धिजीवियों के यही हाल है । और वहीं दूसरी तरफ अगर बुर्के का किसी ने कार्टून भी बना दिया तो ये कुछ आदिम जाति के लोग पत्थर फेंकने पर उतर आते है, और कहते है कि इस्लाम का मतलब होता है शांति ! :) इनसे तो कुछ कहना कीचड में पत्थर मारने जैसा है! मैं उन तथाकथित हिन्दू बुद्धिजीवियों से एक निवेदन करूँगा कि आप इन्हें अलग-थलग क्यों नहीं करते? इनके ब्लॉग पर जाकर अगर आप कुछ नया और सृजनात्मक पढने की उम्मीद रखते है तो आप खुद ही मूर्ख है ! हाँ, अगर आप लोगो को मुस्लिम बुद्धिजीवियों के लेख पढने का इतना ही शौक है तो कृपया निरंतर इसे पढ़े, जो सच्चाई बयाँ करते है, लेकिन आपको तो सच पढने की आदत ही नहीं !!!!!! :)
अब खबर पढ़े :
टोरंटो, 15 मार्च (आईएएनएस)। कनाडा के मांट्रियल शहर के एक समाचार पत्र में बुर्के पर छपे एक कार्टून से नया विवाद खड़ा हो गया। इस कार्टून को लेकर मुस्लिम समुदाय में रोष है।
यह कार्टून 'मांट्रियल गजट' में बीते सप्ताहांत छपा। इस कार्टून को नईमा आतिफ अहमद नाम की उस मुस्लिम महिला को पृष्ठभूमि में रखकर बनाया गया था जिसने बीते साल नवंबर में एक कॉलेज में चहरे से पर्दा हटाने से मना कर दिया था। बाद में इस महिला ने अपने धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन किए जाने के आरोप लगाते हुए कॉलेज ही छोड़ दिया था।इस कार्टून में दिखाया गया है कि सिर से लेकर पांव तक नकाब में ढकी एक महिला जेल में बंद है। कार्टून को बनाने वाले कार्टूनिस्ट टेरी मॉशर ने कहा कि उन्होंने यह काटरून महिला के तर्क के विरोध में बनाया है जिसका हवाला देकर उसने पर्दे को सही ठहराया था। उन्होंने कहा कि वह इस मसले बहस छेड़ना चाहते हैं।

यह कौन सा मिराक* है


तार-तार करके रख  दिया लोकतंत्र की साख को,
माया बटोरने का अजब यह कौन सा मिराक* है ।
संविधान मुंह चिढाता है ,निर्माता-निर्देशकों का,
जंगलों की आड़ मे दमित बैठा किसी  फिराक है ।।

यही वो भेद-भाव रहित समाज का सपना था,
क्या यही वो वसुदेव कुटुमबकम का नारा था ।
यही वो दबे-पिछडों के उत्थान की बुनियाद थी,
क्या यही स्वतन्त्रता का बस ध्येय हमारा था ॥

नैतिक्ता, मानवीय मुल्य जिन पर हमे नाज था,
कर दिया उन्हे हमने मिलकर सुपुर्द-ए-खाक है ।

जनबल, धनबल, और बाहुबल के पुरजोर पर,
मुंहजोर ने रख छोडा आज कानून को ताक है ।


तार-तार करके रख  दिया लोकतंत्र की साख को,
माया बटोरने का अजब यह कौन सा मिराक* है 


• मिराक= मानसिक रोग

Monday, March 8, 2010

आतंक की हद !

आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं कुछ भी बोलने लायक नहीं हूँ, क्योंकि जो मैंने आज यहाँ अपने ब्लॉग पर लोगो के लिए बोलना था वह मेरी धर्म-पत्नी सुबह-सुबह मेरे लिए बोल चुकी ! :) लेकिन आज के एक राष्ट्रीय दैनिक हिन्दी अखबार में "प्रसिद्ध बांग्लादेशी कथाकार" तसलीमा नसरीन का एक सुन्दर लेख 'लड़ाई बराबरी की है पश्चिम की नहीं, पढ़ा था! लेख की कर्तन लेना भूल गया, मगर नेट पर यहाँ आप भी उसे पढ़ सकते है!

