Saturday, February 27, 2010

अरे, जब ५०-६० रूपये की भी औकात नहीं थी तो कार खरीदना क्या जरूरी था ?

आज सबेरे-सबेरे अपने पढ़ोसी मुत्तुस्वामी जी से एक बार फिर से मुकालात हो गई ! मदर डेयरी से दूध लेकर आ रहे थे ! अपने को सतारूढ़ दल का दांया अथवा बांया ( पता नहीं कौन सा, मुझे ठीक से नहीं मालूम ) हाथ समझते है! शक्ल से कुछ खीजे से प्रतीत आ रहे थे ! अपनी तो आदत है परत चढ़ते घाव को कुरेदना, अत: झठ से राम-राम ठोक दी ! थोबड़े को हल्का सा पिघलाते हुए, मेरे राम-राम का जबाब दिए बगैर बोले ;

ये हमारे लोग भी न,
च. चु... क्या बताऊ, कभी नहीं सुधरेंगे !

मैंने शांत होकर पूछा : क्या हुआ मुत्तुस्वामी जी, खीजे हुए क्यों हो इतने ?

वे बोले : अरे, गोदियाल जी , कल रात को ग्याराह बजे घर पहुंचा !

मैंने कहाँ : ट्रैफिक जाम की वजह से लेट पहुंचे होंगे, मैं भी देर से ही पहुंचा था! क्या करे, दिल्ली में ट्रैफिक ही इतना हो गया !
वे बोले : अरे ट्रैफिक को मारो गोली, ये तो अपने देश के इन महान नागरिकों की वजह से जाम लगा था कल.....
क्यों कल ऐसा क्या था?
मैंने बीच में उनकी बात काटते हुए पूछा !

वे बोले : अरे भाई तुम भी न, साहित्यकार बनने के चक्कर में मुझे लगता है कि तुम्हे रास्ते में ड्राइव करते हुए भी ब्लोगबाणी और चिठ्ठाजगत ही नजर आता रहता है! अरे देखा नही पेट्रोल पम्पो पर कितनी भीड़ थी, दो रूपये साठ पैसे बचाने के चक्कर में....... जब पैट्रोल पम्प पर जगह नहीं मिली तो सड़क में ही लाइन लगा दी कारों की! सचमुच बड़े "घोंचू" टाईप के लोग है, २०-२२ लीटर पहले से आधा भरी गाडी की इंधन की टंकियों में भरवाकर कितना बचा लिया होगा ? ज्यादा से ज्यादा ५०-६० रूपये, बस !

अरे जब पचास-साठ रूपये की भी औकात नहीं थी तो गाडी खरीदना क्या जरूरी था? ऊपर से दूसरे लोगो का २-३ लीटर पैट्रोल और वक्त जाम की वजह से जाया करवा दिया, वो अलग.........! तरस आता है, ऐंसे लोगो पर..... ( नौन-स्टॉप बोले ही जा रहे थे)

बात काटते हुए मैं बोल पडा; अच्छा स्वामीजी, आपके बजट के बारे में क्या राय है, आम लोग तो बड़े दुखी है इस बजट से.....

वे बोले; अरे भाई गोदियाल साहब , आम लोगो का काम ही दुखी होना है, अगर ये दुखी नहीं हुए तो ये आम लोग किस बात के ? अब देखिये न बजट को भी तो प्रणव दा ने आम बजट ही बताया ! यानी कि आम की तरह का बजट...
आम की तरह का बजट?
मैं कुछ समझा नहीं स्वामी जी, मैंने कहा!

वे बोले; अरे भाई, आम तो देखा ही होगा... उसको चूसो तो क्या मीठा-मीठा रस निकलता है, मगर चूसने वाला हकीकत से तब वाकिफ होता है, जब अन्दर एक मोटी गुठली मिले! बस वैसे ही समझ लीजिये, अपने प्रणव दा के बजट को भी ..ये अपने देश के घोंचू हैं न, इन्हें इसी तरह की चीजे सूट भी करती है इसीलिए तो अपनी पार्टी हमेशा अब्बल रहती है, क्योंकि वे इन घोंचुओ की आदते खूब भली प्रकार से जानते है !

