Monday, February 22, 2010

महंगाई के लिए जिम्मेदार असल छोटे-छोटे मुद्दे, जिन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है!


फिर से एक बार संसद में सरकार द्वारा बढ़ती महंगाई का ठीकरा विश्वव्यापी मंदी के सिर फोड़ दिया गया ! लेकिन इसकी जड़ो तक जाने की या तो किसी के पास फुर्सत नहीं, या यों कहे कि कोई इस ओर ध्यान देना ही नहीं चाहता ! मेरी समझ से आज की इस महंगाई के जो दो मुख्य कारण है वे हैं ; एक तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगल , और दूसरा उस पर पसरता वाहनों का मकडजाल !

खुद सरकार की पर्यावरण और वनों से सम्बंधित संसदीय समिति ने अपनी ३०वी रिपोर्ट में कहा था कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५० % यानी ३२० मिलियन हेक्टियर वन तथा कृषि योग्य हरित भूमि तथाकथित विकास की भेंट चढ़ गया! आंकड़े बताते है कि अकेले १९५१ से १९८० के बीच ६० हजार हेक्टियर भूमि सिर्फ सडको और विधुत ट्रांसमिशन लाइन बिछाने में ही प्रयुक्त हो गई साथ ही इसी दौरान १३४ हजार हेक्टियर भूमि आवास के लिए इस्तेमाल कर ली गई ! ये तो महज १९८० तक के आंकड़े थे ! अभी हाल के आंकड़ो पर गौर करे तो सिर्फ पिछले दस वर्षो में कुल कृषि योग्य भूमि का ३०% जनता और बिल्डरों ने आवास और टाउनशिप बनाने में नष्ट कर दी है! आप हर हफ्ते के अखबार उठा लीजिये, रोज कोई न कोई बिल्डर कहीं न कही टाउनशिप का विज्ञापन निकाल भूमि पूजन कर रहा है! और टाउनशिप में एक फ़्लैट की कीमत इतनी है कि एक आम मध्यमवर्गीय परिवार भी उसमे रहने के ख्वाब नहीं देख सकता, गरीब के रहने की बात तो दूर ! फिर सरकार किसके लिए खुले मन से इस कृषी योग्य भूमि को इस तरह लुटा रही है? क्या इससे कृषि उत्पादन कम नहीं होगा और क्या कृषी उत्पादन कम होने से कीमतों पर फर्क नहीं पडेगा ?

दूसरी तरफ हमारा माननीय सुप्रीम कोर्ट बड़े सक्रीय ढंग से सडको पर भारी वाहन पर नकेल कसने के लिए तो आगे आ गया, मगर कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि कम से कम भारी वाहनों के निर्वाध आवागमन के लिए सड़क पर एक अलग लेन तो हो, जिसपर किसी छोटा वाहन का चलना गैर-कानूनी माना जाए! आम जनता इन्ही भारी वाहनों में सफ़र करती है, अर्थव्यवस्था उअर कीमते इन्ही भारी वाहनों पर निर्भर है! लेकिन आम जनता की सोचता कौन है? सिर्फ जज साहब की कार कहीं जाम में नहीं फंसनी चाहिए, बस ! हर राज्य के बौडरो और चुंगियों पर अफसरशाहो की मनमानी के कारण हजारो ट्रक और मालवाहक वाहन घंटो खड़े रहते है! क्या इससे लागतों पर फर्क नहीं पड़ता ? रोज कोई न कोई कार और दुपहिया वाहन निर्माता नए-नए मॉडल बाजारों में उतार रहा है! पर किसी ने सोचा कि वे चलेंगे किस सड़क पर? सड़के तो पहले से वाहनों से पटी पडी है! जब ये वाहन भी जाम लगायेंगे तो इससे तेल की खपत नहीं बढ़ेगी क्या और उससे लागतों पर फर्क नहीं पडेगा क्या ? मकान और कार भले ही हर परिवार की ख्वाइश हो, मगर उसके लिए आधारभूत सुविधाए भी तो होनी चाहिए !

अभी भी वक्त है, मेरा मानना है कि अभी भी वक्त है अगर सरकार इन कुछ उपायों को तुरंत लागू करे तो महंगाई की आधी समस्या चुटकियों में ख़त्म हो जायेगी ;
१. अगले दस बर्षो के लिए कृषी योग्य भूमि पर किसी भी निर्माण पर तुरंत रोक , कोई नया टाउनशिप प्रोजक्ट न लगे ! रहने के लिए प्रयाप्त घर देश में मौजूद है , अभी क्या जनता खुले मैदानों में सो रही है ? और जो सो रही है उसे क्या ये महंगी टाउनशिप छत दे देंगे ?
२. बैंको तथा संस्थाओं से निजी वाहन खरीदने के लिए लोंन देने पर तत्काल प्रतिबन्ध ! यदि किसी को खरीदना ही है तो अपनी कमाई में से खरीदे, लोंन लेकर नहीं! दिखावे और देखा-देखी की इस दुनिया में लोगो के गर में तो खाने को आता नहीं है और बाहर लों लेकर कार खडी कर रहे है!
३. दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर प्रतिबन्ध, इसके लिए तीसरा बच्चा होने पर, दंड के तौर पर उस परिवार से मोटा शुल्क वसूलने की व्यवस्था होनी चाहिए !
४. सरकार की फिजूल खर्ची और भ्रष्ठाचार पर कारगर रोक,उत्तर प्रदेश में डेड करोड़ तो मंत्रियों ने एक साल में चाय-पानी पर ही खर्च कर दिए! दिल्ली में कॉमन वेल्थ खेलो से सम्बंधित बजट निरंतर बढ़ रहा है जिसके लिए सरकार में भ्रष्टाचार मुख्य कारण है! अभी पैसा लुटा दिया, वसूलेंगे किससे ? जनता से टैक्स लगा कर , परिणामत: महंगाई बढ़ेगी!
५.देश की औद्योगिक इकाईया निरंतर बंद होती जा रही है, बिजली की समस्या इत्यादि की वजह से! बाजार चीनी माल से पटे पड़े है, जो एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए घातक है! अगर देशी मिलों और कारखानों को सरकारी प्रोत्साहन दिया जाएगा तो देश के उत्पादन के साथ साथ रोजगार भी बढेगा!
तो अभी भी वक्त है इन कुछ उपायों को तुरंत अमल में लाने के लिए !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।