मुझे लेख के अंत में दिए गए एक लघु नोट को पढ़कर आश्चर्य हुआ कि महिलाओं को बराबरी का हक़ देने की पुरजोर वकालत करने वाले हम, इस देश के लोग हकीकत में क्या है! अखबार ने लेख के नीचे एक नोट लगाया है जिसमे लिखा है "लेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं" !मैं अखबार या किसी को इसके लिए दोष नहीं दे रहा , और मानता हूँ कि अक्सर अखबार इस तरह किसी के विचारों को छापते वक्त सावधानी की वजह से ऐसे नोट लगाते है , मगर जहां तक मैं समझता हूँ, लगभग हर ख्याति प्राप्त लेखक अपने लेख में अपने ही निजी बिचार रखता है किसी और के नहीं! और पढने वाला भी बखूबी समझता है कि जिस लेख को वह पढ़ रहा है उसको लिखने वाले का नाम वहा दर्ज है ! फिर इस तरह का नोट लगाने की जरुरत क्यों पड़ती है ? शायद किसी अनजाने भय और आशंका की वजह से ! क्या यही इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आशय है कि कही एक ख़ास समुदाय भड़क न जाए और अपनी तुच्छ हरकते सार्वजनिक न कर दे ? हद होती है आतंक की भी !!!!

Friday, March 5, 2010

आज आओ आपको दिखाए 'कायरों' की कायरता और गिरी हरकतों की हद !

आप से अनुरोध करूंगा कि पूरी बात समझने के लिए कृपया लेख में दिए गए सभी लिंकों पर किलिक अवश्य कीजिये !
आदि काल में राक्षसों के बारे में आपने बहुत से किस्से कहानियों में बहुत सी बाते सुनी-पढी होंगी, कि कैसे दानव भेष बदलकर मानवो को छलते थे, इत्यादि-इत्यादि ! फिर कभी आपको यह नही लगता कि अचानक ये राक्षस कहाँ गायब हो गए ? तो आज मैं वही आपको बताने जा रहा हूँ कि वे राक्षस कहीं नहीं गायब हुए, हमारे ही बीच मौजूद है और समय-समय पर अपने कृत्यों से नीचता की हदे पार करते रहते है ! और इस सबके बावजूद जो लोग उन्हें आइना दिखाने की कोशिश करते हैं ,उन्हें कुछ तथाकथित बुद्दिजीवी तुच्छ और गलीच मानसिकता का बताते है!

और गौर करने वाली बात यह भी है कि हम कहते है ये अनपढ़ है इसलिए ऐसी हरकते करते है , लेकिन ये तो अपने को तथाकथित शिक्षित भी बताते है !

यों तो ऐसे दो कौड़ी के टटपुंजो को मैं ज्यादा घास नहीं डालता, और न ही हमें डालनी ही चाहिए, मगर लोगो को इस बारे में जागरूक करना भी नितांत आवश्यक है! तो देखिये इधर, इनकी नीचता का एक छोटा सा नमूना , एक राहुल नाम का शख्स हिन्दू धर्म के बारे में अनाप-सनाप इस ब्लॉग पर लिखता था ! जिसके बारे में जानकारी श्री सुरेश चिपलूनकर के एक लेख क्या शाहरुख खान का कोई....... पर उसके द्वारा की गई टिपण्णी से उजागर हुई थी !

"rahul said...
सांप निकल गया अब लकीर पीटने से क्‍या, खान तो घर इस लिये आया कि हिसाब लगा सके किसको किया देकर क्‍या बचा?

मिडिया बारे में गलत लिख रहे हो वे ठीक काम कर रहे हैं, ठण्‍ड में 4 या 5 हजार पहुंच जायें तो 10 लाख ने कुम्‍भ में भाग लिया खबर बन तो रही है

18 February 2010 1:18 PM "

और आज इस राहुल नाम के शख्स ने जनतंत्र पर अपना नाम बदलकर नत्थू गोदियाल रख दिया !
"नत्‍थू गोदियाल says:
March 5, 2010 at 11:44 am
@गोदियाल मामा, उन्‍होंने पढ लिया, विश्‍वास न हो तो नीचे दिये लिंक पर 25वें कमेंटस में पढ लो
^^आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों^^
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/under-shadow-of-death.html"

इसके दिए हुए लिंकhttp://vedquran.blogspot.com/2010/03/under-shadow-of-death.html को खोलिए असलियत पता चल जायेगी !

तो यह है इन कायरों की असलियत और उच्च सोच का नमूना , और अपने को खुदा के बन्दे बताते है, (माय फूट !!) खुदा को भी बदनाम कर रहे है !!

Thursday, March 4, 2010

कुछ पल तो जी लिए !


सिकवे जुबाँ पे आये जब, हम ओंठों को सी लिए ,
दिल से निकले जो अश्क थे, वो आँखों ने पी लिए।  


जुल्म-ए-सितम छुपाये न ही अपने गम दिखाए,
हर बात सह गए किसी इक बात का यकीं लिए।  


खुशियों के कारवां  निकल गए बीच राह छोड़कर,
हम अकेले ही  चलते रहे  अपनी  बदनशीं लिए। 


यूं ,आसान है गले लगाना मुसीबत में मौत को ,
गफलत में  ही सही, चलो, कुछ पल तो जी लिए। 

Wednesday, March 3, 2010

पत्थर फेंकू सभ्यता और सोच !



