Wednesday, March 3, 2010

पत्थर फेंकू सभ्यता और सोच !



बहुत पहले किसी किताब में (किताब का नाम याद नहीं आ रहा) भेड़ो के बारे में एक सुन्दर प्रसंग पढ़ा था! इस बारे में वो एक आम लोकोक्ति तो आपने सुनी ही होगी कि अगर एक भेड़ नदी में कूद जाए तो, पीछे से लीडर का अनुसरण करते हुए एक-एक कर सभी भेड़े नदी में कूद पड़ती है! उसके आगे की इन भेड़ो की मजेदार कहानी यह भी है कि एक बार भेड़ो का एक झुण्ड किसी संकरी गली से होकर गुजर रहा था, और किसी ने आगे गली में एक डंडा बैरियर के तौर पर लगा रखा था! लीडर भेड़ आगे-आगे चलते हुए जब डंडे के पास पहुँची तो उसके ऊपर के कूदकर निकल गई ! लेकिन कूदते वक्त टांग डंडे से टकराने की वजह से डंडा नीचे गिर गया! अब बारी लीडर का अनुशरण करती भेड़ो की थी, तो डंडा नीचे गिर जाने के बावजूद भी जितनी भेड़े अपने लीडर के पीछे थी, वे भी उसी अंदाज में वहाँ से कूद-कूदकर निकली जैसे लीडर भेड़ निकली थी! और यही नजारा शायद इस देश में आप लोगो को भी अपने आस-पास यदा-कदा दीख ही जाता होगा, क्योंकि ऐसे ही बहुत से भेड़ो के झुण्ड इस देश में भी मौजूद है !

अब मुख्य बात पर आता हूँ ! इस पत्थर फेकू कायर आदिम सभ्यता ने पश्चिम एशिया की गलियों से निकलकर अब इस देश में भी एक नई चुनौती पैदा कर दी है! विरोध किस बात पर और किससे है, उसे देखने समझने की बजाय, बस जो हाथ लगा फेंक डालो, वह जाकर किसको लगा, इससे इन्हें कोई सरोकार नहीं ! और इसका सबसे कम उम्र शिकार हाल ही में बना मासूम दस दिन का कश्मीरी इरफ़ान ! अभी कल-परसों धार्मिक स्वतंत्रता के चैम्पियन इस पत्थर फेंकू सभ्यता ने अभिव्यक्ति की स्वतत्रता के ऊपर प्रहार करते हुए कर्नाटका में जो अपना वीभत्स चेहरा दिखाया, वह निंदनीय होने के साथ-साथ चिंतनीय भी है ! क्योंकि इनकी देखा-देखी कर अब अन्य धर्मो के मतावलंबी भी वही पद्धति अपनाने लगे है! जिसका अंदाजा आप हाल में पंजाब में, ईशू के चित्र और बाबा राम रहीम के खिलाफ सी बी आई के नए आरोपपत्र के विरोध में लोगो द्वारा सार्वजनिक सम्पति को पहुंचाए गए नुकशान से लगा सकते है! अफ़सोस तब होता है जब इनके तथाकथित बुद्धिजीवी भी आम जीवन में वही शैली अपनाने का प्रयास करते है जो अनपढ़ गवार लोग करते है! जिस देश का खा रहे है, उसका गुणगान करने की वजाए, इस तरह की मूर्खता और कायरतापूर्ण हरकतों की निंदा करने के बजाय, अगर इनके लेखो को पढो तो बस अपने धर्म और सर्वेसर्वा का ही गुणगान करते मिलेंगे ! मानो बाकी सब धर्मो के भगवान या सर्वेसर्वा निचले दर्जे के हों !इन्हें मैं एक उदाहरण देकर समझाना चाहूंगा! मान लो दो लड़कियां हैं, एक हर लिहाज से बहुत ही ख़ूबसूरत और एक औसत दर्जे की ! ( कृपयाइसे दूसरे अर्थों में कदापि न लिया जाए क्योंकि हर इंसान कुदरत की देन है) वे दोनों कहीं भी जाए तो जो ख़ूबसूरत लडकी है, उसे अपनी खूबसूरती के बारे में कुछ भी नहीं कहना पड़ता ! जबकि बदसूरत लडकी को अक्सर आप यह दलील देते सुन लेंगे कि वैसे तो मैं भी ख़ूबसूरत ही हूँ या यूँ कहे कि सबसे ख़ूबसूरत हूँ , मगर थोड़ा चेहरे पर दाग -धब्बे उग आये है ! तो आप इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि आप इतनी सारी दलीले देकर अपने धर्म को कहाँ और किस लडकी के साथ खडा पाते है ? महान वह है जो सामने से दूसरे को देखने पर नजर आये, न कि अपने मुह मिंया मिट्ठू बनकर!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।