मैं कुछ समझा नहीं, मैंने फिर कहा !

वे बोले; ज्यादा भोले भी मत बनो, अरे भाई इसमें समझने की क्या बात है, साधारण सी बात है, हमारी पार्टी के लोगो का मानना है और वे अंग्रेजो से मिली इतनी लम्बी शिक्षा-दीक्षा में यही तो सीखे है कि इन घोंचुओ को रोटी-दाल की चिंता में ही उलझाये रखो, अगर जिस दिन इन्हें भर भेट मिलना शुरू हो गया तो समझो ये झंडा कंधे पर रख हो-हल्ला मचाना शुरू कर देंगे........

मुत्तु स्वामी जी, आप ये बार-बार घोंचू शब्द का संबोधन क्यों कर रहे है ? मैंने टोकते हुए कहा !

वे बोले; अरे भाई, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है! आप तो जानते ही है कि हमारे देश में दो (अ)लोकप्रिय शब्द जिनका शुरुआती अक्षर "घ" व "चू" है, अंग्रेज अफसर अक्सर अपने गुलामों को तब " हो मैंन, तुम स्साला "घ" व "चू" हमारा काम ठीक से नहीं करटा...." कहकर संबोधित करते थे! अत हम लोगो ने उस 'घ' व"चू" को बाद में बिगाड़ कर " घोंचू" कर दिया ! बस , तभी से घोंचू शब्द फेमस हो गया! इसलिए प्रणव दा ने भी इन्हें दाल-रोटी के चक्कर में ही उलझाए रहने दिया ! आम आदमी जो घर नहीं खरीद सकता, किराए पर रहता है! किराए पर १०% सर्विस टैक्स लगा दिया ! तुम क्या सोचते हो मकान मालिक टैक्स अपनी जेब से पे करेगा ? नहीं इसी आम आदमी से वसूलेगा न ! तो उलझा दिया न मकान- मालिक और किरायेदार को, लड़ते रहो , हमें तो टैक्स चाहिए !
मगर मुत्तुस्वामी जी, सरकार ने वेतन भोगियों को टैक्स में इतनी छूट भी तो दी है !

मुत्तुस्वामी जी एक फूहड़ सी (अ)संसदीय हंसी हसने के बाद बोले ; यही तो हमें अंग्रेजो से सीख मिली कि मारो तो ऐसा मारो कि पानी भी न मांगे और उसे पता भी न चले कि किसने मारा ! आपको तो याद होगा न कि पिछले ही साल सरकार ने घोषणा की थी कि अगले साल से दस लाख तक की इनकम टैक्स फ्री हो जायेगी ! उसे हमारे प्रणव दा ने सफाई से अगले साल तक के लिए टाल दिया और पांच लाख तक सिर्फ १०% टैक्स का झुनझुना पकड़ा दिया, घोंचू भी खुश और सरकार का मकसद भी पूरा ! यही तो हमारी वो इस्टाइल है जिसके आधार पर इन घोंचुओ ने सब कुछ जानते हुए भी दोबारा सत्ता में बिठाया! इसे कहते है मैनेजमेंट , अब थोड़ा बहुत लौलीपोप इनको अगले चुनाव से पहले पकड़ा देंगे, फिर खुश हो जायेंगे ! भई, तभी तो हम कहते है कि हम सब को साथ लेकर चलने वाली पार्टी है! हा-हा-हा ( फिर वही (अ)संसदीय हंसी हंसकर मुत्तुस्वामी जी ऐसे निकल लिए, मानो संसंद में प्रधानमंत्री मनमोहन जी, प्रणव दा की पीठ थपथपाकर निकल लिए हो !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।