बहुत पहले किसी किताब में (किताब का नाम याद नहीं आ रहा) भेड़ो के बारे में एक सुन्दर प्रसंग पढ़ा था! इस बारे में वो एक आम लोकोक्ति तो आपने सुनी ही होगी कि अगर एक भेड़ नदी में कूद जाए तो, पीछे से लीडर का अनुसरण करते हुए एक-एक कर सभी भेड़े नदी में कूद पड़ती है! उसके आगे की इन भेड़ो की मजेदार कहानी यह भी है कि एक बार भेड़ो का एक झुण्ड किसी संकरी गली से होकर गुजर रहा था, और किसी ने आगे गली में एक डंडा बैरियर के तौर पर लगा रखा था! लीडर भेड़ आगे-आगे चलते हुए जब डंडे के पास पहुँची तो उसके ऊपर के कूदकर निकल गई ! लेकिन कूदते वक्त टांग डंडे से टकराने की वजह से डंडा नीचे गिर गया! अब बारी लीडर का अनुशरण करती भेड़ो की थी, तो डंडा नीचे गिर जाने के बावजूद भी जितनी भेड़े अपने लीडर के पीछे थी, वे भी उसी अंदाज में वहाँ से कूद-कूदकर निकली जैसे लीडर भेड़ निकली थी! और यही नजारा शायद इस देश में आप लोगो को भी अपने आस-पास यदा-कदा दीख ही जाता होगा, क्योंकि ऐसे ही बहुत से भेड़ो के झुण्ड इस देश में भी मौजूद है !

अब मुख्य बात पर आता हूँ ! इस पत्थर फेकू कायर आदिम सभ्यता ने पश्चिम एशिया की गलियों से निकलकर अब इस देश में भी एक नई चुनौती पैदा कर दी है! विरोध किस बात पर और किससे है, उसे देखने समझने की बजाय, बस जो हाथ लगा फेंक डालो, वह जाकर किसको लगा, इससे इन्हें कोई सरोकार नहीं ! और इसका सबसे कम उम्र शिकार हाल ही में बना मासूम दस दिन का कश्मीरी इरफ़ान ! अभी कल-परसों धार्मिक स्वतंत्रता के चैम्पियन इस पत्थर फेंकू सभ्यता ने अभिव्यक्ति की स्वतत्रता के ऊपर प्रहार करते हुए कर्नाटका में जो अपना वीभत्स चेहरा दिखाया, वह निंदनीय होने के साथ-साथ चिंतनीय भी है ! क्योंकि इनकी देखा-देखी कर अब अन्य धर्मो के मतावलंबी भी वही पद्धति अपनाने लगे है! जिसका अंदाजा आप हाल में पंजाब में, ईशू के चित्र और बाबा राम रहीम के खिलाफ सी बी आई के नए आरोपपत्र के विरोध में लोगो द्वारा सार्वजनिक सम्पति को पहुंचाए गए नुकशान से लगा सकते है! अफ़सोस तब होता है जब इनके तथाकथित बुद्धिजीवी भी आम जीवन में वही शैली अपनाने का प्रयास करते है जो अनपढ़ गवार लोग करते है! जिस देश का खा रहे है, उसका गुणगान करने की वजाए, इस तरह की मूर्खता और कायरतापूर्ण हरकतों की निंदा करने के बजाय, अगर इनके लेखो को पढो तो बस अपने धर्म और सर्वेसर्वा का ही गुणगान करते मिलेंगे ! मानो बाकी सब धर्मो के भगवान या सर्वेसर्वा निचले दर्जे के हों !इन्हें मैं एक उदाहरण देकर समझाना चाहूंगा! मान लो दो लड़कियां हैं, एक हर लिहाज से बहुत ही ख़ूबसूरत और एक औसत दर्जे की ! ( कृपयाइसे दूसरे अर्थों में कदापि न लिया जाए क्योंकि हर इंसान कुदरत की देन है) वे दोनों कहीं भी जाए तो जो ख़ूबसूरत लडकी है, उसे अपनी खूबसूरती के बारे में कुछ भी नहीं कहना पड़ता ! जबकि बदसूरत लडकी को अक्सर आप यह दलील देते सुन लेंगे कि वैसे तो मैं भी ख़ूबसूरत ही हूँ या यूँ कहे कि सबसे ख़ूबसूरत हूँ , मगर थोड़ा चेहरे पर दाग -धब्बे उग आये है ! तो आप इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि आप इतनी सारी दलीले देकर अपने धर्म को कहाँ और किस लडकी के साथ खडा पाते है ? महान वह है जो सामने से दूसरे को देखने पर नजर आये, न कि अपने मुह मिंया मिट्ठू बनकर!

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।